वैसे तो हर त्यौहार पहले भी मनाया जाता था और अब भी मनाया जाता है। स्वतंत्रता दिवस भी तब भी मनाया जाता था और अब भी मनाया जाता है। लेकिन याद कीजिये वो 80-90 के दशक के ज़माने, उफ़!
क्या होते थे वो दिन... हाँ, "याद आया न" सुबह- सुबह नहा-धोकर...स्कूल यूनिफार्म पहनकर...बिना कुछ खाएं-पीएं (जैसे किसी पूजा में जा रहें हो) स्कूल पहुँच जाते थे...क्योंकि झंडा फहराना हमारे लिए किसी पूजा से कम नहीं था। झंडा फहराना, राष्ट्गान गाना, प्रधानाचार्य के द्वारा बच्चों को शहीदोंं की गाथा सुनाकर आज़ादी का महत्व समझाना और फिर बच्चों के द्वारा रंगारग कार्यक्रम प्रस्तुत करना।।।जिसमें सिर्फ और सिर्फ देशभक्ति गाने ही होते थे... फिर हमें प्रसाद की तरह बूंदी या लाड्डू मिलता था। घर आने पर माँ के हाथों के बनें अच्छे-अच्छे पकवान खाने को मिलते थे। जैसे, माँ बाकी त्योहारोंं में पकवान बनाती थी ठीक वैसे ही। खाना खाते-खाते माँ हमें आज़ादी की लड़ाई के किस्से सुनाती और समझाती कि- इस आजादी को पाने के लिए कैसे औरतों ने भी अपना बलिदान दिया था....साथ ही साथ ये भी समझाती कि- "हमें अपनी आज़ादी की कद्र करनी चाहिए...अपने देश से प्यार करना उस पर सब कुछ लुटा देना ही हमारा पहला धर्म है।"
उस दिन T.V पर एक देशभक्ति फिल्म ज़रूर दिखाई जाती थी जो सारा परिवार एक साथ बैठकर देखता था और अपने पूर्वजों की कुर्बानियों को देखकर सब की आँखें नम हो जाती थी।सारा दिन दिलो-दिमाग देशभक्ति के रंग में डूबा रहता था।शायद, यही कारण था कि- हमारे अंदर देशभक्ति का ज़ज़्बा कायम था और है भी ,आज भी हमारी पीढ़ी के लिए "15 अगस्त" एक पावन त्यौहार है।
क्या होते थे वो दिन... हाँ, "याद आया न" सुबह- सुबह नहा-धोकर...स्कूल यूनिफार्म पहनकर...बिना कुछ खाएं-पीएं (जैसे किसी पूजा में जा रहें हो) स्कूल पहुँच जाते थे...क्योंकि झंडा फहराना हमारे लिए किसी पूजा से कम नहीं था। झंडा फहराना, राष्ट्गान गाना, प्रधानाचार्य के द्वारा बच्चों को शहीदोंं की गाथा सुनाकर आज़ादी का महत्व समझाना और फिर बच्चों के द्वारा रंगारग कार्यक्रम प्रस्तुत करना।।।जिसमें सिर्फ और सिर्फ देशभक्ति गाने ही होते थे... फिर हमें प्रसाद की तरह बूंदी या लाड्डू मिलता था। घर आने पर माँ के हाथों के बनें अच्छे-अच्छे पकवान खाने को मिलते थे। जैसे, माँ बाकी त्योहारोंं में पकवान बनाती थी ठीक वैसे ही। खाना खाते-खाते माँ हमें आज़ादी की लड़ाई के किस्से सुनाती और समझाती कि- इस आजादी को पाने के लिए कैसे औरतों ने भी अपना बलिदान दिया था....साथ ही साथ ये भी समझाती कि- "हमें अपनी आज़ादी की कद्र करनी चाहिए...अपने देश से प्यार करना उस पर सब कुछ लुटा देना ही हमारा पहला धर्म है।"
उस दिन T.V पर एक देशभक्ति फिल्म ज़रूर दिखाई जाती थी जो सारा परिवार एक साथ बैठकर देखता था और अपने पूर्वजों की कुर्बानियों को देखकर सब की आँखें नम हो जाती थी।सारा दिन दिलो-दिमाग देशभक्ति के रंग में डूबा रहता था।शायद, यही कारण था कि- हमारे अंदर देशभक्ति का ज़ज़्बा कायम था और है भी ,आज भी हमारी पीढ़ी के लिए "15 अगस्त" एक पावन त्यौहार है।
लेकिन, क्या आज की पीढ़ी के दिलों में स्वतंत्रता दिवस के प्रति यही जुड़ाव है ?आज ये आज़ादी का दिन हमारे लिए क्या मायने रखता है ?अगर ये सवाल हम किसी से करें तो उनका सीधा सा जबाब होगा "एक दिन की सरकारी छुट्टी" .आज कल की पीढ़ी क्या समझ पाती है इस आज़ादी के ज़ज़्बे को, इस स्वतंत्रता दिवस के महत्व को ?
