बसंत अर्थात "फुलों का गुच्छा", बसंत, अर्थात "शिव के पांचवें मुख से निकला एक राग" बसंत जिसके "अधिष्ठाता देवता ही कामदेव" हो, ऐसे ऋतु के क्या कहने।"बसंत" इस शब्द के स्मरण मात्र से ही दिलों में फुल खिलने लगते हैं...तन-मन प्रफुल्लित हो जाता है....हवाओं में मादकता भर जाती है... यूँ ही नहीं इसे "ऋतुओं का राजा" कहते हैं...
शास्त्रों के अनुसार इसी ऋतु के पंचमी तिथि को संगीत की देवी सरस्वती का अवतरण हुआ था। अवतरित होते ही देवी ने जैसे ही वीणा के तारों को झंकृत किया संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन गतिमान होने लगी। वीणा की झंकार से संगीत का जन्म हुआ।
"सरस्वती" हमारी परम चेतना है। ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका है। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही है। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। वास्तव में सरस्वती का विस्तार ही वसंत है, उन्ही का स्वरूप है– वसंत।
ऐसे "ऋतुराज बसंत" का आगमन होने वाला है.... अब प्रकृति अपना श्रृंगार करेगी.....खेतों में पीली-पीली सरसों अपनी स्वर्णिम छटा बिखेरते हुए लहलहाने लगेगी....बाग-बगीचे रंग-बिरंगी फुलों से भर जाएंगे.... और तितलियाँ उन फुलों से रंगों को चुराने लगेगी....गेहूं की बालियां खिलने लगेगी....पेड़ों पर नई कोंपले आने लगेगी....आम की डालियों पर आईं मंजीरियों (बौर) से वातावरण मादक होने लगेगा....कोयलिया गाने लगेगी....पपीहा पी-पी कर अपने प्रियतम को पुकारने लगेगी.....बसंती वयार अपनी पूरी मादकता लिए झुमने लगेगी और सर्दी को अलविदा कहेंगी।
क्या सचमुच ऐसा होगा?
आज से बीस साल पहले तक यही नजारा दृश्यमान होता था अब भी होगा तो जरूर...भले ही आधे अधूरे स्वरुप में हो ।प्रकृति अपना कर्म नहीं छोड़ेंगी,भले ही अब हम इसका आनंद उठाए या ना उठाए। उठाएंगे भी कैसे? हमने तो प्रकृति का रूप ही नहीं अपने जीने के ढंग को भी बिगाड़ने में कोई कसर जो नहीं छोड़ी है। प्रकृति तो एक माँ की भाँति हमारे सभी गुनाहों को माफ़ कर पुरी कोशिश कर रही है कि अब भी वो हमें ऐसा वातावरण दे सकें जिसमें हम खुशहाल जीवन जी सकें।
लेकिन अब वो मनोरम दृश्य कहाँ ?
अब तो बस कवियों की कविताओं में ही बसंत आता है और कब चुपके से चला जाता है पता ही नहीं चलता....
मुझे आज भी बचपन के वो दिन याद आ ही जाती है।जब बसंत पंचमी के दिन हर घर और स्कूल में सरस्वती पूजा का आयोजन होता था।( ये त्यौहार विषेशकर बिहार और बंगाल में ज्यादा मनाया जाता है) हम पीले रंग के फ्रॉक में इतराते धूमते-फिरते थे। मेरी मां भी पीली साड़ी पहनती थी।हम ही क्या सारे लड़के-लड़कियाँ और औरतें सभी पीले वस्त्र ही पहनते थे। ऐसा लगता था जैसे सरसों के फूलों ने हमें सँवार दिया हो। उस दिन हमारी खुशी और उत्साह का ठिकाना नहीं होता... होता भी क्यों नहीं... गर्म कपड़ों से मुक्ति जो मिली होती थी। ये अलग बात है कि रात होते ही फिर गर्म कपड़े पहनने ही होते थे। लेकिन ये उम्मीद पकी होती थी कि अब सर्दी जाने वाली है....
कहने का मतलब मौसम में निश्चितता होती थी। आज तो एक दिन में ही मौसम कई बार रंग बदलते हैं। कहना पड़ता है कि-"मौसम आदमी की तरह रंग बदल रहा है" क्योंकि आदमियों ने इसे अपने रंग में जो रंग लिया है...हमें अपने आप पर शर्म आनी चाहिए, अब भी वक्त है..
आईए हम सब मिलकर फिर से प्रकृति का संरक्षण करें और फिर से बसंत के वो दिन वापस लाए। हमारे छोटे-छोटे प्रयासों से ये संभव है। माँ सरस्वती कुपित हो रही है हम पर... आईए हम अपनी माँ के आँचल को फिर से रंग-बिरंगे रंगों से सराबोर कर दे और खुद भी उल्लासित होकर कहें-
आईं झुम के बसंत….
झुमो संग-संग में
आज रंग लो दिलों को
इक रंग में
आप सभी को बसंत पंचमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
इंसान ने प्रकृति तक को बदल दिया है । विचारणीय लेख ।
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी की शुभकामनाएँ ।
दिल से शुक्रिया दी, आप को भी बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏
हटाएंहमारी कारस्तानियों से बेचारा बसंत भी उद्विग्न रहता है
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने सर, बसंत पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं आपको 🙏
हटाएंबसंत पंचमी और पीले कपड़े , सरस्वती पूजन और स्कूलों में उत्सव सब याद आए आपका लेख पढ़ कर । बहुत सुंदर और चिंतनपरक लेख । आपको बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं कामिनी जी ।
जवाब देंहटाएंहां मीना जी, मुझे तो आज भी बड़ी शिद्दत से याद आती है उन दिनों की।सच, हमारा समय ही अच्छा था पता नहीं किस युग में आ गए हम, आप को भी बसंत पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏
हटाएंवसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने। मौसम अपने रंग हर पल बदल रहा है। पहले जैसा उत्साह न अब मौसम में दिखता है, न ही लोगों में।
हमारे अति की चाह ने सब कुछ बदल दिया, प्रतिक्रिया देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद सर, सादर नमस्कार
हटाएंसच कहा अब मौसम में भी बदलाव आ गया है पहले सा कहाँ रह गया कुछ भी..फिर भी प्रकृति तो कोशिश कर ही रही है समय रहते एक कोशिश हम भी करें तो बात बने...
