पितृदिवस के अवसर पर सोशल मीडिया में पिता से संबंधित एक से बढ़कर एक भावुक कर देने वाली रचनाये पढ़कर मुझे भी अपने पापा की याद बहुत सताने लगी हैं। सोची , मैं भी अपने पापा के याद में कुछ लिखुँ ,पर क्या लिखुँ ? कहाँ से शुरू करुँ ? मुझे तो उनकी हर छोटी से छोटी बात भी बड़ी शिदत से याद आती हैं। वो दिन, जब ज़मीन पर आड़े टेढ़े पैर रखते देखकर पापा मुझे सही ढंग से चलने का तरीका सिखाते हुए ये कहे थे कि -" रानियाँ ऐसे चलती हैं अदाओं से ",मेरे लिए ढेर सारे रंग बिरंगी चूड़ियाँ लाते थे और कहते मेरी बेटी की कलाई पर चूड़ियाँ बहुत सजती हैं, उन्हें पता था चूड़ियाँ देखते ही मैं चहक उठती थी या वो दिन याद करू, जब स्कुल का रिजल्ट आता तो भईया अपना मार्कसीट छुपा देते और खुद भी छुप जाते थे क्योकि हमेशा मेरे नंबर उनसे ज्यादा अच्छे होते थे और फिर पापा का मुझे ढेर सारा प्यार करना और ये कहना -" यही मेरी रानी बेटी हैं ये मेरा नाम रोशन करेगी " मुझे फिल्मे देखने का बड़ा शौक था और पापा बचपन से लेकर मेरे शादी होने तक मुझे मेरी हर पसंदीदा फिल्म दिखाते थे ,खुद साथ लेकर जाते थे। बचपन से ही हर बार परीक्षा शुरू होने के एक दिन पहले पापा मुझे फिल्म दिखाने जरूर ले जाते थे। क्योकि मैं फरमाईश करती थी कि -अगर फिल्म नहीं दिखाएंगे तो मेरा पेपर ख़राब हो जायेगा और पापा मेरी हर फरमाईश पूरी करते थे।
वो दिन ,जब पापा मुझे थप्पड़ मारे थे , जब में छह -सात साल की थी और पलँग के खाँचे में मैंने अपना घुटना फसा लिया था। वैसे तो ये खेल मैंने कई बार खेला था लेकिन हर बार सरलता से निकाल लेती थी लेकिन उस दिन पता नहीं कैसे निकला ही नहीं ,फिर तो मैं जोर जोर से रोकर सारे घर वालो को परेशान कर दिया। सभी मेरा पैर निकलने में नाकामयाब थे। तभी पापा आ गए ,वो बोले -बेटा पैर ढीला छोडो तभी हम तुम्हारा पैर निकाल पाएंगे। उन्होंने भी बड़ी कोशिश की लेकिन वो जैसे ही मेरे पैर को धक्का देते मुझे दर्द होता और मैं पैर और कड़ा कर लेती और जोर जोर से चिल्लाने लगती। आधा घंटा हो गया ,अचानक पापा को गुस्सा आया और वो मेरे गाल पर एक तमाचा लगा दिए। मुझे तो सपने में भी इसकी उमींद नहीं थी सो मैं आवक होकर उन्हें देखती रह गई, मेरा रोना गायब हो गया ,मुझे तो जैसे शॉक लग गया इसी बीच मेरा पैर ढीला पड़ा और निकल गया। लेकिन उसके बाद जो मैं सिसकना शुरू की तो फिर चुप ही नहीं हुई। सबने बहुत मनाया , लेकिन मैं चुप नहीं हुई ,खाना पीना कुछ नहीं किया ,पापा मेरे लिए ढेर सारी चूड़ियाँ लेकर आये लेकिन मैं तो जैसे सदमे में आ गई थी। जो पापा डांटना ,मारना तो दूर मुझसे कभी ऊंची आवाज़ में बात तक नहीं किये थे उन्होंने मुझे मार कैसे दिया। रोते रोते मुझे बुखार हो गया, दो दिन तक मैं पापा से बात नहीं की।पापा मुझे मनाये और बोले- "देखो,मैंने अपने हाथ को सजा दे दिया ,इसी ने तुम्हे मारा था न " पापा का हाथ सूज रखा था फिर तो मेरा सारा गुस्सा काफूर हो गया ,मैं पापा से लिपटकर रोने लगी ,पापा भी खूब रोये। लेकिन उसके बाद मैंने कभी कोई ऐसी गलती ही नहीं की कि पापा को मुझे डाँटना भी पड़े। वो मेरे जीवन का पहला और आखिरी थप्पड़ था।