कैसे समझेगी ?
आज तो 15 अगस्त यानि छुट्टी का दिन...देर तक सोना...पतंग उड़ाना...मौज़-मस्ती करना यही है आज़ादी का दिन। क्योंकि स्कूलों में एक दिन पहले ही झंडा फहरा लिया जाता है ( खासतौर पर दिल्ली में,यकीनन ये आजकल के माहौल को देख सुरक्षा की दृष्टि से ही होता है ) जो एक औपचारिकता भर होता है। बच्चों का रंगारंग कार्यक्रम भी होता है मगर उस कार्यक्रम का देश-भक्ति के भाव से जुड़ा होना आवश्यक नहीं होता है।
ना ही शिक्षको द्वारा बच्चों को "आज़ादी की कुर्बानियो" के किस्से सुनाकर ये एहसास ही दिलाया जाता है कि- हमें ये आज़ादी कितनी तपस्या के बाद मिली है। हम भी तो अपने बच्चों को अपने इतिहास से अवगत नहीं कराते।ये गाथाएं बच्चें माँ-बाप और शिक्षक से ही सुनते, सीखते और अपनाते हैं।आज़ादी की कद्र करना और देश भक्ति का ज़ज़्बा सिलेबस की किताबों की पढ़ाई से नहीं आता है। आज सोशल मीडिया के दौर में हर " day " का celebration करने का तरीका है बस,एक अच्छा सा फोटो वाला मैसेज भेज देना और ये समझना कि -मैंने अपना फ़र्ज़ पूरा कर दिया।क्या बस यही है " आज़ादी का दिन ? "
ना ही शिक्षको द्वारा बच्चों को "आज़ादी की कुर्बानियो" के किस्से सुनाकर ये एहसास ही दिलाया जाता है कि- हमें ये आज़ादी कितनी तपस्या के बाद मिली है। हम भी तो अपने बच्चों को अपने इतिहास से अवगत नहीं कराते।ये गाथाएं बच्चें माँ-बाप और शिक्षक से ही सुनते, सीखते और अपनाते हैं।आज़ादी की कद्र करना और देश भक्ति का ज़ज़्बा सिलेबस की किताबों की पढ़ाई से नहीं आता है। आज सोशल मीडिया के दौर में हर " day " का celebration करने का तरीका है बस,एक अच्छा सा फोटो वाला मैसेज भेज देना और ये समझना कि -मैंने अपना फ़र्ज़ पूरा कर दिया।क्या बस यही है " आज़ादी का दिन ? "
" आज़ादी " शब्द से मुझे एक बात का और ख्याल आता है कि-क्या हम सचमुच आज़ाद हुए है? देश को आज़ाद हुए कितने साल हो गए। इतने सालों में हमारे देश ने हर क्षेत्र में काफी तरक्की की है।चाहे वो औद्योगिकी में हो, टेक्नोलॉजी में या सामाजिक स्तर पर,फैशन के क्षेत्र में तो हम सोच से ज्यादा तरक्की कर चुके हैं। लेकिन क्या हम मानसिक तौर पर तरक्की कर पाएं हैं? एक बार सोचकर देखें,क्या हम आज भी मानसिक रूप से आज़ाद हुए है?
