" तेरे सुर और मेरे गीत
दोनों मिलकर बनेगे प्रीत "
इस गीत के सिर्फ एक पंक्ति से ही गीतकार भरत व्यास ने जीवन में सच्चे प्रेम और ख़ुशी को पाने का हर रहस्य खोल दिए हैं। यदि सुर और गीत की तरह एक हो गए तो जीवन में शास्वत प्रेम की धारा स्वतः ही बहने लगेगी। फिर ना कोई बिक्षोह का डर होगा ना कोई मिलने की तड़प। फिर इस नश्वर जगत में भी जीवन इतना सुरमयी हो जायेगा कि जीते जी स्वर्ग सुख की अनुभूति हो जाएगी।
इस गीत के एक पंक्ति ने ही जीवन के बड़े गूढ़ रहस्यो को अपने भीतर समाहित कर रखा हैं कि सच्ची प्रीत वही हैं ,सच्चा रिश्ता वही हैं जो सुर और गीत की तरह एकाकार हो। उस वक़्त के तत्कालीन परिवेश में ( जब ये गीत रचा गया था ) ये भावनाएं विशुद्ध रूप से देखने को मिलती थी। परन्तु आज के समाज में हर एक रिश्ते में " अपनी ढ़पली अपना राग " जैसे हालात हैं। कोई अपना सुर दे रहा हैं तो कोई अपना ही गीत गए जा रहा हैं। उन्हें नहीं मतलब हमारे सुर और गीत एक दूसरे से मिल भी रहे हैं या नहीं ,हर एक को अपना ही किया हुआ अच्छा लग रहा हैं। बस एक दूसरे को दोष देने में लगे हैं कि - " मेरे तो सुर बड़े मधुर हैं तुम्हारे ही गीत के बोल अधूरे हैं " तो कोई कहता हैं - " नहीं जी ,मैंने तो गीत के बोल बहुत सुंदर लिखे हैं तुमने ही सही सुर नहीं दिए।"
कोई नहीं कहता -" मैं अपने गीतों के बोल को तुम्हारे सुरो के अनुरूप बदल लेती हूँ। " या " मैं तुम्हारे हर गीत के बोल को अपने सुरों में बड़े प्यार से पिरो लुगा। " माना किसी और के गीत के साथ सुर और ताल मिलना कभी कभी मुश्किल हो जाता है.गीत को सुर ना दे पाए तो क्या हुआ सुर को ताल तो दे ही सकते हैं वो भी नहीं कर पाए तो भी कोई बात नहीं सुर के साथ सुर तो मिला ही सकते हैं। दूरदर्शन पर बहुत पहले एक गीत आता था " मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा " अगर हम सुर से सुर ही मिला ले तो भी हमारा जीवन सुरमयी हो जायेगा।
जब तक एक गीत को सुंदर सुरो से लयबद्ध नहीं किया जायेगा तब तक मनभावन संगीत सुनने को नहीं मिलेगा। परन्तु आज के परिवेश में व्यक्ति के जीवन में ना सुर हैं ना ताल ,गीत के बोल भी भावहीन हो चुके हैं ,ऐसे में मधुर संगीत कहाँ से सुनाई देगा। हर तरफ बस हाहाकार मचा हैं ,हर रिश्ते में दरार पड़ी हैं ,चाहे वो पति पत्नी हो ,माँ -बेटी हो ,पिता- पुत्र हो ,दोस्त- रिश्तेदार हो या प्रेमी- प्रेमिका हो। क्योकि जीवन से सच्चा संगीत चला गया हैं ,संगीत बेसुरा हुआ पड़ा हैं और भावनाएं खंडित। हर एक मनुष्य की आत्मा तड़प रही हैं एक मधुर बोल सुनने को, जिसे सुन उसका अंतःकरण भी सुरमयी बन सके। लेकिन समस्या ये हैं कि सब सुनना ही चाहते हैं कोई बोलने का प्रयास नहीं कर रहा। पहले आप खुद अपने अंतःकरण से एक सच्चा और मधुर सुर तो निकलो ,उस सुर पर कोई ना कोई एक मधुर गीत की रचना जरूर कर देगा।
सिर्फ संगीत में ही नहीं ,जीवन में भी सुर और ताल का मिलना बहुत ही जरुरी हैं।जीवन का सुर और ताल हैं -सच्ची "श्रद्धा और विश्वास " ये दोनों जिस किसी भी रिश्ते में समाहित होगा उस रिश्ते में संगीत की तरह मधुरता तो होगी ही, साथ ही साथ इस तरह के प्यारे रिश्ते से जन्मे जीवन संगीत की मधुरता से उस व्यक्ति का जीवन ही नहीं वरन उसका घर- परिवार और समाज भी सुरमयी हो जायेगा। गीतकार रविन्द्र जैन ने आज के दौड में सच्चे प्यार के लिए तरसते हर एक दिल की ख्वाहिश को कुछ इस तरह से वया किया हैं -
तो जिंदगी हो जाये सफल।।
तु जो मेरे मन को घर बना ले ,मन लगा ले।
तो बंदगी हो जाए सफल।।