" पापा "मेरे सबसे अच्छे दोस्त ,एक अलग सा रिश्ता था हमारा ,बिना कहे हम एक दूसरे की मन की बात समझ जाते थे। पापा को कुछ खाने का मन होगा उनके बिना कहे जब मैं वो चीज बनाकर उनके सामने ले जाती तो बड़े प्यार से मेरे माथें पर प्यार करते हुए कहते -" कैसे समझ जाती हो मेरे मन की बात " माँ पापा अक्सर कहते - रानी, पिछले जन्म में जरूर हमारी माँ थी तभी तो हमारे हर छोटी बड़ी जरूरत का ख्याल रहता हैं इसे ,जब भी हम सेहत की लापरवाही करते हैं, तो हमे डाँट भी तो जबरदस्त लगाती हैं " पापा ठीक ही कहते थे ,मैं एक छोटे बच्चे की तरह उनकी परवाह करती थी ,यहां नहीं जाना हैं ,वहां नहीं जाना हैं ,ये नहीं खाना हैं ,ऐसा नहीं करे वरना आप दोनों बीमार हो जायेगे और भी पता नहीं क्या क्या नसीहते देती रहती थी। पापा को बचपन से ही बादल के गरजने से बहुत्त डर लगता था तो जब बारिश होती तो मैं पापा को एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ती थी। मैं 12 -13 साल की थी तभी से माँ पापा का और घर का ख्याल रखने लगी थी क्योकि माँ अक्सर बीमार ही रहती थी। शायद वो सही कहते थे तभी तो उनके आखिरी विदाई के दिन मुझे ऐसा एहसास हो रहा था जैसे मुझसे मेरा बच्चा जुदा हो रहा हैं।
जब पापा प्राण तज दिए तो उन्हें आँगन में लाकर सुलाया गया था ,माँ एक छोटे बच्चे की तरह बिलख रही थी और मैं एक माँ की तरह उन्हें संभाल रही थी एक आँसु नहीं बहाई मैं ,रात हो चुकी थी,धीरे धीरे सबका सिसकना मद्धम हो चूका था ,एक संन्नाटा सा फैल चूका था ,माँ को मैंने होमियोपैथ की नींद की दवा दे दी थी ,वो रोते रोते सो चुकी थी। तब मैं उठकर पापा के पास आकर बैठ गई , मैं उनके माथे को सहलाती रही , उनके माथे को चूमते हुए मेरे मुँह से पता नहीं कैसे निकल गया -"सो जा मेरा बच्चा, बहुत थक गए हो आप "ये बोलते हुए उनके चेहरे को बेतहाशा चूमने लगी,एक आँसु नहीं बहा रही थी। मेरे चाचा ने बड़ी मुश्किल से मुझे उनसे अलग किया ,तभी माँ की आवाज़ कानों में पड़ी -" रानी रोको ,देखो पापा को कोई ले जा रहा हैं "माँ की आवज़ कानो में पड़ते ही मैं फिर भाग के माँ के पास चली गई। फिर मैंने कुछ नहीं देखा कि पापा के आखिरी विदाई में क्या हो रहा हैं क्या नहीं ,मैं तो मेरी माँ जो छोटी बच्ची बन चुकी थी उसी को सँभालने में लगी रही।
दो साल हो गए मुझे उनसे बिछुड़े हुए। वो पापा जिनसे एक दिन दूर रहना मुझे गवारा नहीं था वो हमेशा के लिए मुझसे दूर चले गए हैं। लेकिन बिछड़ के भी वो नहीं बिछड़े ,ऐसा लगता हैं जैसे हर पल मेरे साथ हैं। जब भी मैं उदास या परेशान होती हूँ वो सपने में आ जाते हैं मुझे समझाने। मैं उनके लिए आँसू नहीं बहती ,जब भी मेरी आँखों में आँसू आते हैं तो ऐसा लगता हैं जैसे पापा भी दुखी हो रहे हैं मैं तुरंत आँसू पोछ लेती हूँ। वो मुझे कभी उदास नहीं देख सकते थे न। बच्चो के जीवन में माँ का स्थान सर्वोपरि हैं ,होना भी चाहिए क्योकि एक बच्चे को जन्म देते वक़्त माँ का खुद दूसरा जन्म होता हैं। इसीलिए माँ के महिमा का गुणगान अनंत हैं लेकिन पापा भी परिवार के मेरुदंड होते हैं उनके बिना परिवार तो होता हैं पर आधारहीन। जब भी ये एहसास गहरा होता हैं कि -पापा अब नहीं रहे तो मैं खुद को आधारहीन महसूस करने लगती हूँ। यकीनन ये हर बेटी महसूस करती होगी क्योकि बेटियों का तो पूरा मायका ही सिर्फ पिता से ही होता हैं ,पिता नहीं तो मायका नहीं। वैसे भी बेटियां तो पिता की लाड़ली होती हैं। मेरे पापा जहाँ कही भी हो भगवान उनके आत्मा को शांति प्रदान करे।
भावात्मक प्रस्तुति हृदय द्रवित करती अपनी ही कहानी सी
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद कुसुम जी ,बेटियों की कहानी एक जैसी ही होती हैं ,सादर नमस्कार
हटाएंबेहद हृदयस्पर्शी प्रस्तुति सखी
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद, सखी
