एक और साल अपने नियत अवधि पर समाप्त हो जाने को है और एक नया साल दस्तक दे रहा है। बस....एक रात और कैलेंडर पर तारीखें बदल जायेगी। दिसम्बर और जनवरी महीने की कुछ अलग ही खासियत होती है। कहने को तो ये भी दो महीने ही तो है पर.....साल के सारे महीनो को बंधे रखते हैं। दोस्तों , क्या आप को भी लगता है कि - इन दोनों के बीच एक खास रिश्ता है ?
मुझे लगता है...इन दोनों के बीच एक खास रिश्ता है बिलकुल रात और दिन के जैसे। दोनों एक ही धागे के दो सिरे ही तो है...कहने को दोनों दूर है...फिर भी एक दूसरे के साथ बंधे रहते हैं...दोनों के बीच कभी ना ख़त्म होने वाला एक रिश्ता होता है। जब ये दो महीने दूर जाते हैं...तो साल बदल जाते हैं और...जब पास आते हैं तो आस बदल जाते हैं....एक का अंत हो रहा होता है तो दूसरे का आरंभ....। देखने में तो ये दोनों एक से ही तो लगते हैं..एक सा मौसम और एक जितनी ही तारीखें.....बस, दोनों के अंदाज़ अलग होते हैं। एक में ढेरों यादें होती है तो दूसरे में अनेको वादें।
दिसम्बर जाता है जनवरी से ये वादा करते हुए फिर मिलेंगे...ग्यारह महीने बाद नए साल में नये तजुर्बो के साथ और जनवरी कहती है-- मैं एक नई आस...नई उमींद और... नये विश्वास के साथ तुम्हारे ढेरों अधूरे ख्वाबों को पूरा करने का यकीन दिलाती हूं।वो एक रात जिसमे दिसम्बर और जनवरी का पल भर के लिए मिलन होता है और फिर वो बिछड़ जाते हैं....उनके मिलन और बिछुड़न के इस रात को हम दुनिया वाले जश्न के रूप में मानते हैं।
सच, वो एक रात जिसे 31 दिसम्बर की रात कहते हैं ,वो पुरे साल की यादों का पिटारा ले कर आता है। कुछ खट्टी... कुछ मीठी...कुछ कड़वी तो...कुछ रुलाती। वो सारे तजुर्बे...वो सारी परेशानियाँ...वो सारी खुशियाँ ...वो सारे गम एक -एक करके उस पिटारे से निकलते हैं...जो थोड़ा दिल को गुदगुदाते हैं...थोड़ा हँसते हैं....तो अगले ही पल थोड़ा रुला भी देते हैं और.......... फिर जैसे ही घडी की सुईया 12 :00 बजाती है...एक नये साल का आगमन होता है और फिर एक नई उम्मीद...एक नया जोश...नई ताज़गी सा स्फुटित होता प्रतीत होता है। खुद से ही कितने ही वादें करते हैं हम ....कितने सपने सजाने लगते हैं....एक नये विश्वास के साथ। दिसम्बर के टूटे-बिखरे सपनो को जनवरी फिर से सजोने लगता है और...ग्यारह महीनो के लिए हमारी आँखों को एक नया सपना दे जाता है। दिसम्बर कहता है अतीत की गलतियों का मातम ना मनाओ...उनसे सीख कर आगे बढ़ो। दिसम्बर सान्तवना देता है और जनवरी सहारा।
वो एक रात जो दिसम्बर और जनवरी के मिलने और बिछड़ने का साक्षी होता है वो रात हमारे अंदर भी कितने ही भावनात्मक उथल -पुथल पैदा कर जाता है।लेकिन दुःख की बात ये हैं कि -बहुतो के लिए रात गुजरती है और बात भी गुजर जाती है। लेकिन हमें इन दो महीनो से बहुत कुछ सीखना चाहिए। ये हमें समझाते हैं कि -मिलन और बिछुड़न तो प्रकृति का नियम है लेकिन....प्यार कभी कम नहीं होता...वो अपनी जगह अटल है। वो बता जाते हैं कि -हर पल की कद्र करों...जैसे एक पल में तारीखे बदल जाती है...वैसे ही किसी दिन पल भर में तुम्हारा जीवन भी बदल सकता है। जैसे एक पल में हम दोनों (दिसम्बर और जनवरी का साथ ) का साथ छुट गया...क्या पता वेसे ही किसी पल तुम्हारी सांसे तुम्हारा साथ छोड़ दे...जाने वाले पल से सीख ले के आगे बढ़ों और...आने वाले पल को गले लगावो। वो कहते हैं -जैसे हम दोनों तुम्हे खुश होने का...उम्मीद जगाने का अवसर दे रहे है..वैसे ही तुम भी दुसरो के जीवन में खुशियाँ भरो...ना उम्मीदों में उम्मीद जगावो............... चन्द दिनों में प्रकृति भी अपना रूप बदलेगी.... बसंत का आगमन होगा.... चारों दिशाएं मुस्कुराएंगी... यदि ये मुस्कुराहट अपने जीवन में हमेशा के लिए चाहते हो तो प्रकृति का संरक्षण करो
क्योंकि प्रकृति है तो ही हम और हमारी खुशियां है...
