"रिश्ते जो जिंदगी में मिलते हैं प्यार बनके
खिलतें हैं फुल बनके चुभते हैं हार बनके"
वैसे तो, सामान्य जीवन में रिश्तों का बहुत महत्व है, अनमोल होते हैं ये रिश्ते। सच्चे और दिल से जुड़े रिश्ते कभी चुभते नहीं...वो हार बनकर भी गले की शोभा ही बढ़ाते हैं। ये गीत तो आज कल के युग की एक खास रिश्ते को बाखुबी परिभाषित कर रहा है वो रिश्ते हैं "आभासी दुनिया के रिश्ते" जो आजकल समाज में यथार्थ रिश्तों से ज्यादा महत्वपूर्ण जगह बना चुका है। सोशल मीडिया के नाम से प्रचलित अनेकों ठिकाने हैं जहाँ ये रिश्ते बड़ी आसानी से जुड़ रहें हैं और हवाई पींगे भर रहें हैं "फल-फूल भी रहें हैं" ये कहना अटपटा लग रहा है क्योंकि वैसे तो हालात कही भी नजर नहीं आ रहें हैं।
रिश्ते बनाना अच्छी बात है..किसी से बातें करना... किसी के अनुभव से जुड़कर कुछ सीखना...किसी का दर्द बाँटना.... किसी का हमदर्द बनने में कोई बुराई नहीं है। कितना सुखद होता है ये सब... किसी अजनबी से जुड़ आप खुद को उससे साझा करते हो....वो अपना ना होते हुए भी आपका हमराज बनता है....सही है।
तो गलत क्या है ? आजकल के ऐसे रिश्तों को देख मेरा मन अक्सर ये सवाल खुद से ही कर बैठता है तो सोचा क्यूँ न इस पर थोड़ा मंथन किया जाए,कुछ विचार-विमर्श हो। आभासी रिश्तों में फँस कर दर्द पालते हुए लोगों को देखकर मुझे बड़ी उलझन सी होती और ऐसी परिस्थिति में मन खुद ही मंथन करने लगता है।
तो चलते हैं, आज से बीस साल पीछे - जब हमारे पास रिश्तों के नाम पर कुछ खून से जुड़े रिश्तें और चंद गिने-चुने दोस्त ही हुआ करते थे। अब आपका उनके साथ जैसा भी संबंध हो बस, आपको निभाना होता था। क्योंकि उससे आगे का आप सोच भी नहीं सकते थे और यक़ीनन हम खुश रहते थे....भटकाव के रास्ते जो नहीं थे। आज बे-अंत द्वार खुले हैं....अनगिनत रास्ते है....आप जहाँ चाहे विचरण कर सकते हैं....जिससे चाहे संबंध बना सकते हैं.....मेरा मतलब दोस्त बना सकते हैं....कोई रोक-टोक नहीं है....कोई पहरेदारी नहीं है...आप स्वछंद है और सबसे बल्ले-बल्ले ये है कि -उन रिश्तों को निभाने की आप पर कोई ज़िम्मेदारी भी नहीं है... यूँ कह सकते हैं कि -आप बिंदास होकर इन रिश्तों का लुफ़्त उठा सकते हैं।
अब सवाल ये है कि-क्या ये रिश्ते दिल से जुड़े होते हैं और टिकाऊ होते हैं या ये सिर्फ मनोरंजक होते हैं ? मेरे समझ से तो ये बात अपने-अपने व्यक्तित्व पर निर्भर करता है,कुछ तो सचमुच दिल से जुड़ जाते हैं मगर अधिकांश के लिए ये सिर्फ और सिर्फ मनोरंजन होता है (मनोरजन करने वालों की तादाद ही ज्यादा है ) मनोरंजन करने वाले तो मनोरंजन करके निकल लिए....कोई और खिलौना ढूंढने मगर....जो दिल से जुड़ जाते हैं वो तो यही कहते हैं -"खिलते हैं फुल बनके चुभते हैं हार बनके" इन रिश्तों में स्पष्ट दिखता है कि -इसकी ख़ासियत कम और ख़ामियाँ ज्यादा है फिर भी इसके मोहपाश में लोग बँधते ही जा रहें हैं।
ऐसे रिश्ते बनाने की पीछे आखिर क्या मानसिकता है ?
