गुरुवार, 31 जनवरी 2019

यादें

                        
 

                             "बहुत खूबसूरत होती है ये यादों की दुनिया ,
                                       हमारे बीते हुए कल के छोटे-छोटे टुकड़े 
                              हमारी यादों में हमेशा महफूज रहते हैं, 
                                      यादें मिठाई के डिब्बे की तरह होती है
                          एक बार खुला तो, सिर्फ एक टुकड़ा नहीं खा पाओगे "

      वैसे तो ये एक फिल्म का संवाद है परन्तु है सत-प्रतिशत सही.....यादें सचमुच ऐसी ही तो होती है और अगर वो यादें बचपन की हो तो " क्या कहने " फिर तो आप उनमे डूबते ही चले जाते हो....परत- दर -परत खुलती ही जाती हैं....खुलती ही जाती...कोई बस नहीं होता उन पर। उन यादों में भी सबसे प्यारी यादें स्कूल के दिनों की होती है। वो शरारते....वो मस्तियाँ....वो दोस्तों का साथ....खेल कूद और वार्षिक उत्सव के दिन....शिक्षकों के साथ थोड़ी-थोड़ी चिढ़न और ढेर सारा सम्मान के साथ प्यार....हाफ टाइम के बाद क्लास बंक करना और फिर अभिभावकों के पास शिकायत आना....फिर उनसे डांट सुन दुबारा ना करने का वादा करना और फिर वही करना...सब कुछ बड़ी सिद्दत से याद आने लगती है। सच बड़ा मज़ा आता था...क्या दौर था वो. ........

शुक्रवार, 25 जनवरी 2019

"प्रकृति और इन्सान"


     नदी,सागर ,झील या झरने ये सारे जल के स्त्रोत है, यही हमारे जीवन के आधार भी है। ये सब जानते और मानते भी है कि " जल ही जीवन है." जीवन से हमारा तात्त्पर्य सिर्फ मानव जीवन से नहीं है। जीवन अर्थात " प्रकृति " अगर प्रकृति है तो हम है। लेकिन सोचने वाली बात है कि क्या हम है ? क्या हम जिन्दा है? क्या हमने अपनी नदियों को , तालाबों को ,झरनो को ,समंदर को ,हवाओ को, यहाँ  तक कि धरती माँ तक को जिन्दा छोड़ा है? इन्ही से तो हमारा आस्तित्व है न....अपनी भागती दोड़ती दिनचर्या को एक पल के लिए रोके और अपनी चारो तरफ एक नज़र डाले और दो घडी के लिए सोचे....हमने खुद अपने ही हाथो अपनी प्रकृति को यहाँ तक की अपने चरित्र तक को कितना दूषित कर लिया है। 

सोमवार, 7 जनवरी 2019

" बृद्धाआश्रम "बनाम "सेकेण्ड इनिंग होम "







" बृद्धाआश्रम "ये शब्द सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। कितना डरावना है ये शब्द और कितनी डरावनी है इस घर यानि "आश्रम" की कल्पना। अपनी भागती दौड़ती ज़िन्दगी में दो पल ठहरें और सोचे, आप भी 60 -65 साल के हो चुके हैं ,अपनी नौकरी और घर की ज़िम्मेदारियों से आज़ाद हो चुके हैं। आप के बच्चों के पास फुर्सत नही है कि वो आप के लिए थोड़ा समय निकले और आप की देखभाल करें।(कृपया ये लेख पूरा पढ़ेगे )

बुधवार, 2 जनवरी 2019

जीवन का अनमोल "अवॉर्ड "

                                                                   " नववर्ष मंगलमय हो "
                                                       " हमारा देश और समज नशामुक्त हो "

                                           नशा जो सुरसा बन हमारी युवा पीढ़ी को निगले जा रहा है...
                                    अपने आस पास नजरे घुमाये देखे...आये दिन कई घर और ज़िंदगियाँ 
                                इस नशे रुपी सुरसा के मुख में समाती जा रही है। मेरे जीवन से जुड़ा मेरा ये 
                                                  संस्मरण नशामुक्ति के खिलाफ एक आवाज़ है........


        सुबह-सुबह अभी उठ के चाय ही पी रही थी कि फोन की घंटी बजी...मैंने फोन उठाया तो दूसरी तरफ से  चहकते हुए शालू की आवाज़ आई, हैलो माँ --" Merry Christmas" मैंने कहा -" Merry Christmas you too" बेटा , मैं अभी-अभी सो कर उठी हूँ और उठते ही मैंने सोचा सबसे पहले अपने सेंटा को  Wish करूँ--वो चहकते हुए  बोली।  मैंने कहा --बेटा, मैं तो आप से इतनी दूर हूँ और...पिछले साल से मैंने आप को कोई गिफ्ट भी नहीं दिया..फिर मैं आप की सेंटा कैसे हुई? उसने बड़े प्यारी आवाज़ में कहा -" माँ,आप जो हमें गिफ्ट दे चुकी है उससे बड़ा गिफ्ट ना किसी ने दिया है और ना दे सकता है...उससे बड़ा गिफ्ट तो कोई हो ही नहीं सकता "  मैं थोड़ी सोचती हई बोली --ऐसा कौन सा बड़ा  गिफ्ट मैंने दे दिया आप को बच्चे, जो मुझे याद भी नही। रुथे हुए गले से वो बोली -" पापा " आपने हमें हमारे पापा को वापस हमें दिया है माँ। ये सुन मैं निशब्द हो गई। 


"हमारी जागरूकता ही प्राकृतिक त्रासदी को रोक सकती है "

मानव सभ्यता के विकास में नदियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है तो उनकी वजह आने वाली बाढ़ भी हमारी नियति है। हज़ारों वर्षों से नदियों के पानी क...