ना मैं कविता, ना ही गीतिका,
मैं तो नज़्म पुरानी हूँ।
ना भुला पाओगे कभी जिसे,
मैं वो अधुरी कहानी हूँ।।
तेरी लग्न में मस्त-मगन,
मैं एक प्रेम दीवानी हूँ।
अटूट स्नेह की डोर बंधी,
मैं तो तेरी रानी हूँ।।
मीरा की मैं भक्ति गीत हूँ,
विरहन राधा प्यारी हूँ।
सोहनी की मैं मधुर तान हूँ,
हीर की नेत्रवारि हूँ।।
प्यार का एक नगमा हूँ,
तेरे होठों पे सजती हूँ।
तेरी पावन-पवित्र आँखों में,
बूंद बन सिसकती हूँ।।
सांसों में तेरी घुली हुई,
तेरे दिल की मै धड़कन हूँ।
रूह में तेरी बसी हुई,
तेरे रगो की मैं शोणित हूँ।।
तेरी ख्वाबों की गलियों में,
मैं दिन रात भटकती हूँ।
तेरी यादों की आँगन में,
बादल बन बरसती हूँ।।
ना पास तुम्हारे आ पाऊँ
ना दुर तुमसे जा पाऊँ
जो तुम को छू गुजर जाती है
मैं वो पवन सुहानी हूँ
माना, बंधी हूँ सीमाओं में
फिर भी, मौजों की रवानी हूँ
मर्यादाओं में बंधी हुई
मैं संस्कार पुरानी हूँ।।
****************
(चित्र-गूगल साभार से ) कविता
बहुत सुन्दर गीत ...... पूर्ण समर्पण लिए हुए .
जवाब देंहटाएंसराहना हेतु दिल से शुक्रिया दी,सादर नमस्कार 🙏
हटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार 27 जून 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार दी,🙏
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर सादर नमस्कार 🙏
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२७-०६-२०२२ ) को
'कितनी अजीब होती हैं यादें'(चर्चा अंक-४४७३ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय अनीता
हटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंमीरा से सीखिए ! लोक-लाज, कुल की मर्यादा आदि के बंधन तोड़ कर पहाड़ी नदी की तरह बहा कीजिए और जीवन का भरपूर आनंद लिया कीजिए !
आप की उपस्थिति से लेखन सार्थक हुआ, सराहना हेतु हृदयतल से धन्यवाद सर 🙏
हटाएंमाना, बंधी हूँ सीमाओं में
जवाब देंहटाएंफिर भी, मौजों की रवानी हूँ
मर्यादाओं में बंधी हुई
मैं संस्कार पुरानी हूँ।। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, कामिनी दी।
दिल से शुक्रिया ज्योति जी 🙏
हटाएंमाना, बंधी हूँ सीमाओं में
जवाब देंहटाएंफिर भी, मौजों की रवानी हूँ
मर्यादाओं में बंधी हुई
मैं संस्कार पुरानी हूँ।।
वाह!!!
बहुत ही सुमधुर गीत
मर्यादाओं और सीमाओं में रहकर मौजों की रवानी...जो आज की युवा पीढी के लिए असम्भव है उनके लिए बंधनों में मौज कहाँ...और आजादी मतलब संस्कार हीनता।
बहुत ही लाजवाब गीत ।
हम तो पुरानी पीढ़ी है न सुधा जी, हमें तो बन्धन में ही सुख मिलता है। सीमा में रह कर भी ख़ुश नहीं बहुत खुश रहना हमें अच्छे से आता था,
हटाएंप्रशंसा पाकर बेहद खुशी हुई क्योंकि कविता लिखना मेरे लिए मुश्किल होता है। सादर नमस्कार 🙏
बहुत सुंदर कामिनी जी, बहुत ही सुंदर लिखा है आपने।
जवाब देंहटाएंमर्यादा में रहकर भी सागर मस्ती से रवानी में रहता है।
संतुलित जीवन में से अवसाद रूपी कुहासे से निवृत्त होकर सूर्य का उजास आँचल में समेट सकता है हर कोई, बस सकारात्मक सोच हो
और जीवन के प्रति साफ दृष्टि कोण हो।
सुंदर।
आप की सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया ने तो मंत्रमुग्ध कर दिया, मेरी कविता का मर्म समझा दिया आपने, हृदय तल से धन्यवाद एवं आभार कुसुम जी,सादर नमस्कार 🙏
हटाएंअत्यंत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति कामिनी जी।
जवाब देंहटाएंसस्नेह।
प्रिय श्वेता जी, आप की सराहना पाकर लेखन सार्थक हुआ 🙏
हटाएंतेरी ख्वाबों की गलियों में,
जवाब देंहटाएंमैं दिन रात भटकती हूँ।
तेरी यादों की आँगन में,
बादल बन बरसती हूँ।।
.. भावों भरा बहुत सुंदर गीत । बधाई प्रिय कामिनी जी ।
बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय जिज्ञासा जी, ये आप सभी का स्नेह है,सादर नमस्कार 🙏
जवाब देंहटाएंसमर्पण भाव से ओतप्रोत बहुत सुन्दर सृजन कामिनी जी ! गद्य की तरह आप पद्य में भी बहुत सुन्दर सृजन करती हैं ।
जवाब देंहटाएंआप की प्रशंसा से लेखन सार्थक हुआ, आप सभी का स्नेह है जो कुछ टूटा फुटा लिखने का प्रयास कर लेती हूं,सादर नमन आपको 🙏
जवाब देंहटाएं