आजकल की युवा पीढ़ी ऐसे रिश्तों का खेल खेल रहें है तो उनकी मानसिकता तो फिर भी समझ आती है। क्योंकि उन्होंने तो आँखें ही इस युग में खोली है जहाँ हर चीज़ उनके लिए बस "यूज एंड थ्रो" हो गयी है। उन्हें किसी चीज़ का मोह ही नहीं है हमारी तरह। लेकिन गौर करने वाली बात ये भी है कि-पिछले दस-पंद्रह सालों में इन फरेबी रिश्तों के चक्कर में पड़कर कितने युवक-युवतियों ने ( नाबालिगों ने तो और भी ज्यादा ) अपने हँसते-खेलते जीवन को तबाह कर लिया है। जो समझदार है वो इन आभासी रिश्तों को आभासी ही समझ मनोरंजन कर निकल आते हैं और उस हार को गले में डालते ही नहीं जो चुभें।
हैंरत तो तब होती है जब प्रौढ़ लोग और उससे भी ऊपर 50-60 साल के बेटे-बहु ,नाती-पोतो से भरे परिवार वाले समझदार लोग इन आभासी रिश्तों में उलझ जाते हैं। मैं ऐसे लोगो को बदचलन या रसिक मिज़ाज की संज्ञा बिलकुल नहीं दे रही। ऐसा नहीं है कि- ये सब इन्ही तरह के लोग है,सीधे-साधे भोले प्रकृति के लोग भी इस आभासी रिश्तों के बीमारी के शिकार हुए जा रहें हैं। हाँ,मैं तो इसे "बीमारी" ही कहूँगी क्योंकि स्वस्थ मानसिकता के लोग ऐसे रिश्ते बनाते जरूर है मगर इन रिश्तों के धागों में उलझतें नहीं है,इन रिश्तों को एक मर्यादित सीमा में ही रखते हैं जो उन्हें सिर्फ खुशियाँ ही देता है।
आखिर क्या वजह है ऐसे रिश्तों को दिल से लगाने की और उसमे दर्द पालने की ?
आखिर क्यूँ आज सब हक़ीक़त की धरातल छोड़ आभासी आसमान में उड़ना चाहते हैं ?आखिर क्या पाने की चाहत होती है ? कोई प्रलोभन या दिखावे के ही सही स्नेह और अपनत्व के चंद बोल की लालसा या उलझ जाते हैं दूर से चाँद का लुभावना रूप-रंग देखकर या खुद के मन को खोलकर साझा करना चाहते है वो दर्द जो यथार्थ के रिश्तों में उन्हें मिले होते हैं या भरना चाहते हैं अपने मन और जीवन के ख़ालीपन को ?
जब एक स्त्री दूसरी स्त्री से आभासी दोस्ती की डोर में बँधती है (जो कि अमूमन कम ही होता है ) तो अवश्य ये उनके लिए सुखद है क्योंकि वो इस आभासी रिश्ते में अपनी वो बातें, अपना वो दर्द, जो वो किसी से साझा नहीं कर पाती वो सुनने और समझने वाला उसे कोई दोस्त मिल जाता है,जो उसकी बात किसी और तक नहीं पहुँचाएगी। लेकिन जब एक स्त्री और पुरुष की आभासी दोस्ती होती है तो यहाँ भी ये फार्मूला लागू होता है कि -"एक लड़का-लड़की कभी दोस्त नहीं होते" (अपवाद से इंकार नहीं किया जा सकता ) तो ये रिश्ते बहुत कॉम्प्लिकेटेड हो जाते हैं और अक्सर दर्द और बदनामी ही दे जाते हैं।
फिर हमारी पीढ़ी की कुछ खास बुराई भी है वो सपने में ज्यादा जीती है शायद हक़ीक़त की धरातल पर उसे वो सुख नहीं मिल पता जो उसे चाहिए और दूसरा सपनों को भी सच मान यदि वो किसी रिश्ते से जुड़ गई तो उसका दर्द भी दिल में पाल लेती है। हाँ,कुछ लोग तो इस गम से निकल आते हैं कुछ का इससे उबर पाना मुश्किल होता है। यहाँ स्त्री या पुरुष कहना उचित नहीं है क्योंकि पुरुष तो पहले से समझदार थे अब तो स्त्रियाँ भी समझदार हो गयी है।
