सोमवार, 6 मई 2019

हँसते आँसु



हजारो तरह के ये होते हैं आँसु
अगर दिल में गम है तो रोते हैं आँसु
ख़ुशी में भी आँखे भिगोते हैं आँसु
इन्हे जान सकता नहीं ये जमाना
मैं खुश हूँ मेरे आँसुओं पे न जाना
मैं तो दीवाना, दीवाना, दीवाना 


 "मिलन " फिल्म का ये गाना वाकई लाजबाब है। आनंद बक्शी के लिखे बोल रूह तक में समां जाते हैं। सच ,जब अंतर्मन में भावनाये मचलती है तो दिल की सतह पर दर्द की तपिस से जो बादल उमड़ते हैं वो आँखों से पानी की बून्द बन बरस जाते हैं।  आँसु ,महज आँखों से बहती पानी की बून्द भर नहीं है, ये आँसु प्रियतम के वियोग में बहे तो आँखों से लहू के कतरे बन बरसते हैं तो वही  प्रिये मिलन के इंतज़ार में बहे आँसु  फूल बन राहो में बिखर जाते हैं  और प्रियतम से गले मिलते ही ये आँसु मोती बन जाते हैं। और जब कभी कोई अपना छल करता है तो यही आँसु  आँखों से अंगारे बन बरसने लगते हैं। सच ,आँसु  के भी कितने रूप है ? 

 जब एक औरत प्रसव पीड़ा से गुजर रही होती है उसकी आँखों से उसका दर्द आँसु बन  बरस रहा होता है उस वक़्त उसे उस असहाय पीड़ा से भली मौत लग रही होती है लेकिन ज्यों ही प्रसव होता है और वो अपने नन्ही सी जान को ,अपने ही जिस्म के हिस्से को ,अपने दिल के ही टुकड़े को अपनी बाँहों में लेती है तो वही आँसु  प्यार और  ममता बन बरस पड़ती है। वैसे ही बेटी की विदाई का दृश्य होता है, उस वक़्त बेटी,उसके माता पिता और प्रियजनों के आँखों से जो बुँदे बरसती है वो ना जाने आँसु का कौन सा  रूप होता  है उन्हें तो शब्दों में वया करना मेरे लिए तो बहुत मुश्किल है। 

     मुझे अपने जीवन का एक ऐसा ही दिन याद आ रहा है जब मैं खुद अपने ही आँखों से बहे हुए आँसु के रूप को नहीं समझ पाई थी। मेरी शादी को लगभग एक महीने हुए थे। मैं अपने पति के साथ काठमांडू घूम कर वापस अपने ससुराल आ रही थी। उस वक़्त तो फ़ोन की कोई खास सुविधा थी नहीं कि हम अपने वापस आने की सुचना या अपने तय प्रोग्राम को  पहले से  किसी को बता पाते। ट्रेन से हमारे ससुराल  तक पहुंचने का जो रास्ता था वो मेरे मायके के शहर से होकर गुजरता था।मेरे मायके के शहर से एक स्टेशन आगे ही मेरा ससुराल था ,महज 5 -6 किलोमीटर की दुरी थी।  मेरे अंतर्मन में अपने माँ-पापा से मिलने की बेचैनी उमड़ रही थी। शाम का समय था ,मेरा दिल कर रहा था कि हम अपने मायके ही उत्तर जाते और कल सुबह ससुराल चले जाते। ट्रेन जहाँ से गुजरती थी वहां से मेरा घर ,मेरा बगीचा सब स्पष्ट दिखाई पड़ता था ,मायके की दहलीज़ को लांघते हुए आगे बढ़ने के ख्याल से ही मेरा मन रो रहा था। उस ज़माने की लड़कियों में तो इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि वो अपने दिल की बात पति तक के सामने रख पाती सो मुझसे भी नहीं कहा गया।

