बुधवार, 9 सितंबर 2020

"नशा" एक मनोरोग



शीर्षक -"नशा" एक मनोरोग 

"शराब"किसी ने इसकी बड़ी सही व्याख्या की है
श -शतप्रतिषत
रा -राक्षसों जैसा
ब -बना देने वाला पेय
    सच है, शराब पीने वाला या कोई भी नशा करने वाला धीरे-धीरे राक्षसी प्रवृति का ही हो जाता है। उन्हें ना खुद की परवाह होती है ना ही घर-परिवार की।
आखिर क्यूँ ,एक व्यक्ति किसी चीज़ का इतना आदी हो जाता है कि-अपनी ही मौत को आप आमंत्रित करता है?
 आखिर कोई व्यक्ति नशा क्यों करता है?
चाहे वो शराब पीना हो, सिगरेट या बीड़ी पीना हो, गुटका या तम्बाकू खाना हो, बार-बार चाय-कॉफी पीने की लत हो या फिर और कोई गलत लत हो ।इसके पीछे क्या कारण होता  है ?
 वैसे तो इसके कई कारण है मगर मुख्य है -
     1. शुरू-शुरू में सभी शौकिया तौर पर इन सभी चीज़ो को लेना शुरू करते हैं । वैसे भी आज कल तो शराब और ड्रग्स लेना फैशन और स्टेंट्स सिंबल बन गया है। युवावर्ग खुद को "कूल" यानि बिंदास, बेपरवाह चाहे जो नाम देदे वो दिखाने की कोशिश में इन गलत आदतों को अपनाते हैं। लड़कियाँ भी इसमें पीछे नही है। मगर धीरे-धीरे नशा जब इनके नशों में उतरता है तो वो इन्हें अपना गुलाम बना लेता है फिर इनका खुद पर ही बस नहीं होता।

     2.  अक्सर हम लोग  कोई भी नशा तब भी करते हैं जब हम  खुद को असहज महसूस करते हैं, या किसी भी कारणवश हमें  कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा होता है, दुखी होते हैं,परेशान होते हैं । ऐसी अवस्था में  हमारा मन भटकता है और हम  खुद को अच्छा या फ्रेश महसूस कराने के लिए मन को कही और मोड़ने की कोशिश करते हैं। उस वक़्त सही-गलत से मतलब नहीं होता,बस खुद को खो देना या भूल जाना ही चाहते हैं। ऐसी  मनःस्थिति में अगर कही भटक गए तो वो भटकाव स्थाईरूप से अपना लेते हैं। क्योँकि थोड़ी देर के लिए ही सही वो "भटकाव" हमें ख़ुशी और शुकुन देता है। 
      सिर्फ शराब या ड्रग्स ही नहीं अक्सर लोग चाय-कॉफी तक के आदी हो जाते हैं। आमतौर पर घरों में भी देखा जाता है कि जब भी कोई शारीरिक या मानसिक तौर पर थकान महसूस करता है तो एक कप चाय या कॉफी की फरमाईस कर देता है। ये चाय-कॉफी थोड़ी देर के लिए उसे ताजगी महसूस करवाती है। चाय-कॉफी में मौजूद निकोटिन और कैफीन थोड़ी देर के लिए आपके मन और शरीर को आराम तो दे जाती है मगर ये भी तो एक तरह का नशा ही है धीरे-धीरे  हम इसके आदी हो जाते हैं। अधिक मात्रा में इसका  सेवन भी शरीर को नुकसान ही पहुँचता है। परन्तु, इस नशा से सिर्फ खुद का शरीर ही बर्बाद होता है जबकि शराब और ड्रग्स का नशा तो तन-मन, घर-परिवार, समाज और देश तक को क्षति पहुँचता है।इस "नशा" का कितना बड़ा दुष्परिणाम होता है, इसके कारण समाज में और कितनी सारी बुराई जन्म लेती है, कितने आकस्मिक मौत होते हैं ये सारी बातें तो बताने की जरूरत ही नहीं है। ये तो सभी जानते हैं कि -"ये आदत" गलत है फिर भी इसके गुलाम बनकर मौत तक की परवाह नहीं करते। 
आखिर कैसी मानसिकता है ये ?
 "नशा" भी एक मनोरोग ही है।इस बात को डॉक्टर भी मानते है।इसमें भी तो इंसान अपना मानसिक संतुलन खो ही देता है न।यदि उसका अपने दिलों-दिमाग पर कंट्रोल होता तो मुझे नहीं लगता कि-कोई भी अपने मौत को आमंत्रण भेजता। यदि कोई व्यक्ति "पागल" हो जाता है यानि किसी भी तरह से अपना मानसिक संतुलन खो देता है तो परिवार तुरंत उसको डॉक्टर के पास ले जाता है इलाज करवाता है जरूरत पड़ने पर हॉस्पिटल तक में रखा जाता है। 

