naari aur hina लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
naari aur hina लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 20 फ़रवरी 2020

नारी और हिना



" मेहँदी " इस शब्द के स्मरण मात्र से ही  प्रत्येक नारी अपनी सांसों में इसकी खुशबु को महसूस करने लगती 
हैं ,मेहँदी के रंग की रंगत उनकी हथेलियों पर ही नहीं उनके गालों पर भी बिखरने लगती हैं। मेहँदी अपने रंगों से सिर्फ  नारी के हथेलियों को ही नहीं रंगती , ये तो बालयवस्था से ही नारी हृदय की भावनाओं को भी रंगना शुरू कर देती हैं           हल्की गुलाबी मेहँदी रची तो दूल्हा  मिलेगा  हसींन 
गहरी रची तो आएगा ऐसा होगा जो मन का रंगीला 
ये हैं निशानी सुहाग  की ,लाली इसमें अनुराग की। 

दादी -नानी और माँ के मुख से कही ये चंद पंक्तियाँ ,बालपन से ही हर लड़की के मन में अठखेलियाँ करने लगता हैं। जब भी वो पथ्थर पर घिस- घिसकर महीन की हुई मेहँदी को अपनी हथेलियों पर रजाती हैं तो उसके साथ साथ ही मन में कई सपने भी सजाने लगती  और उनकी आँखें अपनी हथेली के रंगों में छुपे अपनें सपनों के राजकुमार को देखने के लिए लालायित हो ,अपनी हथेलियों को उम्मीद  भरी नजरों से निहारती रहती हैं। जब अपनी हथेली पर से सुखी मेहँदी को वो खुरच- खुरच कर निकलती हैं तो उनका दिल जोर जोर से धड़क रहा होता है " ना जाने ये मेहँदी मेरे सपनों का कैसा रूप रंग दिखाएगी  "  फिर ...सपनों का मनचाहा रंग मिलते ही  हथेली के साथ साथ चेहरा  भी खिल जाता  हैं ... अगर मनचाहा रंग ना मिला तो सपना जैसे टूटता नजर आने लगता हैं। फिर मेहँदी के फीके रंगों के साथ साथ मन भी फीका हो जाता हैं। कुंवारेपन को सुंदर कल्पनालोक में विचरण कराती हैं ये मेहँदी.....
नारी के कुँवारेपन के सपनों को सजाने वाली मेहँदी ,दुल्हन बनते ही उस सुहागन के श्रृंगार में उसके सौभाग्य की प्रतीक बन हर पल उसके मन को हर्षित करती रहती हैं। दुल्हन बनती बेटी के हाथों पर मेहँदी रचाते हुई माँ बलिहारी जाती हैं और मेहँदी के साथ साथ बेटी की हथेलियों की रेखाओं में  ढेरों दुआएँ भी लिखती जाती हैं - 

मेहँदी रचे तेरी खुशियाँ बढे ,तुझे मेरी उम्र लग जाए 
हर पल बुरी नजरों से बचाए ,भाग्य -सुहाग बढ़ाए

माँ के दुआओं से सजी मेहँदी के रंग को देख प्रतीत होने लगता हैं कि मेहँदी  भी उस दुल्हन को  दुआएं दे रही है -
मेहँदी ये बोली आ मेरी बहना ,तेरी हथेली सजा दूँ 
आँखों में सपने भर दूँ मिलन के साजन की प्यारी बना दूँ


बालपन से ही हाथों में मेहँदी रचाये आँखों में ढेरों सपने सजोये एक लड़की बड़ी होती हैं ...फिर वो दिन भी आ जाता हैं जब  बाबुल के घर से विदा हो वो साजन के घर जाती हैं। उसे तो अंदेशा ही नहीं होता कि -उसका स्वयं का जीवन भी तो मेहँदी सरीखा ही हैं। अपने बाबुल के आँगन को छोड़ना ,किसी और के घर- आँगन को अपना बनाना , फिर उस घर -परिवार और जीवन की चक्की में बारीक पीसना ,अपने  सुख -दुःख  और अरमानों  को पीस -पीसकर सबके जीवन में खुशियों की ,मुस्कुराहटों की कशीदाकारी करना ,घर के हर एक सदस्य को स्नेह के रंग में रंग देना ही उसका कर्तव्य बन जाता हैं। फिर धीरे धीरे हथेली की हल्की पड़ती हिना के  रंग की भांति  ही अपने  खुशियों को  ,अपने अरमानों को  ही नहीं अपने जीवन तक को धीरे धीरे माध्यम पड़ते  देखते रहना ....अंततः अपने आस्तित्व तक को समाप्त कर देना ही उसकी  नियति बन जाना । खुद को हिना की भांति ही दूसरों को समर्पित कर देना और  किसी से एक शिकवा तक नहीं करना.. 

