" मदर्स डे " आने वाला है अभी से सोशल मिडिया पर " माँ " शब्द पूरी तरह छा चूका है। सोशल मिडिया का वातावरण माँ मयी हो गया है, एक धूम सी है " माँ " पर ,कितनी सारी प्यारी-प्यारी ,स्नेहिल कविताऐं रची जाएगी , कहानियाँ लिखी जायेगी और स्लोगन और quotes तो पूछिये मत एक से बढ़कर एक लिखे जायेगे। कुछ देर के लिए मन भ्रमित सा हो जायेगा -"हम तो यूँ ही बोलते रहते हैं कि -आज कल भावनाएं मर चुकी है ,बच्चें माँ बाप की कदर नहीं करते ,वगैरह-वगैरह।" अरे नहीं ,देखें तो हर एक की भावनाएं कैसी उमड़ी रही है ,सब के दिलों में माँ के लिए प्यार ही प्यार दिखाई दे रहा है ,सब माँ के प्यार -दुलार ,त्याग और संस्कार की कितनी अच्छी-अच्छी बातें कर रहे हैं। कैसे कह सकते हैं.हम ...ऐसा कि- बच्चें माँ बाप से सरोकार नहीं रखते। देखो तो, इन दिनों सभी माँ के भक्त ही दिखाई दे रहे हैं।
एक तरफ इधर मदर्स डे के दिन सोशल मिडिया पर "माँ" शब्द प्यार और स्नेहमयी गंगा का रूप धारण कर धारा-प्रवाह बह रहा होगा और वही दूसरी तरफ - " किसी वृद्धाआश्रम में फ़ोन के पास बैठी हजारो माँये एक फोन के इंतज़ार में होगी और सोच रही होगी कि -" आज तो मेरा बेटा जरूर फ़ोन करेगा....मेरा हाल-चाल भले ना पूछे अपनी आवाज़ तो सुनाएगा.....अपनी खैरियत तो बतायेगा....आज रविवार है अगर फुरसत मिला तो वो मुझसे मिलने भी आ ही जायेगा.....वो मेरे लिए भले ही कुछ ना लाये ....मैं उसके लिए उसकी पसंद की चीज बाज़ार से ही सही मंगवा कर जरूर रखूँगी ....उसे अपने हाथो से खिलाऊँगी ....वो आयेगा, जरूर आयेगा ....नहीं भी आ पाया तो मुझे फ़ोन तो जरूर करेगा। " पता नहीं और क्या क्या ख्वाब सजो रही होगी ,आपस में एक-दूसरे को अपने बेटे की अनगिनत खूबियाँ बता रही होगी ,उनकी हर पसंद और नापसंद के खाने की चर्चाये कर रही होगी।
एक- एक पल जैसे-जैसे बीतता होगा ,अपने मन को और एक-दूसरे को ढारस बंधा रही होगी -" अरे तू चिंता मत कर जरूर आएगा मेरा बेटा भी और तेरा बेटा भी ....पता है न रास्ते में ट्रैफिक कितना होता है और फिर शायद, आज भी ऑफिस गया हो और वही से ही देर से निकला हो ....ये मुये ऑफिस वाले हमारे बच्चों से कितना काम करवाते हैं ....कीड़े पड़े उन्हें,....मेरा बच्चा तो मुझे बहुत प्यार करता है..... एक पल भी मेरे बिना नहीं रहता था....वो जरूर आएगा। और फिर धीरे-धीरे शाम होगी फिर रात हो जायेगी ,बेटा नहीं आ पायेगा और ना ही फोन करेगा। फिर वो कह रही होगी -" फुरसत नहीं मिली होगी बेचारे को ....नहीं तो आता जरूर ...आज तो "मदर्स डे " हैं न ,आज के दिन वो अपनी माँ को कैसे भूल सकता है... वो मुझे याद कर रहा होगा ...बेचारा मेरा बच्चा। " अरे माँ!! तुम बिलकुल सही कह रही हो ...आज के दिन वो तुम्हे कैसे भूल सकता है ...अरे ,वो तो पुरे दिन तुम्हारे ही यादों में है...सिर्फ तुम्हारे ही बारे में ही लिख रहा है ....सबको मदर्स डे की शुभकामनायें भेज रहा है...तुम्हे पता भी है तुम्हारे गुणगान करने में ही वो इतना बिजी था कि तुम्हारे पास आने की उसे फुरसत ही नहीं मिली ...निराश ना हो माँ, तुम्हारे बच्चें तुम्हे बेहद प्यार करते हैं ....तुम्हारा प्यार तो उनके एक-एक शब्द में झलकता है। अब ये बातें कौन जा कर बताये उन माँओ को... बेचारी माँये बे-वजह उदास हो जाती है।
