आराधना का मन आज बहुत व्यथित हो रहा था। वो फुट फुट कर रो रही थी और खुद को कोसे भी जा रही थी। अपने आप में ही बड़बड़ाये जा रही थी "क्या मिला मुझे सबको इतना प्यार करके,सब पर अपना आप लुटा के ,बचपन के सुख ,जवानी की खुशियाँ तक लुटा दी तुमने ,सबको बाँटा ही कभी किसी से कुछ मांगा नहीं लेकिन आज फिर भी खाली हाथ हो,क्यों ?"वो खुद को कोसे जा रही थी और रोये जा रही थी।
जीवन का सारा खेल एक नज़र और नज़रिये का ही तो होता है ,किसी को पथ्थर में भगवान नजर आते है किसी को भगवान भी पत्थर के नज़र आते है----
शनिवार, 29 जून 2019
रविवार, 16 जून 2019
यादें पापा की
पितृदिवस के अवसर पर सोशल मीडिया में पिता से संबंधित एक से बढ़कर एक भावुक कर देने वाली रचनाये पढ़कर मुझे भी अपने पापा की याद बहुत सताने लगी हैं। सोची , मैं भी अपने पापा के याद में कुछ लिखुँ ,पर क्या लिखुँ ? कहाँ से शुरू करुँ ? मुझे तो उनकी हर छोटी से छोटी बात भी बड़ी शिदत से याद आती हैं। वो दिन, जब ज़मीन पर आड़े टेढ़े पैर रखते देखकर पापा मुझे सही ढंग से चलने का तरीका सिखाते हुए ये कहे थे कि -" रानियाँ ऐसे चलती हैं अदाओं से ",मेरे लिए ढेर सारे रंग बिरंगी चूड़ियाँ लाते थे और कहते मेरी बेटी की कलाई पर चूड़ियाँ बहुत सजती हैं, उन्हें पता था चूड़ियाँ देखते ही मैं चहक उठती थी या वो दिन याद करू, जब स्कुल का रिजल्ट आता तो भईया अपना मार्कसीट छुपा देते और खुद भी छुप जाते थे क्योकि हमेशा मेरे नंबर उनसे ज्यादा अच्छे होते थे और फिर पापा का मुझे ढेर सारा प्यार करना और ये कहना -" यही मेरी रानी बेटी हैं ये मेरा नाम रोशन करेगी " मुझे फिल्मे देखने का बड़ा शौक था और पापा बचपन से लेकर मेरे शादी होने तक मुझे मेरी हर पसंदीदा फिल्म दिखाते थे ,खुद साथ लेकर जाते थे। बचपन से ही हर बार परीक्षा शुरू होने के एक दिन पहले पापा मुझे फिल्म दिखाने जरूर ले जाते थे। क्योकि मैं फरमाईश करती थी कि -अगर फिल्म नहीं दिखाएंगे तो मेरा पेपर ख़राब हो जायेगा और पापा मेरी हर फरमाईश पूरी करते थे।
शनिवार, 15 जून 2019
क्या हम अपने नौनिहालों को इंसानियत का पाठ पढ़ा पाएंगे ??
कहते हैं कि-" हमारे देश में तैतीस करोड़ देवी देवता निवास करते हैं " क्या ये सच हो सकता हैं ? हम तो तैतीस का नाम भी ठीक से नहीं जानते। फिर हमे क्यों बताया गया कि तैतीस करोड़ देवी -देवता हैं? ये बाते सतयुग के लिए कहते हैं और सतयुग में हर एक नर में नारायण का वास माना जाता था। "देवता "यानी देने वाला ,उस समय के हर एक मनुष्य में सिर्फ देने का गुण विद्यमान होता था कोई किसी से मांगता नहीं था। तो कही ऐसा तो नहीं कि-उस समय की जनसंख्या ही तैतीस करोड़ थी और सारे सदविचारों से परिपूर्ण ,खुद से पहले दूसरे के भले के बारे में सोचने वाले , नेक नियत वाले ,एक दूसरे पर विश्वास करने वाले थे ,सब केवल दुसरो को देना जानते थे ,मांगना या छीनना उन्हें नहीं आता था शायद इसीलिए उन्हें देवता की उपाधि दी गई थी और जो इन गुणों के विपरीत गुण वाले थे उन्हें दानव कहा गया। परमात्मा तो सिर्फ एक ही हैं तो बाकि इंसानो को दो श्रेणी में रखा गया हो " देवता और दानव "
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