बुधवार, 27 मार्च 2019

हमारी प्यारी बेटियाँ

                                       

    कहते हैं "बेटियाँ" लक्ष्मी का रूप होती है, घर की रौनक होती है। ये बात शत प्रतिशत सही है। इसमें कोई दो मत नहीं हो सकता कि बेटियाँ ही इस संसार का मूल स्तंभ है। वो एक सृजनकर्ता और पालनकर्ता है। प्यार और अपनत्व की गंगा बेटियों से ही शुरू होती है और बेटियों पर ही ख़त्म हो जाती है। लेकिन आज हमारा विषय हमारी प्यारी बेटियों पर नहीं है बल्कि बेटियों के " बेटी से बहू "बनने के सफर पर है।

रविवार, 24 मार्च 2019

माँ- बेटी " कल आज और कल "

    

        कहते है, औरत को बेटी से ज्यादा बेटे की चाह होती है लेकिन मुझे ये धारणा थोड़ी गलत लगती है। पुत्र की कामना शायद वो सिर्फ परिवार और पति के इच्छा को पूरा करने और वंश को आगे बढ़ाने के मोह वश करती है। क्यूकि हमारे देश में औरते अपने ख़ुशी से ज्यादा दुसरो की ख़ुशी का ख्याल रखती है। वरना ,हर औरत अपने बच्चे में अपना अक्स देखना चाहती है। एक बेटी को पालने पोसने और सजाने -सवारने में उसे जो आत्मिक ख़ुशी मिलती है उसे शब्दों में बया करना मुश्किल है।

शनिवार, 16 मार्च 2019

एक विरहन ऐसी भी..........

                         
                        

                                                   यारा सिली सिली विरह की आग में जलना। 
                                                   ये  भी  कोई  जीना  हैं , ये  भी कोई  मरना। 
                                                   यारा सिली सिली विरह की आग में जलना। 
   
     विरह एक ऐसी अग्नि हैं जो विरहन के शरीर को ही नहीं आत्मा तक को धीमी धीमी आँच पर सुलगता रहता हैं। "ना मैं जीवति ना मरियो मैं विरहा मारो रोग रे ,वावरी बोले लोग।" बस यही दशा होती हैं उसकी। जब भी कोई विरह गीत ,कवित ,दोहे या छंद लिखे जाते है तो उनकी मुख्य नायिका राधा ,मीरा ,सीता या यशोधरा आदि ही होती हैं।इन सब ने असीम विरह वेदना सही हैं। पर क्या इन सब की विरह-वेदना एक सी थी। शायद नहीं ,जैसे प्रेम के अलग-अलग रूप और एहसास होते हैं वैसे ही विरह के भी कई रूप होते हैं और उनकी वेदना भी अलग -अलग होती  है। वैसे प्रेम और विरह की जो मुलभुत संवेदनाये होती हैं  वो तो एक सी ही होता है। 

"हमारी जागरूकता ही प्राकृतिक त्रासदी को रोक सकती है "

मानव सभ्यता के विकास में नदियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है तो उनकी वजह आने वाली बाढ़ भी हमारी नियति है। हज़ारों वर्षों से नदियों के पानी क...