       मेरे मायके के स्टेशन से चार स्टेशन पहले जो स्टेशन आता था वहाँ अक्सर मेरे पापा ऑफिस के काम से आते रहते थे। जैसे ही ट्रेन उस स्टेशन पर रुकी मेरे मन ने कहा -"काश ,पापा आज यहाँ मिल जाते" भगवान ने मेरी दुआ सुन ली और तभी मुझे  पापा के एक दोस्त नजर आ गए ,उन्होंने जैसे मुझे देखा ख़ुशी से बोल पड़े -"अरे, सिन्हा जी देखे तो कौन है ट्रेन में",मैं झट से उठी, अंकल जी को नमस्ते किया और पूछा -"पापा कहाँ हैं ?वो कुछ बोले उससे पहले मुझे पापा ट्रेन में चढ़ते दिख गए। मैंने आगे -पीछे कुछ नहीं सोचा ना देखा और लगभग दौड़ती हुई  पापा की तरफ भागी ,मैंने साडी पहन रखी थी जो एक जगह फंस कर फट भी गई लेकिन मुझे उसका होश कहाँ था ,मैं भाग के पापा से लिपट गई और मेरे आँसु निकल पड़े,मैं पापा से लिपटी रही सिसकियां  लेती रही ,पापा भी मेरा माथा चूमते हुये आँसु बरसाते रहे। आस -पास जो खड़े थे सबकी आँखे नम हो रही थी,उनमे से बहुत तो पापा के दोस्त ही थे। अंकल जी ने अपने आँसु पोछे और मुझे छेड़ते हुए बोले -"अरे,मैं तो सोच रहा था कि ये पापा से मिलकर खुश होगी लेकिन ये तो दुखी हो गई हैं तभी तो इसके आँसु नहीं रूक रहे हैं "

      उनकी बाते सुन सभी  हंस पड़े और मैं भी। फिर तो मैं पापा से लिपटी बैठी रही और अब तो मेरा दिल पापा को छोड़ने को बिलकुल राजी ना था। मैं पतिदेव के हाथ -पैर जोड़ने लगी कि -" प्लीज़ आज रात पापा के घर चलते हैं सुबह घर के लिए निकल जायेगे प्लीज़ ,प्लीज़ ,प्लीज़ " पापा मुझे समझा रहे हैं- बेटा ,ज़िद ना करो दामाद जी जैसा कह रहे हैं वही करो। लेकिन मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे पतिदेव के एक "ना" से मेरी धड़कन रूक जायेगी, साँस जैसे गले में अटकी  थी। पतिदेव मेरी हालत समझ चुके थे और शायद वो ये भी समझ रहे थे कि -एक महीने के शादी के दरम्यान मैंने उनसे कभी कोई फरमाईस नहीं की थी ,बस आज ही जिद कर रही थी सो वो राजी हो गये।

     जब हम घर तक पहुंचे तो पापा ने मुझे घर से थोड़ी दुर पर रूकने को कहा -बोले तुम थोड़ी देर बाद आना। पापा जब घर पहुंचे तो बहन ने दरवाज़ा खोला, पापा के अंदर जाने  के बाद जब वो दरवाज़ा बंद करने लगी तो पापा बोले -खुला रहने दो कोई आने वाला है। बहन ने कोई सवाल नहीं किया वो पापा के लिए पानी लेन चली गई। पापा माँ के पास जाकर बैठ गये ,माँ थोड़ी उदास थी, पापा ने पूछा- क्या हुआ इतनी उदास क्यूँ हो ? माँ के आँखों  में आँसु  आ गये वो बोली -आज रानी की बड़ी याद आ रही है, उसका कोई खत भी नहीं आ रहा है। पापा शरारत से बोले -"खत की क्या जरूरत बोलो तो अभी तुरंत रानी को ही बुला देता हूँ।" माँ गुस्से में बोली -हाँ,आप तो सबकुछ कर सकते हैं जादूगर जो ठहरे। पापा बोले "-यकीन नहीं है तुम्हे, तुम्हे तो पता है मेरी बेटी एक आवाज़ पर मेरे पास होती है, लो अभी मैं बुलाता हूँ" रानी ,बेटा जल्दी से आ जाओ तुम्हारी माँ तुम्हे याद कर रही है "मैं तो दरवाज़े के बाहर खड़ी सारी बाते सुन ही रही थी जैसे ही पापा ने आवाज़ लगाई मैं घर के अंदर आ गई।