हम आजाद सिर्फ जिस्म से हुए, मानसिक रूप से हम गुलाम ही रहें है,अंग्रेजीयत हम पर तब भी हावी थी , अब तो कुछ ज्यादा ही हावी है। हम अपनी सभ्यता-संस्कृति,अपना ज्ञान -विज्ञान ,वेद पुराण,योग-आयुर्वेद ,परिवार-समाज, प्यार-अपनत्व, सब कुछ भूल चुके हैं।हमने अग्रेजों से आजादी पा ली थी पर अंग्रेजी सभ्यता के गुलाम बनकर रह गए। धीरे-धीरे हमने "आजादी " का मतलब स्वछंद होना ,लापरवाह होना ,संस्कारविहीन होना, भावनाहीन होना समझ लिया।देश तो प्रगतिशील होता गया पर हम पतनशील होते गए।हमारी मानसिकता दोहरी हो गई है,एक तरफ तो हम खुद को पढ़े-लिखे और मॉर्डन कहते हैं और दूसरी तरफ हमारी सोच गवारोंं से बदतर हो गई है।
हमारी मानसिकता और ज्यादा डरपोकों वाली, भेड़चाल वाली,अंधविश्वासों वाली नहीं हो गई है क्या ?
अगर ऐसा नहीं होता...अगर हम मानसिक रूप से भी आज़ाद हुए होते...विकसित हुए होते तो आज हमारे देश में ढोंगी बाबाओं का जाल कुकुरमुत्ते की तरह नहीं फैला होता...अगर हमारी भेड़-चाल नहीं होती तो कोई भी ऐरा- गैरा, अनपढ़, भ्रष्टाचारी, चरित्रहीन व्यक्ति हमारा नेता बनकर सांसद-भवन में बैठने का अधिकार नहीं पा सकता था। कहने को हमारे देश में लड़कियों को बहुत आज़ादी मिली है लेकिन आज भी जब लड़कियाँ घर से बाहर निकलती है तो माँ के हाथ हर वक़्त दुआ में उठे रहते हैं कि -"हे प्रभु! मेरी बेटी सही सलामत घर आ जाए." बाहर ही क्यों, बेटियाँ तो घर में भी सुरक्षित नहीं है।क्योंकि अभी भी हमारे देश में वो पुख्ता कानून नहीं बना जो एक बलात्कारी को फाँसी की सजा या कड़ी से कड़ी सजा दे सके, जिससे औरतो की तरफ बूरी नज़र करने वालों की रूह काँप जाए।
नहीं दोस्तों ,अभी भी हम पूरी तरह से आज़ाद नही हुए है।अभी हमें बहुत सी आज़ादी हासिल करनी है खासतौर पर "मानसिक आज़ादी".अभी हमें मानसिक रूप से विकसित होना बाकी है। हाँ ,लेकिन अपने पूर्वजों की कुर्बानियों के फलस्वरूप जिस गुलामी के ज़ंजीरो से हमें आज़ादी मिली है, हमें उसकी कद्र करनी चाहिए और इस स्वतन्त्रता दिवस को हमें एक जश्न के रूप में मानना चाहिए। "मानसिक आजादी" का ये मतलब कतई नहीं है कि- हम पश्चिमी सभ्यता का अंधाधुंध अनुसरण कर बे-लगाम हो जाए। जो कि हम कुछ ज्यादा ही कर रहे हैं।
" कितनी गिरहें खोली हमने ,कितनी गिरहें बाकी है"
स्वतंत्रता दिवस की बहुत-बहुत बधाई हो
जय हिन्द
ये सच है बचपन में स्वतंत्रता दिवस ख़ास होता था ... इस दिन देश प्रेम का भाव स्वतः ही जाग उठता था ... आज इतना मजबूत भाव शायद इसलिए नहीं क्योंकि हमने देश प्रेम का भाव वैसे भी नहीं रक्खा दिलों में ... सिर्फ आर्थ का भाव सबसे ऊपर रखा है ...
