राज और सोनाली के द्वारा दिए गए पीले गुलाब की महक उस वक़्त तो पुरे वातावरण को सुखद अनुभूति से भर रहा था मगर कही एक डर भी कोने में दबा हुआ था। तो अगले दिन मैंने उन दोनों को बिठाकर पूछ ही लिया -
(राज और सोनाली की कहानी जानने के लिए पढ़ें-मेरी लघुकथा "पीला गुलाब )
" ये चाहत और पसंदगी वक्ती तो नहीं जो आज कल का रिवाज बन गया है या मैं यकीन कर लूँ कि -ये सचमुच प्यार ही है "
मेरी गोद में सर रखते हुए सोनाली बोली -" प्यार क्या होता है माँ " ? किसी का साथ आपको अच्छा लगने लगे,उसकी हर छोटी से छोटी बात आपके दिल को छूने लगे,उसके साथ हँसना- रोना अच्छा लगने लगे यदि ये प्यार है तो शायद हमें प्यार हो गया है-उसने भी बड़ी सादगी से जबाब दे दिया।
बेटा,प्यार सिर्फ साथ रहना,हँसना और रोना नहीं है,प्यार एक गहरा एहसास है,एक अत्यंत पवित्र भावना है जो हृदय के अतल गहराइयों में जन्म लेता है जो निश्छल, निर्मल और वासना रहित होता है। बाकी, आजकल तो इसकी परिभाषा बदल दी गई है। लेकिन प्यार का स्वरूप तो यही है और यही रहेगा।
बेटा, ढाई अक्षर के इस प्यार को छूना आसान होता है पाना भी आसान होता है मगर संभालना बहुत मुश्किल।दो लोग मिलकर भी इस ढाई अक्षर को नहीं संभाल पाते। बस यही समझ नई पीढ़ी के पास नहीं होने के कारण प्यार का रूप बिगड़ता चला जा रहा है। आज तो प्यार दैहिक हो चुका है,दैहिक सुख को ही प्यार का नाम दे दिया गया है। माना, दैहिक मिलन प्रेम की प्रकाष्ठा होती है परन्तु, प्रेम आत्मा का मिलन है देह इसका माध्यम,देह का आकर्षण चंद दिनों का होता है और जब वो सरलता से मिलने लगता है तो बहुत जल्द ये आकर्षण फीका पड़ने लगता है फिर जिसे "प्रेम" नाम दिया जाता है वो बदलकर कोई और देह तलाशने लगता है।
मुझे नहीं पता आप दोनों के प्रेम का क्या रूप है मगर,यदि सच्चा प्रेम चाहते हो तो देह को परे रखना और खुद को तीन कसौटी पर तौलना धीरज-धैर्य,विश्वास और आपसी समझ-बुझ। इन तीन कसौटी पर जब खुद को खरा उतार लेना तब इस प्रेम को एक "संबध" का नाम देकर अपनी गृहस्थी की शुरुआत करना क्योंकि प्रेम के पावन रूप के सफर की असली मंजिल तो यही है।
अब यहाँ "संबंध" का अर्थ समझना भी बहुत जरुरी है। संबंध का मतलब एक "लेबल" नहीं है जो रिश्तों पर लगाया जाता है माँ-बाप,भाई-बहन,पति-पत्नी वगैरह-वगैरह। "संबंध" से मेरा मतलब सम+बंध भी नहीं है। क्योंकि संबंधों में समानता कभी-कभी अहम भाव को भी जन्म देती है। "संबंध" का मतलब फर्क होते हुए ऐसे जुड़े जैसे सागर से नदी। ऑक्सीजन -ऑक्सीजन मिलकर पानी नहीं बनाते ,पानी बनाने के लिए ऑक्सीजन में हाइड्रोजन की निश्चित अणु को मिलाने की आवश्यकता होती है। अतः कह सकते है कि -"संबंध से एक तीसरी वस्तु का जन्म होता है जो संबंध को पूर्णता प्रदान करता है।" शायद,इसीलिए "दाम्पत्य-संबंध" के साथ संबंध शब्द जुड़ा है। इसीलिए दाम्पत्य-संबंध को निभाने के लिए भी धीरज-धैर्य,विश्वास और आपसी समझ-बुझ की निश्चित मात्र के मिलान की नितांत आवश्यकता होती है तभी प्रकृति में नई सृजन होती है।
और सबसे जरुरी बात हृदय में जैसे ही सच्चे प्रेम का भाव उत्पन्न होता है तो साथ ही साथ "समर्पण" का भाव भी स्वतः उत्पन्न हो जाती है। "समर्पण " ही सच्चे प्रेम की सही पहचान होती है।
मैं जानती हूँ आप दोनों में बहुत फर्क है पर यकीन भी करती हूँ कि-यही फर्क आप दोनो को आपसी ताल-मेल भी बिठाने में सहयोग करेगा। यदि फर्क इतना भी हो कि -"एक को चावल पसंद है और दूसरे को रोटी" तो प्रेम इतना हो कि -रोटी से चावल खाने में भी दोनों को सुखद अनुभूति हो। फर्क मिटाकर चंदन और पानी की तरह घुल-मिल जाना ही "प्रेम' होता है। आगे आप दोनों खुद समझदार हो ,अपने प्रेम को आप किस ओर ले जाना चाहते हो वो आप पर निर्भर है-"बदनाम गलियों में या फूलों से भरे आँगन में"।
