"नानी माँ, अगर मैं अपनी पसंद से शादी कर लुंगी तो क्या आप उसे अपना लेंगी " मनु ने नानी माँ को गले लगाते हुए बड़े प्यार से पूछा। हाँ ,अपना ही लेगें और कर भी क्या सकते हैं .....आखिर रहना तो तुम्ही को है उसके साथ....इसीलिए अपनी पसंद से लाओ तो ही बेहतर है - नानी माँ ने भी उसी प्यार से जबाब दे दिया।
मैंने तुरंत एतराज किया -"ये क्या माँ,हमें तो लड़को से बात करने की भी आजादी नहीं थी,बात क्या हमें तो किसी लड़के की तरफ देखना तक मना था और इसे अपनी पसंद से शादी करने की इजाजत मिल रही है "
जमाना बदल गया है बेटा .....जमाना नहीं आप भी बदल गयी हो -मैंने तुनुकते हुए कहा। जमाने के साथ बदलना ही पड़ता है बेटा-माँ ठंडी साँस लेते हुए हँस पड़ी।
मनु ने मुझे टोकते हुए कहा -" मम्मी पहले मुझे बात करने दो ....नानी माँ, मैं चाहती हूँ कि मैं जिससे भी शादी करूँ आप सब उसे मुझसे भी ज्यादा प्यार करें ....आप सब की ख़ुशी और रजामंदी मेरे लिए बहुत मायने रखता है, इसलिए आप खुलकर बोले.... "
अरे,बेटा जी... मुझे तुम पर पूरा भरोसा है "तुम्हारी आँखें हमारी आँखों से अलग थोड़े ही है "
नानी माँ के बातों की गहराई को मनु ने समझा या नहीं ये तो नहीं पता बस, इतना सुनते ही वो ख़ुशी से नानी माँ से लिपट गई और मुझे बड़ी जोर की हँसी आ गई। क्यों हँस रही हो माँ -मनु ने हैरानी से पूछा। मैंने कहा- कुछ नहीं बेटा।
सच, हमारे बुजुर्ग कितने सयाने होते है बिना कुछ कहे भी बहुत कुछ कह जाते हैं बिना डोर के भी आपको कितने ही बंधनों में बाँध देते हैं ।
"तुम्हारी आँखें हमारी आँखों से अलग थोड़े ही है "
ये कहकर माँ ने मनु को इजाजत भी दे दिया और हिदायत भी कि - पसंद वही करना जो हमारे संस्कारों में बँधा हो, हमारी संस्कारों से बाहर जाने की इजाजत नहीं है तुम्हें। इसीलिए तो, बुजुर्ग हमारे "मार्गदर्शक भी होते हैं और मार्गरक्षक भी।"
बहुत सशक्त और सार्थक लघुकथा।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से आभार सर ,सादर नमस्कार
हटाएंवाह,बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद शिवम जी,सादर नमस्कार
हटाएंबुजुर्गों के अनुभवों का कोई मोल नहीं
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद गगन जी,सादर नमस्कार
हटाएंसही कहा कामिनी जी!हमारे बुजुर्ग हमारे मार्गदर्शक भी हैं और मार्गरक्षक भी....उनके भरोसे में ही इतनी बड़ी जिम्मेदारी होती है कि छोटे उम्र भर उस भरोसे को बनाए रखने के लिए स्वयं को सम्भाले रखते हैं...बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक लघुकथा।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आपने, हृदयतल से आभार सुधा जी ,सादर नमस्कार
हटाएंकामिनी जी बहुत सलीके व शालीनता से बहुत बड़ी बात कहदी आपने |बहुत बहुत सराहनीय |
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए हृदयतल से आभार सर ,सादर नमस्कार
हटाएंबहुत ही बेहतरीन लघुकथा
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद अनुराधा जी,सादर नमस्कार
हटाएंबहुत ही सुंदर लिखा दी ।
जवाब देंहटाएंसमय के साथ बदलना बहुत जरुरी भी है।
मन को छूती बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।
सादर
हृदयतल से शुक्रिया अनीता
हटाएंएक सशक्त और भावपूर्ण कथा
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन
बधाई
प्रोत्साहन हेतु हृदयतल से आभार सर ,सादर नमस्कार
हटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार मीना जी,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएं"तुम्हारी आँखें हमारी आँखों से अलग थोड़े ही है "