जवाब देंहटाएंवक़्त के साथ बहुत कुछ बदल गया है,आपकी सार्थक प्रतिक्रिया हेतु दिल से आभार,सादर नमस्कार
हटाएंआज के समय में तो देश भक्ति कम व्यक्ति भक्ति सर्वोपरि नज़र आता है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी यादगार प्रस्तुति
बिलकुल सही कहा आपने ,आपकी सार्थक प्रतिक्रिया हेतु दिल से आभार कविता जी,सादर नमस्कार
हटाएंबिहार में आज भी उत्सव का वहीं रंग है। गली-गली जलेबियाँ छानने लगती है। हम भी अपने ऑफ़िस में इस दिन सबको मिठाई के अलावे भरपेट जलेबी खिलाते थे। स्वतंत्रता दिवस भी मन जाता था और हमारा बचपन भी जी उठता था। सुंदर लेख। स्वतंत्रता दिवस की बधाई!
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद विश्वमोहन जी ,हाँ आपने सही कहा "बिहार"में ये रौनक अब भी है मगर हमारे लिए तो अब वो बस यादें बनकर रह गई है ,आपकी सार्थक प्रतिक्रिया हेतु दिल से आभार,सादर नमस्कार
हटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार मीना जी,सादर नमन
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर,सादर नमन
हटाएंआज़ादी के महापर्व पर बहुत सुन्दर आलेख। आभार । स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है सर,सादर नमन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंस्वतंत्रता दिवस पर अविस्मरणीय सृजन । सचमुच ये यादें हम सबके लिए दुर्लभ यादें हैं । बहुत बहुत बधाई स्वतंत्रता दिवस पर इतने सुन्दर लेखन हेतु ।
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया मीना जी
हटाएंस्वतंत्रता दिवस पर बहुत सुंदर पोस्ट, बहुत बहुत बधाई ।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंहम आजाद सिर्फ जिस्म से हुए, मानसिक रूप से हम गुलाम ही रहें है,अंग्रेजीयत हम पर तब भी हावी थी , अब तो कुछ ज्यादा ही हावी है।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने कामिनी जी हम अभी भी मानसिक गुलाम ही हैं...
शानदार लेख।
सहृदय धन्यवाद सुधा जी,प्रतिउत्तर देरी से देने के लिए क्षमा चाहती हूँ,सादर नमस्कार आपको
हटाएंप्रिय कामिनी पहले तो क्षमा प्रार्थी हूँ | बहुत विलम्ब से लेख तक पहुँच पायी जिसका मुझे खेद है | बचपन के वो 26 जनवरी और 15 अगस्त के मेले भुलाए नहीं भूलते सखी | रंगीन टाटपट्टी पर सिमटे बच्चों की वो विस्मित दृष्टि और मन में देश भक्ति का कूट -कूट कर भरा वो जज़्बा जिसे शायद ही किसी ने सिखाया हो पर फिर भी मन गर्व से भरा रहता कि हमसे बढ़कर देश का प्रेमी कोई और है ही नहीं | एसा नहीं कि आज की पीढ़ी में वो जज्बा नहीं पर आज हर चीज डिजिटल है | वर्चुअल संसार में जीते युवाओं के लिए इंटरनेट पर ढेरों विकल्प मौजूद हैं | बहुधा उन्हें दूकान पर नहीं जाना पड़ता फिर भी हजारों तरह के देश भक्ति जाहिर करने के माध्यम मौजूद हैं | एक क्लिक के साथ यहाँ -वहां जहाँ- तहां शुभकामनाएं फ़ैल जाती हैं | पर हमलोग वास्तविकता के साथ जुड़े थे तभी लगता है कि हम सचमुच बहुत भाग्यशाली हैं जो ऐसा सुंदर बचपन जीने का अवसर मिला | सुंदर लेखन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं सखी |