वृद्धाआश्रम तक जा कर देखना तो दूर बहुत से बेटे तो बेचारे ऐसे भी होंगे जिनकी माँ घर में उनके साथ है लेकिन 24 घंटे में से दो मिनट निकल उनसे बात करना तो दूर,उनका हाल पूछना तो दूर माँ को अपनी शक्ल दिखाये हुए भी कई दिन गुजर गए है। उस माँ ने अपने पोते-पोतियों के मुख से सुना "हैप्पी मदर्स डे ,हैप्पी मदर्स डे " तो वो पूछ बैठी -आज क्या है बच्चों ? बच्चों ने जब बताया कि- "दादी ,आज माँ का दिन है इसे "हैप्पी मदर्स डे " कहते हैं " तो बेचारी माँ के मन में आश जग गई - आज तो लगता है कि- माँ का कोई खास दिन है जो नई पीढ़ी के बच्चें मना रहे हैं ,आज तो मेरा बेटा भी जरूर मेरे पास आयेगा " हैप्पी मदर्स डे " कह मुझे गले लगाने ..मैं कई दिनों से बीमार भी हूँ .....ऑफिस और परिवार में इतना बिजी रहता है बेचारा कि मुझसे मिलने आने का उसे वक़्त ही नहीं मिलता लेकिन आज वो जरूर आयेगा ....मैं उसे गले लगा जी भर के प्यार करुँगी ....कितने दिन हो गए है उसे देखे ....आज तो जी भर के देखूँगी ...आज कल के जमाने के बच्चों से तो लाख गुना अच्छा है मेरा बेटा।
आप बिलकुल सच कह रही है "माँ" सचमुच बहुत अच्छा है वो, आप को बहुत-बहुत प्यार करता है, सोशल मिडिया पर उसके प्यार को देख सब आप की किस्मत पर रस्क कर रहे हैं ,जल रहे हैं आप से कि ये माँ कितनी खुशनसीब है उसका बेटा उसे बहुत प्यार करता है, उसके शब्द-शब्द में प्यार झलक रहा है, तुम्हे क्या पता माँ। कैसे समझाऊँ उस माँ को, ये बेचारी भोली माँये क्या जाने,समझ ही नहीं पाती अपने बच्चों के इस प्यार को। उन बूढी माँओ की आँखें तो बस एक बार अपने बेटे की सूरत देखने को तरस रही है, उनके कान दरवाज़े की हर आहट पर ये सोच चौकने हो रहे हैं कि कही मेरा बेटा तो नहीं। बेटे की एक आवाज़ सुनने को तरस रहे हैं उनके कान ,उनकी आत्मा तड़प रही है एक बार बेटे को गले लगाने के लिए। उसे क्या पता, उसे क्या मतलब इस सोशल मिडिया के वाहवाही से।
पर मैं हर माँ से कहना चाहती हूँ - उदास ना हो माँ ,आपके बच्चें तो सचमुच अभी तक बड़े लायक है।"माँ " शब्द का मान तो रख रहे हैं, माँ की ममता भरी बातें उन्हें याद तो है, तुम्हारे महिमा का गुणगान तो कर रहे हैं। तुम्हारे स्नेह ,तुम्हारी करुणा ,तुम्हारे त्याग को कविता और कहानियों के माध्यम से ही सही एक दूसरे से साझा तो कर रहे हैं। तुम सब अब तक बड़ी सौभाग्यशाली हो माँ ,अभागे तो हम होंगे माँ, जो हमारे बच्चें शायद हमें इस तरह भी याद ना रखें । क्योंकि " माँ " के आस्तित्व को भूलना हमी उन्हें सीखा रहे हैं ,तुम्हारा तो आस्तित्व भी है माँ ,हम तो शायद शब्दों में भी जिन्दा ना रहें , क्योंकि हम तो माँ से मम्मी बने और मम्मी से ममी (यानि मरा हुआ ) कब बन गए हमें तो पता ही नहीं चला ,ना ही हमने कभी गौर किया। हमारे बच्चों ने तो हमें जीते जी मरा हुआ घोषित कर दिया।
लेकिन इसमें उनका क्या कसूर है माँ ,सारा कसूर तो हमारा है। हम कसूरवार है, हम जिम्मेदार है क्योंकि माँ से ममी तक हमने उन्हें पहुंचाया है,हम तो इस काबिल भी नहीं कि -ईश्वर से भी शिकायत कर सकें। हम तो आप से भी क्षमा नहीं मांग सकते क्योंकि पहले हमी ने खुद को आप की ममता की छाँव से दूर किया ,बच्चों ने वही तो सीखा हैं जो हमने सिखाया है, हम तो बच्चों से भी क्षमा नहीं मांग सकते । हममे तो वो करुणा भाव ,वो क्षमा भाव भी नहीं बचा जो हम अपने बच्चों को क्षमा भी कर सकेंगे, लेकिन मुझे पूर्ण विश्वास हैं तुम सब माँओ में आज भी वो करुणा का सागर भरा है ,तुम आज भी क्षमा दान देने में सामर्थ हो,तो मेरी विनती सुनो और अपने नादान बच्चों को क्षमा कर दो " माँ " आज के दिन तो कर ही दो ,आज "मदर्स डे" हैं न।