     मुझे देखते ही माँ को तो जैसे शॉक लग गया हो वो बैठी-बैठी पथराई आँखों से मुझे बस देख रही थी,तभी बहन पापा के लिए पानी लेकर आई,मुझे देखते ही उसके हाथो से पानी का ग्लास छूट गया,वो दो सेकेंड़ मुझे देखती रही ,फिर दीदीइइ कहकर चीखती हुई दौड़ कर आई और मुझ से लिपट गई,माँ तो जैसे नींद से जागी हो "अरे ये कहाँ से आ गयी,कही मैं सपना तो नहीं देख रही न" -वो पापा के तरफ देखते हुए बोली।पापा ने कहा -उठो ,सचमुच तुम्हारी बेटी आयी है। माँ मुझेसे  लिपट कर रोने लगी। हम तीनो माँ बेटी एक दूसरे से लिपटे रोये जा रहे थे,पापा ने कहा -रूको ,मैं भी आता हूँ और वो भी हमसे आकर लिपट गये। हम कभी एक दूसरे से अलग हो एक दूसरे का चेहरा देखते और कभी एक दूसरे को चूमने लगते,कभी हँस पड़ते और फिर तुरंत ही एक दूसरे को पकड़ रोने लगते। ये सिलसिल आधा घंटा चला। मेरे पतिदेव चुपचाप बैठे ये नजारा देखते रहे। फिर पापा को ही ख्याल आया तो वो बहन को बोले -अब जीजाजी पर भी ध्यान दे लो वरना अभी नाराज़ होकर दीदी को लेके चले जायेगे कि सब बेटी में ही लगे हैं मुझे तो कोई नहीं पूछता। मेरे पतिदेव हँसते हुए बोले- कोई नहीं पापा,पहले उन्हें जी भर के रो लेने दीजिये,मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा है कि ये ख़ुशी में रो रही है या इतने दिनों से एक दूसरे को नहीं देख पाई  थी  उस गम में रो रही  है।

       उनकी बाते सुन स्वतः ही मुझे भी ख्याल आया -सच ,हम रो क्युँ रहे हैं ? हमें तो खुश होना चाहिए  ना ,फिर ये आँसु क्युँ नहीं रूक रहे हैं ? ये कौन सा रूप है आँसुओ का ? सच ,अप्रत्यासित मिलन की ख़ुशी और इतने दिनों के जुदाई के गम में घुल मिल गए आँसुओं के उस  रूप को मैं आज तक समझ नहीं पाई। 


24 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लेखनी सचमुच लाजवाब है, मंत्रमुग्ध कर जाती है । आँसू, समझ हे परे होते ही हैं । गम हो तो बहते हैं छलक कर, खुशी हो तो, मचलते हैं लुढककर।
    बहुत-बहुत शुभकामनाएँ ।

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    1. " गम हो तो बहते हैं छलक कर, खुशी हो तो, मचलते हैं लुढककर "बहुत सुंदर परुषोत्तम जी मेरी लेखनी में जो थोड़ी सी कमी थी आपने वो भी पूरी कर दी आभार । सहृदय धन्यवाद आप को मेरा मनोबल बढ़ने के लिए ,सादर नमस्कार

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  2. सच में बहुत प्यारा संस्मरण लिखा है आपने आँसुओं के बहाने...ब्याह के बाद लड़कियाँ अपनी जिम्मेदारियों में ऐसी व्यस्त होती हैं कि मायका लगभग छूट ही जाता है।
    कैसी अजीब परंपरा है न लड़कियों की विदाई।
    आपको.पढ़कर लगता है ख़ुद के मनोभाव पढ़ रहे।

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    1. स्वेता जी ,ये सिर्फ मेरे और आप के मन के भाव नहीं हैं अपितु हमारे समय की हर लड़की की यही मनोदशा होती हैं ,मेरा मनोबल बढाती आपकी इस सुंदर प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभारी हूँ। सादर स्नेह

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  3. आँसू खुशी,बेबसी,दुख ,करुणा और प्रायश्चित सब कुछ बयान करते हैं बस समझने के लिए नजर चाहिए और ववह आपके पास बहुत खूब है । अत्यंत सुन्दर संस्मरण ।

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    1. मीना जी, मैं आप की दिल से शक्रगुज़ार हूँ आपने मेरे हर लेख पर अपनी अनमोल प्रतिक्रिया दे कर मेरे लेखन को सार्थक किया हैं ,मुझे उमींद हैं आप मेरा मनोबल यूँही बढाती रहेगी ,आभार एवं सादर स्नेह

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  4. बहुत ही सुन्दर संस्मरण कामिनी बहन बेटी पिता की प्यारी परी होती |पढ़ कर आँखें नम हो गई स्नेह से सजा सुन्दर संस्मरण
    सादर

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    1. तहे दिल से शुक्रिया अनीता जी ,सही कहा आपने हमारे समय की शायद ही ऐसी कोई बेटी हो जो विदाई की वो वेला भूल पाई हो ,आभार आपका अनीता बहन अपना प्यार यूँ ही बनाये रखियेगा ,आभार एवं स्नेह

