मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

" भाग्य और कर्म "



" अरे दी ,तुम करती रहो अपने कर्मो पर भरोसा... मैं तो प्रवल भाग्यशाली हूँ ..अब देखो ना तुम मेरा नोट्स बनाती हो और मैं रटा मारकर परीक्षा में लिख आती हूँ और पास हो जाती हूँ ..क्या करना हैं मेहनत करके पास ही होना था न सो हो गई...तुम इतने मेहनत करके तरह तरह के डिजाइन वाले ड्रेसेस बनाती हो और मैं बिना मेहनत किए ही तुम्हारे बनाए कपड़े पहन कर मज़े करती हूँ।   " कर्म में बहुत शक्ति हैं हमें हमेशा  कर्मशील ही होना चाहिए "-  रीतू  हमेशा रिया को  समझाने की कोशिश करती। रिया  और रीतू  दो बहनें मगर , उनके विचारों में ये भेद हमेशा  रहा। बचपन गुजारा  दोनों जवान हुए ,शादी -व्याह हुआ अपने अपने घर को गए। रिया  को उसके भाग्य ने हर वो चीज़ दिया जिसकी उसे चाह थी ,सुख संम्पन ससुराल और बहुत प्यार करने वाला पति भी। रीतू को मिला सिर्फ अकेला पति जिसके ना आगे कोई ना पीछे और प्यार तो शायद उसके नशीब में था ही नहीं।  दोनों की शादी पिता ने बहुत खोज -बिन कर ही किया था ....मगर,  शायद रिया के शब्दों में " अपना अपना भाग्य।"
    रीतू का जीवन बचपन से ही सघर्षरत रहा और आगे भी संघर्ष जारी ही रहा। कर्मठ थी ..अपने कर्मो पर कुछ ज्यादा ही विश्वास था उसे ... सो हर संघर्ष में जीतती भी गई। ये अलग बात थी कि -हर सघर्ष में उसे असीम मानसिक और शारीरिक पीड़ा से गुजरना पड़ा ...मगर वो थकी नहीं कभी। जहाँ एक तरफ रीतू अपने जीवन में एक एक कदम चलकर स्थायित्व लाने की कोशिश में जुटी रही, वही रिया  सुख सम्पनता में रत रही , यहाँ तक कि -अक्सर रीतू के  हिस्से की ख़ुशी पर भी उसी का अधिकार हो जाता। अक्सर, वो अपने पति के प्यार को भी रिया के  हिस्से में जाती देखती रही ,लेकिन रीतू  कभी भी इसका शिकवा तक  किसी से नहीं करती।

   कई बार रीतू के जीवन के दुखों को देख रिया व्यंगात्मक लहजे में कह देती ' दी,तुमने  तो इतनी पढाई -लिखाई की ..तुम इतनी गुणी हो ,कर्मठ हो मगर... क्या फायदा ...दी,  ये सत्य हैं - " जीवन में सुख भाग्य से मिलता हैं " रिया की बाते सुन रीतू थोड़ी देर के लिए सोच में पड़ जाती ...लेकिन,  अगले ही पल खुद को संभाल लेती और खुद को ही समझाने लगती " क्या हुआ जो मेरे हथेली में भाग्य रेखा नहीं ...मैं अपने कर्मो से अपना भाग्य बनाऊँगी " वक़्त गुजरता रहा अपनी सोच ,अपनी समझदारी से रीतू ने  अपना एक छोटा सा आशियाना बनाया ,पति की आमदनी कम थी इसलिए सिर्फ एक बच्चे की माँ बनी ताकि,  उसे अच्छी परवरिश दे सकें, अपने धैर्य ,सहनशीलता और स्नेह से पति के दिल को भी जीतने की कोशिश करती रही।


