शनिवार, 18 जुलाई 2020

अंतर्मन की सच्ची पुकार है प्रार्थना....


    "प्रार्थना" निश्छल हृदय से निकली अंतर्मन की सच्ची पुकार है। जब भी कोई मनुष्य किसी संकट में होता है,परेशानी में होता है,जब बाहरी दुनिया के लोग उसकी सहायता नहीं कर पाते तब, असहाय होकर उस परमसत्ता से वो मदद की गुहार लगाता है।उसका दर्द, उसकी पीड़ा प्रार्थना के रूप में उस परमपिता तक पहुँचती है और एक अदृश्य हाथ उसकी  मदद के लिए आ खड़ा होता है। निश्चित रूप से प्रार्थना में बहुत शक्ति होती है,जो किसी भी असंभव दिखने वाली परिस्थिति से हमें बाहर निकालती है। ऐसे  उदाहरणों से हमारा इतिहास भरा पड़ा है और हमारा व्यक्तिगत अनुभव भी है।  
    "प्रार्थना"एक ऐसी वार्ता है,जो एकतरफा होती है,लेकिन इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिलती है। "प्रार्थना" भगवान से सिर्फ अपनी इच्छाओं की पूर्ति का माध्यम नहीं है,बल्कि यह तो भगवान के साथ अपनी करुण वेदना की सहभागिता है। इसीलिए जब भी मदद के सारे  द्वार बंद हो जाते हैं, कोई भी मार्ग नहीं सूझता, तब भी प्रार्थना का द्वार  खुला रहता है।जहाँ हर एक बे-रोक-टोक जाकर गुहार लगा सकता है और कभी वहाँ से निराश भी नहीं लौटना पड़ता है। जब भी कोई ऐसा नहीं होता, जिससे आप अपना दुःख बाँट सकें उस वक़्त भी प्रार्थना के माध्यम से आप अपना दुःख बे-झिझक उससे  कह सकते हैं।   
    वैसे तो अक्सर हम कष्ट में अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए ही प्रार्थना करते हैं परन्तु आत्मकल्याण के लिए लोककल्याण के लिए भी  प्रार्थनाएँ की जा सकती है। लोककल्याण के लिए.परहित के लिए,निस्वार्थ भाव से की गई सामूहिक प्रार्थना तो परमेश्वर तक और भी जल्दी पहुँचती है और इसके कई चमत्कारिक परिणाम देखने को भी मिले है। निष्कपट,निस्वार्थ भाव से,सच्ची हृदय से अगर हम भगवान को पुकारते हैं तो वो हमारी आवाज़ कभी अनसुना नहीं करता। हाँ,कभी-कभी ये देखने में आता है कि -हमारी आवाज़ उस तक पहुँचने  में देर हो जाती है मगर व्यर्थ  नहीं जाती।तभी तो कहते हैं कि- "भगवान के घर देर है,अंधेर नहीं "
   हम प्रार्थना के माध्यम से जीवन की नकारात्मक परिस्थितियों में भी सकारात्मकता से जुड़ रह सकते हैं,ये हमें अंधकार में घिरने पर भी प्रकाश की और निहारने की हिम्मत देती है,एक उम्मीद का दीया जलता रहता है जो हमें ढाढ़स बँधाता है।  
    शायद इसीलिए,विश्व के सभी धर्मो में एकमात्र जो समानता है,वह है-"प्रार्थना"। हर धर्म किसी-न-किसी रूप में उस परम सत्ता से जुड़ने के लिए प्रार्थना करने को कहता है। प्रार्थना के  माध्यम से हम अपनी भावनाओं को भगवान के पास भेजते हैं।यह एकमात्र वो  माध्यम है जिससे हम भगवान से अपनी इच्छाओं, भावनाओं एवं विचारों की अभिव्यक्ति  करते हैं। अभिव्यक्ति का यह माध्यम हमारी मनोचिकित्सा का भी कार्य करता है,हमारे मन को जीवन में पड़ने वाले अनगिनत भँवरों से बाहर निकालता है। सच्चे मन से की गई पुकार न केवल मनुष्य को घोर  संकटों-आपदाओं से निकालती है,वरन उसे उस दिव्य सत्ता के साथ भी जोड़ती है और हमें उसके कृपा का पात्र बनती है।प्रार्थना में जुड़े हाथ ये भी सिद्ध करते हैं कि-हम लाख विज्ञान को शिरोधार्य कर ले,अपनी काबिलियत, शक्ति और समझदारी पर इतरा ले मगर आखिरकार हमें मानना ही पड़ता है कि-"कोई तो अदृश्यशक्ति है जिसके आगे हम बेबस है।"   

32 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा लिखा है आपने बहुत खूब
    मैंने हाल ही ने ब्लॉगर ज्वाइन किया है जिसमें मैंने कुछ कवताएं लिखी है
    आपसे निवेदन है की आप उन्हें पढ़े और मुझे सही दिशा निर्देश करे धन्यवाद्
    https://designerdeekeshsahu.blogspot.com/?m=1

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    1. सहृदय धन्यवाद आपका,मैं आपके ब्लॉग पर जरूर आऊंगी ,सादर नमन

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (१९-०७-२०२०) को शब्द-सृजन-३०'प्रार्थना/आराधना' (चर्चा अंक-३७६७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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    1. सहृदय धन्यवाद अनीता जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए

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  3. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति

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  4. सही कहा आपने सखी विश्व के सभी धर्मो में एकमात्र जो समानता है,वह है-"प्रार्थना"। हर धर्म किसी-न-किसी रूप में उस परम सत्ता से जुड़ने के लिए प्रार्थना करने को कहता है।
    बहुत ही सुन्दर और सार्थक लेख