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  5. बहुत बहुत बहुत सुंदर मन को भीगो गया आपका इतना प्यारा संस्मरण और सच नही पता कि कोर पर बैठा ये कतरा खुशी का है या गम का या फिर भूली यादों का।
    लाजवाब कामिनी बहन।
    शब्द शब्द ओस बन झर रहा है
    यादों का दामन भीगो रहा है ।
    आपकी लेखनी की प्रशंसा में शब्द नही जो एक की नही कितनो की कहानी कह गई।
    वाह्ह्ह।

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    1. सहृदय धन्यवाद कुसुम जी ,यादो का पिटारा होता ही ऐसा हैं ,और हमारे समय की तो सबकी कहानी यही होती थी. हम भावनाओ के तल पर जीते थे ,मेरा संस्मरण आप के दिल तक पहुंच आप का भी दामन भिगो गया क्योकि हर बेटी की भावनाये तो एक सी हैं न ,आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मेरा मनोबल बढ़ता हैं ,सादर नमस्कार आप को

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  6. प्रिय कामिनी -- स्नेह की भावनाओं के सुधारस में डूबा तुम्हारा ये संस्मरण हर लडकी के मन की आवाज है क्योकि शादी के बाद हर बेटी उसी आँगन में आने को आतुर रहती है जहाँ से --कहा जाता है उसका शादी के बाद औपचारिक रिश्ता होता है | मुझे भी याद है कि गाँव के भरे पुरे संयुक्त परिवार से जब मैं शहर के एकल परिवार में बहू बनकर आई थी तो ससुराल में व्याप्त एकाकीपन ने मुझे बहुत विचलित किया क्योकि यहाँ परिवार में मात्र चार लोग ही थे पर धीरे धीरे ये छोटा परिवार ही सुहा गया | शादी के बाद पीहर छूटने की वेदना से हर लडकी गुजरती है | भले ही ससुराल में कितनी ही लाडली बहु हो पर बेटी के रूप में माता पिता का स्नेह कभी नहीं भूलता | और पहली बार की छोड़ो मैं तो अब भी मायके से आती हूँ तो आँखें ना चाहते हुए भी छलक जाती हैं | सच कहूं तो वहां जाने से पहले मुझे वहां से आने के पल विकल कर कर जाते हैं | फिर भी यही जीवन है | तुमने बहुत ही जीवंत संस्मरण लिखा वे लम्हे जीवन की अनमोल पूंजी हैं | आशा है तुम आगे भी ऐसे पलों की यादें साझा करती रहोगी | हार्दिक शुभकामनायें और मेरा प्यार |

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    1. लोग तो बस यूँही कह देते हैं कि -मायका पराया आँगन होता हैं ,जहां से अपनी जड़ें जुड़ी हो वो पराया कहाँ हो पाता हैं। तुमने सही कहा सखी -शादी के बाद पीहर छूटने की वेदना से हर लडकी गुजरती है |उन पालो को शब्दों में वया करना बहुत मुश्किल हैं कभी अगर लिख पाई तो जरूर साझा करुँगी अपनी विदाई के उस संस्मरण को जो आज भी आँखों के आगे जीवंत हैं ,सहृदय धन्यवाद सखी तुम्हारे इस अनमोल प्रतिक्रिया के लिए ,सादर स्नेह

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  7. आँसुओं की कहानी आपकी जुबानी पढ़ मेरी भी मायके की बहुत सी यादें ताजा हो गईं बेहद हृदयस्पर्शी संस्मरण लिखा आपने चाहें खुशी हो ग़म या कोई पीड़ा बस बरस पड़ते हैं आँसू बनकर मन के एहसास

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    1. सहृदय धन्यवाद सखी ,ये आँसु बिन कहे सब कह जाते हैं ,सादर स्नेह

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  8. बहुत ही सुंदर संस्मरण,कामिनी दी। यादों के पिटारे में से बहुत ही सुंदर मोती चूने हैं आपने और उनकी माला भी बहुत ही सुंदर तरीके से बनाई हैं।

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    1. सहृदय धन्यवाद बहन ,इतनी प्यारी प्रतिक्रिया दी हैं आपने आभर एवं सादर स्नेह

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  9. जो लब न कह सके वो आंसू कह गए
    दिल की जुबां बनकर आंखों से बह गए।

    बेहद खूबसूरत संस्मरण,हर नारी के जीवन की कहानी सखी।

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    1. क्या बात हैं !!! बहुत खूब अभिलाषा बहन ,सहृदय धन्यवाद आप का, इस प्यारी सी प्रतिक्रिया के लिए आभार एवं स्नेह सखी

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  10. बहुत बहुत धन्यवाद विश्वमोहन जी, सादर नमस्कार

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