'पीला गुलाब' के तुरंत पश्चात यह रचना पढ़ी । यह पूर्वकथा से इस तरह जुड़ी हुई है ज्यों पुष्पहार में एक पुष्प के साथ लड़ी बनाता हुआ दूसरा पुष्प । और जो विचार आपने इसमें अभिव्यक्त किए हैं, उनसे मैं पूर्ण रूप से सहमत हूं । ये अवसरानुकूल भी हैं और सनातन सत्य भी ।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद जितेंद्र जी, मेरे विचारों सहमति प्रदान करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया एवं सादर नमस्कार
हटाएं"संबंध से एक तीसरी वस्तु का जन्म होता है जो संबंध को पूर्णता प्रदान करता है।" शायद,इसीलिए "दाम्पत्य-संबंध" के साथ संबंध शब्द जुड़ा है। इसीलिए दाम्पत्य-संबंध को निभाने के लिए भी धीरज-धैर्य,विश्वास और आपसी समझ-बुझ की निश्चित मात्र के मिलान की नितांत आवश्यकता होती है तभी प्रकृति में नई सृजन होती है। ----बहुत खूब...।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से शुक्रिया आप का,सादर नमस्कार
हटाएंप्रणय दिवस के अवसर पर सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर सादर नमस्कार
हटाएं"संबंध" का मतलब फर्क होते हुए ऐसे जुड़े जैसे सागर से नदी। ऑक्सीजन -ऑक्सीजन मिलकर पानी नहीं बनाते ,पानी बनाने के लिए ऑक्सीजन में हाइड्रोजन की निश्चित अणु को मिलाने की आवश्यकता होती है। अतः कह सकते है कि -"संबंध से एक तीसरी वस्तु का जन्म होता है जो संबंध को पूर्णता प्रदान करता है.....बहुत ही गहराई तक उतरता हुआ लेख लिखा है आपने..आज की पीढ़ी इस साहित्यिक तथा वैज्ञानिक तथ्य को..जो मन, आत्मा और शरीर के सुन्दर मिलन को समझना ही नहीं चाहती..उसे कैसे समझाएं..यह एक विकट प्रश्न और समस्या है..जिसके जड़ तक जाने के लिए हमें सार्थक प्रयास करने होंगे..आपको हार्दिक शुभकामनायें..
जवाब देंहटाएंजिज्ञासा जी,आज की पीढ़ी जिस राह पर चल पड़ी है, वहां ज़ोर जबरदस्ती नहीं बल्कि सही मार्गदर्शन ही उनको सही राह दिखला सकता,मेरे विचारों पर आप सभी की सहमति मिली तो लिखना सार्थक हुआ, आप का तहेदिल से शुक्रिया
हटाएंआपने वैलेंटाइंस डे के मौक़े पर सच्चे प्यार को सरलता और सहजता से समझाया है।आपको बधाई।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद आपका,सादर नमस्कार
हटाएंसुंदर, सार्थक एवं सटीक प्रस्तुति 🌹🙏🌹
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया वर्षा जी
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआभार आपका, सादर नमस्कार
हटाएंज़िन्दगी की सीख देती कहानी ।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद संगीता जी,सादर नमन
हटाएं"पीला गुलाब" को पूर्णता देती प्रेरणास्पद कहानी..जिसमें जीवन के गूढ़ पड़ावों को बड़ी खूबसूरती से उकेरा है आपने । लाजवाब सृजन कामिनी जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद मीना जी,सादर नमन
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद आदरणीय,सादर नमस्कार
हटाएंवाह ! बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय | सही दिशा में की गई सही व्याख्या , सही विश्लेषण |
जवाब देंहटाएंसराहना हेतु हृदयतल से धन्यवाद सर, सादर नमस्कार
हटाएंबहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद ओंकार जी,सादर नमस्कार
हटाएंअसल प्रेम को बहुत सहज ही लिखा है आपने ... इसको ही समझ जाना जीवन को सार्थक बना देता है ...
