" 21 जून "विश्व योगदिवस
"योग" हमारे भारत-वर्ष की सबसे अनमोल धरोहर है। वैसे तो "योग की उत्पति" योगिराज कृष्ण ने किया था मगर जन-जन तक पहुंचने का श्रेय महर्षि पतंजलि को जाता है उन्हें ही योग का जनक कहा जाता है। "योग" अर्थात जुड़ना या बंधना। ये बंधन शरीर, मन और भावनाओं को संतुलित करने और तालमेल बनाने का एक साधन है।आसन, प्राणायाम, मुद्रा, बँध, षट्कर्म और ध्यान के माध्यम से ये योग की प्रक्रिया होती है। "योग क्या है" इसे समझाने की तो आवश्यकता ही नहीं है, माने ना माने मगर जानते सब है कि योग हमारे भारत-वर्ष की सबसे प्राचीनतम पद्धति है जिस पर अब तक मार्डन साइंस रिसर्च ही कर रहा है और हमारे ऋषि -महर्षियों ने हजारों वर्ष पहले ही इसकी उपयोगिता सिद्ध कर हमें सीखा गए थे मगर हमने इसे ये कहते हुए कि-ये तो साधु-संतो का काम है, बिसरा दिया और कूड़े के ढेर में फेक दिया था।आजादी के बाद से ही "ब्रांडेड" छाप को ही महत्व देने की हमारी आदत जो हो गई है। तो हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के प्रयास से अब इसे "ब्रांडेड" कर दिया गया।शायद अब इसे अपनाने में हमें शर्म नहीं आएगी।
कुछ मान्यवरों के अमूल्य योगदान से जिसमे सबसे प्रमुख योगगुरु रामदेव जी और श्री श्री रविशंकर जी है इसे आज के परिवेश में भी जीवित रखने का निरंतर प्रयास चलता रहा। लेकिन विश्व स्तरीय प्रतिष्ठा इसे हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने दिलवाई जिनके अपील पर 27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के प्रस्ताव को अमेरिका द्वारा मंजूरी मिली, सर्वप्रथम इसे 21 जून 2015 को पूरे विश्व में "विश्व योग दिवस" के नाम से मनाया गया।चुकि यह दिन वर्ष का सबसे लम्बा दिन होता है और योग भी मनुष्य को दीर्घ जीवन प्रदान करता है इसीलिए इस तारीख का चयन हुआ।
"योग या बंधन" सिर्फ तन-मन को नहीं जोड़ता ये आत्मा को परमात्मा से भी जोड़ता है। योग मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य स्थापित करता है, ये सिर्फ स्वस्थ शरीर के लिए ही नहीं वरन स्वस्थ मानसिकता या मानसिक अनुशासन के लिए भी कारगर है ये सारी बातें अब वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित हो चुकी है । मगर आज के परिवेश में किसी को "बंधन" मंजूर नहीं, हर एक बंधन मुक्त रहना चाहता है।आज इंसान नहीं समझता कि-बंधन ही जोड़े रखता है और मुक्त होना बिखराव है तभी तो तन-मन बिखर गया है,रिश्ते-नाते बिखर गए है देश-समाज बिखर गया है प्रकृति और जलवायु बिखर गए है। किसी का किसी से कोई बंधन ही नहीं रहा। ये बिखराव हमें यहां तक ले आई है कि - आज हम त्राहि-माम् कर रहे हैं।
पिछले वर्ष से ही "कोरोना काल " के जरिए प्रकृति हमें समझाने की कोशिश कर रही है कि -हमारे देश की सभी पद्धतियां,सभी नियम और संस्कार उच्च-कोटि की थी जो हमें सहजता से जीवन जीना भी सीखती थी और रश्तों को संभालना भी। "कोरोना काल"में ये काम तो बहुत अच्छा हुआ, सब को इस बात का अनुभव तो बहुत अच्छे से हो गया। अब भी हम समझकर भी ना-समझी करे तो हमारा भला राम भी नहीं कर सकते।
प्रकृति चेता गई है, थोड़े दिनों की मोहलत भी दे गई है "योग को अपनाओं रोग को भगावो" ये सीखा गई है।" प्रकृति को सँवारों और सांसों को सहेज लो" समझा गई है। यदि अब भी हम ना समझे तो अभागे है हम और हम जैसे अभागों को कोई हक नहीं बनता जो किसी पर भी दोषारोपण करें। ना समाज पर,ना सरकार पर,ना डॉक्टर-बैध पर और ना ही भगवान पर।