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  5. प्रार्थना के सारगर्भित स्वरूप को स्पष्ट करता बहुत सुन्दर आलेख । बहुत बहुत बधाई लाजवाब लेखन हेतु । सादर वन्दे कामिनी जी ।

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    1. सहृदय धन्यवाद मीना जी,स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आभार आपका, सादर नमस्कार

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  6. प्रिय कामिनी , बहुत सुंदर लेख लिखा तुमने | प्रार्थनाओं का इतिहास अनंत है और हर काल में इनकी प्रासंगिकता बनी रही |ब्रह्माण्ड में जितना प्रार्थनाओं का विस्तार होता है उतना ही कुप्रवृतियों का शमन होता है | और सच है सखी . वैसे तो हम अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु ही प्रार्थनाएं किया करते हैं पर कई बार की गयी सामूहिक प्रार्थनाओं के महत्व को इनके द्वारा निकले सुखद परिणामों ने सिद्ध किया है | बस अपनी भी यही प्रार्थना है - समस्त मानवता में सुखी हो . दुःख ना हों |सुधा बहन ने बड़ी सुंदर बात लिखी . विश्व के सभी धर्म प्रार्थना के महत्व को मानते हैं और परम सत्ता से जुड़ने के लिए बस यही माध्यम है | उद्धेश्य परक, प्रेरक लेख के लिए बधाई और शुभकामनाएं सखी |

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    1. दिल से धन्यवाद सखी,तुम्हारी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आभार

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  7. नितांत एकाकी ... ख़ुद को उस ईश्वर में माध्यम से खोजने का प्रयास ही प्रार्थना है ... एकाकार हो जाने की चाह प्रेरित करती है प्रार्थना को और ईश्वर की और खींचती है ... गहरा आध्यात्म लिए ... सुंदर पोस्ट ...

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    1. सहृदय धन्यवाद दिगंबर जी ,बहुत ही सुंदर बात कही आपने - "ख़ुद को उस ईश्वर में माध्यम से खोजने का प्रयास ही प्रार्थना है" इतनी अच्छी प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार , सादर नमस्कार

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  8. बहुत सुंदर कामिनी जी आपके हर लेख की तरह उम्दा रोचक और जानकारी से युक्त लेख ।
    सुंदर व्याख्यात्मक विवरण।
    अप्रतिम।

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    1. दिल से धन्यवाद कुसुम जी ,मनोबल बढाती आपकी इस प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार , सादर नमस्कार

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  9. संभवतः यह प्रथम ही आगमन है आपके पृष्ठ पर मेरा । सहमत हूँ आपके विचारों से । जो प्रार्थना स्वार्थपूर्ति के निमित्त न हो, वही सार्थक है चाहे वह किसी विशिष्ट देवी-देवता या ईश्वर को समर्पित न हो । प्रार्थना स्वच्छ मन से हो एवं उसका स्वर स्वाभाविक रूप से हृदयतल से फूटे (मौन या मुखरित), यही वांछनीय है । आपका यह कथन पूर्णरूपेण सत्य है कि अंततः मानना ही पड़ता है हमें कि कोई तो अदृश्य (तथा अज्ञात) शक्ति है जिसके समक्ष हम विवश हैं ।

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    1. मेरे ब्लॉग पर स्वागत है आपका। उत्साहवर्धन हेतु दिल से धन्यवाद ,सादर नमन आपको

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  10. सकारात्मकता के ल‍िए बहुत ही खूब ल‍िखा है आपने काम‍िनी जी क‍ि
    ''हम प्रार्थना के माध्यम से जीवन की नकारात्मक परिस्थितियों में भी सकारात्मकता से जुड़ सकते हैं,ये हमें अंधकार में घिरने पर भी प्रकाश की और निहारने की हिम्मत देती है,एक उम्मीद का दीया जलता रहता है जो हमें ढाढ़स बँधाता है। '' इस कोरोना काल में ऐसे लेखों की बहुत ही आवश्यकता है ...वाह

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    1. उत्साहवर्धन करती आपकी प्रतिक्रिया के लिए दिल से धन्यवाद अलकनन्दा जी ,सादर नमन आपको

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  11. सच प्रार्थना में बड़ी शक्ति होती है और निस्वार्थ भाव से किसी के लिए की गयी प्रार्थना निश्चित ही फलीभूत होती है यह सच है
    बहुत अच्छे से प्रार्थना की शक्ति को आपने प्रस्तुत किया है

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    1. बहुत ही सही बात कही है आपने प्रार्थना में बहुत शक्ति होती है ये मैंने बहुत नज़दीक से देखा है ।ईश्वर की कृपा का कोई अंत नहीं है ।

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    2. बहुत ही सही बात कही है आपने प्रार्थना में बहुत शक्ति होती है ये मैंने बहुत नज़दीक से देखा है ।ईश्वर की कृपा का कोई अंत नहीं है ।

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    3. बहुत ही सही बात कही है आपने प्रार्थना में बहुत शक्ति होती है ये मैंने बहुत नज़दीक से देखा है ।ईश्वर की कृपा का कोई अंत नहीं है ।

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    4. लेख का मर्म समझाती आपकी प्रतिक्रिया के लिए दिल से धन्यवाद कविता जी ,सादर नमन आपको

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    5. सहृदय धन्यवाद मधुलिका जी ,मेरे ब्लॉग पर स्वागत है आपका ,सादर नमन आपको

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  12. ईश्वर से एकाकार हो जाने की प्रार्थना, इससे अच्छी भावाव्यक्ति नहीं हो सकती

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  13. बेहतरीन और प्रभावी विश्लेषण है ...

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    1. सहृदय धन्यवाद सतीश जी ,आपकी प्रतिक्रिया पाकर लेखन सार्थक हुआ ,सादर नमन आपको

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