ये कहावत बिलकुल सही है और यहाँ शत-प्रतिशत लागू होता है कि-"दूर के ढ़ोल सुहाने लगते हैं" पास आते ही वो मात्र शोर होता है। आभासी रिश्ते भी कुछ ऐसे ही होते हैं। वैसे तो रिश्तों में थोड़ा बहुत स्वार्थ तो होता ही है मगर ये रिश्ता तो शायद, पूर्णतः स्वार्थ और आकर्षण में ही लिप्त होता है इसीलिए और जल्दी दर्द दे जाता है।( इसमें भी अपवाद से इंकार नहीं किया जा सकता) मेरी समझ तो यही कहती है कि -आभासी या मिथ्य रिश्तों को छोड़ यथार्थ के रिश्तों के साथ में जीना ही समझदारी है। दूर के दोस्त से भला पास का दुश्मन होता है। एक ऐसे व्यक्ति के साथ रिश्तों में उलझना जिसके व्यक्तित्व से आप पूरी तरह अनभिज्ञ हो जो सिर्फ एक भ्रम है ये खुद को छलना ही होता है।
वैसे एक नज़रिये से देखा जाए तो आभासी रिश्ते बेहद पवित्र होने चाहिए क्योंकि इसमें देह से जुडा कोई स्वार्थ नही होता। भक्त और भगवान का रिश्ता भी तो आभासी ही होता है। कही-कही तो देखने में आता है कि -अकेलेपन के शिकार बुजुर्गों के लिए तो ये वरदान भी साबित होता हैं। कभी-कभी तो ये रिश्ते बड़ी ही सुखद अनुभूति कराते हैं.....आप जिसे जानते नहीं....जिससे कभी देखा नहीं....उससे मन से जुड़ जाते हैं...वो अपना सा लगने लगता है....कभी-कभी तो वो पिछले जन्म का बिछुड़ा मीत सा लगता है। इस नज़रिये से देखा जाए तो आभासी रिश्ते बेहद खूबसूरत और सुकून देने वाले होने चाहिए।मगर ऐसा होता नहीं है..... अक्सर लोग इस रिश्ते को अपवित्र बना लेते है ( खासतौर पर स्त्री और पुरुष का रिश्ता) क्योंकि आज की हक़ीक़त ही यही है कि-रिश्तों से पवित्रता ही खत्म हो गई है वो चाहे आभासी हो या यथार्थ। आभासी रिश्ते भी अमूमन किसी न किसी स्वार्थ वश ही बन रहे हैं।
एक दर्द को मिटाने के लिए दूसरा गम पाल लेना ये कहा की समझदारी है। मेरी समझ तो यही कहती हैं कि -इन आभासी रिश्तों में उलझ कर एक और दर्द पालने से अच्छा है जो रिश्ते हमारे पास है उसे ही खूबसूरत और खूबसूरत बनाने में अपना मनोयोग लगाना ही उचित है।
जिनके पास खूबसूरत आभासी रिश्ते है जो उन्हें सिर्फ खुशियां और सुकून देते है तो वो बड़े भाग्यशाली है। मैं भी भाग्यशाली हूँ,मेरे पास भी मेरी कुछ प्यारी सखियाँ है। मगर ऐसे रिश्ते जो दर्द दे उनसे खुद को बचाने में ही समझदारी है। मेरी मनसा किसी की भावनाओं को आहत करना बिलकुल नहीं है ये बस मेरी व्यक्तिगत सोच है आपकी राय मेरे से इतर हो सकती है और उसका मैं सम्मान भी करती हूँ।
सच, रिश्ते चाहे व्यक्तिगत हो या आभासी, उन्हें बेवजह ढोते रहने के बजाय उनसे कट जाना अच्छा
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आपने कविता जी,सादर नमस्कार
हटाएंसुंदर व सटीक विश्लेषण
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद गगन जी,सादर नमस्कार
हटाएंबहुत सटीक और भावप्रधान विश्लेषण।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर,सादर नमस्कार
हटाएंसही विश्लेषण।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद आपको,सादर नमस्कार
हटाएंप्रिय कामिनी , अपने महत्वपूर्ण लेख के माध्यम से तुमने आभासी दुनिया पर बहुत अच्छा लिखा है | यदि कहूँ कि आभासी दुनिया से जुड़े लगभग चार साल से कुछ ऊपर समय में मैंने आभासी मित्रों के रूप में बहुत कुछ पाया है तो अतिश्योक्ति ना होगी |एक आधा कटु अनुभव भी रहा पर ज्यादातर अनुभव अच्छे ही रहे | खासकर क्योकि हम लोग साहित्य की दुनिया से जुड़े हैं यहाँ बहुत सुलझे लोग मिले हैं पर मात्र ब्लॉग ही आभासी दुनिया नहीं है | इसका फलक बहुत बड़ा है | दुसरे मंच जैसे फेसबुक , इन्स्टा , यू tube, व्हात्ट्सप्प, इत्यादि केसाथ और इनके अलावा भी बहुत मंच हैं जो अनिश्चितता और खतरों