जवाब देंहटाएंसब कुछ कह दिया नानी ने ..दुलार के साथ अपने अनुभवों का सार भी । सच ही तो कहा है आपने बुजुर्ग हमारे मार्गदर्शक भी हैं और मार्गरक्षक भी । अति सुंदर।।
दिल से शुक्रिया मीना जी,रचना का मर्म समझने के लिए,सादर नमन
हटाएंनई पीढ़ी यदि बुजुर्गों के अनुभव से शिक्षा ले तो उनके निर्णय बेहतर हो सकते है। सुंदर लघुकथा।
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया ज्योति जी, सहमत हूँ आपकी बातों से , सादर नमन
हटाएंइनके ही कृपा से हमारी परंपरा एवं संस्कृति बची हुई है । अन्यथा कल्पनातीत होता वर्तमान ।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आपने,दिल से शुक्रिया अमृता जी
हटाएंआपकी लिखी कहानी हमारी संस्कृति की उदार प्रवृत्ति को भी दर्शाती है। ये लघुकथा हृदयस्पर्शी है। आपको बधाई और शुभकामनाएँ। सादर।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद वीरेंद्र जी,उत्साहवर्धन करती आपकी प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार एवं सादर नमन
हटाएंबहुत खूब ! बड़े बुजुर्ग बच्चों के मनोविज्ञान को बखूबी समझते हैं।
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया मीना जी, बिलकुल सही कहा आपने, सादर नमन
हटाएंप्रिय कामिनी , बड़े बुजुर्ग नयी पीढ़ी के मन को पढ़ना अच्छे से जानते हैं साथ ही उनकी हठ का सामना भी नहीं करना चाहते | दो पीढ़ियों का अंतर पाटना बहुत मुश्किल है फिर भी बड़े लोग अपने अनुभव के हिसाब से ऐसा हल ढूंढते हैं कि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे | बहुत सुंदर ढंग से संस्कारों का बीजारोपण करता शब्द चित्र , जिसे पढ़कर बहुत अच्छा लगा | सस्नेह -
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया प्रिय रेणू ,बिलकुल सही कहा तुमने,हमारे बुजुर्ग हमारे मार्गदर्शक है यदि उनके अनुभवों को सहेजे तो कभी भटकेंगे नहीं ,स्नेह सखी
हटाएंअरे,बेटा जी... मुझे तुम पर पूरा भरोसा है "तुम्हारी आँखें हमारी आँखों से अलग थोड़े ही है "
जवाब देंहटाएंनानी माँ के बातों की गहराई को मनु ने समझा या नहीं ये तो नहीं पता बस, इतना सुनते ही वो ख़ुशी से नानी माँ से लिपट गई और मुझे बड़ी जोर की हँसी आ गई। क्यों हँस रही हो माँ -मनु ने हैरानी से पूछा। मैंने कहा- कुछ नहीं बेटा।
सच, हमारे बुजुर्ग कितने सयाने होते है बिना कुछ कहे भी बहुत कुछ कह जाते हैं बिना डोर के भी आपको कितने ही बंधनों में बाँध देते हैं ।
"तुम्हारी आँखें हमारी आँखों से अलग थोड़े ही है
बहुत खूब, समझदारी आपसी दूरियों को ही नहीं सारे फर्क भी मिटा देती हैं कामिनी जी , जिसकी झलक आपकी सभी कथाओ में देखने को मिलती हैं ।
दिल से शुक्रिया ज्योति जी,सरहनासम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए आभार,सादर नमन
हटाएंबड़े बुजुर्ग नयी पीढ़ी के मन को पढ़ना अच्छे से जानते हैं साथ ही उनकी हठ का सामना भी नहीं करना चाहते
जवाब देंहटाएंघर के बड़े - बूढ़े
जिन्हे नहीं चाहिए ज्यादा कुछ,
चाहिए तो बस
थोड़ी इज्जत और सम्मान,
बदले में ये आपको दे
सकते है ,
ज़िंदगी जीने का वो तजुर्बा
जो शायद कही किसी
किताब में
लिखा ही नहीं
सहृदय धन्यवाद संजय जी,बिलकुल सही कहा आपने
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (१६-०६-२०२१) को 'स्मृति में तुम '(चर्चा अंक-४०९७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
मेरी पुरानी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद अनीता जी
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