"एक और ज़िन्दगी"
कहते हैं "शरीर मरता है मगर आत्मा अमर होती है"
और वो बार-बार नई-नई पोषक पहनकर पृथ्वी पर आना-जाना करती ही रहती है। इसे ही जन्म-मरण कहते हैं। अगर इस आने-जाने की प्रक्रिया से मुक्ति पाना चाहते हैं तो आपको मोक्ष की प्राप्ति करनी होगी और मोक्ष प्राप्ति के लिए ईश्वर से लौ लगानी होगी। बहुत से लोग इस जन्म-मरण से छूटने के लिए ईश्वर की पूजा,तपस्या,साधना और भी पता नहीं क्या-क्या करते हैं। मगर मैं..."मोक्ष" नहीं चाहती......
मैं जीना चाहती हूँ
एक और ज़िन्दगी
पाना चाहती हूँ
मां का ढ़ेर सारा प्यार,
पापा का दुलार,
खोना चाहती हूँ
बचपन की गलियों में
फिर से, एक बार
जहाँ ना गम, ना खुशी
मस्ती और सिर्फ मस्ती
फिर से....
एक घरौंदा बनाकर,
सखियों संग गुड़ियों का,
ब्याह रचाकर,
नाचना-गाना चाहती हूँ।
यौवन के प्रवेश द्वार पर,
फिर से.....
किसी से नजरें मिला कर,
पलकें झुकाना चाहती हूँ।
किसी के दिल को चुरा कर,
उसे अपने दिल में छुपा कर,
फिर से...
एक बार इश्क में फ़ना
हो जाना चाहती हूँ।
छुप-छुप कर रोना,
बिना बात मुस्कुराना,
आँखें बिछाए पथ पर,
फिर से....
उसकी राह तकना चाहती हूँ।
दुआओं में उसे मांगकर,
उसको अपना बनाकर,
उसकी सांसों में समाकर,
उसकी ही आगोश में
मरना चाहती हूँ।
उसकी झील सी गहरी आँखों में,
जहाँ बसते हैं प्राण मेरे,
डुब जाना चाहती हूँ।
उसकी बाहों का
सराहना बनाकर
चैनो-सुकून से
सोना चाहती हूँ।
आँखें जब खोलूं
मनमोहन की छवि निहारु
माथे को चूम कर
उसे जगाना चाहती हूँ।
होली में उसके हाथों के
लाल-गुलाबी-पीले रंगों से
तन-मन अपना
रंगना चाहती हूँ।
दिवाली के दीप जलाकर,
उसके घर को रोशन कर,
उसके प्रेम अगन में,
जल जाना चाहती हूँ।
संग-संग उसके
हवाओं में
उड़ना चाहती हूँ।
बारिशों में
भीगना चाहती हूँ।
कोरा जो पन्ना रह गया
उस पर
ख़्वाब अधूरे
लिखना चाहती हूँ।
एक और ज़िन्दगी
मैं जीना चाहती हूँ......