जवाब देंहटाएंसटीक विश्लेषण है ...
सहृदय धन्यवाद दिगम्बर जी, युवा पीढ़ी की नासमझी ही तो प्रेम का रुप बिगाड़ रही है, सराहना हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं सादर नमस्कार
हटाएंभावी पीढ़ी को ऐसे ही मार्गदर्शन की नितांत आवश्यकता है अन्यथा वे आकर्षण एवं प्रेम में अंतर समझ नहीं पाते हैं । परिणाम क्या होता है सब देख रहें हैं ।
जवाब देंहटाएंसहमत हूं आपकी बातों से, दिल से शुक्रिया आप का
हटाएंसार्थक और निरर्थक प्रेम को आपने कहानी के माध्यम से बहुत आसानी से और सशक्त तरीके से समझाया है..प्रेरक कहानी..प्रेम की दिशा तय करने में सहायक..बहुत खूब
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया,मेरे विचारों को सहमति देने के लिए तहेदिल से धन्यवाद
हटाएंकामिनी दी, प्रेम का असली मतलब बहुत ही सरल भाषा में और बहुत ही सटीक तरीके से कहानी के माध्यम से बताया है आपने।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद सर,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद ज्योति जी, सराहना हेतु आभार आपका, सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंसार्थक सृजन सखी 👌👌
जवाब देंहटाएंसरहनासम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से धन्यवाद सखी
हटाएंबेटा, ढाई अक्षर के इस प्यार को छूना आसान होता है पाना भी आसान होता है मगर संभालना बहुत मुश्किल।दो लोग मिलकर भी इस ढाई अक्षर को नहीं संभाल पाते। बस यही समझ नई पीढ़ी के पास नहीं होने के कारण प्यार का रूप बिगड़ता चला जा रहा है। आज तो प्यार दैहिक हो चुका है,दैहिक सुख को ही प्यार का नाम दे दिया गया है। माना, दैहिक मिलन प्रेम की प्रकाष्ठा होती है परन्तु, प्रेम आत्मा का मिलन है देह इसका माध्यम,देह का आकर्षण चंद दिनों का होता है और जब वो सरलता से मिलने लगता है तो बहुत जल्द ये आकर्षण फीका पड़ने लगता है फिर जिसे "प्रेम" नाम दिया जाता है वो बदलकर कोई और देह तलाशने लगता है।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही है साथ ही आखिरी मे कही गई बात भी पते की है, प्रेम निश्छल पावन होना चाहिए ।
अपनी बात को कुछ पंक्तियों के माध्यम से रख रही हूँ
संयमित चाह का विस्तार नहीं होता
दर्द से दर्द का शृंगार नही होता
टूट जाये जो समय की आँधियों के साथ ही
बस हविश है देह का प्यार नही होता ।
सरहनासम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से धन्यवाद ज्योति जी,मेरी पूरी कहानी सार आपने चंद पंक्तियों में लिख डाला।
हटाएंआपकी ये प्रतिक्रिया अनमोल है मेरे लिए,तहे दिल से आपका शुक्रिया एवं सत-सत नमन
कहानी के माध्यम से आसानी से समझाया प्रेरणास्पद कहानी..कामिनी दी
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद संजय जी
हटाएंऑक्सीजन -ऑक्सीजन मिलकर पानी नहीं बनाते ,पानी बनाने के लिए ऑक्सीजन में हाइड्रोजन की निश्चित अणु को मिलाने की आवश्यकता होती है। अतः कह सकते है कि -"संबंध से एक तीसरी वस्तु का जन्म होता है जो संबंध को पूर्णता प्रदान करता है।" शायद,इसीलिए "दाम्पत्य-संबंध" के साथ संबंध शब्द जुड़ा है। इसीलिए दाम्पत्य-संबंध को निभाने के लिए भी धीरज-धैर्य,विश्वास और आपसी समझ-बुझ की निश्चित मात्र के मिलान की नितांत आवश्यकता होती है तभी प्रकृति में नई सृजन होती है।
जवाब देंहटाएंआकर्षक एवं प्रेम का फर्क समझाती बहुत ही सुन्दर सार्थक एवं शिक्षाप्रद कहानी।
दिल से शुक्रिया सुधा जी,आपकी प्रतिक्रिया पाकर लेखन सार्थक हुआ,सादर नमन आपको
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