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रविवार, 14 मार्च 2021

"सीख"



अरे....बिट्टू बेटा, बाहर इतना शोर क्यों हो रहा है और बाबुजी किस पर गुस्सा हो रहे हैं।  

अरे चाची... क्या बताऊँ, दादा जी छोटी सी बात पर किसी औरत पर बहुत गुस्सा हो रहे हैं....

उसे ही अभद्र बोल रहे हैं....

जब कि गलती उस औरत की है भी नहीं....यदि वो दुकान से कोई सामान ले रही है 

और उसमे कुछ कमी है तो... शिकायत करना उसका वाज़िब है न 

मगर..... दादा जी को कौन समझाए..... 

यदि हम छोटी सी बात भी चीखकर या गुस्से में बोले तो अभद्र हो जाते हैं... 

और जब बड़े ऐसा करें तो, उन्हें कौन रोकें......

ऐसा नहीं बोलते बिट्टू, दादा जी बड़े है न.....

हाँ, चाची वही तो वो बड़े है जो करे वो सही.....

क्या बड़े कभी गलत नहीं होते ? 

मुँह बनाकर बोलते हुए बिट्टू तो निकल गया और मैं.... 

सोचती रही बात तो सही कह रहा है लेकिन मैं उसे प्रोत्साहन तो दे नहीं सकती.......

 क्योंकि वो गलत होगा और चुप रहना वो भी सही नहीं..... 

फिर मैं तो घर की नई सदस्य हूँ ......घर के रीत-रश्मों से भी बेखबर.....बोलूँ भी तो क्या ?

दिमाग ख्यालों में उलझा था.....तभी मन ने कहा -वो घर के मुखिया है और.....

 उससे भी ज्यादा वो बुजुर्ग है.....

 उनका तो सिर्फ सम्मान किया जा सकता है सवाल-जबाब नहीं....

घर-परिवार की मर्यादा तभी बनी रहती है। 

हाँ,उनसे सीख जरूर ले सकते हैं कि-

जो गलती वो कर रहे हैं वो हम ना करें.....

छोटों की नज़र में खुद का मान-मर्यादा बनाये रखना भी बड़ों का अहम फर्ज है। 

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021

"तुम्हारी आँखें हमारी आँखों से अलग थोड़े ही है "


 

 "नानी माँ, अगर मैं अपनी पसंद से शादी कर लुंगी तो क्या आप उसे अपना लेंगी " मनु ने नानी माँ को  गले लगाते हुए बड़े प्यार से पूछा। हाँ ,अपना ही लेगें और कर भी क्या सकते हैं .....आखिर रहना तो तुम्ही को है उसके साथ....इसीलिए अपनी पसंद से लाओ तो ही बेहतर है - नानी माँ ने भी उसी प्यार से जबाब दे दिया। 

     मैंने तुरंत एतराज किया -"ये क्या माँ,हमें तो लड़को से बात  करने की भी आजादी नहीं थी,बात क्या हमें तो किसी लड़के की तरफ देखना तक मना था और इसे अपनी पसंद से शादी करने की इजाजत मिल रही है "

     जमाना बदल गया है बेटा .....जमाना नहीं आप भी बदल गयी हो -मैंने तुनुकते हुए कहा। जमाने के साथ बदलना ही पड़ता है बेटा-माँ ठंडी साँस लेते हुए हँस पड़ी। 

मनु ने मुझे टोकते हुए कहा -" मम्मी पहले मुझे बात करने दो ....नानी माँ, मैं चाहती हूँ कि मैं जिससे भी शादी करूँ आप सब उसे मुझसे भी ज्यादा प्यार करें ....आप सब की ख़ुशी और रजामंदी  मेरे लिए बहुत मायने रखता है, इसलिए आप खुलकर बोले.... "

अरे,बेटा जी... मुझे तुम पर पूरा भरोसा है "तुम्हारी आँखें हमारी आँखों से अलग थोड़े ही है "

नानी माँ के बातों की गहराई को मनु ने समझा या नहीं  ये तो नहीं पता बस,  इतना सुनते ही वो ख़ुशी से नानी माँ से लिपट गई और मुझे बड़ी जोर की हँसी आ गई। क्यों हँस रही हो माँ -मनु ने हैरानी से पूछा।   मैंने कहा- कुछ नहीं बेटा। 