   एक तरफ जहाँ रीतू अपने कर्मों से अपने भाग्य में खुशियाँ लिखने के  प्रयास में लगी रही वही रिया अपने भाग्य के नशे में चूर अकर्मण्य होकर एक- एक करके हर सुख खोती जा रही थी। सास -स्वसुर ,ननद -देवर से भरेपूरे परिवार में भी वो उनका स्नेह जीतने में असफल रही ....पति  जो बेहद प्यार करता था मगर कब तक,  उसकी आवश्यकताओं का आप ख्याल नहीं रखोगे तो उसका प्यार स्थाई नहीं रह पाएगा। धीरे धीरे रिया के जीवन में  दुखों ने दस्तक देनी शुरू कर दी ...पति गलत रास्ते पर चलता चला गया और नशे का आदि हो गया ....आमदनी खत्म हो गई तो अय्याशी भी जाती रही और उसके जीवन को दुखों ने घेर लिया। उन  दुखों से लड़ने की क्षमता रिया में तो थी नहीं सो,  अपने दुखों का रोना रो रोकर वो मायके वालो को परेशान करने लगी और  शायद उसके  भाग्य ने भी उसका साथ दिया।  ससुराल ने साथ छोड़ा.... तो माँ -बाप भाई बहनों ने उसका हाथ थाम लिया .....खुद रीतू ने ही उसे सम्भाल लिया और उसे आर्धिक सहायता भी दी और मानसिक सुकून भी खुले दिल से दिया ... जबकि , रीतू जब मुसीबतों से दिन रात जूझ रही थी तो वही परिवार वालों ने  उसे कभी भी सहारा नहीं दिया... यहाँ  तक कि-  रिया ने तो कभी एक संतावना के बोल तक नहीं बोले। ऐसा नहीं था कि -परिवार वाले रीतू को  प्यार नहीं करते थे... लाड़ली थी वो सबकी,  क्योँ कि -रीतू दुःख में होते हुए भी परिवार के हर सदस्य का बहुत ख्याल रखती थी।  मगर,  रीतू के दुःख कभी किसी को नजर ही नहीं आए या शायद,  उसने  कभी अपने दुखों का रोना किसी के आगे नहीं रोया और कोई मदद के लिए आगे नहीं आया या रिया के शब्दों में शायद... रीतू के भाग्य में ही किसी का सहयोग नहीं लिखा था।


    रिया को सबने सहयोग देने की भरपूर कोशिश की मगर..  शायद , भाग्य अपना रंग बदल रहा था या उसके कर्म उसका भाग्य लिख रहा था।  रिया के पति  आसाध्य रोग से पीड़ित हो उसे तीन बच्चो के साथ बेसहारा छोड़ हमेशा हमेशा के लिए चले गए। रिया के भाग्य में एक अधूरापन आ गया ..एक पल को सबको लगा कि -रिया अब क्या करेगी ...बच्चो का जीवनयापन कैसे करेगी मगर ...यकीनन, वो  भाग्यशाली तो थी,  जिस ससुराल वालों ने उसे छोड़ दिया था उन्होंने ही उसे हाथों हाथ उठा लिया ,रिया के जीवन में कोई आर्धिक तंगी नहीं आई जहाँ तक मानसिक ख़ुशी ....तो शायद , उसके भाग्य में दूसरों के हिस्से की भी ख़ुशी मिलना लिखा रहा और वो उसे किसी ना किसी बहाने मिलता रहा।


     और कर्मों पर अटल रहने वाली रीतू अपने अथक प्रयास से अपने जीवन में ही नहीं दूसरों के जीवन में भी स्थायित्व लाती रही।  मगर, शायद उसके भाग्य में सुख और ख़ुशी  लिखा ही नहीं था। दुनिया के नजर में रिया दुःख की मारी थी.. लेकिन,  भाग्य उसे वो सब कुछ दे रहा था जो एक इंसान को खुश होने के लिए चाहिए। दूसरी तरफ रीतू,  दुनिया के नजरों में उसके पास सबकुछ था और वो सफल भी  दिख रही थी ,मगर सबकुछ होते हुए भी रीतू के हाथ रीते थे।" ख़ुशी और सुख " यानि प्यार और आर्धिक सम्पनता रीतू को जीवन में कभी नहीं मिला और अकेलेपन से तो रीतू का  चोली दामन का साथ था जो ताउम्र नहीं छूटा।

 तुलसीदास जी ने तो  कहा हैं -
"सकल पदारथ एहि जग माहीं, कर्महीन नर पावत नाही "

     और रीतू सारी उम्र इसी का पालन करती रही फिर - " रीतू के हाथ रीते क्योँ रहें ?"

     मेरे समझ से तो रीतू के हाथ खाली नहीं थे ....माना,  रीतू के भाग्य ने उसका साथ नहीं दिया और ...भले ही उसके जीवन में प्यार का अभाव रहा.... भले ही वो हमेशा किसी के साथ और सहयोग को तरसती रही ....भले ही सबको सम्पन्नता देते  हुए भी वो  खुद अपना सारा जीवन  आर्थिक तंगी में  ही गुजार दी  । मगर , जीवन  में उसने पाया भी बहुत कुछ....उसने आत्मनिर्भरता पाई ...संयमित  जीवन पाया ....सुख और दुःख पर विजय पाई ....खुद से ज्यादा दूसरों के लिए जीना सीखा ...रीतू उस परम सत्य को जान पाई जिसका मर्म समझना ज्ञानियों के लिए भी मुश्किल रहा " फल की चिंता किये बिना  निस्वार्थ कर्म करना " शायद ये उपलब्धि हर किसी के भाग्य में नहीं होता। 
आपके क्या विचार हैं -" क्या  रीतू के हाथ खाली रहें  .....?

