रविवार, 16 अक्तूबर 2022

"एक रिश्ता ऐसा भी"-गतांक से आगे

     

    वसुधा के टैक्सी से उतरते ही आकाश आगे बढ़ा और टैक्सी ड्राइवर को पैसे देने लगा, वसुधा ने रोकना चाहा मगर अभी आकाश ने जो उस पर अपना अधिकार जताया है उसे देख वो कुछ बोल नहीं सकी। बिना किसी औपचारिकता के वो दोनों कॉफ़ी हाउस के अन्दर चलें गये।ऐसा लगा ही नहीं कि वो दोनों इतने अरसे बाद एक दूसरे को देख रहे हैं। "तुम क्या लोगी" - आकाश ने बड़ी बेतकल्लुफी से पूछा । अभी वसुधा कुछ कहती उससे पहले ही बोल पड़ा-"वहीं कॉफ़ी....आज भी पसंद है या...मेरे साथ-साथ कॉफ़ी को भी अलविदा कह चुकी हो- कहते हुए एक सरसरी सी निगाह उसने वसुधा पर डाली। वसुधा मुस्कुराईं-"अलविदा ही तो नहीं कर पाई...आज भी दोनों तहे दिल से पसंद है"।आकाश के चेहरे पर भी फीकी सी मुस्कान आ गई। आकाश बेहद गमगीन लग रहा था उम्र का असर उसके जिस्म पर नहीं मगर चेहरे पर नजर आ रहा था। वसुधा एकटक उसे देखे जा रही थी शायद उसके चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रही थी और आकाश उससे नजरें चुरा रहा था शायद वो अपने दर्द को वसुधा से छुपाने की नाकाम कोशिश कर रहा था। 

     कुछ देर दोनों के बीच खामोशी छाई रही। तब तक वेटर कॉफ़ी लेकर आ गया। कॉफ़ी की सिप लेते हुए वसुधा ने ही मौन तोड़ा-"आज ये उल्टा क्यों हो रहा है पहले तो आप मेरे चेहरे पर टकटकी बांधे रहते थे और मैं नज़रे चुराती थी और आज......"कहते-कहते वसुधा रुक गई। वक़्त बदल गया है वसुधा और मैं भी-आकाश बोला। "हम नहीं बदले आकाश तभी तो सालों बाद भी यूँ आमने-सामने बैठे है....अच्छा कहो, इतने दिनों बाद मुझसे मिलने की क्यूँ बेचैनी हुई"-वसुधा ने आकाश को छेड़ने के लहजे में कहा,वो उसे मुस्कुराते हुए देखना चाहती थी। मगर आकाश के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया उसने अपने पर्स से एक तस्वीर निकलकर मेज पर रख दी और बोला -"पहचानती हो इसे"? वसुधा हाथ में फोटो लेकर मुस्कुराते हुए बोली -हाँ-हाँ,इसे कैसे भूल सकती हूँ ये तो हमारा बेटा साहिल है...मेरा मतलब...आपका बेटा....कहते हुएं वसुधा थोड़ी झेंप सी गई। संकोच न करों...ये तुम्हारा ही बेटा है वसुधा- आकाश बोला। वसुधा को याद आ गया जब आकाश का आखिरी खत उसे मिला था साथ में यही फोटो था। आकाश ने लिखा था - ये हमारा बेटा है वसुधा....मैंने इसका नाम साहिल रखा है.....तुम्हारा ही दिया नाम है...याद है न...भले ही इसने  तुम्हारी कोख से जन्म ना लिया हो....मगर इसमें तुम्हारा ही अक्स है....ये वसुधा और आकाश का "साहिल"  है- वसुधा साहिल की तस्वीर को सीने से लगा कर घंटों रोती रही थी। वसुधा..वसुधा.. आकाश की आवाज पर चौंकते हुए वो वर्तमान में लौटी।

