हे! मानस के दीप कलश
तुम आज धरा पर फिर आओ।
नवयुग की रामायण रचकर
मानवता के प्राण बचाओ।।
आज कहाँ वो राम जगत में
जिसने तप को गले लगाया ।
राजसुख से वंचित रह जिसने
मात-पिता का वचन निभाया।।
सुख कहाँ है वो रामराज्य का ?
वह सपना तो अब टूट गया ।
कहाँ है राम-लक्ष्मण से भाई ?
भाई से भाई अब रूठ गया।।
सुन लो अब अरज ये मेरी
मैं धरती जननी हूँ तेरी।
दे दो, ऐसे राम धरा को
भ्रष्टाचार जो दूर भगा दें ।
दे दो, ऐसे कृष्ण मुझे तुम
जो द्रोपदी की लाज बचा लें।।
दे दो, भरत-लखन से भाई
जो भाई का साथ निभा दें।
लौटा दो, वो अर्जुन तुम मुझको
जो धर्मयुद्ध का मर्म समझा दे ।।
हे!मेरे मानस पुत्रो
मेरी करुण पुकार तुम सुन लो।
दहक रहा है मेरा आँचल
आओ, धरा की लाज बचा लो।।