से भरे हैं | खासकर किशोरों और युवाओं को दिग्भ्रमित करने में इनका बहुत बड़ा हाथ है | तकनीक की अनिवार्यता के इस युग में इनसे बच्चों को बचाना बहुत मुश्किल है | एकाकी जीवन जी रहे प्रौढ़ और माध्यम आयु के लोग भी इसमें जीकर वास्तविकता से दूर हो रहे हैं ऐसे कई अनुभव मैंने सोशल मीडिया पर ही पढ़े हैं | बड़ी आयु के लोगों के बारे में मैं ये कहना चाहती हूँ, यदि शालीनता और शिष्टता से निभाई जाए तो इससे खूबसूरत कोई मित्रता नहीं, क्योकि उम्र के इस पडाव पर हमें स्त्री -पुरुष होने को भूलना होगा | मात्र मैत्री भाव ही भीतर रखना होगा | क्योंकि , किसी माध्यम से हम जुड़ते हैं तो लोगों से जुड़ना अनिवार्य है | ये हमारे विवेक पर है कि हम इसे कैसे लेते हैं और अपनी मित्रों के रूप में कैसे लोगों का चयन करते हैं | दूसरों के अनुभव से हम तभी सीखेंगे जब हम उनसे संवाद करेंगे | इसी बीच कुछ आत्मीयता स्वाभाविक है पर इसे जीवन का रोग बना लेना अनुचित है | यूँ भी | यथार्थ जीवन हो या आभासी --साहिर की पंक्तियाँ याद आती हैं --
जवाब देंहटाएंउतना ही उपकार समझ कोई- जितना साथ निभादे -
जन्म मरण का मेल है सपना ये सपना बिसरा दे -- कोई ना संग , मरे |
अस्तु , यही सच है हमें अपने परिवार और अपनों को प्राथमिकता देते हुए बड़े संतुलित ढंग से जीना होगा | और दूर के इस ढोल की ताल पर दूर से सहजता से खुश रहने का हुनर सीखना होगा | भावपूर्ण लेख के लिए बहुत बहुत आभार सखी |
"यदि शालीनता और शिष्टता से निभाई जाए तो इससे खूबसूरत कोई मित्रता नहीं"
हटाएंतुम्हारी इस बात से मैं सत-प्रतिशत सहमत हूँ सखी
ये बात भी ठीक है कि-" उम्र के इस पडाव पर हमें स्त्री -पुरुष होने को भूलना होगा"
मगर,ये कोई भूलता नहीं है "स्त्री और पुरुष का फर्क है और हमेशा रहेगा"
जैसा कि-जितेंद्र माथुर जी ने भी ये विचार व्यक्त कर ही दिया है कि-"विशेषतः स्त्रियों के सन्दर्भ में"
जिससे मैं भी राजी नहीं हूँ।
"जन्म मरण का मेल है सपना ये सपना बिसरा दे -- कोई ना संग , मरे"
और इस बात की परिकल्पना भी व्यर्थ है,ये किस्से कहानियों में होता है हक़ीकत में नहीं
तुम्हारी इस विस्तृत प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार सखी
ये विषय विचारणीय है और हमें सचेत रहना भी चाहिए,ढेर सारा स्नेह सखी
सुन्दर विश्लेषण
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर,सादर नमस्कार
हटाएंआपके विचार स्पष्ट है, कहीं पर भी कोई भ्रम की स्थिति नहीं है । आपकी बातें तार्किक भी हैं, विवेक-सम्मत भी, इसीलिए व्यावहारिक भी (विशेषतः स्त्रियों के सन्दर्भ में)। बहुत सीमा तक मैं इनसे सहमत हूं । इस स्पष्ट विचाराभिव्यक्ति हेतु निश्चय ही आप साधुवाद की पात्र हैं ।
जवाब देंहटाएं"आपकी बातें तार्किक भी हैं, विवेक-सम्मत भी, इसीलिए व्यावहारिक भी (विशेषतः स्त्रियों के सन्दर्भ में)"
हटाएंये बातें अगर सचमुच तार्किक है तो स्त्री और पुरुष दोनों ही के संदर्भ में होनी चाहिए थी,
मगर मानसिकता आज भी यही है कि-स्त्रियों को ही संभल कर चलना चाहिए,पुरुष आजाद है।
मैं इससे सहमत तो नहीं हूँ मगर आपके विचारों का सम्मान करती हूँ,
आपकी सरहनासम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार एवं सादर नमन