   साहिल की तस्वीर को बड़े प्यार से देखते हुए बोली - अब तो मेरा बेटा जवान हो गया होगा...कैसा लगता है वो। आकाश ने मेज़ पर एक दुसरी तस्वीर रख दी। फोटो देख वसुधा चहकती हुई बोली -कितना स्मार्ट है मेरा बेटा....बुरा नहीं मानिएगा मेरा बेटा आप से ज्यादा स्मार्ट है। इसमें बुरा मानने वाली क्या बात है...तुम्हारा बेटा था ही मुझसे स्मार्ट....वैसे भी माँ को तो अपना बेटा दुनिया में सबसे ज्यादा प्यारा लगता है - आकाश बोला। उसका एक-एक शब्द मुश्किल से निकल रहा था। वसुधा अपनी धुन में मगन चहकती हुई आकाश के बगल में आकर बैठ गई और तस्वीर दिखती हुई बोली-"था" का क्या मतलब है...इसकी आँखें देखिये कितनी प्यारी है....ऐसा लगता है अभी बोल पड़ेगा। वो अब कभी नहीं बोलेगा वसुधा....वो हमेशा के लिए खामोश हो गया है -बोलते हुए आकाश की आँखें बरस पड़ी। वसुधा अचंभित सी बोली-क्या मतलब है आपका....इसके गले में कुछ हो गया है क्या ?आकाश ने वसुधा के हाथों को कसकर पकड़ लिया जैसे वो हिम्मत जुटा रहा हो और कतार स्वर में बोला -"वो हमें छोड़कर चला गया वसुधा" -आकाश के चेहरे पर एक कठोर भाव था जैसे वो अपने आँसुओं पर बाँध लगाने की कोशिश कर रहा हो। वसुधा घबराई सी बोली -कहाँ चला गया ??? चला गया वसुधा...भगवान जी के पास चला गया - बोलता हुआ आकाश फूट -फूटकर रोने लगा,उसका सब्र टूट गया था,उसने वसुधा के हाथों से ही अपने चेहरे को ढक रखा था। वसुधा बूत सी बन गई थी, उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। 

    उसने आकाश को अपनी बाँहों में भरकर गले से लगा लिया उसे होश ही नहीं था आस-पास का,आकाश हिचकियाँ लेकर के रोता रहा उसके आँसुओं से वसुधा का दामन भींगता रहा, उसके भी आँसू थम नहीं रहे थे। थोड़ी देर बाद आकाश को ही होश आया वो झट से वसुधा से अलग हो गया।अपने आँसुओं को पोछने के लिए जेब से रुमाल निकल ही रहा था कि वसुधा अपने आँचल से उसके आँसू पोछने लगी फिर उसे पानी का ग्लास दिया,पानी पीकर नॉर्मल होते हुए आकाश बोला-कॉफ़ी ठंडी हो गयी होगी मैं दूसरी आर्डर करता हूँ। नहीं,इसकी जरुरत नहीं है-वसुधा बोली। उसके शब्दों को अनसुना कर आकाश ने वेटर को आवाज लगाई और दो कॉफ़ी और कुछ स्नैक्स आर्डर कर दिया। 

   थोड़ी देर के ख़ामोशी के बाद वसुधा बोली-कैसे हुआ ये। उसने आत्महत्या कर ली-नजरें नीचे किये हुए सपाट शब्दों में आकाश बोला। क्या....???वसुधा चीख पड़ी। हाँ वसुधा...मेरे बेटे...आकाश के बेटे ने आत्महत्या कर ली....पंखें से लटक गया वो....वो कमजोर या बुजदिल नहीं था....मैं लापरवाह था....मैं उसे समझ नहीं सका....ना उसे समझा सका....ना ही उसका साथ दे सका....मैं बुजदिल था वसुधा...मैं बुजदिल था.....मैंने तुम्हारे बेटे को मार दिया....कहते-कहते आकाश फिर सिसकियाँ लेने लगा। वसुधा उसके कंधे पर हाथ रखती हुई बोली-मुझे पूरी बात विस्तार से बताओं आकाश...मेरा दम घुट रहा है। 

