ना मैं कविता, ना ही गीतिका,
मैं तो नज़्म पुरानी हूँ।
ना भुला पाओगे कभी जिसे,
मैं वो अधुरी कहानी हूँ।।
तेरी लग्न में मस्त-मगन,
मैं एक प्रेम दीवानी हूँ।
अटूट स्नेह की डोर बंधी,
मैं तो तेरी रानी हूँ।।
मीरा की मैं भक्ति गीत हूँ,
विरहन राधा प्यारी हूँ।
सोहनी की मैं मधुर तान हूँ,
हीर की नेत्रवारि हूँ।।
प्यार का एक नगमा हूँ,
तेरे होठों पे सजती हूँ।
तेरी पावन-पवित्र आँखों में,
बूंद बन सिसकती हूँ।।
सांसों में तेरी घुली हुई,
तेरे दिल की मै धड़कन हूँ।
रूह में तेरी बसी हुई,
तेरे रगो की मैं शोणित हूँ।।
तेरी ख्वाबों की गलियों में,
मैं दिन रात भटकती हूँ।
तेरी यादों की आँगन में,
बादल बन बरसती हूँ।।
ना पास तुम्हारे आ पाऊँ
ना दुर तुमसे जा पाऊँ
जो तुम को छू गुजर जाती है
मैं वो पवन सुहानी हूँ
माना, बंधी हूँ सीमाओं में
फिर भी, मौजों की रवानी हूँ
मर्यादाओं में बंधी हुई
मैं संस्कार पुरानी हूँ।।
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(चित्र-गूगल साभार से ) कविता