"कैसे समझाऊँ उन सभी भटकें बच्चों को कि -माँ का गुणगान छोडो और जा कर एक बार अपनी माँ के कलेजे से लग जाओ ,उनकी आत्मा को सुकून देदो ,एक बार प्यार से "माँ" बोल दो, हो गई उनकी सारी पूजा, सारा गुणगान ,ढेरों दुआओं से तुम्हारा दमन भर देगी माँ "
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-05-2019) को
"मातृ दिवस"(चर्चा अंक- 3333) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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अनीता सैनी
सहृदय धन्यवाद अनीता जी ,मेरी रचना को चर्चामंच में शामिल करने के लिए आभार, सखी
हटाएंसटीक कामिनी बहन शब्द शब्द जैसे खत्म होती संवेदनाओं का साक्षी है।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम सार्थक।
हिदायद भी सत्य भी।
सहृदय धन्यवाद मीना जी ,जो नजर आता हैं बस वही लिख देती हूँ ,सादर नमस्कार
हटाएंमाँ से मम्मी बने और मम्मी से ममी सही कहा सखी आपने बहुत ही सुंदर और सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद......सखी
हटाएंविचारणीय लेख
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद आदरणीय ,स्वागत हैं आप का मेरे ब्लॉग पर ,सादर नमस्कार
हटाएंजी कामिनी जी...सार्थक सराहनीय चिंतन आपका।
जवाब देंहटाएंमाँ का गुणगान करने के बजाय
ज्यादा माँ के स्वाभिमान को समझो
वटवृक्ष ममत और प्रेम की माँ
उसे गाढ़े अपनत्व के जल से सींचो
सहृदय धन्यवाद स्वेता जी ,सही कहा आपने माँ स्नेह की भूखी होती हैं गुणगान की नहीं ,देखा हैं मैंने माँओ को इस भूख से तड़पते घरो में भी और बृद्धाआश्रमों में भी सादर स्नेह
हटाएंसार्थक और विचारणीय लेख । सत्य के करीब ले जाता हुआ । बेहद सार्थक और शिक्षाप्रद लिखती हैं आप ।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सखी आपके इस उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए ,मैं लेखिका तो हूँ नहीं बस जो नजर आता हैं और मन पर किसी भी रूप में असर छोड़ जाता हैं उसे ही शब्दों में पिरो देती हूँ ,सादर स्नेह
हटाएंसार्थक सृजन आपकी बात से मैं पूर्ण रूप से सहमत हूं सखी
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सखी ,हकीकत ही यही हैं कि आज भावनाये बस दिखावे की रह गयी हैं ,सादर स्नेह
हटाएंसोशल मीडिया पर छाए मातृ गुणगान को देखकर तो यही लगता है जैसे कि जब वाट्सअप और फेसबुक नहीं था तब तो बच्चे माँ से प्यार ही नहीं करते थे।
जवाब देंहटाएंउस वक़्त हम माँ को दिल से प्यार करते थे बिना शब्दों का प्रयोग किये ,उनकी भावनाये समझते थे ,माँ भी हमे समझती थी। अब हमे खुद को दुसरो के आगे दिखाना होता हैं कि- हमे प्यार हैं ,अपनी भावनाओ को प्रदर्सित करने में कोई बुराई नहीं मगर पहले उस के आगे प्रदर्सित करो जिसके लिए ये भावनाये हैं बस सब कुछ बदल चूका हैं। मेरे लेख पर अपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए दिल से शुक्रिया ,सादर स्नेह
हटाएंसच और सार्थक चिंतन ...
