"बहुत खूबसूरत होती है ये यादों की दुनिया ,
हमारे बीते हुये कल के छोटे छोटे टुकड़े
हमारी यादों में हमेशा महफूज रहते हैं,
यादें मिठाई के डिब्बे की तरह होती है
एक बार खुला तो, सिर्फ एक टुकड़ा नहीं खा पाओगे "
वैसे तो ये एक फिल्म का संवाद है परन्तु है सतप्रतिशत सही ,यादें सचमुच ऐसी ही तो होती है और अगर वो यादें बचपन की हो तो " क्या कहने "फिर तो आप उनमे डूबते ही चले जाते हो ,परत- दर -परत खुलती ही जाती हैं ,खुलती ही जाती ,कोई बस नहीं होता उन पर। उन यादों में भी सबसे प्यारी यादें स्कूल के दिनों की होती है। वो शरारते ,वो मस्तियाँ ,वो दोस्तों का साथ ,खेल कूद और वार्षिक उत्सव के दिन ,शिक्षकों के साथ थोड़ी थोड़ी चिढ़न और ढेर सारा सम्मान के साथ प्यार ,हाफ टाइम के बाद क्लास बंक करना और फिर अभिभावकों के पास शिकायत आना फिर उनसे डांट सुन दुबारा ना करने का वादा करना और फिर वही करना ,सब कुछ बड़ी सिद्दत से याद आने लगती हैं। सच बड़ा मज़ा आता था,क्या दौर था वो. ........