जवाब देंहटाएंतुम्हे क्षमा माँगने की आवश्यकता नहीं है सखी,तुम्हारा स्नेह हर पल मेरे साथ है यही काफी है मेरे लिए ,तुमने सही कहा-हमने जो बचपन जिया है उसका महत्व आज की पीढ़ी नहीं समझ सकती,दिल से शुक्रिया तुम्हारा
हटाएंबहुत सुंदर! कामिनी जी गहन और सटीक विश्लेषण करता लेख। वो जज्बा अब दिखता ही नहीं हमारी ही कमी रही है, हमारे माता पिता और गुरुजनों, स्कूलों और घर के वातावरण से जो हमने पाया वैसा जज्बा हम हमारी पीढ़ियों को नहीं दे पाये।
जवाब देंहटाएंअब तो बस एक औपचारिकता रह गई है, या फिर ढर्रा ।
आपका लेख सुंदर चिंतन देता सा है ।
सार्थक लेखन के लिए हृदय से बधाई।
सस्नेह।
बहुत बहुत धन्यवाद कुसुम जी,सादर नमन
हटाएंआज़ादी पर्व का सारगर्भित विश्लेषण किया है आपने कामिनी जी, पूरा का पूरा आलेख विचारणीय और चिंतनपूर्ण । स्वतंत्रता दिवस की हीरक जयंती पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद जिज्ञासा जी,आपको भी बहुत बहुत बधाई
हटाएंसही कहा कामीनी दी कि हम अभी भी मानसिक रूप से गुलाम ही है।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद ज्योति जी
हटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार 15 अगस्त 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
मेरे लेख को मंच पर साझा करने के लिए हृदयतल से आभार दी,सादर नमस्कार
हटाएंहमेशा सटीकता का एहसास करवाता आलेख कामिनी जी।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम।
पुनः उपस्थित होकर उत्साहवर्धन करने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद कुसुम जी,सादर नमन
हटाएंबहुत सुन्दर लिखा आपने… स्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक बधाई🇮🇳🇮🇳🇮🇳
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आपको
हटाएंबहुत सुन्दर लिखा आपने… स्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक बधाई🇮🇳🇮🇳🇮🇳
जवाब देंहटाएंजवाब दें
उत्साहवर्धन करने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद उषा जी,आपको भी बहुत बहुत बधाई
हटाएंवाह , बहुत सही कहा कि हम मानसिक गुलामी से जकड़े हैं
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद गिरिजा जी,सादर नमन
हटाएंसत्य कहा आपने सखी
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत बहुत धन्यवाद सखी, आपको भी बहुत बहुत बधाई
हटाएंबहुत ही सुंदर और सटीक लेख सखी। स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सखी, आपको भी बहुत बहुत बधाई
हटाएंबहुत सुंदर संस्मरणात्मक लेख कामिनी जी।
जवाब देंहटाएंवैसे झारखंड के गाँव के सरकारी स्कूलों में अब भी बहुत कुछ नहीं बदला है।
हाँ,पर प्राइवेट स्कूलों में हमारे राष्ट्रीय त्योहारों को सिवाय औपचारिकता के कोई और सम्मान नहीं प्राप्त।
अपने स्तर पर बच्चों के मन में देश की स्वतंत्रता के लिए किये गये संघर्षों का इतिहास और आज़ादी का महत्व बताना बेहद महत्वपूर्ण है। बेहतरीन संदेश।
सस्नेह
हाँ,श्वेता जी,बिहार मे भी कुछ जगह ये परम्परा अभी है,लेकिन बच्चों के मन में ना इसके प्रति कोई संवेदना है ना ही लगाव। उत्साहवर्धन करने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंबहुत खूबसूरत लेख कामिनी जी । स्कूल की यादे ताजा हो गई ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सखी,
हटाएं