   अपने आँसुओं को पोछते हुए आकाश बोलना शुरू किया -वसुधा सारी गलती मेरी थी...शादी के बाद अपने हिस्से की ईमानदारी वरतते हुए मैंने अपनी पत्नी को हमारी कहानी बता दी....मैंने सोचा उसे कही और से पता चलेगा तो दुःख होगा....बता देने से शायद वो मुझे समझेंगी.....तुमसे बिछड़कर खुद को किसी और को सौपना आसान नहीं था मेरे लिए.....मैंने सोचा मेरी पत्नी मेरा सहयोग करेंगी लेकिन....हुआ उल्टा....जब भी कोई छोटी-मोटी बात होती तो वो गुस्से में बोल जाती..."सारा प्यार तो आपने उस वसुधा को दे दिया मेरे लिए आपके पास कुछ बचा ही नहीं है।" उसे  खुश रखने और उसकी इस शिकायत को दूर करने के लिए मैं उसकी हर बात से समझौता करता रहा....लेकिन इसका भी उल्टा हुआ....उसका व्यवहार दिन ब दिन कठोर और स्वार्थी होता गया....घर में सिर्फ उसका शासन चलता....यहॉं तक की बच्चों की पढाई-लिखाई और केरियर के फैसले भी उसी के रहें....उसने मेरे जीवन पर ही नहीं बच्चों के जीवन पर भी कठोर अंकुश लगा रखा था ......उसकी मर्जी के खिलाफ घर में पत्ता भी हिल जाता तो वो कोहराम मचा देती....मैंने खुद को जैसे उसे ही समर्पित कर दिया था....उसके हर फैसले में अपनी रजामंदी दे देता....कहते-कहते आकाश ने ठंडी साँस ली। 

   ये तो तुम्हारी कहानी थी...मेरे बेटे साहिल के साथ क्या हुआ था-वसुधा का लहजा बिल्कुल कठोर था। मेरी कहानी से ही तो उसकी कहानी जुडी थी...साहिल बहुत ही प्यारा और शांत स्वभाव का लड़का था...माँ के कठोर अनुशासन को सर झुककर काबुल कर लेता...उसकी माँ ने कहा इंजीनियरिंग करना है वो मान गया जबकि उसे क्रिकेटर बनाना था....उसकी माँ उसके हर एक्टिविटी पर कड़ा नज़र रखती....इससे क्यों मिला....इससे क्या बात कर रहे हो....लड़कियों से दोस्ती क्यों की....घर सात बजे आना था सवा सात क्यों हुआ...यहाँ तक कि बच्चों के कमरे में उसने सीसी टीवी कैमरा लगवा दिया....ऐसे बहुत से बंदिश थे उस पर ....इस ज़माने में कौन इतनी बंदिशों में रहता है मगर मेरा साहिल रहता था....मेरे बाकि दोनों बच्चें अपनी माँ  के खिलाफ थोड़ा बहुत आवाज भी उठाते मगर वो नहीं....हाँ वसुधा,  मुझे एक बेटा और एक बेटी और भी है  -कहते-कहते आकाश रुक गया। वसुधा ने पूछा-फिर क्या हुआ। ग़हरी सांस लेते हुए वो बोलना शुरू किया-इंजीनियरिंग करने के दौरान कैम्पस सलेक्शन में उसे जॉब मिला लेकिन पैकेज काम था...माँ ने मना कर दिया....फिर पढाई पूरी करने के बाद मेरे बेटे का कही जॉब नहीं लग रहा था....दो साल वो बेकार रहा और माँ के ताने सुनता रहा....उसे एक लड़की से प्यार था मुझे उसके एक दोस्त से ये बात पता चला था लेकिन माँ के डर की वजह से वो उससे भी अलग हो गया....आजिज हो अब वो माँ को जबाब देने लगा....एक दिन बात बहुत बढ़ गई उसने जवान बेटे पर हाथ उठा दिया....साहिल मेरे पास आया और बोला-"पापा अब मैं ये सब नहीं सह सकता मेरा सब्र टूट रहा है" मैंने बेटे को पास बैठकर प्यार किया मगर कहा वही जो हमेशा कहता रहा कि-वो आपकी माँ है न बेटा, आपके भले के लिए ही तो डांटती है। साहिल ने पहली बार मुझसे कहा-"बचपन के पांच साल छोड़ दे तो 20 सालों से मैं आपको देख रहा हूँ...आपने माँ के हर जुल्म को नतमस्तक होकर स्वीकार किया है....आपका जुर्म क्या है जो माँ आपको इतनी सजा देती है....मैं नहीं जानता मगर....मेरा जुर्म इतना  ही है कि "मैं एक बुजदिल इंसान का बेटा हूँ" जिसने ना कभी अपनी हिफ़ाजत की ना अपने बेटे की मगर....मैं अब नहीं सह सकता।"

