मैं बड़ी तन्मयता से लैपटॉप पर अपने काम में बीजी थी तभी, राज और सोनाली मेरे पास आकर खड़े हो गए। मैंने सर उठाये बिना ही सवाल किया-क्या बात है ? मम्मी बिज़ी हो क्या....कुछ खास नहीं, बोलो -मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा। दोनों के चेहरे पर हल्की मुस्कान के साथ शर्म और घबड़ाहट भी साफ़-साफ़ नजर आ रही थी । मम्मी..पहले आप आँखें बंद करों, राज आपको कुछ देना चाहता है - सोनाली ने धीरे से कहा। मैंने जैसे ही राज की तरफ देखा वो भागकर कमरे के बाहर चला गया। मैं सब समझ रही थी फिर भी आँखे बंद करते हुए बोली-लो कर लिया,अब बोलो। दोनों ने मेरी गोद में एक-एक "पीला गुलाब" रखा और भाग खड़े हुए।गुलाब को देखकर मैं मुस्कुरा दी,दिल चाहा कहूँ -" I knew it" . मगर, अनजान बनी बोली -अरे,फूल दे रहे हो या मार रहें हो इधर आओ दोनों। सोनाली पास आई, राज अब भी कमरे के बाहर से झाँक रहा था। मैंने कहा -आप क्यूँ छुपे हो आप भी आओं। राज बेहद घबड़ाया हुआ था, दोनों पास आकर बैठ गए। मैंने दोनों के माथे पर प्यार किया और दोनों को गले लगाते हुए बोली-"बेवकूफों मैं तो बहुत पहले से जानती थी तुम दोनों को ही समझने में छह साल लग गए।"
राज मेरा हाथ पकड़ते हुए बोला -आज "प्रॉमिस-डे " पर मैं आपसे प्रॉमिस करता हूँ कि -मैं कभी भी आपको कोई शिकायत का मौका नहीं दूँगा.....कभी आपके विश्वास और भरोसे को नहीं तोडूँगा....ऐसा कुछ भी नहीं करूँगा जिससे दोनों परिवारों के मान-मर्यादा को ठेस पहुंचे, मेरे दूसरे हाथ को पकड़ते हुए सोनाली ने भी उसके हाँ में हाँ मिलते हुए सर हिला दिया। दोनों की आँखे भरी हुई थी,दोनों ने मेरी गोद अपना सर छुपा लिया। मेरी भी आँख भर आई, दोनों का माथा सहलाते मैंने हुए कहा- "मैं जानती हूँ बेटा ,मुझे आप दोनों पर पूरा भरोसा है।" थोड़ी देर तक ख़ामोशी छाई रही फिर मैंने कहा -चलो,इसी बात पर पिज्जा पार्टी करते है,राज...फटाफट ऑडर करों,तीनों ने मुस्कुराते हुए एक दूसरे को सहमति दे दी।
राज और सोनाली की दोस्ती छह साल पहले एक इंस्टिटूइट से शुरू हुई थी। पहली मुलाकात से ही दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई थी। सोनाली जब भी उससे मिलकर आती तो घंटों उसी की तारीफ किया करती। उस वक़्त सोनाली सत्तरह साल की थी और राज उससे छह महीने बड़ा था। मुझे आज भी वो दिन याद है जब मैं पहली बार राज से मिली थी। सोनाली से दोस्ती किये उसे एक महीना भी नहीं हुआ था कि अचानक एक दिन वो सोनाली के साथ घर धमक आया था उसके साथ सोनाली का एक और दोस्त भी था। सोनाली बोली-माँ ये दोनों जबर्दस्ती घर आ गए है मैं तो लाना ही नहीं चाहती थी। फर्मलिटी करते हुए मैंने कहा-कोई बात नहीं बेटा -ये भी तो आपका ही घर है...