मगर जब कोई व्यक्ति "नशे का आदी" होने लगता है तो हमें वो "गंभीर रोग"क्यों नहीं लगता है ?
इस "जानलेवा रोग" की गंभीरता को समझ हम इसका इलाज क्यों नहीं करवाते हैं ?
हम क्यों सिर्फ उसे एक बुरी आदत समझ कर नज़रअंदाज़ करते चले जाते हैं ?
शुरुआत में नज़रअंदाज़ करना और फिर वही रोग जब कैंसर का रूप धारण कर लेती है तब ही हमें होश क्यों आता है ?
और आखिरी पल में ही हमें मान-सम्मान,धन-सम्पति यहाँ तक की जीवन तक दाँव पर क्यों लगाना पड़ता है ?
क्या समय रहते हम सचेत नहीं हो सकते ?

      हम सिर्फ सरकार को दोष देते हैं। हाँ,ये भी सत्य है कि -राजस्व बढ़ाने के नाम पर सरकार गली-गली, हर नुक्क्ड़ पर शराब के ठेके लगवा रही है,डॉक्टरों और दवाखानों के माध्यम से धड़ल्ले से ड्रग्स बेचा जा रहा है। ये तो सत्य है कि -शराब और ड्रग्स से किसी को फायदा है तो सिर्फ  राजनेताओं को,पुलिस को,शराब और ड्रग्स माफिया को,कुछ हद तक डॉक्टरों और दवाखाना वालों को भी। क्योंकि दवाओं के नाम से भी बहुत से ड्रग्स बेचे जाते हैं।ये नादान भी तो ये नहीं समझते कि-इस बुरी लत का शिकार होकर उनके अपने भी तो जान गवाँते हैं,मगर लालच तो अँधा होता है न ।हम घरों में भी देखते हैं कि-स्वार्थ और लालच से वशीभूत होकर अपनों का अहित अपने ही करते हैं, ये तो फिर बाहरी दुनिया के लोग है इन्हे सिर्फ अपने लाभ से मतलब है।