हटाएंआपका अपने पापा के प्रति असीम स्नेह से भरा भावानत्मक संस्मरण मन छू गया..पापा की लाड़ली होती है बेटियाँ..बेटियाँ कब पापा की माँ बन जाती है पता ही नहीं चलता।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद, श्वेता जी ,सही कहा ,बेटियों कब माँ बन जाती हैं पता ही नहीं चलता ,सादर नमस्कार
हटाएंआपको पिता का इतना प्यार मिला, बहुत भाग्यशाली हैं आप। उनकी यादें ही हमारी थाती हैं अब।
जवाब देंहटाएंहाँ ,मीना जी भाग्यशाली तो हूँ ,पापा का इतना प्यार मिला कि जीवन में बाकी जो कमियां थी वो सहजता से झेल गई ,आभार एवं सादर नमस्कार
हटाएंप्रिय कामिनी-- पिताजी की भावपूर्ण यादों को संजोता ये लेख एक बेटी के अतुलनीय स्नेहिल उद्गारों से भरा है |पिता जब जीवन से विदा होते हैं तो स्नेह की सघन छाया उनके साथ विदा हो जाती है |मुझे लगा तुमने मेरे पिताजी के अंतिम समय का ही सजीव चित्र शब्दों में उतार दिया हो | हमें पता ही नहीं चला कैसे हमारे पिताजी कैंसर से पीड़ित हो चालीस दिन के अंदर ही हमेशा के लिए चुपके से विदा हो गए
जवाब देंहटाएंवे भी बहुत ही सरल और स्नेही थे | बेटी हों या बेटे डांटने , फटकारने और अनुशासन में ढलने का जिम्मा माँ को सौंप कर वे हम बच्चों से बहुत ही उदारता घुलमिल रहते थे |शायद इसलिए किउन्हें दुनिया से बहुत जल्दी जाना था | पर सखी हम उनके संस्कारों का रूप ही तो हैं | वे हमारे संस्कारों में हमेशा हमारे साथ रहेंगे | भावनाओं से भरे इस लेख ने आँखें नम कर दी | तुम्हे प्यार बस और क्या लिखूं ?
सही कहा तुमने सखी ,उनकी यादें और उनके दिए संस्कार तो हमारे साथ हमेशा रहेंगे ,सादर स्नेह सखी
हटाएंबहुत मार्मिक और भावपूर्ण प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर , आप की भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए ,सादर नमस्कार
हटाएंहृदयस्पर्शी... पिता-पुत्री का असीम स्नेह दर्शाती सुन्दर प्रस्तुति कामिनी जी !!
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया मीना जी ,आपके स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए ,सादर नमस्कार
हटाएंकामिनी दी, पिता पिता ही होते हैं। वो हर हाल में हमें खुश देखना चाहते हैं। आज फादर्स डे पर बहुत ही दिल को छूते शब्दों में आपने अपनी भावनाएं व्यक्त की हैं।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद ज्योति जी ,सादर स्नेह
हटाएंआपका आपके पिता के लिए असीम प्रेम को अभिव्यक्त करती बेहद हृदयस्पर्शी प्रस्तुति सखी
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद... सखी
जवाब देंहटाएंनिःशब्द!
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद विश्वमोहन जी ,आभार एवं सादर नमस्कार
हटाएंशानदार व्यक्तित्व बिटिया का ... यूँ तो स्त्री जन्म से माँ होती है
जवाब देंहटाएंउम्दा लेखन
सहृदय धन्यवाद दी ,आपको अपने ब्लॉग पर देख कितनी ख़ुशी हो रही हैं ये मैं शब्दों में नहीं कह सकती ,बस आपके आशीष के लिए दिल से आभारी हूँ ,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंकामिनी दी नमस्कार कई दिनों बाद आना हुआ आपके ब्लॉग पर.....पोस्ट पढ़ी तो आपका पिता के लिए दिल को छूते शब्दों में असीम प्रेम को अभिव्यक्त करती हृदयस्पर्शी प्रस्तुति ने आँखें नम कर दी मेरी बेहद भावानत्मक संस्मरण इससे ज्यादा कुछ नहीं लिख पाउँगा दी
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद संजय जी ,क्या करू पापा के बारे में लिखते हुए मैं भी थोड़ी ज्यादा ही भावुक हो जाती हूँ। मेरे संस्मरण ने आप के दिल को छुआ ये जान कर ख़ुशी हुई आभार आप का। मैं भी आजकल ब्लॉग पर कम ही आ पा रही हूँ। आपको ढेर सारा स्नेह एवं आशीष
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