    कहते-कहते आकाश खामोश हो गया पानी का गिलास उठाकर उसने दो घुट पानी पीकर गला तर किया जैसे आगे की बात कहने  लिए हिम्मत जुटा रहा हो-वसुधा,उसकी बातें सुनकर ख़ुशी हुई....मुझे लगा मेरा बेटा मेरी तरह बुजदिल नहीं है.....वो जुर्म के खिलाफ आवाज़  उठाएंगे लेकिन....अगली सुबह उसका शरीर पंखे से लटकता मिला...साथ में एक पर्ची था "बुजदिल का बेटा बुजदिल ही रहा पापा, इन सब से खुद को आजाद करने का यही तरीका था मेरे पास मैं आपकी तरह पूरा जीवन माँ की कैद में नहीं गुजर सकता" -साहिल की लिखी पर्ची वसुधा की ओर बढ़ाते हुए आकाश चुप  हो गया। 

    तभी वेटर बिल लेकर आ गया -बिल अदायगी करते हुए आकाश उठ खड़ा हुआ और कॉफ़ी हॉउस से बाहर आ गया वसुधा भी उसके पीछे-पीछे बाहर आ गयी। बाहर आते ही आकाश ने कहा- वसुधा,तुम सोच रही होगी कि-ये सारी बातें बताने के लिए मैंने तुम्हें बुलाया था क्या ??वसुधा कुछ बोलती उससे पहले ही वो बोल पड़ा-  हाँ वसुधा,तुम्हें तुम्हारे बेटे के बारे में जानने का हक़ था....तुम्हें ये बताना जरुरी था कि-उसकी सौतेली माँ ने उसके साथ क्या किया....हाँ वसुधा, वो सौतेली माँ ही थी...जो माँ अपने कोख से बच्चें को जन्म देने के वावजूद उसे नहीं समझ सकी...नहीं संभाल  सकी....वो सौतेली माँ ही कहलायेंगी और...एक तुम थी ....जो किसी ना किसी माध्यम से उसकी खबर लेती रहती थी....उसे एक झलक देखने  लिए उसके कॉलेज के गेट पर खड़ी रहती थी....जैसे उसके बाप का तुम इंतज़ार करती थी.....यूँ आश्चर्य से मत देखों...मैं सब जानता हूँ....तुम्हें पता था कि-साहिल इसी शहर में है....कुछ दिनों से उसकी कोई खबर ना मिलने से तुम परेशान थी....लेकिन जिसके माध्यम से तुम ये सारी खबरे लेती थी....मैंने उसे तुम्हें ये खबर देने से मना कर रखा था...ये दर्द मैं तुम्हारे साथ साझा करना चाहता था....मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ....ना ही तुम्हें कोई खुशी दे सका ना तुम्हारे बेटे को....वसुधा, मै तुम्हे ये बताने आया था कि जिसे तुम पुजती हो वो तो तुम्हारे प्यार के भी काबिल नहीं है....एक कायर है वो। वसुधा की आँखें बरस रही थी वो कुछ भी बोलने में असमर्थ थी। 

