गुरुवार, 17 दिसंबर 2020

"उलझन-सुलझन"

  


     जिंदगी कभी-कभी उलझें हुए धागों सी हो जाती है,जितना सुलझाना चाहों उतना ही उलझती जाती है। जिम्मेदारी या कर्तव्यबोध,समस्याएं या मजबूरियों के धागों में उलझा हुआ बेबस मन। ऐसे में दो ही विकल्प होता है या तो सब्र खोकर तमाम धागों को खींच-खाचकर तोड़ दे....उलझन खुद-ब-खुद सुलझ जाएगी.....ना रहेगा कर्तव्यबोध तो जिम्मेदारियों का एहसास ख़त्म हो जायेगा और.....जब ये एहसास ख़त्म तो मजबूरियाँ और समस्याएं तो अपने आप ही ख़त्म हो जाएगी......तब ना कोई उलझन होगी ना सुलझन.....सारे बंधन खुल जायेगे और हम आजाद....बिना डोर के पतंग  सी.....डोलते रहे जहाँ चाहे वहाँ। मगर इस विकल्प को तो पलायन करना कहेगे और परस्थितियों से पलयन करना उचित है क्या ? वैसे भी बिना डोर के पतंग  को तो कटी पतंग कहते हैं  जिसका कोई अस्तित्व नहीं होता। 

   और दूसरा विकल्प है सब्र से,धैर्य से और प्यार से एक-एक धागों की गाँठ को खोलते जाये,जिम्मेदारियों का निबाह करते हुए उलझनों को सुलझाते जाएं । मगर...अपनी जिम्मेदारियों को पूरी तन्मयता के साथ निभाते हुए भी हर एक उलझन को सुलझाना आसान तो नहीं होता ....ववरा मन इतना धर्य धारण कैसे करें......सब्र टूटने लगता है.....प्यार नीरस होने लगता है। अक्सर मन,सब्र और प्यार  से उन धागों के उलझनों को तो सुलझा भी  लेता है मगर खुद को कही खोता चला जाता है। दूसरों के वजूद को सँवारते-सँवारते खुद का वजूद कही गुम सा हो जाता है।सारे गाँठ  तो खुल जाते हैं  मगर मन खुद अनदेखे बंधनो में बांध जाता है। ये बंधन  कभी तो सुख देता है और कभी अथाह दुःख।  

    माना, कटी पतंग का सुख क्षणिक होता है या यूँ कहें भ्रम होता है....असली सुख तो बंधन में ही होता।  सब्र,धैर्य और प्यार से कर्तव्यबोध के बंधन में बांधकर अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करना हमारा प्रथम धर्म है। मगर, इन्हे निभाते- निभाते हम अपने प्रति अपना कर्तव्य भूल जाते हैं। खुद के वजूद का एहसास होना भी जरूरी होता है मगर, इस बात को हम नजरअंदाज कर देते हैं। ऐसे में कभी-कभी हमारा कोई  "प्रिय" आकर अधिकार और स्नेह से भरे उलाहनों के साथ, चंद प्यार भरे शब्द  बोलकर हमारे अंतर्मन को जगा जाता है, हमें खुद के होने का एहसास करा जाता।"वो अपना" हमें बड़े प्यार से समझता है कि- "उठो ,दूसरों के प्रति जिम्मेदारियों को बहुत निभा लिया खुद के प्रति भी अपनी जिम्मेदारी निभाओ,वो काम भी करों जो तुम्हारे अंतर्मन को शुकुन देता है,जिम्मेदारियाँ निभाओं मगर खुद को उसमे गुम ना करों" 

     उसके शब्दों का जादू जैसा असर होता है और हम जैसे गहरी नींद से जाग जाते हैं,और खुद के तलाश में लग जाते हैं वो अपना कोई दोस्त ही होता है "उस दोस्त का दिल से शुक्रिया"

" यदि जीवन में  आपको कोई सच्चा दोस्त मिल जाएं तो जीवन की आधी समस्याएं तो यूँ ही समाप्त हो जाती है,कई उलझन खुद-ब-खुद सुलझ जाती है।"


41 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ दिसंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद श्वेता जी,सादर नमस्कार

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  2. प्रिय कामिनी जी,
    बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढ़कर अच्छा लगा।
    कृपया लिखती रहें।
    सस्नेह।

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    1. उत्साहवर्धन हेतु दिल से शुक्रिया श्वेता जी,इन दिनों घरेलू व्यस्तता कुछ ज्यादा ही हो गई है इस लिए ब्लोग पर की सक्रियता कम हो गई है, आप सभी का स्नेह बना रहें,मैं जल्द ही फिर से सक्रिय हो जाऊंगी,सादर अभिवादन

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  3. उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद विश्वमोहन जी,सादर नमस्कार