12 टिप्‍पणियां:


  1. मेरी रचना को स्थान देने के लिए दिल से आभार आपको ,सादर नमन आपको

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  2. आत्मसम्मान से आत्मसंतुष्टि प्राप्त कर लेने वाले का हाथ खाली कहाँ रहता है? खाली तो उसका हाथ होता है जिसके पास कुछ होते हुऐ भी कुछ नहीं होने की असंतुष्टि हो।

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    1. सहृदय धन्यवाद सर ,आपकी इस सकारात्मक प्रतिक्रिया से बेहद ख़ुशी हुई ,आपके इस सुंदर विचार से मैं भी पूरी तरह सहमत हूँ ,सादर नमन

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  3. बहुत खूब, ऐसा लग रहा है कि यह एक सत्य कथा है।

    सधन्यवाद

    🙏🏻🙏🏻💐💐

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    1. सहृदय धन्यवाद आपका ,हर कथा का कही न कही जीवंत रूप तो होता ही है ,मेरे ब्लॉग पर स्वागत हैं आपका

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  4. स्वावलंबन और आत्मसम्मान जैसे अनमोल गुणों के साथ हाथ और जीवन सफलता से सम्पन्न होते हैं .बहुत सुन्दर संदेश समेटे हृदयस्पर्शी सृजन कामिनी जी ।

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    1. आपकी सकारात्मक समीक्षा की आभारी हूँ मीना जी ,भाग्य और कर्म हमेसा एक दूसरे से उलझते रहते हैं और कभी कभी मन को विचलित भी करते हैं बस उसी की उलझन सुलझाना चाहती थी ,दिल से धन्यवाद आपको

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  5. प्रिय कामिनी, इस लेख पर बहुत विस्तार से लिखना चाह रही थी सखी। क्योकि मैंने इस तरह की बातें अपने आसपास देखी हैं । अंजाने में ही सही , पर दो बहनों में असमान विचारों का रोपण करने में माता - पिता और आसपास के लोगों का बहुत बड़ा हाथ रहता है।आमतौर पर परिणाम भी वही सुनने में आता है, जो रिया और ऋतु का हुआ। असल में भाग्यवादी लोगों का सुख स्थाई नहीं होता जबकि कर्मठ लोग स्वाबलंबी होते हैं। हर जगह इनकी चर्चा करते हैं। स्नेह के वशीभूत माता - पिता अपने बच्चों को आलसी और भाग्यवादी बना देते हैं। पर जिस व्यक्ति ने मेहनत करना सीख लिया है वह यत्र तत्र सर्वत्र सम्मान के अधिकारी बनते है। अंततः जीत उन्ही की होती है। अत्यंत विचारणीय लेख के लिए आभार सखी।, 🙏🙏😊😊

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    1. हां ,सखी माँ -बाप कुछ हद तक ही जिम्मेदार होते हैं ,मगर मैंने देखा हैं कि -एक तरह की परवरिश मिलने के वावजूद एक ही माँ बाप के चार बच्चे चार रंग के हो जाते हैं तो शायद यहाँ अपनी सोच और अपना कर्मा ही सब कुछ करता हैं ,क्योँकि 14 वर्ष तक तो माँ बाप बच्चे हर गुण डालने की कोशिश करते हैं मगर उसके के बाद बच्चे पर निर्भर करता हैं कि वो अपने जीवन की नीव किस बुनियाद पर रखना चाहता हैं। तुम्हारी इस सार्थक प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभारी हूँ।

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  6. आत्मसम्मान से जीने वाले के हाथ कभी खाली नहीं होते। व्व एक संतोष के साथ ही जीता हैं कि मैं ने किसी के आगे हाथ नहीं फैलाए। बहुत सुंदर रचना, कामिनी दी।

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    1. सहृदय धन्यबाद ज्योति जी ,आपकी इस सुंदर और सकारात्मक समीक्षा के लिए दिल से शुक्रिया ,सही कहा आपने ,आत्म सम्मान से बड़ी कोई दौलत नहीं ,सादर नमन

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  7. बेहद हृदयस्पर्शी सृजन 👌

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kaminisinha1971@gmail.com

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