सुंदर सृजन प्रिय कामिनी जी । मैत्री भाव रखकर अगर ये आभासी रिश्ते बने तो बहुत अच्छा है ।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद शुभा जी,आपने बिलकुल सही कहा, सराहना हेतु आभार एवं सादर नमस्कार
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय लेख । हर बात बहुत प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत के गई है । शुभ कामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर,सराहना हेतु आभार,सादर नमस्कार
हटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार मीना जी,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंगहन चितन के साथ सटीक विश्लेषण । सशक्त सृजन ।
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया मीना जी,उत्साहवर्धन करती आपकी प्रतिक्रिया अनमोल है,सादर नमन
हटाएंएक दर्द को मिटाने के लिए दूसरा गम पाल लेना ये कहा की समझदारी है। मेरी समझ तो यही कहती हैं कि -इन आभासी रिश्तों में उलझ कर एक और दर्द पालने से अच्छा है जो रिश्ते हमारे पास है उसे ही खूबसूरत और खूबसूरत बनाने में अपना मनोयोग लगाना ही उचित है।.... प्रिय कामिनी जी आपका पूरा लेख बेहद ही चिंतनपरक है, परंतु ये दो पंक्तियाँ मेरे दिल में उतरकर बस गयीं..सादर शुभकामनाएँ एवं नमन..
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया जिज्ञासा जी,मेरा लेख आपके दिल तक पहुंचने में सफल रहा ये मेरे लिए अत्यंत हर्ष का विषय है,सादर नमन
हटाएं"एक दर्द को मिटाने के लिए दूसरा गम पाल लेना ये कहा की समझदारी है। मेरी समझ तो यही कहती हैं कि -इन आभासी रिश्तों में उलझ कर एक और दर्द पालने से अच्छा है जो रिश्ते हमारे पास है उसे ही खूबसूरत और खूबसूरत बनाने में अपना मनोयोग लगाना ही उचित है।"
जवाब देंहटाएं...बहुत सही लिखा है आपने। आभासीय की अपेक्षा प्रत्यक्ष संबंधों को महत्व देना आवश्यक है। ...और जहां जाने-पहचाने लोग भी छल-कपट से नहीं चूकते हों वहां अनजान आभासीय 'मित्रो'से सतर्क रहना ही चाहिए। उम्दा लेख 🌹🙏🌹
बिलकुल सही कहा आपने -"सतर्कता गई दुर्घटना हुई "ये बात हर जगह लागू होती है,उत्साहवर्धन करती आपकी प्रतिक्रिया के लिए आभार,सादर नमन
हटाएंबिल्कुल सही कहा कामिनी दी कि आभासी रिश्तों में उलझ कर एक और दर्द पालने से अच्छा है जो रिश्ते हमारे पास है उसे ही खूबसूरत और खूबसूरत बनाने में अपना मनोयोग लगाना ही उचित है।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद ज्योति जी, आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आभार,सादर नमन
हटाएंरिश्ते आभासी हों या यथार्थ हमें अपनी सीमा में रहकर परिस्थितिजन्य व्यवहार करना आना चाहिए ।
जवाब देंहटाएंहाँ आजकल आभासी रिश्तों के जाल में फँसकर बहुत से लोग भ्रमित हो रहे हैं...। पर जो अपनी सीमाओं का उल्लंघन करते हैं वे किसी से भी भ्रमित हो सकते हैं।
बहुत सुन्दर चिन्तनपरक विचारणीय लेख।
"जो अपनी सीमाओं का उल्लंघन करते हैं वे किसी से भी भ्रमित हो सकते हैं।"
हटाएंसत-प्रतिशत सही है आपकी ये बात। रिश्ते सभी सुंदर होते है परेशानी तब होती है जब वहां स्वार्थ होता है या सीमाओं का उल्लंघन होता है।
अब हम सभी सखियों की ही बात ले,बहुत ही अच्छा और सुखद लगता है सभी का साथ। एक अनदेखा रिश्ता भी बन गया है,जिसमें स्नेह के साथ-साथ फ़िक्र भी रहती है। आप इतने दिनों से किसी ब्लॉग पर दिखाई नहीं दे रही थी तो थोड़ी फ़िक्र हो रही थी कि-आप कहाँ है कैसी है ?