   वसुधा का हाथ पकड़ते हुए आकाश फिर बोला-"वसुधा, मुझे तुम पर गर्व है....मेरी चाहत की आग में चलते हुए भी तुमने अपनी गृहस्थी को बहुत ही खूबसूरती और समझदारी से संभाल रखा है....यूँ क्या देख रही हो .....तुम मेरी खोज खबर रखती थी तो क्या वो माध्यम मुझे तुम्हारी खबर नहीं देता था....हमेशा यूँ ही रहना...और हाँ,आज के बाद मैं तुमसे तभी मिलूँगा जब मैं अपने दोनों बच्चों के जीवन को सँवार लूँगा...तभी तुमसे नज़रे मिलाने के काबिल हो सकूंगा...."वसुधा, रिश्तें सिर्फ मोहर लगा देने से नहीं बनते रिश्ते दिल के होते हैं और दिल से निभाए जाते हैं जो हम निभाएंगे " कहते हुए उसने टैक्सी को रुकने का इशारा किया और वसुधा को बैठने के लिए कहा। 

    दोनों ने एक दूसरे को हाथ हिलाकर अलविदा किया और दोनों की टैक्सी विपरीत दिशा की ओर चल पड़ी। वसुधा सोच रही थी कि - क्या आकाश का कसूर ये था कि उसने वसुधा  से निस्वार्थ प्यार किया या ये कि वो अपनी खुशी के लिए अपने माँ-बाप की मर्जी के खिलाफ नहीं जा सका या ये कि रिश्तें में ईमानदारी रखने  लिए उसने अपनी पत्नी को अपना अतीत  बता दिया या ये कि-एक माँ को अपने बच्चें के लिए बेहद सख्त होते हुए देखकर भी उसने घर की शांति को बनाये रखने के लिए चाहकर भी अपनी पत्नी के खिलाफ नहीं जा सका.....


ये तो वसुधा सोच रही थी मगर.....मैं भी सोच रही हूँ 

बुजदिल कौन था आकाश या साहिल.... 

आकाश जो उस जमाने का था जहाँ अपने लिए आवाज उठाना भी एक जुर्म था.... 

साहिल जो आज की अत्यधिक आजादी वाले युग में था जहाँ अपने हक़ के लिए आवाज उठाई जा रही है फिर भी वो चुपचाप कैसे सहता रहा.... 

या वो औरत जो ना एक अच्छी पत्नी साबित हो सकी ना माँ.... 

या कही वो भी तो अपने प्रेमी से बिछड़ने के कुंठा में तो नहीं जी रही थी....


 

22 टिप्‍पणियां:

  1. बुजदिल तो साहिल था जो आज के जमाने का होने के बावजूद आवाज नही उठा सका।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज सोमवार 17 अक्टूबर, 2022 को     "पर्व अहोई-अष्टमी, व्रत-पूजन का पर्व" (चर्चा अंक-4584)    पर भी है।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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    1. मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद सर 🙏

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    1. कुछ कहानियों का अंत दुखद ही होता है। बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी 🙏

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  4. कहानी का अंत इतना दुखद होगा सोचा नहीं था ।
    बच्चे फूल की मानिंद होते हैं बड़े होते बच्चों को अपने पल्लवन के लिए उचित वातावरण की आवश्यकता होती है जो साहिल को नही मिला ।परिस्थितियों से संबलहीन हो कब तक संघर्ष करता । मार्मिक कहानी ।

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    1. आपने सही कहा मीना जी, अपनी परेशानियों का असर बच्चों पर नहीं पड़ने देना चाहिए, प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से धन्यवाद आपको 🙏