"बंधन" सांसों का जीवन से,तन का मन से,सृष्टि का प्रकृति से,मानव का मानवता से और आत्मा का परमात्मा से , जब तक है हमारा आस्तित्व है खुल गया सब बिखर जायेगा और फिर विनाश निश्चित है।
ये भी सत्य है कि -पिछले कुछ दिनों में बदलाव तो आया है लोगो ने योग को अपनाया है, कुछ प्रयासरत है ,कुछ ना समझे है जो समझकर भी नहीं समझते उन जैसो से तो कोई अपेक्षा रखनी ही नहीं चाहिए मगर जो भी प्रयासरत है उन्हें प्रोत्साहित जरूर करना चाहिए।
आइये आज इस योग दिवस पर हम भी प्रण ले कि -"योग को अपनायेंगे रोग को हराएंगे"
फिर बाकी जीवन तो खुद-ब-खुद सँवर जायेगा.....
प्रकृति चेता गई है, थोड़े दिनों की मोहलत भी दे गई है "योग को अपनाओं रोग को भगावो" ये सीखा गई है।" प्रकृति को सँवारों और सांसों को सहेज लो" समझा गई है। यदि अब भी हम ना समझे तो अभागे है।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा,कामिनी दी।
दिल से शुक्रिया ज्योति जी,सादर नमस्कार आपको
हटाएं"बंधन" सांसों का जीवन से,तन का मन से,सृष्टि का प्रकृति से,मानव का मानवता से और आत्मा का परमात्मा से , जब तक है हमारा आस्तित्व है खुल गया सब बिखर जायेगा और फिर विनाश निश्चित है।
जवाब देंहटाएं...बहुत ही सार्थक संदेश देता अनमोल लेख,सुंदर शब्दावली तथा महत्वपूर्ण जानकारी से सज्जित आज़ का ये लेख हर इंसान के जीवन के लिए अमूल्य है, योग से हर किसी को जुड़ना चाहिए, आज़ के दौर में योग तो जीवनचर्या का हिस्सा होना चाहिए ।आपको बहुत शुभकामनाएँ।
दिल से शुक्रिया जिज्ञासा जी,धीरे-धीरे शुरुआत तो हो रही है,एक उम्मींद की किरण दिख रही है,सराहना हेतु दिल से आभार एवं सादर नमस्कार आपको
हटाएंसबसे पहले इस के प्रति फैली भ्रांतियों को ख़त्म करने की जरुरत है
जवाब देंहटाएंजी बिल्कुल सही कहा आपने, सादर नमस्कार आपको
हटाएंप्रकृति चेता गई है, थोड़े दिनों की मोहलत भी दे गई है "योग को अपनाओं रोग को भगावो" ये सीखा गई है।" प्रकृति को सँवारों और सांसों को सहेज लो" समझा गई है। यदि अब भी हम ना समझे तो अभागे है हम और हम जैसे अभागों को कोई हक नहीं बनता जो किसी पर भी दोषारोपण करें। ना समाज पर,ना सरकार पर,ना डॉक्टर-बैध पर और ना ही भगवान पर। "बंधन" सांसों का जीवन से,तन का मन से,सृष्टि का प्रकृति से,मानव का मानवता से और आत्मा का परमात्मा से , जब तक है हमारा आस्तित्व है खुल गया सब बिखर जायेगा और फिर विनाश निश्चित है। बहुत ही महत्वपूर्ण आलेख मौजूदा दौर के लिए...। ऐसे आलेख सभी के लिए जरुरी हैं। बधाई आपको कामिनी जी।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद संदीप जी,सराहना हेतु दिल से आभार एवं सादर नमस्कार आपको
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (२३-0६-२०२१) को 'क़तार'(चर्चा अंक- ४१०४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
मेरे लेख को स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद अनीता जी
हटाएंसुन्दर और एक अच्छा लेख
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर ,सराहना हेतु दिल से आभार एवं सादर नमस्कार आपको
हटाएंयोग या बंधन" सिर्फ तन-मन को नहीं जोड़ता ये आत्मा को परमात्मा से भी जोड़ता है। योग मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य स्थापित करता है, ये सिर्फ स्वस्थ शरीर के लिए ही नहीं वरन स्वस्थ मानसिकता या मानसिक अनुशासन के लिए भी कारगर है.....