जवाब देंहटाएंमाँ से मिल कर अपना प्रेम एक बार जताना कई कई बार के लिए बहुत होता है ...
आज सोशल मीडिया पर बहुत प्रेम दीखता है और इसमें से कुछ प्रतिशत भी पूर्ण और हकीकत में हो सके तो भी दिवस सार्थक है ... अच्छा आलेख है ...
आपके उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए सहृदय धन्यवाद ,सादर नमन
हटाएंसुन्दर सार्थक भावात्मक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंस्वागत हैं आपका मेरे ब्लॉग पर ,आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए सहृदय धन्यवाद ,सादर नमन
हटाएंबहुत बढ़िया तरीके से भावनाओं को शब्दों के माध्यम से आपने व्यक्त किया है।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद नितीश जी,प्रोत्साहन के लिए आभार
हटाएंसही कहा कामिनी दी। आजकल ज्यादातर बच्चे सोशल मीडिया पर माँ के प्रति प्यार जताकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। विचारनीय लेख।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद ज्योति जी , आप के इस सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आभार
हटाएंमां हम सभी का इस कदर ख्याल रखती हैं कि किसी दूसरे की दरकार ही नहीं होती। पर मां की जिंदगी में एक ऐसा पड़ाव भी आता है जब मां को हमारी जरूरत होती है। जब मां बुजुर्ग की श्रेणी में आ जाती हैं तो उन्हें शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से संपन्न बनाना जरूरी हो जाता है। बच्चे सोशल मीडिया पर माँ के प्रति प्यार जताकर अपने कर्तव्य पूरा कर लेते हैं।......लेकिन बदले हुए परिवेश का एक कटु पहलू यह भी है बचपन में जो मां के बिना एक दिन भी नहीं रह पाते वही बच्चे बड़े होते ही मां बाप के पास एक घण्टे भी बैठना समय की बर्बादी समझने लगे हैं....आज की युवा पीढ़ी अपने बुजुर्ग माता-पिता से प्रेम तो करती है लेकिन भौतिकता के बंधन इतने मजबूत हो गए हैं कि प्रेम और वात्सल्य का बंधन कमजोर होने लगा है। लेकिन एक मां के लिए उसके बच्चे हमेशा प्रिय होते हैं, वह उन्हें प्यार और दुलार करना चाहती है और उनसे बात करना चाहती है लेकिन घर के एक कोने में पड़े माता-पिता को बच्चे आते-जाते देखते तो हैं, कभी उनके समीप बैठते नहीं। माता और पिता के महान त्याग, प्यार और बलिदान का कुछ कर्ज उतारने का जब समय आता है तो बच्चे अपनी दुनिया में उलझ चुके होते हैं
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद संजय जी , आप के इस सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आभार ,आप सही कह रहे हैं आज के इस जेट युग में जहां सब की व्यस्तता कुछ जरूरत से ज्यादा बढ़ गई हैं वहां भावनाओं को समझने की क्षमता ही नहीं बची ,मदर्स डे की परम्परा विदेशो में इसलिए बनी की अपनी व्यस्तता के कारण हम अपनी जन्मदात्री को रोज वक़्त नहीं दे पाते तो कम से कम साल में एक बार ही सही ,लेकिन हम तो उनसे भी आगे निकल गए हमारे पास तो वो एक दिन भी माँ को देने के लिए नहीं हैं। हमने अपनी आखों से देखा है वृद्धाआश्रमो में माँओ को अपने बच्चो के लिए तड़पते।