आपको आज अपने ब्लॉग पर पाकर बेहद ख़ुशी हुई ,उम्मींद है आप सपरिवार स्वस्थ और सकुशल होगी,सादर नमन आपको
कल पढ़ते पढ़ते रह गई थी आपकी रचना अच्छी लिखी है आपने। रिश्ते बनाने और उन्हें समय देना बड़ी बात है ख़ास कर मुझ जैसी औरतों के लिए। जिनके पास मरने की फ़ुरसत नहीं। बड़ा मुश्किल काम है भाई।आपने कहा है तो ठीक ही कहा है।मैं तो यही कहूँगी अपने परिवार को सम्भालों भाई कुछ नहीं पड़ा आभासी रिश्तों में ब्लॉग पर आते हैं पढ़ते हैं इतना समय दिया क्या यह कम है। बाक़ी अपनी अपनी समझ है समय की माया 😊। वैसे ख़ूब लिखा अलग विषय है जहा दृष्टि ही नहीं गई।
जवाब देंहटाएंसादर आभार कामिनी दी।
सहृदय धन्यवाद अनीता,तुम्हे मेरा लेख अच्छा लगा ये जानकर ख़ुशी हुई। प्रिय अनीता मैं सिर्फ ब्लॉग जगत की बातें नहीं कर रही थी मैंने तो पूरी सोशल मीडिया के बारे में कहा है। और यहां समय की बात भी नहीं है -समय तो आजकल किसी के पास नहीं है। ब्लॉग तो हम महिलाओं के लिए अपनी ख़ुशी को सृजनशीलता में समेटने की जगह है। यहाँ कुछ ही महान लेखिकाएं और कवयित्रियाँ है मगर अधिकांशतः समान्य घरेलु औरते ही है जो अपने अधूरे सपने को पूरा कर रही है। तो अमूमन वक़्त तो किसी के पास नहीं है। हम किसी के ब्लॉग पर जाते हैं तो अपनी मर्जी और ख़ुशी से जाते हैं हम उन पर कुछ अहसान नहीं करते हैं। बल्कि खुद पर करते हैं अपने पढ़ने की लालसा की पूर्ति करते हैं। जहाँ तक रिश्ते बनाने की बात मैंने की है तो, वो तो हर दिल का अपना मामला है किसी को दूर के रिश्ते निभाना भी अच्छा लगता है कोई पास का भी नहीं निभाता। बस यहां एक बात जरुरी है जो सुधा जी ने कहा है कि- "जो अपनी सीमाओं का उल्लंघन करते हैं वे किसी से भी भ्रमित हो सकते हैं।"
हटाएंतुमने पहली बार इतनी विस्तृत प्रतिक्रिया दी है इसके लिए तहे दिल से शुक्रिया और ढेर सारा स्नेह
आपने एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर सुलझा हुआ आलेख लिखा है। आपको बहुत बहुत बधाइयाँ।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद वीरेंद्र जी,सराहना हेतु आभार एवं नमन
हटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद मनोज जी,सराहना हेतु आभार एवं नमन
हटाएंशरद जी और ज्योति जी की बातों से मैं भी सहमत हूँ,जिस रास्ते में दर्द के अलावा कुछ नहीं उधर जाने की भी जरूरत नहीं, बहुत सुंदर तरीके से अपनी बातों को बयां करती हुई रचना , महिला दिवस की हार्दिक बधाई हो आपको कामिनी जी, शुभ प्रभात सादर नमन
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद ज्योति जी,सहमत हूँ आपकी बातों से। सराहना हेतु दिल से आभार एवं नमन
हटाएंआपको भी महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत ज्वलन्त मुद्दा उठाया है ।जब से इंटरनेट घर घर पहुँचा है बहुत कुछ बदल गया है रिश्तों में । एक नया नाम जुड़ गया आभासी । जहाँ इस इंटरनेट ने बहुत से लोगों से परिचित कराया वहीं रिश्ते भी बनवाये । कुछ आभासी मित्रों से वक़्त वक़्त पर मिलना भी हुआ । कुछ मन के इतने करीब है कि वो कहीं से भी स्वयं से अलग नहीं लगते ।