स्वहित के लिए,परिवार के हित के लिए सोचने का काम किसका है ?
 मेरी समझ से तो,ये सिर्फ और सिर्फ हमारा काम है, सरकार या समाज का नहीं। 
कोई भी हमारे हित के बारे में क्यों सोचेगा, क्यों परवाह करेगा??
   सबसे पहले तो हर इंसान  का पहला फ़र्ज़ है "स्वयं" की सुरक्षा करना।फिर भी,यदि कोई अपना  मानसिक संतुलन खोकर किसी भी कारणवश  इस "मनोरोग" से ग्रसित हो चुका है तो दूसरा फ़र्ज़ परिवार वालों का होता है। परिवार का फ़र्ज़ है प्यार से या सख्ती से,सही सूझ-बुझ से उस व्यक्ति का मार्गदर्शन करें या सही इलाज करें। रोग के शुरूआती दिनों में यदि उस व्यक्ति और परिवारवालों  के नज़रअंदाज़ करने के कारण, रोग ज्यादा भयानक हो चुका है तब भी "जब जागे तभी सवेरा" के सिद्धांत को अपनाते हुए तुरंत सजग हो जाना चाहिए अर्थात  जैसे ही परिवार को पता चले कि-मेरे घर का अमुक व्यक्ति अब इस व्यसन का आदी हो चुका है तो वो इसे गंभीर रोग मानकर तुरंत ही उसका  इलाज करवाये। छोटे से फोड़े की शुरुआत से ही चिकित्सा शुरू कर देनी चाहिए  कैंसर बनने तक का इंतज़ार नहीं करना चाहिए।
मेरी समझ से "नशा मुक्ति" का सबसे सही और सरल उपाय है "परिवार की जागरूकता"
     कितनी ही बार "नशा मुक्त राज्य" बनाने के नाम पर कई राज्यों में शराब पर रोक लगाया गया है,कई बार कितने गैलन शराब को बहाकर बर्बाद किया गया है परन्तु फायदा कुछ नहीं हुआ। ना सरकार इस पर काबू कर सकती है ना ही समाजिक संस्था "नशा मुक्ति अभियान" का ढ़ोग कर हमारी नस्ल को नशा से मुक्त करा सकती है, सिर्फ और सिर्फ हमारा परिवार ही इस भयानक रोग से हमें बचा सकता है। 
     हाँ,अगर इसके लिए सामाजिक संस्थाओं को जागरूकता लानी है तो घर-घर जाकर परिवार को इस गंभीर रोग के बारे में सजग करना चाहिए,उन्हें समझाना चाहिए कि- यह एक आदत या व्यसन नहीं है बल्कि  हर मानसिक रोग की भांति यह भी एक मानसिक रोग ही है। अपने बच्चों में शुरू से अच्छे संस्कार रोपित कर उन्हें इस बुराई से बचने के लिए सजग करते रहना ही हमारा फर्ज होना चाहिए। 
   मगर समस्या तो सबसे बड़ी यही है कि- माँ-बाप या कोई बड़ा  क्या राह दिखाएंगे जबकि फैशन के नाम पर वो खुद को ही नशे में डुबो रखे है। "यहाँ तो कूप में ही भांग पड़ी है" 
    "कोरोना" महामारी बनकर आया था नवंबर 2021 की शुरुआत तक भारत में 4 लाख 44 हजार लोगों की और पूरी दुनिया में  50 लाख से ज्यादा लोगो की मौत हो चुकी है,हाहाकार मचा हुआ था ।  मगर गौर करने वाली बात ये है कि- हर साल अकेले  भारत में ढाई लाख से ज्यादा लोग सिर्फ शराब पीने के कारण मरते हैं। ।(ये आंकड़ा 2018 का है,नशामुक्ति अभियान चलाने वाले  डा0 सुनीलम के फरवरी 2020 में किये गए नए सर्वे के मुताबिक  भारत में ये आंकड़ा  प्रतिवर्ष 10 लाख है)
     सोचने वाली बात ये है कि-" कोरोना महामारी से डरकर अपने घर-परिवार को उससे बचाने के लिए हम कितने उपाय कर रहे थे और हैं भी,कितने सजग है हम। क्या कभी भी "नशा महामारी" की गंभीरता को समझ अपनी सजगता  बढ़ाने की कोशिश की है हमने?  हाँ,नशा भी तो एक छूत का रोग,एक महामारी ही तो बनता जा रहा है। हमारी युवापीढ़ी ही नहीं हम खुद भी यानि माँ-बाप तक भी देखा-देखी के चलन में, फैशन के नाम पर इस छूत रोग के चपेट में आते जा रहे हैं। 
"कोरोना महामारी" तो एक-न-एक दिन चला जाएगा, मगर नशा जैसी  भयानक महामारी जो हमारे युवाओं को, हमारे घरों को, हमारे समाज को खोखला किये जा रहा है क्या वो कभी रुकेगा? 