डाली से नाता तोड़ के ,
अपना रस रंग निचोड़ के 
सुनी हथेली पे सज जाएगी ,
मेहँदी तो मेहँदी हैं रंग लाएंगी। 

फिर एक दिन ,नारी सोचने पर मजबूर हो गई,खुद से सवाल कर बैठी  -" तुम क्युँ खुश होती हो मेहँदी के पत्तों को देखकर ,उनको पथ्थर पर पीसते देखकर ,जब वो अपने आस्तित्व को मिटाकर तुम्हारी हथेलियों को थोड़ी देर के लिए लाल सुर्ख रंगों से सजा देती हैं तो तुम्हे इतनी ख़ुशी क्युँ मिलती ? " तुमने तो अपने जीवन में हिना के रंग को ही नहीं उसके गुणों को भी धारण कर लिया ,मगर क्युँ ???? नारी के कोमल भावुक मन ने जबाब दिया.....

वो हो औरत के हिना ,फर्क किस्मत में नहीं 
रंग लाने के लिए दोनों पिसती ही रही 
मिटके खुश होने का दोनों का है एक ढंग हिना 
मैं हूँ खुशरंग हिना 

हर पल ,हर हाल में खुश रहना .......लेकिन कब तक........नारी मन व्यथित हो चीत्कार कर उठा - " अब बहुत हुआ... अब हमें  हिना बनना मंजूर नहीं। अब तो प्रकृति का दोहन करते करते हिना का भी रूप -रंग बिगड़ गया  हिना को भी  कित्रिम रूप दे दिया गया तो फिर हम ही क्युँ पीसते रहें ?? जैसे हिना के असली सौंदर्य को किसी ने नहीं समझा वैसे ही मेरे किसी भी रूप को भी किसी ने ना समझा ,बस कोरी सराहना ही करते रहे ....ना माँ के ममता को मान दिया ना बहन की राखी को ...ना पत्नी के त्याग को समझा ना प्रेमिका के समर्पण को ....ना बहु के सेवा का महत्व दिया ना बेटी स्नेह को। फिर क्या था ...हिना के साथ साथ नारियों के स्नेह के रंग में भी कित्रिमता आनी शुरू हो गई। आखिर कब तक ???  कब तक... किसी के सहन शक्ति की आजमाईस होती रहेगी ,बर्दास्त की भी हद होती हैं ,एक दिन तो वो थककर विद्रोह करेगी  ही न । आख़िरकार  माँ प्रकृति की सहनशक्ति भी तो समाप्त हो ही गई न.... अब तो वो भी क्रोधित हो चुकी हैं और अपना सौंदर्य....अपना रंग...अपनी प्राणवायु देना से इंकार करने लगी हैं । नारी तो एक मनुष्य हैं कब तक अपने स्नेह ,त्याग और तपस्या की अवहेलना होते देखती रहती ,उन्हें भी तो एक ना एक दिन उग्र रूप धारण करना ही था आखिरकार ....अब वो हिना बनने से पूरी तरह इंकार कर चुकी हैं। 
हिना और नारी  जिसका चयन ही प्रकृति ने सौंदर्य ,प्यार और खुशियाँ बाँटने के लिए किया था। हिना भी तो हर पल प्यार से यही कहती रही हैं न ..... 
मैं हूँ खुशरंग हिना ,प्यारी खुशरंग हिना 
जिंदगानी में कोई रंग नहीं मेरे बिना। 
लेकिन हम नहीं समझे ....हम तो इतने निष्ठुर.... कि हमनें  उसकी प्यारी कोमल भावनाओं को अनदेखा ही नहीं किया ,निरादर भी करते रहें। जैसे नारी का सम्पूर्ण श्रृंगार अधूरा हैं हिना के बिना वैसे ही प्रकृति अधूरी हैं नारी के अस्तित्व के  बिना। यदि नारी ने अपना अस्तित्व पूर्णतः बदल दिया तो .....ना ही प्रकृति रहेगी और ना ही उसकी सुंदरता। धरा से प्रेम ,ममत्व और समर्पण का रंग भी हमेशा-हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा। 
अब भी वक़्त हैं सम्भल सकें तो सम्भल ले ....बचा सकें तो बचा ले ....प्रकृति ,हिना और नारी के सुंदर रंगों को ,उनकी खुशबु को ,उनके सौंदर्य को ,बरना .......

"नारी दिवस"

 नारी दिवस " नारी दिवस " अच्छा लगता है न जब इस विषय पर कुछ पढ़ने या सुनने को मिलता है। खुद के विषय में इतनी बड़ी-बड़ी और सम्मानजनक...