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गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

"अश्रु गंगाजल "


 

आज ना जाने फिर क्यूँ आवाक हूँ.....अतीत और भविष्य के मध्य....वर्तमान में सतत दोलित....एक अबोध पेंडुलम की तरह.......संबंधों की डोर से बँधी.....मैं झूलती जा रही हूँ......तभी, आँखें कुछ आश्वस्त होती है.......शायद, आसमान की बुलंदियों को....छूने की मधुर कामना से......मगर, भावनाओं के अप्रत्यशित प्रहार से.....मैं चूर-चूर हो जाती हूँ....संबंधों की डोर टूट जाती है,

और तब मैं.....

    एक अनाम अतुल गहराईयों में......लुढ़कने लगती हूँ......आधारहीन  पत्थर की तरह.....तभी, भावनाओं से आहत मेरा शरीर........छपाक से किसी की आग़ोश में गिर पड़ता है.......जो शायद,मेरा ही इंतजार कर रहा था..... ना जाने कब से .......मैं कुछ कह नहीं सकती......वो इंतजार था या.....मुझ पर अनायास उमड़ा उसका दयाभाव......जिसने मुझे अपने दामन में संभाल लिया......मेरे गिरने से....... प्रतिक्रिया में उठी तरंगों की उफाने.......गर्जनघोष से नभ को ललकार उठी.......या शायद, उस प्रिय के प्रहार से व्यथित होकर.......मैं खुद हर्ष से पुलकित हो.....खिलखिला उठी थी.....एक मधुर हल्केपन का अहसास.....मेरा रोम-रोम रोमांचित हो रहा है.....

मगर ये क्या---- 

उस जल का विश्लेषण कर.......उस खारे नमकीन जल को चखकर......मैं पुनः आवाक हो जाती हूँ.....  मुझे विश्वास नहीं कि- वो जल है......अरे,यह तो मेरे प्रियतम का दिया हुआ.....पूर्व जन्म का प्रसाद है.......जो अश्रु बनकर उसकी आँखों  के कोर से......ना जाने कब से बह रहा है......और उस अश्रु गंगाजल के खारे झील में.....मैं डूबती चली गई .... .मेरे सारे जख्म भर चुके हैं..... उस अमृत का पान कर मैं निर्मल हो चुकी हूँ.......

"हमारी जागरूकता ही प्राकृतिक त्रासदी को रोक सकती है "

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