 



































"कोरोना" महामारी बनकर आया है अब तक पुरे विश्व में करीब नौ लाख से ज्यादा लोग और सिर्फ भारत में लगभग 72-73000


46 टिप्‍पणियां:

  1. प्रिय सखी कामिनी , नशे के दुर्व्यसन पर तुम्हारा ये लेख पढ़कर मुझे अपने परिचित वो कितने ही लोग याद आये जिन्होंने इस लत के वशीभूत अपना सबकुछ दाँव पर लगा दिया जो जीवन भर शराब पीते रहे - नशे करते रहे पर हमेशा दावा करते रहे कि अब छोड दी तब छोड़ दी | मेरे एक फूफा जी पूरे जीवन में एक तालाब - भर शराब पीगये पर उन्होंने कभी नहीं माना कि वो पीने के आदी हैं | इसी तरह और कई लोग देखने में आते रहते हैं जिनकी वजह से घर- परिवार में अशांति बनी रहती है, खासकर , बच्चों के मन पर बुरा असर पड़ता है | | पुराणों में सुर - असुर से लेकर सोमरस --तो आज के आम आदमी तक शराब के रूप में नशा हावी रहा | किसी समय महिलाओं के लिए ये बिलकुल तराज्य था , पर आज तो ये व्यसन पुरुषों के साथ , महिलाओं और लडकियों पर भी अपना प्रभाव बढाता जा रहा है, जो चिंता की बात है | आज की बेटियाँ कल की गृहणियां हैं जिनपर भावी पीढ़ी का भार आने वाला है | इस दलदल में फंसकर वो कैसे परिवार में आदर्श भूमिका निभा पाएंगी उन्हें ये सोचना होगा ! परिवार की जागरूकता के साथ इंसान का खुद जागरूक होना जरूरी है | अपनी सेहत की चिंता और परिवार के भविष्य के बारे में सोचकर नशे से दूर रहना ही श्रेयस्कर है |बच्चों के लिए भी माता - पिता को बहुत सावधान रहने की जरूरत है | आज समाज में ना जाने कैसे -कैसे अंवांछित तत्व सक्रिय हैं ,जो युवा पीढ़ी को नशे का ग्रहण लगाने के लिए तत्पर हैं इसलिए उन पर नज़र जरूरी है और दुर्भाग्यवश यदि कोई बच्चा इस दुर्व्यसन का आदी हो जाए तो उसके लिए अनावश्यक क्रोध की नहीं , अपितु स्नेह और दुलार की जरूरत है | सार्थक लेख के लिए आभार सखी | हार्दिक स्नेह के साथ शुभकामनाएं|

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    1. मेरे लेख को विस्तार देती इस सुंदर विश्लेषण के लिए तहे दिल से आभार सखी

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  2. सही कहा आप ने
    वर्तमान में कहीं न कहीं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समाज और सरकार भी इस के लिए दोषी है
    सादर

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    1. सहृदय धन्यवाद सर,आपने बिलकुल सही कहा,सादर नमस्कार आपको

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  3. नशे को रोग मानना .... काश के लोग समझ पायें पर ९९ प्रतिशत नशा करने वाले इसे रोग कहाँ मानते हैं ... घर बरदाद होने पर भी नहीं समझ पाते ... खुद का जीवन उर साथ सब का जीवन ले लेते हैं ... समाज के नियम बदल रहे हैं ... इसका चलन कम होने की बजाये बढ़ रहा है ...

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    1. बिलकुल सही कहा आपने "काश के लोग समझ पाते" तो आज समाज यूँ गर्त में नहीं जा रहा होता।दिल से शुक्रिया आपका,सादर नमस्कार आपको

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  4. बहुत ही अच्छा लिखा है आपने बिलकुल सही बात है ।आदरणीया शुभकामनाएँ,

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  5. नशे से जुड़े पक्षों की सार्थक विवेचना।

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    1. सहृदय धन्यवाद विश्वमोहन जी,सादर नमस्कार आपको

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  6. जब तक शरीर है तभी तक सब कुछ संभव है ! इस माध्यम के बिना कुछ भी करना-होना-भोगना-महसूसना असंभव हे ! पर फिर भी कुछ लोग क्षणिक आवेश या सुखानुभूति (?) के लिए उसे ही नष्ट करने पर तुले रहते हैं !

