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शनिवार, 28 मार्च 2020

" काजल से अथाह प्रेम "


" काजल " गोरी के आँखों को सजाये  तो उसकी सुंदरता में चार चाँद लगा देता हैं.... नन्हे शिशु के नैनो में  जब माँ काजल भर के उसकी बलाएँ लेती हैं तो ....वही काजल उस शिशु के लिए नजरबटु बन शिशु की हर बुरी नजरों से रक्षा करता है लेकिन......वही काजल जब दामन पर लग जाएँ तो दाग बन जाता है।
   हमारे भारतीय संस्कृति के  श्रृंगार में काजल का एक खास स्थान है। यदि आँखें काजल बिना सुनी हो तो श्रृंगार अधूरा ही रहता है। काजल ने  गोरी के आँखों में ही अपनी  खास जगह नहीं बनाई बल्कि कवियों की कविताएं हो या गीतकारों के गीत या शायरों की शायरी काजल ने सबके दिलों और कलम पर भी अपना हक जमा रखा है।

    हर लड़की की तरह मेरा  भी काजल से गहरा संबंध रहा है। "काजल" ने मुझे मेरे जीवन का बहुत बड़ा  पाठ पढ़ाया है। अब आप सोचेंगे  कि - "काजल" क्या सीख दे सकती है। दे सकती......इस जहाँ कि... हर एक सय आपको कोई ना कोई सीख जरूर देती है। बात मेरे बचपन की है जब मैं तीसरी कक्षा में पढ़ती थी। पापा मेरा एडमिशन शहर के सबसे अच्छे स्कुल में कराना चाहते थे। मैं एडमिशन के लिए गई... वहाँ मैं टेस्ट में पास भी हो गई। लेकिन क्लास ज्वाइन करने से पहले प्रिंसिपल ने कहा कि -"मुझे स्कूल बिलकुल साधारण भेष -भूषा में ही आना होगा"...बाकी सब तो ठीक था लेकिन,  मुझे "काजल" भी नहीं लगाना था....ये मेरे लिए बहुत मुश्किल था। क्योंकि मेरी माँ खुद भी कभी भी बिना काजल के नहीं रही थी और मुझे भी उस उम्र तक याद नहीं कि.. एक दिन भी मैं बिना काजल लगाये रही हूँ। खैर ,स्कूल जाना शुरू हुआ बिना काजल के...मगर पहले ही दिन से मेरी आँखों में  सूजन शुरू हो गई ....दो दिन गुजरे ...आँखों से पानी आना शुरू हो गया और तीसरे दिन तो मेरी आँखों ने  काजल की जुदाई को बर्दास्त करने से इंकार ही कर दिया....चौथे दिन , वो लाल -पिली हुई और पाँचवे दिन नाराज होकर पलको ने अपना पट बंद ही कर लिया। साथ ही साथ मेरा स्कूल जाना भी बंद हो गया। हार कर माँ ने आँखों का काजल से मिलन  करा ही दिया और फिर जैसे ही ....दोनों का मिलन हुआ आँखों की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा और अगले दिन ही वो सारी नाराजगी भूल गई और... अपना पट खोल दी।
    माँ -पापा समझ चुके थे कि -मेरी आँखें काजल की जुदाई बर्दास्त नहीं कर पाएंगी सो ...उन्होंने प्रिंसपल के पास जाकर मेरी आँखों की व्यथा-कथा सुनाई और उनसे मिन्नत की कि-- मुझे काजल लगाकर आने की इजाजत दे दे ....मगर प्रिंसिपल को मेरी आँखों पर जरा भी दया नहीं आई.... वो किसी भी हाल में अपने स्कूल का नियम नहीं तोड़ सकती थी।माँ एक महीने  तक बार-बार  प्रयास करती रही कि -मेरी आँखों को काजल के बिना रहना सीखा सकें मगर.... वो असफल रही  लिहाज माँ -पापा ने ही हथियार डाल दिए और मेरा एडमिसन किसी और स्कूल में कराया जहाँ ...उन्हें मेरी आँखों को काजल से मिलने से कोई आपत्ति नहीं थी।

    इस घटना से मुझे बेहद तकलीफ हुई ...मेरा भी सपना था उस बड़े स्कूल में पढ़ने का मगर मेरी आँखों का काजल से अथाह प्रेम ने मेरा वो सपना तोड़ दिया। मैंने उसी दिन तय कर लिया कि.. इनका संबंध तो तोड़कर ही रहूँगी और उसी दिन... उस छोटी उम्र में ही मैंने ये भी प्रण लिया कि -"मैं खुद को कभी भी ,किसी भी चीज की ..किसी भी आदत की आदि नहीं बनाऊँगी।"  मैंने धीरे-धीरे आँखों को काजल से दूर कर दिया और ऐसा दूर किया कि - चौथी कक्षा के बाद आज तक मेरी आँखों ने  काजल को नहीं देखा।

   और इस तरह ....काजल ने मुझे जीवन का एक बड़ा सबक सिखाया - " कभी भी किसी चीज के आदि मत बनो ,किसी से इतना मत जुडो कि ---" उससे अलगाव बर्दास्त नहीं कर सको " हमें नहीं पता कब... हम से हमारी कोई प्यारी चीज छीन ली जाएँ या हम उसे छोड़ने पर मजबूर हो जाएँ। 


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