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  4. यदि जीवन में आपको कोई सच्चा दोस्त मिल जाएं तो जीवन की आधी समस्याएं तो यूँ ही समाप्त हो जाती है,कई उलझन खुद-ब-खुद सुलझ जाती है।"
    सही कहा आपने जीवन में ऐसा दोस्त मिल जाये तो बात ही क्या....
    बहुत सुन्दर बोधगम्य सारगर्भित लेख।

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    1. परमात्मा ने इस ब्लॉग के माध्यम से मुझे आप सभी जैसे स्नेही मित्रों से मिलाया है, इसके लिए मै दिल से शुक्रगुजार हूं,सादर नमस्कार सुधा जी

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  5. सच है, सब्र और प्यार से ही उलझने सुलझ पाती हैं

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  6. सार्थक अभिव्यक्ति, कामिनी जी सच को गहराई से निकाल कर सहज भाव से सब कह दिया आपने।
    बहुत सुंदर सृजन।

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  7. सारगर्भित और सशक्त लेखन..आपको हार्दिक शुभकामनाएं..।

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    1. दिल से शुक्रिया जिज्ञासा जी, स्वागत है आपका

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  8. सहृदय धन्यवाद मीना जी, मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से शुक्रिया, आप सभी मित्रों का तहेदिल से शुक्रिया

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  9. अफसोस इस बात का है कि कुछ लोग बेहद अकेले भी होते हैं। उनकी उलझनों को सुलझाने वाला कोई सच्चा दोस्त तो क्या झूठा दोस्त भी नहीं होता।
    बहरहाल आपका आलेख उम्मीद की किरण दिखाता है।

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    1. "कुछ लोग बेहद अकेले भी होते हैं। उनकी उलझनों को सुलझाने वाला कोई सच्चा दोस्त तो क्या झूठा दोस्त भी नहीं होता।"
      सहमत हूँ आपकी बातों से,मगर मैं उन खुशनसीबों में से एक हूँ जिसके पास सच्चे और अच्छे दोस्त है,
      इस सुंदर प्रतिक्रिया के लिए सहृदय धन्यवाद आपका ,सादर नमन आपको

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  10. किस्मत से ही ऐसे दोस्त मिलते हैं जिन्हें अवश्य सहेजना चाहिए । उनसे बस निवेदन किया जा सकता है क्योंकि उनसे उऋण होने का कोई उपाय नहीं है ।

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    1. इस सुंदर ही सुंदर बात कही आपने,ऐसे दोस्त अनमोल दौलत की तरह ही सहेजने योग्य होते है,
      इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए सहृदय धन्यवाद आपका ,सादर नमन आपको

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  11. जीवन मे सच्चे दोस्त का अपना स्थान होता है। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,कामिनी दी।

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    1. दिल से धन्यवाद ज्योति जी,इस आभासी दुनिया में हम सभी का रिश्ता भी तो अनमोल ही है,सादर नमस्कार आपको

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  12. उठो ,दूसरों के प्रति जिम्मेदारियों को बहुत निभा लिया खुद के प्रति भी अपनी जिम्मेदारी निभाओ,वो काम भी करों जो तुम्हारे अंतर्मन को शुकुन देता है,जिम्मेदारियाँ निभाओं मगर खुद को उसमे गुम ना करों"

    –यह जादू वाली झप्पी मिली
    शुक्रिया

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    1. दिल से धन्यवाद बिभा दी,आपकी प्रतिक्रिया भी मेरे लिए जादू की झपी ही है,सादर नमस्कार आपको

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  13. ये सच है की कोई सच्चा दोस्त और साथी मिल जाता है तो आसान हो जाता है राहें तय करना ...
    गांठों को तो सहज और धैर्य से सुलझाना होता है ... और शायद जीवन है भी इसी के लिए अन्यथा सब को तोड़ देना तो एक पल में हो जाता है ... सार्थक आलेख ...

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    1. दिल से धन्यवाद दिगंबर जी,इस अनमोल प्रतिक्रिया के लिए आभार ,सादर नमस्कार आपको

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  14. वाह काम‍िनी जी...तो गोया आपने हमें नए साल का लक्ष्य दे द‍िया क‍ि फटाफट से एक अच्छा दोस्त ढूंढ़ा जाए....नव वर्ष की आपको बहुत बहुत शुभकामनायें

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    1. बहुत जल्द ढूँढ लीजिये अलकनंदा जी,एक सच्चे दोस्त के साथ जीवन आसान हो जाता है,मेरी दुआ है आपको जल्द मिल जाए,इस सुंदर प्रतिक्रिया के लिए दिल से शुक्रिया

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  15. मेरी रचना को स्थान देने के लिए तहेदिल से आभार सर ,सादर नमन

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  16. यदि जीवन में आपको कोई सच्चा दोस्त मिल जाएं तो जीवन की आधी समस्याएं तो यूँ ही समाप्त हो जाती है,कई उलझन खुद-ब-खुद सुलझ जाती है।

    जीवनदर्शन से परिपूर्ण बहुत सुंदर लेख 🌹🙏🌹

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