जवाब देंहटाएंलेकिन तुम्हारे लेख में मात्र ऐसी मित्रता की बात नहीं है कि बस दो लोगों की सोच एक सी , हॉबी एक सी , विचार एक से इस लिए मित्रता हो गयी और खुशी खुशी वक़्त व्यतीत हो रहा । समस्या ये है कि इस तरह के रिश्ते व्यक्ति की ज़िंदगी पर तो हावी नहीं हो रहे ? यदि ऐसा है तो सच ही खतरे की घंटी है ।क्यों कि हो सकता है कि वो व्यक्ति अपना समय तो बहुत संतुष्टि से खुश हो बिता रहे हो लेकिन उसके परिवार के असली रिश्ते पीछे छूट रहे हों । तब क्या होगा ? कभी कभी ये आभासी रिश्ते केवल मौज मस्ती के नहीं रह पाते। अब ये रिश्ता चाहे पुरुष के हों या स्त्री के मुझे तो यही लगता है कि ऐसे रिश्ते पीड़ा का ही कारण बनते हैं ।लेकिन यदि कोई जीवन में अकेला हो तो अकेलेपन की त्रासदी से निकलने के लिए ऐसे रिश्ते बुरे भी नहीं ।
अगर देखा जाए तो निष्कर्ष यही है कि अति हर चीज़ की बुरी ।एक सीमारेखा खुद ही खींचनी होगी ।
मुझे तो यहाँ बहुत प्यारे रिश्ते मिले है । जब भी अवसर मिला इन आभासी लोगों से मुलाकात भी की । आगे भी करती रहूँगी। बाकी तो रिश्ते बनाना और निबाहना इस विषय पर हर व्यक्ति का अपना अलग विचार हो सकता है ।
मेरी दृष्टि में बस इतना ही है कि कोई भी पति या पत्नी ऐसे रिश्ते न बनाएं जिससे दूसरे पार्टनर को चोट पहुंचे । दोस्ती हो लेकिन एक सीमा में । लिखती जा रही समझ नहीं आ रहा अंत कहाँ करूँ । दिल बहलाने के लिए एक रोग और न पाल लिया जाए इस बात से पूरी तरह सहमत ।
मैं संगीता जी की बात से शतप्रतिशत सहमत हूं कामिनी जी, आपने आभासी रिश्तों की अच्छी बखिया उधेड़ी ..वाह
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हटाएंबहुत सुंदर टिप्पणी संगीता जी ,सभी पहलुओ को बखूबी समझाया, नमन
आदरणीय संगीता दी,सर्वप्रथम तो क्या आपकी अनुमति है कि -मैं आपको दीदी बुला सकती हूँ।
हटाएंआपकी विस्तृत प्रतिक्रिया पाकर बेहद ख़ुशी हुई। आपकी अनुभव से भी अवगत हुई एवं आपका मार्गदर्शन भी मिला। आपने बिलकुल सत्य कहा है कि -"रिश्ते बनाना और निबाहना इस विषय पर हर व्यक्ति का अपना अलग विचार हो सकता है।"
दिल से बन कोई भी रिश्ता सुखद ही होता है मगर जब वो सिर्फ टाईमपास होता हैतो दुखद हो जाता है।
हक़ीकत यही बनती जा रही है कि - इस तरह के रिश्ते व्यक्ति की ज़िंदगी पर तो हावी हो रहे, सच यही है कि खतरे की घंटी बज चुकी है। ये यंगस्टर में ही नहीं प्रौढ़ में भी प्रदूषण फैला रहा है। वैसे मेरा भी अब तक का अनुभव यही है मुझे आभासी सखियाँ मिली है उनके साथ मेरा रिश्ता परफेक्ट है।
आपका तहे दिल से शुक्रिया दी,सादर नमन
तहे दिल से शुक्रिया अलकनन्दा जी,चर्चा को आगे बढ़ाने के लिए आभार
हटाएंतहे दिल से शुक्रिया ज्योति जी,संगीता दी ने सारे तथ्यों को इतने अच्छे से रखा है कि-असहमत होने की गुंजाईश ही नहीं है। सादर नमन आपको
हटाएंशुक्रिया कामिनी . आप जो चाहें कह सकती हैं . यूँ आभासी ही रिश्ते हैं मेरे और तुम्हारे . लेकिन मैं सब रिश्तों का सम्मान करती हूँ .