हटाएंप्रिय कामिनी-- सच कहूं तो तुम्हारे लेख ने मुझे बहुत भावुक कर दिया | उस दिन मातृदिवस के अवसर पर माँ का महिमागान करती बहुत सी रचनाएँ देखी पर दो पंक्तियों ने मुझे अवाक् कर दिया ! fb पर जगह- जगह तैर रही ये पंक्तियाँ पूछ रही थी ---- हर तरफ माँ का जलवा है -- पर वृद्धाश्रम में जो है वो किसकी माँ है ? सच है वो कौन अभागे और निष्ठुर बेटे बेटियां हैं जो माँ की सत्ता का तिरस्कार कर मंदिरों की चौखट पर माथा घिसने जाते हैं ? अपनी दुनिया में उलझो पर ये मत भूलो समय का पहिया गोल घूमता है | वह अपनी जगह फिर से आ जाता जिसका समय के तीव्र प्रवाह के बीच पता ही नहीं चलता | सखी मैं भाग्यशाली हूँ कि मेरे तीनों भाई एक छत के नीचे मेरी माँ के सानिध्य में एक उदाहरण बनकर रह रहे हैं | माँ की सेवा में कोई कमी नहीं | ससुराल में भी मैं सास ससुर जी के साथ रहती हूँ | पर आसपास बड़े बड़े मकानों में , बच्चों के आजीविका कमाने के लिए जाने के बाद अपनों की राह निहारती कई उदास आँखें दिख जाती हैं | सच कहूं तो उनके माध्यम से अपने भविष्य की भयावह तस्वीर उभर आती है | तुमने सच लिखा सखी हमारा जाने आगे क्या होगा ? अत्यंत संवेदनशील विषय पर बड़ी बुद्धिमता से कलम चलाने के लिए आभार और प्यार सखी
जवाब देंहटाएंदिल से धन्यवाद सखी ,आज का सच यही हैं सखी ,भाग्यशाली हैं वो माये जिन्हे अपने पुत्र का सानिध्य मिला हैं , सार्थक समीक्षा के लिए आभार सखी
हटाएंवाह!कामिनी जी ,बहुत खूब ..आज की हकीकत बयान करता लेख । सही कहा अपने एक साथ ,एक घर में रहकर भी ,माँ का हाल जानने का समय नहीं होता बच्चों के पास ।
जवाब देंहटाएंदिल से धन्यवाद शुभा जी ,आज का सच यही हैं ,आपकी सार्थक समीक्षा के लिए आभार
हटाएंसही कहा सोशल मीडिया पर फेसबुक पर मदर डे पर माँ की महिमा के किस्से भरे है...और माँ वृद्धाश्रम में बच्चों की बाट जोह रही है या घर के किसी कोने में पड़ी हर आहट पर कान लगा रही है कि शायद आज के दिन ही सही मुझे मिलने आ जायें मेरे बच्चे....।सही कहा आज माँ से न मिलकर हम अपना भविष्य ही बिगाड़ रहे हैं क्योंकि हमारे बच्चे तो हमें अभी से ममी और डेड कह मरा हुआ घोषित कर चुके....आगे हमारा क्या होगा...।
जवाब देंहटाएंमदर डे पर बहुत ही सुन्दर सार्थक लाजवाब लेख।
आपको भी मदर डे की शुभकामनाएं।
सहृदय धन्यवाद सुधा जी , इस सुंदर प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार आपका ,सादर नमन
हटाएंसटीक।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर ,सादर नमन
हटाएंपर मैं हर माँ से कहना चाहती हूँ - उदास ना हो माँ ,आपके बच्चे तो सचमुच अभी तक बड़े लायक हैं।" माँ " शब्द का मान तो रख रहे हैं ,माँ की ममता भरी बाते उन्हें याद तो हैं ,तुम्हारे महिमा का गुणगान तो कर रहे हैं। ... बदलते मूल्यों का कड़वा सच लिखा है आपने कामिनी जी ... बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद अलकनंदा जी ,आज का सच डरता हैं और उस डर को पैदा करने वाले हम खुद हैं। सार्थक प्रतिक्रिया हेतु आभार आपका ,सादर नमन
हटाएंबहुत सुंदर ! विचारणीय व मार्मिक प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ! विचारणीय व मार्मिक प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर,सादर नमन आपको
हटाएंमाँ कब शब्दों में अट पाती है ...जो अथाह है, अनंत है ।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद अमृता जी,सही कहा आपने माँ को शब्दों में समेटना नामुमकिन है,सादर नमन आपको
हटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय धन्यवाद मीना जी ,सादर नमन आपको
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