मां सुनो- ये कहते हुए मिनी ने ईयर फोन का एक सिरा नीरा के कानों में लगा दिया।एक vioce massege था जिसमें साहिल की मां बोल रहीं थीं" मिनी को बोल दो चाय बनाना जरूर सीख ले पापा को खुश करने के लिए और कुछ खाना बनाना भी... अच्छा मिनी खाना बनाएगी नौकर चाकर नहीं- साहिल पुछा। नहीं मेरे लल्ला के लिए खाना तो मैं या मिनी ही बनाएंगे -साहिल की मां बोल रही थी "
जैसे ही मैसेज खत्म हुआ मिनी बोली - "मम्मा ये क्या हैं मुझे तो इनकी बातों से डर लग रहा है ये कितने सपने देख रही है मुझे लेकर..."हां बेटा वो बहुत खुश है- नीरा ने कहा। लेकिन मम्मा मैं ये सब नहीं कर सकी तो....तुम्हें तो पता है मैं टिपिकल लाइफ नहीं जी सकती....एक सुघड़ बहु की तरह खाना बनाऊं अपनी दिनचर्या सिर्फ सबको खुश रखने में बिताऊं....तुम लोगों की तरह चाह कर भी हम नहीं कर पाएंगी ये सब...। मिनी की आवाज में फिक्र थी। वो साहिल से बहुत प्यार करती थी और उसकी मां से भी। लेकिन जब जब रिश्ता जुड़ने की बात होती साहिल की मां मिनी को लेकर बहुत उत्साहित हो ढेरो सपने देखने लगती । वो बाल गोपाल की पुजारन एक सीधी और सरल महिला थी जिसने जीवन में बहुत दुख झेले थे और मिनी मां बाप की एकलौती संतान बेहद नाजों में पली-बढ़ी। लेकिन नीरा ने उसको संस्कारी बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। मगर कभी भी उस पर कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं पड़ी थी । इसलिए वो साहिल की मां की अपेक्षाओं से कभी कभी घबराने लगती कि कहीं मैं उनकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी तो उन्हें कितना दुःख होगा। वैसे भी अपनी कैरियर को लेकर उसके सपने बहुत बड़े थे। वो ना ही अपना सपना छोड़ सकती थी और ना ही वो कभी साहिल और उसकी मां का दिल दुखाना चाहती थी । ऐसे में एक अजीब दुविधा में पड़ जाती थी वो।
जब वो ज्यादा परेशान हो गई तो नीरा ने उसे समझाया - बेटा गुलाब के पौधे को देखा है तुमने कितना खूबसूरत होता है क्यूं है न लेकिन जब उसे तोड़कर घर लाना चाहो तो संग संग कुछ कांटे भी तो आते हैं तो क्या इस डर से हम गुलाब को लेने से डर जाते हैं?? नहीं न, तो जीवन में जब गुलाब के फूल की तरह खुबसूरत रिश्ते जुड़ते हैं या कोई खुशियां आती है तो संग संग कुछ कांटे समान परेशानियां भी साथ आती और यदि इसे हम बिना घबराए प्यार और समझदारी से एक एक करके निकलते जाएंगे तो जीवन मधुबन बन जाएगा। साहिल की मां ने बहुत दुख झेला है और अब जब घर में खुशी आती दिखाई दे रही है तो वो अति उत्साहित हो जा रही है और वैसे भी हमारी उम्र में ये सारी बातें स्वाभाविक है, हमारी बातें खानें से ही शुरू होती है और खाने पर ही खत्म... वो तुम से भी तो तुम्हारे खानें की पसंद ही पुछ रही थी ये कहते हुए कि तुम जब पहली बार उनके घर आओगी तो वो बनाएगी - कहते हुए नीरा मुस्कुराने लगी।
मिनी समझ रही थी कि ये साहिल की मां का प्यार है फिर भी उसकी एक ग़लती से उनका दिल ना दुखे इससे वो डर जाती थी। मां की बातें उसे समझ आई और वो उनसे लिपट कर बोली -" तुम नहीं होती तो मेरा क्या होता" मैं नहीं होती तो तुम इस दुनिया में आती ही नहीं - कहकर नीरा मुस्कुराने लगी और मिनी की ठहाके गूंज उठी। नीरा उसे गले से लगाए सोच रही थी " कुछ दिनों में मेरे घर की मुस्कान किसी और के घर खिलखिला रही होगी ' उसकी आंखें नम थी मगर मन में एक अजीब सुख की अनुभूति।