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  5. अंत दुविधा भरा रहा है , एक मार्मिक कहानी । सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय ।

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  6. दीपावली की शुभकामनाएं। सुन्दर प्रस्तुति व अनुपम रचना।

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  7. बहुत बढ़िया कहानी लिखी है आपने। आपको बहुत-बहुत बधाई।

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  8. प्रिय कामिनी, एक अनाम रिश्ते को समर्पित इस भावभीनी कहानी ने कहीं न कहीं जी को बहुत उदास-सा कर दिया। साहिल और आकाश नियती के मोहरे बनकर एक मर्मांतक अंजाम पहुँचे तो वसुधा ने बड़ी सूझबूझ से अपनी गृहस्थी को सम्भाल कर प्यार और परिवार दोनों को महत्व दिया।चाणक्य नीति कहती है कि अपने मन के रिश्ते को किसी के साथ साझा करके अकसर हर किसी को जीवन में दुख के अलावा कुछ प्राप्त नहीं होता।क्योंकि इन रिश्तो की प्रगाढ़ता और गहराई समझने की योग्यता हर किसी में नहीं होती।भावनाओं के अतिरेक में आकाश ने अपनी पत्नी को सच्चाई बताकर बहुत भारी भूल की जिसकी परिणिती साहिल की असामयिक मौत के रूप में हुई।पर अक्सर सीधे और सच्चे लोग इस तरह की गलती कर बैठते हैं और अपनी सच्चाई का भयावह परिणाम भुगतते हैं।यही नहीं घर के मासूम बच्चे इस का शिकार बनकर अनेक मानसिक उलझनों से जूझते अपनी जान तक से हाथ धो बैठते हैं।एक भावपूर्ण और मार्मिक प्रस्तुति के लिए आभार और बधाई सखी।

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    1. "चाणक्य नीति कहती है कि अपने मन के रिश्ते को किसी के साथ साझा करके अकसर हर किसी को जीवन में दुख के अलावा कुछ प्राप्त नहीं होता।क्योंकि इन रिश्तो की प्रगाढ़ता और गहराई समझने की योग्यता हर किसी में नहीं होती"
      बिल्कुल सही कहा तुमने रेणु, विस्तृत प्रतिक्रिया देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद सखी

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  9. आपने बिल्कुल सही कहा दी, परिस्थितियां अनुकूल नहीं होती वो हमें बनानी होती है, तहेदिल से धन्यवाद आपको 🙏

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  10. मार्मिक अंत लिए सोचने को विवश करती
    भावपूर्ण कहानी ।
    बुझदिल कौन था साहिल या आकाश...?
    तो मेरी समझ से आकाश अपने किसी भी किरदार को सक्षमता से नहीं निभा पाया।...जमाना जो भी हो बाधाएं सदैव से रही है...यदि कोई जमाने के साथ चलता है तो कृत्य भी उसी के अनुरूप करे...समाज से डरने वालों को प्रेम नहीं करना चाहिए जो पहली गलती आकाश ने की फिर मन अतीत में रखकर कैसा समर्पण...समर्पण के बाद कैसा भय और साहिल आकाश और वसुधा का क्यों ?
    इसके बाद भी पत्नी से अपेक्षा और अतीत से मुलाकात....आकाश की भ्रमित एवं दोहरी मानसिकता का परिणाम ही है साहिल की विक्षिप्तता ।
    रही पत्नी की बात तो कुछ लोगों का स्वभाव ही होता है हावी होना उसमें कारण तो एक बहाना मात्र है..।

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  11. आप ने "आकाश"पात्र की बड़ी ही बारिकी से विवेचना की है सुधा जी,इतनी सुन्दर व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया देने के लिए और मेरे प्रश्नों का उत्तर देने के लिए ंहृदयतलल से धन्यवाद एवं आभार 🙏 ्

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