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा आपने कामिनी जी! योग से शरीर तो स्वस्थ और पुष्ट होता ही है साद ही मन भी दुरुस्त होता है आज मानसिक अस्वस्थता इतनी बढ़ गयी है...। आत्महत्या जैसे कुकृत्य मानसिक अस्वस्थता के ही उदाहरण हैं ।ऐसे में योग को जीवनचर्या का हिस्सा बनाकर बच्चों को बचपन से हीइसके लिए प्रेरित करना चाहिए।
बहुत ही महत्वपूर्ण एवं ज्ञानवर्धक लेख हेतु बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।
दिल सी शुक्रिया सुधा जी, बिल्कुल सही कहा आपने, अब यदि इस समाज में बदलाव लाना है तो दोषारोपण छोड़ स्वयं जागरूक होना होगा ,सराहना हेतु दिल से आभार एवं सादर नमस्कार आपको
हटाएंबिल्कुल सही कहा
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर,सादर नमन
हटाएं"योग या बंधन" सिर्फ तन-मन को नहीं जोड़ता ये आत्मा को परमात्मा से भी जोड़ता है। योग मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य स्थापित करता है ।
जवाब देंहटाएंयोग के महत्व को दर्शाता बहुत सुन्दर और जीवनोपयोगी लेख ।
आभार कामिनी जी
दिल से शुक्रिया मीना जी,आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से लेखन को बल मिला ,सादर नमन आपको
हटाएंयोग को अपनायेंगे रोग को हराएंगे"
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सटीक
सहृदय धन्यवाद भारती जी, सादर नमन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुभकामनाएं ...
जवाब देंहटाएंयोग सच में जावन पद्धति को बदल देता है ... न सिर्फ संस्कृति ये एक रोज़ मर्रा के जीवन का अंग है ...
आज के समय में बाबा राम देव और मोदी के योगदान को भुलाना आसान नहीं है ...
बिल्कुल सही कहा आपने,योग और आर्युवेद के नाम को आज बच्चा-बच्चा जान रहा है तो उसका पूरा श्रेय स्वामी रामदेव और मोदी जी को जाता है।सराहना हेतु सहृदय धन्यवाद आपको,सादर नमन
हटाएंआपकी लिखी कोई रचना सोमवार 28 जून 2021 को साझा की गई है ,
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद दी,सादर नमन
हटाएंसुन्दर आलेख।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर ,सादर नमन
हटाएंबहुत अच्छा लेख,योग का जीवन में बहुत महत्व है रामदेव जी ने जीवन को एक नई दिशा प्रदान की है ।आदरणीया शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद मधुलिका जी ,बाबा रामदेव का योगदान तो सराहना से परे है ,सादर नमन
हटाएंयोग का जीवन में बहुत महत्व, बहुत सुन्दर लेख ll
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद मनोज जी ,सादर नमन आपको
हटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सखी, सादर नमन
हटाएंयोग पर अनमोल लेख प्रिय कामिनी |सच में योग भगाए रोग -- बस जरूरत दृढ इच्छा शक्ति की है | सुंदर , सार्थक लेख के लिए हार्दिक शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार सखी
हटाएंमेरी रचना को भी स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद एवं नमन
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