अब, घर आये को मैं क्या कहती। मेरी बात सुनते ही वो सोनाली को छेड़ता हुआ बोला -" सुना न, ये भी मेरा ही घर है।" मैंने उन्हें चाय-नास्ता कराया। रात के आठ बजे का वक़्त था मेरे पतिदेव ने फोर्मलिटी में कह दिया -रात का खाना-वाना खिलाकर भेजों बच्चों को,फिर क्या था दोनों डट गए बोले-हाँ अंकल, अब डिनर करके ही जाऊँगा। पहले तो मुझे बहुत गुस्सा आया -"अरे ये क्या मान-ना-मान मैं तेरा मेहमान " पर पता नहीं क्यूँ राज को देखते ही मुझे भी ऐसा ही लगा जैसे मैं उसे वर्षो से जानती हूँ और राज,वो तो दो घंटे के अंदर ही घर से लेकर किचन और यहाँ तक कि -डाइनिंग टेबल तक पर कब्ज़ा कर चूका था,वो मुझे खाना सर्व कर रहा था ,बिलकुल "कल हो ना हो "के शाहरुख़ खान की तरह। इससे पहले सोनाली का कोई लड़का दोस्त घर में इतनी देर कभी नहीं रुका था ,ऐसा पहली बार हो रहा था। हम कुछ असहज थे पर राज ने कब हमें सहज कर दिया और कब वो हमारे दिल पर कब्जाकर लिया हमें पता ही नहीं चला।
धीरे-धीरे इनकी दोस्ती बढ़ती चली गई और राज ने हमारे पुरे खानदान के दिलों में अपना स्थान बना लिया। मुझे दिख रहा था कि-इनकी दोस्ती सिर्फ दोस्ती नहीं है लेकिन "मेरी सोनाली" प्यार-मुहब्बत तो समझती ही नहीं थी। मेरी सोनाली को दोस्ती शब्द से ही इतना प्यार था कि वो हर एक को दोस्त बनाकर ही ज्यादा खुश रहती थी। कभी-कभी राज की बातों से ये स्पष्ट हो जाता कि-वो दोस्ती से आगे बढ़ रहा है। एक बार मैंने राज को टटोला भी था। उसने बड़े प्यार से जबाब दिया था -"मेरे चाहने से कुछ नहीं होता आंटी...अगर, मेरी फीलिंग वो जान जाएगी तो आप तो जानती ही है वो.....फिर मेरी दोस्त भी नहीं रहेंगी और मैं इतनी प्यारी दोस्त को खोना नहीं चाहता.....उसके साथ-साथ मैं आपको भी खोना नहीं चाहता।" राज सोनाली से भी ज्यादा मुझसे जुड़ गया था और मुझे भी वो अपने सगे बेटे सा प्यारा था।
मगर,शायद उनकी दोस्ती को किसी की नज़र लग गई। उन दोनों में किसी बात को लेकर जबर्दस्त झगड़ा हो गया। मेरी सोनाली स्पष्टवादी है उससे कोई भी गलत बात बर्दास्त नहीं होती,अपने सिद्धांतों की इतनी पक्की है कि -उसके आगे वो प्यारा-से प्यारा दोस्त भी त्याग सकती है। जो की मुझे भी पसंद है। मैंने सोनाली से कहा भी था "राज मुझे बहुत प्रिय है" -उसने बड़े ही रूखे स्वर में कहा-"वो आपका बेटा रह सकता है मेरा दोस्त नहीं।" मैं समझती थी ये वक़्ती गुस्सा है। परिस्थिति ही कुछ ऐसी हो गई थी कि -उन दोनों को ही नहीं समझा सकती थी और दोस्ती टूट गई। सोनाली ने अपना दोस्त त्याग दिया मगर मुझसे अपना बेटा नहीं त्यागा गया। मैं जानती थी कि - दोनों ने ही गलतियाँ की है मगर वो गलती प्रतिकूल परिस्थितियों की वजह से हुई है। एक ना एक दिन ये ठीक हो जायेगा। राज दूसरे शहर चला गया मगर मैंने उससे कभी सम्पर्क नहीं तोड़ा। फोन से बराबर उसका हाल-चाल लेती रही। दोनों के दिलों में प्यार होते हुए भी कड़वाहट ज्यादा हावी था। मैंने भी वक़्त पर सब छोड़ दिया।
शायद,नियति का खेल था ,चार साल बाद हम फिर मिलें।इस बीच मेरी सोनाली भी पहले से ज्यादा समझदार हो गई थी। रिश्तों में कहाँ और कैसे एडजेस्टमेंट करना है वो बाखूबी सीख चुकी थी और राज को भी अपनी गलतियों का अहसास हो गया था वो भी जिंदगी को समझने लगा था। परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बनी कि मज़बूरीवश ही उन्हें साथ समय गुजरने का मौका मिला। दोनों ने एक दूसरे की भावनाओं को समझा और उसको मान भी दिया और आज....