सच, हमारे बुजुर्ग कितने सयाने होते है बिना कुछ कहे भी बहुत कुछ कह जाते हैं  बिना डोर के भी आपको कितने ही बंधनों में बाँध देते हैं । 

 "तुम्हारी आँखें हमारी आँखों से अलग थोड़े ही है " 

 ये कहकर माँ ने मनु को इजाजत भी दे दिया और हिदायत भी कि -  पसंद वही करना जो हमारे संस्कारों में  बँधा हो, हमारी संस्कारों से बाहर जाने की इजाजत नहीं है तुम्हें। इसीलिए तो, बुजुर्ग हमारे "मार्गदर्शक भी होते हैं और मार्गरक्षक भी।"

  

गुरुवार, 7 जनवरी 2021

दोष किसका ???

    









नमस्ते आंटी जी, कैसी है आप - शर्मा आंटी  को देखते ही मैंने हाथ जोड़ते हुए पूछा। 

    खुश रहो बेटा....तुम कैसी हो...कब आई दिल्ली....बिटिया कैसी है....कितने दिनों के लिए आई हो....शर्मा आंटी अपनी चिरपरचित अंदाज़ में सवालों की झड़ी लगा दी। अरे, ये मुआ कोरोना जो ना कराये.....जरूर बिटिया का काम  छूट गया होगा तभी आयी हो न.... इस कोरोना के कारण तो घर से निकलना ही नहीं हो रहा....आज कितने दिनों बाद निकली हूँ घर से ......ना निकलती तो पता ही नहीं चलता की तुम आ गई हो - वो बोले जा रही थी। 

     अरे आंटी, सांस तो ले लो-  मैंने हँसते हुए कहा। मेरे इतना कहते ही वो भी हँसने लगी। मैंने कहा -आंटी मेरी छोडो अपनी सुनाओं कैसे हैं सब....आपकी बहु कैसी है....अब तो बहु के हाथ का खा रही है इसीलिए वजन बहुत बढ़ गया है आपका....शादी हुए तो एक साल से ज्यादा हो गया जरूर घर में नन्हा-मुन्ना भी आ ही गया होगा...कब खिला रही है मिठाई - मैंने भी उन्ही के जैसे एक पर एक सवाल रख दिए।  जैसे-जैसे मैं आंटी से सवाल किए जा रही थी वैसे-वैसे आंटी के मुँह का ज्योग्राफिया बदलता जा रहा था। मैं मन ही मन सोच रही थी -इन्हे क्या हुआ इनका मुँह तो कड़वे करेले जैसा बनता जा रहा। 

   मेरे सवालों से आंटी के सब्र का बांध जैसे टूट गया अचानक से झिड़कती हुई बोली -अरे मेरे आगे उस कलमुही का नाम ना ले, खून जलने लगता है मेरा...मर गई वो। हे भगवान ! कब मर गई...कैसे मर गई - मुझे तो शॉक सा लग गया, मैं एक साल बाद दिल्ली आई थी मुझे तो ये पता ही नहीं था। वो उतने ही गुस्से में बोली- अरे, मेरे वास्ते मर गई....वो तो शादी के एक महीने बाद ही मेरे बेटे को छोड़ कर चली गई....किसी दूसरे के साथ चक्कर था उसका......नाहक शादी में इतने पैसे खर्च कर दिए...हाथ ढेला ना आया। 

    आंटी तो गुस्से में बड़बड़ाती हुई निकल गई, उनकी दुखती रग पर हाथ जो रख दिया था मैंने, मगर मैं उनकी बातें सुनकर सन्न रह गई। आंटी हमारे ही मुहल्ले में रहती है एक बेटा एक बेटी है अच्छा-खासा धूम-धाम से बेटे का व्याह की थी और बहु एक महीने में ही घर छोड़कर चली गई और तलाक का नोटिस भेज दी। आंटी की बेटी तो पहले से ही तलाकशुदा थी वो भी आंटी के घर में ही बैठी थी। आंटी तो चली गई मगर मेरे जेहन में कई सवाल छोड़ गई.... 

कमी किस में थी ?

दोष किसका था ?

क्यूँ घर बस काम रहे हैं, उजड़ ज्यादा रहे हैं ?

क्यूँ आखिर क्यूँ ?

"हमारी जागरूकता ही प्राकृतिक त्रासदी को रोक सकती है "

मानव सभ्यता के विकास में नदियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है तो उनकी वजह आने वाली बाढ़ भी हमारी नियति है। हज़ारों वर्षों से नदियों के पानी क...