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    1. सहृदय धन्यवाद सर,बिलकुल सही कहा समझ में ही नहीं आता ये कैसी मानसिकता है ,सादर नमस्कार आपको

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  7. सच से ओत-प्रोत आपकी रचना बेहद खूबसूरत।

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  8. सराहनीय विश्लेषण किया है आदरणीय कामिनी दीदी।
    सादर

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  9. मेरी रचना को स्थान देने के लिए दिल से धन्यवाद मीना जी,सादर नमस्कार आपको

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  10. मेरी रचना को स्थान देने के लिए दिल से धन्यवाद दी,सादर नमस्कार आपको

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  11. बहुत सही बात लिखी है आपने सब कुछ जानकारी के बाद भी लोग सुनते नहीं है ।आदरणीया शुभकामनाएँ,

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  12. "कोरोना महामारी" तो एक-न-एक दिन चला जाएगा, मगर नशा जैसी भयानक महामारी जो हमारे युवाओं को, हमारे घरों को, हमारे समाज को खोखला किये जा रहा है वो रुकना चाहिए।

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  13. काश की लोग समझ पाते
    बहुत ही जरूरी ओर सचेत करने वाली
    जानकारी
    सार्थक पोस्ट
    सादर

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  14. सराहनीय लेख.... विचारोत्तेजक और समाज के लिए पथप्रदर्शक भी

    साधुवाद 🙏💐🙏

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    1. सहृदय धन्यवाद वर्षा जी,उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए आभार एवं सादर नमस्कार

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  15. आपकी विलक्षणता को नमन है। समाज को सही राह चुनने को प्रेरित करती इस लेख हेतु साधुवाद।

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    1. सहृदय धन्यवाद पुरुषोत्तम जी,सराहना से भरे आपके इन शब्दों के लिए हृदयतल से आभार एवं सादर नमस्कार

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  16. बहुत उपयोगी और जागरूक करने वाला आलेख। सच है, नशा किसी भी चीज का हो बुरा है।

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    1. सहृदय धन्यवाद शबनम जी,सराहना हेतु हृदयतल से आभार एवं सादर नमस्कार

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  17. बहुत ही उपयोगी व प्रेरणादायी ब्लॉग है आपका, आलेख, प्रबंध, कविता, गद्य पद्य सभी विधाओं में दक्षता मंत्रमुग्ध करता है - - नमन सह।

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    1. सहृदय धन्यवाद सर,मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है,सराहना हेतु हृदयतल से आभार एवं सादर नमस्कार

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  18. बहुत ही शानदार और उपयोगी लेख आपका आपके द्वारा लिखी गई सभी बातें एकदम सत्य है

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    1. सहृदय धन्यवाद सर,मनोबल बढाती इस प्रतिक्रिया के लिए आभार एवं सादर नमस्कार

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  19. एक अत्यंत गंभीर विषय पर गहन अध्ययन एवं शोध से ओत-प्रोत सराहनीय रचना हेतु आपको हार्दिक बधाई...

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  20. श -शतप्रतिषत
    रा -राक्षसों जैसा
    ब -बना देने वाला पेय

    ... सुंदर शिक्षाप्रद लेख

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  21. आदरणीया मैम ,
    बहुत ही सुंदर व लेखन। सच है किसी लत एक मनोरोग ही होती है। हमें उससे बचना चाहिए, विशेष कर नशीले पदार्थों की लत से। आज कल दुःख की बात है कि लोग शराब पीना या ड्रग्स लेना एक प्रकार का फैशन समझने लगे हैं। यहाँ तक कि कॉलेज के छात्र भी शराब पीने को "कूल " मानने लगे हैं। मैं स्वयं एक कॉलेज छात्र हूँ और मैं ने इस मानसिकता को बहुत निकट से देखा है।
    आपका यह लेख सब को सतर्क करता है साथ ही साथ जो लोग नशे की चपेट में आ गए हैं, उन्हें मुक्त होने की प्रेरणा भी देता है।
    आपसे अनुरोध है कृपया मेरे ब्लॉग पर भी आएं। आपके प्रोत्साहन एवं आशीष के लिए आभारी रहूंगी। मैं ने आपके ब्लॉग को फॉलो कर लिया है , अब यहाँ समय निकाल कर आपकी रचनाएँ पढ़ने के लिए आती रहूंगी। पुनः सादर नमन ।

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    1. सहृदय धन्यवाद अनंता,तुम्हारे ब्लॉग पर मैं जरूर आऊंगी

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