एक बार बातों-बातों में सोनाली ने मुझ से पूछा था -माँ अगर, मुझे कोई पसंद आ गया तो मैं आपको कैसे बताऊँगी....सीधे-सीधे बोलना तो मुश्किल होगा....तब,मैंने कहा था -" जिस दिन तुम्हे सच्चे दिल से किसी से प्यार हो जाये,तुम्हे लगने लगे कि -यही मेरा सच्चा साथी है उस दिन मुझे एक "पीला गुलाब" दे देना मैं समझ जाऊँगी। और ....मेरी सोनाली को सच्चा साथी मिल गया था और मुझे मेरा बेटा। आज मेरे बच्चों ने मुझे मान दिया, मेरी परवरिश को मान दिया। मुझे गर्व है अपनी परवरिश पर और उस माँ की परवरिश पर भी जिसका बेटा राज है।
" माँ कहाँ खोई हो,पिज्जा आ गया "सोनाली ने आवाज़ दी तो मैं बीते दिनों से बाहर आ गयी। मैंने हँसते हुए डायलॉग चिपका दिया -" हमारी उम्र में पहली नज़र में ही पता चल जाता है कि लड़का-लड़की के बीच क्या चल रहा है "मगर,तुम आजकल के वेवकूफ बच्चे जिन्हे पेरेंट्स ने साथी चुनने की आज़ादी दे रखी है उन्हें बड़ी देर से समझ आ रहा है कि-"हमें क्या चाहिए"। माँअअ..कहते हुए सोनाली मुझसे लिपट गई,मैं भी-मैं भी.... कहता हुआ राज भी गले लग गया।
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जवाब देंहटाएंप्रिय कामिनी, इस सुंदर भावपूर्ण लघुकथा या कहूँ इससे इतर एक सुखद शब्द चित्र को पढ़कर बहुत अच्छा लगा | आजकल युवाओं में प्रेम का चलन बढ़ता जा रहा है और प्रेम में संयम ना होना माँ बाप और खुद उनके लिए बहुत बड़ी परेशानी का सबब बनता जा रहा है लेकिन माता- पिता का सही मार्गदर्शन और बच्चों पर भरोसा उन्हें ना सिर्फ भटकने से रोकता है बल्कि उन्हें सही राह दिखाकर सुख और समृद्धि के मार्ग पर ले आता है | एक समझदार माँ की संतान मेनुसके गुण जरुर होते हैं | ये पंक्ति बहुत प्रेरक है ---
--------मुझे गर्व है अपनी परवरिश पर और उस माँ की परवरिश पर भी जिसका बेटा राज है।---------
यदि इस उदार को आज के माता पिता पूरे विश्वास से अपना लें तो दो पीढ़ियों की समस्याओं का निराकरण स्वतः ही हो जाएगा और बच्चों के सही जीवन- साथी के चयन में उनकी सक्रीय भूमिका ना होते हुए भी उन्हें गहरे संतोष की अनुभूति करवायेगी | यूँ ही नए -नए विषयों पर लिखती रहो सखी | बहुत प्यार और शुभकामनाएं|
दिल से शुक्रिया प्रिय रेणू ,इस कहानी के सारांश को लिख दिया तुमने,मेरा भी मानना यही है कि -जब बच्चे स्वयं निर्णय लेने पर अडिग हो गए है तो अविभावकों को उनका सही मार्गदर्शन करना चाहिए।
हटाएंकाफी दिनों बाद तुम्हारा मेरे ब्लोगरूपी घर में आना हुआ,बेहद ख़ुशी हुई,
ढेर सारा स्नेह के साथ सुस्वागतम सखी
इस उदार की जगह उदार सोच पढ़ें |
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सराहनीय प्रेरक
जवाब देंहटाएंसराहना के लिय हृदयतल से आभार सर,आपका आशीर्वाद यूँ ही मिलता रहे,सादर नमस्कार
हटाएंप्रिय कामिनी सिन्हा जी,
जवाब देंहटाएंआनंदित कर दिया इस कथा ने...बड़ी प्यारी सी कथा...
आपकी यशस्वी लेखनी के लिए असीम शुभकामनाओं सहित
सस्नेह,
डॉ. वर्षा सिंह
आपके आशीर्वचनो के लिए हृदयतल से आभार वर्षा जी ,सादर नमस्कार
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जवाब देंहटाएंपीले गुलाब कभी मुरझाए ना..और प्रेम सदा बना रहे..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कहानी..