हटाएंजिस रिश्ते में सम्मान और स्नेह नहीं वो तो रिश्ता ही नहीं है दी,
हटाएंआपकी स्नेह की वर्षा चहुँ ओर हो रही है और मैं भी इससे अछूती नहीं रही... ये मेरा सौभाग्य है।
विश्वास है ये रिश्ता दूर तक चलेगा और मुझे आपका आशीर्वाद मिलता रहेगा... सादर नमस्कार दी
रिश्ते जबरदस्ती बनाने और निभाने हों तो बड़ी मुश्किल है.
हटाएंमगर ब्लॉगिंग करते हुए वर्षों तक एक दूसरे का लिखा पढ़ते, टिप्पणी करते एक अलग रिश्ता बन जाता है- शब्दों का रिश्ता...इसमें स्त्री पुरूष वाली बात नहीं.
बहुत सुंदर और अच्छा विश्लेषण
जवाब देंहटाएंबधाई
सहृदय धन्यवाद सर,सादर नमन
हटाएंएक बार फिर इस सारगर्भित और आज के दौर में सार्थक आलेख के लिए हार्दिक शुभकामनाएं कामिनी जी।
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया जिज्ञासा जी,सादर नमन आपको
हटाएंरिश्ते जो जिंदगी में मिलते हैं प्यार बनके
जवाब देंहटाएंखिलतें हैं फुल बनके चुभते हैं हार बनके
बहुत खूब पंक्तियाँ । मेरे विचार से बुद्धि और मन तथा भावनाओं के सतर्कतापूर्ण संयोजन से बना हर तरह का रिश्ता सुख बुनता है ।
दिल से शुक्रिया उषा जी,सहमत हूँ आपकी बातों से.....मेरे लेख पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए तहे दिल से आभार एवं सादर नमन आपको
हटाएंप्रिय कामिनी जी,
जवाब देंहटाएंआपका यह लेख हम पहले भी पढ़ चुके किंतु सही शब्द जिससे प्रतिक्रिया लिख पायें न ढूँढ सके।
हम बस इतना समझते हैं कि रिश्ता कोई भी चाहे आभासी हो या यथार्थवादी अपना दृष्टिकोण सदैव साफ़ रखना चाहिए, ईमानदारी,सम्मान,स्नेह और समर्पण हर रिश्ते को खुशबूदार बनाती है हाँ इंसान की प्रवृति और चरित्र अगर हम पहचानने की योग्यता नहीं रखते,भावानात्मक रूप से अति संवेदनशील हैं तो फिर किसी से भी रिश्ते बनाने से पहले परिणाम सोच लेना बेहतर होगा क्योंकि बहुत तकलीफ़ होती है बाद में जिसे बर्दाश्त कर पाना हर किसी के लिए आसान नहीं होता।
बेहतरीन विषय पर संवेदनशील लेखन।
सस्नेह।
"इंसान की प्रवृति और चरित्र अगर हम पहचानने की योग्यता नहीं रखते,भावानात्मक रूप से अति संवेदनशील हैं तो फिर किसी से भी रिश्ते बनाने से पहले परिणाम सोच लेना बेहतर होगा"
हटाएंआपने सत्य कहा श्वेता जी,परन्तु समस्या ये है कि- कई बार हम सालो साथ रहने के बाद भी किसी इंसान की प्रवृति और चरित्र को नहीं समझ पाते तो दूर बैठे एक अनजाने के मन में कैसी मनसा चल रही है वो कैसे जान पाएंगे। अति संवेदनशील व्यक्ति तो छोड़े कई बार अति समझदार व्यक्ति भी पर्दे के पीछे छिपे इंसान को पहचानने में विफल रहता है। तो मेरा मानना यही है कि -ऐसे रिश्तों में भावनाओं के साथ साथ सतर्कता भी जरुरी है।
आपने मेरे इस लेख पर अपनी प्रतिक्रिया दी इसके लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया। इस लेख को लिखने का मकसद ही मेरा बस यही था कि - सब की विचारों से अवगत हो सकूं। आपने भी इसमें मेरी मदद की इसके लिए आभारी हूँ ,सादर नमन आपको
यह समझने में समय लगता है कि गहरे सम्बन्ध ही सुख देते हैं।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंसहृदय धन्यवाद आपको,सादर नमन
हटाएंNice Post Good Informatio ( Chek Out )
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