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब चिन्तनपरक लेख
बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
प्रकृति तो बार बार चेतावनी दे रही बस हम ही नहीं सुधर रहे हैं, सारगर्भित प्रतिक्रिया देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद सुधा जी 🙏
जवाब देंहटाएंवसंत के साथ ही माँ सरस्वती के बारे में बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी प्रस्तुत की है आपने,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लगा ये वासंती प्रस्तुति
हार्दिक शुभकामनाएं
दिल से शुक्रिया कविता जी, सादर नमस्कार
हटाएंबहुत सुन्दर सार्थक लेख
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर सादर नमस्कार
हटाएं""सरस्वती" हमारी परम चेतना है। ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका है। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही है।" माँ सरस्वती के सुंदर रूप से परिचय कराने और बसंत के रूप में उनकी महिमा का बखान करने वाला सुंदर आलेख!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी, सादर नमन
हटाएंमाँ सरस्वती का सजीव चित्रण
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद मनोज जी,सादर नमन
हटाएंआदरणीया कामिनी सिन्हा जी, सरस्वती पूजा और ऋतुराज बसंत के आगमन ओर सुंदर लेख! बसंत पंचमी जी हार्दिक शुभकामनाएँ!--ब्रजेंद्रनाथ
जवाब देंहटाएंआदरणीया कामिनी सिन्हा जी, सरस्वती पूजा और ऋतुराज बसंत के आगमन पर सुंदर लेख! बसंत पंचमी जी हार्दिक शुभकामनाएँ!--ब्रजेंद्रनाथ
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर, सादर नमस्कार
हटाएंबहुत विचारणीय और खूबसूरत लेख!
जवाब देंहटाएंगांवो में तो प्रकृति आपना श्रृंगार करतीं हैं पर शायद पहले जैसा नहीं!सरसों के खेत में फूल तो खिलते हैं पर पहले जैसी उनमें खुशबू नहीं!कारण सभी को पता है!न ही मिट्टी में पहले जैसी खुसबू!
पर गांवों में आज भी महसूस करों तो कुछ महसूस जरूर होता है! वो अहसास जिसे शायद शब्दों में बयां नहीं कर सकतें!हर मौसम की एक अलग ही खुशबू और एहसास होता है!जिससे मन को बहुत ही शान्ति मिलती है!
पर प्रकृति को बचाए रखने के लिए हमें बहुत कुछ करने की जरूरत है!
तुम ने सही कहा मनीषा, गांव आज भी अपनी प्रकृति धरोहर को कुछ हद तक सम्भाल कर रख पाया है, जरूरत उसे और सहेजने की है, दिल से शुक्रिया तुम्हारा, स्नेह
जवाब देंहटाएंलेकिन अब वो मनोरम दृश्य कहाँ ?
जवाब देंहटाएंअब तो बस कवियों की कविताओं में ही बसंत आता है और कब चुपके से चला जाता है पता ही नहीं चलता...
बिलकुल सही कहा, बहुत ही चिंतनीय और विचारणीय आलेख है, कामिनी जी ।
दिल से शुक्रिया जिज्ञासा जी, सराहना हेतु हृदयतल से आभार,सादर नमन
हटाएंबहु आयामी पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंन सिर्फ बसंत क्यों और कैसे बल्कि इसका महत्त्व, क्यों आज जरूरी है ...
हम क्या क्या खो रहे हैं और हमने कहाँ जाना है ... इतनी विचारणीय पोस्ट को सलाम है ....
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से धन्यवाद दिगम्बर जी, सादर नमन
हटाएंसहृदय धन्यवाद आपका
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी कोई रचना सोमवार. 14 फरवरी 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद दी, सादर नमस्कार आपको
हटाएंसचेत करता हुआ सार्थक आलेख। हार्दिक शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद अमृता जी,सादर नमन आपको
हटाएंआदरणीया कामिनी सिन्हा जी,
जवाब देंहटाएंअत्युत्तम
सरस्वती पूजा और ऋतुराज बसंत के आगमन पर प्रस्तुत आपका लेख बहुत सुंदर है
साधुवाद
शुभकामनाएं
🌹🌻🌷
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है आदरणीय, आप जैसे महान साहित्यकार की सराहना पाकर लेखन सार्थक हुआ, आभार एवं सादर नमस्कार आपको 🙏
हटाएंbasant par sarthak rachna
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद आपका,🙏
हटाएंसही कहा कामिनी दी की अब बसन्त कवि की कविताओं में ही दिखाई देता है। बहुत सुंदर और विचारणीय लेख।
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया ज्योति जी 🙏
हटाएंप्रिय कामिनी,हमारी पीढ़ी ने शायद जो बचपन देखा और प्रकृति का अनुपम सानिध्य पाया वह आज की और भावी पीढ़ी के लिए दुर्लभ है।बहुत सुन्दर और विचारणीय आलेख लिखा तुमने।आज मौसम के घातक परिवर्तन डराते हैं।प्रकृति के लिए सार्थक प्रयास दरकार है।पर पता नहीं कल क्या होगा।
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद सखी
जवाब देंहटाएंबसंत के आगमन पर सुंदर लेख
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संजय जी,सादर
हटाएं