हार्दिक धन्यवाद आपका,सच कहा आपने---प्रेम कभी मुरझाना भी नहीं चाहिए
हटाएंभावपूर्ण उम्दा रचना
जवाब देंहटाएंसराहना के लिय हृदयतल से आभार गगन जी,सादर नमस्कार
हटाएंचर्चामंच पर स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार सर,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार दी ,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंसजीव चित्रण करा आपने
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
हृदयतल से आभार अनीता जी,सादर नमन
हटाएंबहुत ही सजीव चित्रण |आपका हृदय से आभार |आपके जीवन में प्रेम ,सुख ,समृद्धि बनी रहे |
जवाब देंहटाएंआपके इस आशीर्वचनो के लिए हृदयतल से धन्यवाद ,सादर नमन
हटाएंबहुत सुंदर कहानी। माता पिता और बच्चों के बीच ऎसा ही रिश्ता होना चाहिए ताकि बच्चे अपनी हर बात उनसे कह सकें।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद मीना जी,कहानी का मर्म समझने के लिए आभारी हूँ,सादर नमस्कार
हटाएंबहुत सुंदर तथा सुखद अनुभूति करवाने वाली कहानी है यह आपकी कामिनी जी। अति प्रशंसनीय ।
जवाब देंहटाएंसराहना से भरे प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से धन्यवाद जितेंद्र जी,सादर नमन
हटाएंसहज मिले सो दूव सम ।
जवाब देंहटाएंसहजता ही नेह की संजीवनी बूटी है ।
बधाई हो । जी खुश हुआ ।
सराहनासम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से धन्यवाद नूपुरं जी,सादर नमन
हटाएंअसाधारण कहानी के द्वारा नई पीढ़ी तक अर्थपूर्ण संदेश पहुंचाती रचना मुग्ध करती है - - साधुवाद सह।
जवाब देंहटाएंआपकी इस अनमोल प्रतिक्रिया हृदयतल से धन्यवाद सर,सादर नमस्कार
हटाएंवाह लाजबाव प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद आपका,सादर नमन
हटाएं"पीला गुलाब" बहुत गहरे से मन को छू गया कामिनी जी । बेहद खूबसूरत सृजन ।
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया मीना जी,मेरी रचना आपके दिल तक पहुंची तो लिखना सार्थक हुआ,सादर नमस्कार
हटाएंसंप्रेषण की सहजता एवं सरलता अत्यंत प्रभावी एवं आकर्षक है । अति सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंदिल से धन्यवाद आपका, सादर नमन
हटाएंबहुत ही सुंदर कथा, बड़ों की समझदारी से बहुत से मसले हल हो जाते है, बच्चो मे अनुभव की कमी होने के कारण वो सही निर्णय लेने मे असमर्थ होते है ,बहुत ही बढ़िया तालमेल दिखाया गया है संबंधों के मध्य।कामिनी जी बहुत बहुत बधाई हो आपको
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया ज्योति जी,आपकी इस सराहना स भरे प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ,सादर नमन
हटाएंबहुत ही सुन्दर सार्थक संदेश देती हृदयस्पर्शी कहानी
जवाब देंहटाएंबच्चों को जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता होनी ही चाहिए और साथ ही माता-पिता का व्यवहार भी इसी तरह दोस्ताना हो तो नयी पीढ़ी भ्रमात्मक गलतियों से भी बच सकती है...।
सारगर्भित लेखन हेतु बधाई एवं शुभकामनाएं।
दिल से शुक्रिया सुधा जी,आपकी प्रतिक्रिया पाकर लेखन सार्थक हुआ,सादर नमन आपको
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (०९-०३-२०२१) को 'मील का पत्थर ' (चर्चा अंक- ४,००० ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
मेरी रचना को स्थान देने के लिए शुक्रिया अनीता
हटाएंबेहद खूबसूरत कहानी सखी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सखी,सादर नमस्कार
हटाएंआज फिर से पढ़कर बहुत अच्छा लगा प्रिय कामिनी 👌👌👍
जवाब देंहटाएंये पीला गुलाब तो अभी तक खिला हुआ और खुशबू बिखेरता हुआ है । सुंदर और प्रेरक लघु कथा ।
जवाब देंहटाएंपीले गुलाब की दास्तान दिल को छू के गुजर गई …
जवाब देंहटाएंख़ुशबू जैसे कभी नहीं मरती कई क़िस्से भी ऐसे होते हैं …
सुंदर संदेश देती लघुकथा, कामिनी दी। यदि माता पिता बच्चों की भावनाओं को समझकर उचीत मार्गदर्शन करें तो बच्चे प्रेम का असली मतलब समझ कर भटकने से बच जाते है।
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत ही खूबसूरत संदेश देती हुई रचना प्रिय कामिनी जी ।
जवाब देंहटाएंबच्चों से दोस्ताना व्यवहार उन्हें सदा निश्छल बनाता हैं बिना किसी छुपाव के वो अपनी दोस्त माँ के सामने दिल खोलकर रख देते हैं,और एक अच्छा अभिभावक बच्चों का सही मार्गदर्शन कर सकता है। बच्चों में अभिभावकों के लिए भय नहीं सम्मान होना सम्बन्धों को सदा मजबूत बनाते हैं ।
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रेरक लघुकथा।
सचमुच पीला गुलाब आज भी उतना ही खिला खिला एवं मनमोहक है ..लाजवाब कहानी।
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