बहुत सुंदर लिखा आपने आपको भी क्रिसमस और आने वाले नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद......अनुराधा जी, स्नेह
हटाएंbhut badiya hila diya aapki soch kuch naya nhi tha phir bhi bhut alag tha ji gud keep it up
हटाएंआभार...........
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना ,
जवाब देंहटाएंआप के इस स्नेह के लिए तहे दिल से धन्यवाद... अभिलाषा जी ,सस्नेह..क्या आप और अनुराधा जी बहने है ?क्षमा चाहती हूँ व्यक्तिगत प्रश्न करने के लिए ,उत्सुकता बस पूछ लिया
हटाएंगहरा संवेदित आलेख ...
जवाब देंहटाएंसच है वो एक पल ... जो है तो बस एक पल पर कितना कुछ इशार से उधर कर जाता है ... एक पूरे साल को पल भर में ही बदल जाता है ... पुराने को संजोने और नए को बुनने का पल साक्षी होता है हर साल जीवन में ...
बहुत बहुत शुक्रिया....... दिगंबर जी ,सादर नमन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लेख कामिनी जी
जवाब देंहटाएंस्नेह !!
सस्नेह आभार......... सखी
हटाएंवाह क्या बात है नए एहसास से लबरेज़ पोस्ट... सुंदर लिखा आपने
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया......... संजय जी,सादर नमन
हटाएंबेहद खूबसूरत लेख । नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंआभार........ सहृदय धन्यवाद मीना जी, स्नेह..
हटाएंमन को गुदगुदाती रचना. नव वर्ष मंगलमय हो!!!
जवाब देंहटाएंआभार........ सादर नमन
हटाएंसहृदय धन्यवाद...... श्वेता जी,आपके स्नेह और प्रोत्साहन के लिए आभार....
जवाब देंहटाएंस्नेह
अंतर तहो को खोल लो
जवाब देंहटाएंनया साल नया दिन नया महीना आया
जाने वाले को विदा कर
दो सब यादें सहेजो
पर आने वाले से एक सुंदर वादा करलो।
कामिनी जी बहुत गहराई से आपने दो महीनों का संबध सुंदर आलेख द्वारा समझाया।
जाने वाला भी खास और आने वाला भी खास दोनो किसी डोर से जुड़े है।
वाह अप्रतिम
तहे दिल से शुक्रिया कुसुम जी ,आभार...... सादर नमन
जवाब देंहटाएंthanks...sir
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया लेख ।
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया...... सादर स्नेह.........
हटाएंसुंदर लेखन। नव वर्ष की ढेरों शुभकामनाये।
जवाब देंहटाएंआभार........... नव वर्ष मगलमय हो!!
हटाएंकामिनी दी, बीते साल की खट्टी-मिठी यादे और नए साल की नई उम्मिदों का बहुत ही सुंदर वर्णन किया हैं आपने। नववर्ष की अग्रिम शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद ज्योति जी ,नव वर्ष मगलमय हो !!!!!
