एक दिन,निकले थे
अनजान सफर पे..
रास्ते पता ना थे
मंजिल की परवाह ना थी
बस अपनी धुन में..
कदम-दर-कदम बढाती गई
उदेश्य,सिर्फ दिल की ख़ुशी
कुछ टेढ़े,कुछ मेढ़े
टूटे-फूटे शब्दों को जोड़ते
मन की बात
कलम कहती गई
साथी मिलते गए
हौसला अफजाई होती गई
दोस्तों का संग मिला
महफ़िल सजती गई
गुणीजनों का सहयोग मिला
ज्ञान-गंगा बढ़ती गई
अब रुकना कहाँ है ?
परवाह नहीं...
ख़ुश हूँ,मुतमइन हूँ
और आज,
सौवे पायदान पर
कदम रख चुकी हूँ...
आपका संग,आपका आशीर्वाद
रास आ गया मुझे
शुक्रिया....शुक्रिया
तहे दिल से शुक्रिया दोस्तों !
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आज की इस बिषम परिस्थिति में खुद को व्यस्त , संयमित
और सकारात्मक रखने का एक मात्र सहारा "लेखन कार्य "
किसी से कुछ सीखते हैं किसी को कुछ सिखाते हैं,
बिना किसी से शिकवा-शिकायत किये
वक़्त के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने का प्रयास करते हैं।
खुश रहते है और दूसरों को खुश रखते है.....
एक बार फिर से आप सभी को
हृदयतल से शुक्रिया....