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गुरुवार, 11 मार्च 2021

फिर क्यूँ??



क्यूँ ये मन उदास है ?

किसकी इसे तलाश है ?

सीने में हूक सी उठती है। 

क्यूँ दर्द से दिल ये बेजार है ?

ना कुछ खोया,ना पाया है। 

 फिर किस बात का मलाल है ?

ना रूठी हूँ,ना मनाया है किसी ने। 

 क्यूँ कहते हैं,तुमसे बहुत प्यार है ?

ना कुछ भूली,ना ही याद है। 

फिर क्यूँ उलझे से ये मन के तार है?

ना आया है,ना आएगा कोई। 

फिर मुझे किसका इंतज़ार है ?

ना प्यार है,ना शिकवा-गिला। 

फिर क्यूँ ये तकरार है ?

ना मरती हूँ,ना जिन्दा हूँ। 

क्यूँ त्रिशंकु सा बना हाल है ?

और कितने इम्तहान लेगी ऐ ज़िंदगी !

आखिर तुझे मुझे से, 

क्या दरकार  है ?

ऐ मन ! तू ही बता 

ना चाहती थी,ना चाहिए कुछ तो  

फिर क्यूँ, इतने सवाल है ?


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