हटाएंप्रिय कामिनी -- दो महीनों के इस मिलन को कोई इस तरह भी देखता होगा सोचा ना था | बहुत ही गहराई से चिंतन करके आपने बहुत ही सुंदर निचौड़ निकाला है | सचमुच दिसंबर के खत्म होने से और नये साल की आहटसे भीतर खलबली से मच जाती है |पुरानी यादों से दमन छुडाकर नये समय में प्रवेश करना बहुत ही भावुक कर जाता है |साथ में सही कहा तुमने --मिलन और बिछुड़न तो प्रकृति का नियम है लेकिन प्यार कभी कम नहीं होता वो अपनी जगह अटल है। हर पल अनमोल है हमें समय की कद्र तो करनी ही चाहिए | सुंदर लेख के लिए हार्दिक बधाई सखी | खुश रहो और मस्त रहो 2018में तुम्हारे जैसी मन सखी का मिलना सौभाग्य है और अविस्मरनीय भी | सस्नेह |
जवाब देंहटाएंआभार सखी ,इतना निश्छल प्यार देने के लिए। 2018 जाते जाते आप सब दोस्तों के रूप में मुझे भी कई कीमती उपहार दे गया ,उमींद करती हूँ हमारा ये साथ बना रहेगा ,ढेर सारा स्नेह ........
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना सखी आपका नजरिया और लेखन दोनों ही अद्भुत हैं।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सखी ,प्रोत्साहन से भरे आपकी टिपण्णी के लिए दिल से आभार
हटाएंसुंदर भावपूर्ण लेख है।
जवाब देंहटाएंपरंतु ब्लॉग जगत से मैंने यही सीखा है कि रात गयी और बात गयी, दो शब्द स्नेह की चाह महंगी पड़ सकती है। हाथी के दांत खाने के और दिखाने के कुछ और.. !
प्रणाम।
सहृदय धन्यवाद शशि जी ,हमारे जीवन के अनुभव ही हमारी सोच बन जाती हैं ,सादर नमन
हटाएंबहुत प्यारा लेख है प्रिय कामिनी | एक बार फिर से पढ़कर बहुत अच्छा लगा |सखी तुम्हें नये साल की हार्दिक शुभकामनाएं| पिछले साल की तरह ये साल भी तुम्हारी पहचान को विस्तार दे यही दुआ है |
जवाब देंहटाएंसमय के पांव थकते नहीं | ये निरंतर गतिशील है
सुख- दुःख का ताना बाना है ,
कहीं गुलशन कहीं वीराना है ;
तन , मन और जीवन ,
पल - पल बदले इनका मौसम ;
कहीं हंसी कहीं रोदन बिखरे
नियत जन्म के साथ मरण ;
नित गतिमान यायावर का -
जाने कहाँ ठौर ठिकाना है ?
दिल से शुक्रिया सखी ,तुमने मेरा लेख दूसरी बार भी पढ़ा , इस सुंदर और यथार्थ से भर चार पंक्तियों के लिए तो दिल से आभार ,सादर स्नेह सखी
हटाएंदिसंबर और जनवरी के खास रिश्ते की खासियत के साथ बहुत ही सुन्दर सार्थक एवं सारगर्भित लेख...।
हटाएंआपको और आपके पूरे परिवार को नववर्ष की अग्रिम शुभकामनाएं एवं बधाई कामिनी जी!
सुन्दर चिंतन करवाती आलेख हेतु बधाई।
जवाब देंहटाएंआपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार आपका ,सादर नमस्कार
हटाएंगुजरा वो, क्षण भी! तुम चले...
जवाब देंहटाएंओ तथागत!
बड़ी खोखली, पाई तेरी ही झोली!
जाते-जाते, ले गए तुम,
मेरी ही, तरुणाई के इक साल!
और, छोड़ गए हो तन्हा!
ओ तथागत!
https://purushottamjeevankalash.blogspot.com/2020/12/2020_30.html
दिल को छूती बहुत ही रचना ,सादर नमस्कार
हटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार सर,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंNice Post Good Informatio ( Chek Out )
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