पृथ्वी,धरती,धरणी या धरा चाहे जो नाम दे परन्तु उसका रूप और कर्तव्य तो एक "माँ" का ही है। जैसे, एक नारी का तन ही एक शिशु को जन्म दे सकता है और उसका पालन-पोषण भी कर सकता है। तभी तो, एक शिशु के माँ के गर्भ में आने के पहले से ही माँ का तन-मन दोनों उसके पालन-पोषण के लिए तैयार होता है। वो अपने अंग के एक अंश से एक जीव को जन्म देती है और अपने लहू को दूध में परिवर्तित कर उसका पोषण करती है, उसी प्रकार हमारी "धरती" ही वो गर्भगृह है जहाँ जीवन संभव है।इसीलिए तो हम पृथ्वी को भी "धरती माँ " ही कह कर बुलाते हैं। पृथ्वी और प्रकृति एक ही सिक्के के दो पहलू ही तो है,अगर प्रकृति जीवित है तो पृथ्वी पर जीवन संभव है।
मगर हमने इस प्रकृति का दोहन करते-करते "धरती माँ" के आत्मा तक को रौंद डाला है और अब ये धरती माँ कुपित हो चूकी है। जैसे माँ पहले तो अपने बच्चों की गलतियों को नजरअंदाज करती है फिर उसे समझाने की कोशिश करती है,फिर भी ना समझे तो उसे धमकाती है और फिर भी बच्चें ना सुधरे तो मजबूरन उसे अपने जिगर के टुकड़े को सजा देनी ही पड़ती है। आज हमारी "धरती माँ" भी हमसे बहुत ज्यादा कूपित हो चूकी है और हमें धमकाना प्रारम्भ कर चूकी है। हाँ,आज ये जो भी प्राकृतिक आपदाएँ अपने भीषण रूप में प्रहार कर रही है वो तो बस अभी "माँ"की धमकी भर है। यदि अब भी ना चेते तो, हमें सजा मिलनी निश्चित है। ऐसी सजा जिसकी कल्पना भी हम नहीं कर सकते। जब माँ की धमकी इतनी भयावह है तो इसकी सजा कैसी होगी ? ये भी हो सकता है कि माँ चंडी का रूप धारण कर नरसंहार ही करती चली जाए. (जिसकी एक झलक तो वो हमें दिखला भी रही है )
यदि हम माँ की सबसे प्रिय संतान मनुष्य होने के नाते प्रकृति की संरक्षण की जिम्मेदारी स्वयं नहीं उठाते हैं तो मजबूरन प्रकृति को अपने उस रूप को धारण करना होगा, जिसमे ध्वंस किये बिना नूतन सृजन संभव नहीं है। स्वभाविक है कि इस प्रक्रिया में हमें बहुत से कष्ट-कठिनाइयों से गुजरना भी होगा, पर यदि हम समय रहते सचेत हो जाएंगे तो अपनी जीवन की दिशा को बदल पाने में सक्षम हो जाएंगे और साथ ही साथ हम सम्पूर्ण मानव जाति का सुंदर और बेहतर भविष्य निर्मित कर पाने में भी सक्षम होंगे। ऐसा करने के लिए आवश्यकता मात्र इतनी है कि हम इस प्रकृति से चाहे जितना ले,पर बदले में उसी विनम्रता और ईमानदारी के साथ उसे उतना ही लौटाएँ भी। यदि हम प्रकृति के साथ साझेदारी निभाएंगे तो प्रकृति के इस संभावित कहर से बच पाना संभव है। यदि हम प्रकृति के सुरक्षा एवं संरक्षण का ध्यान रखेंगे तो प्रकृति भी हमें सुरक्षा और संरक्षण देगी। इसीलिए अब यह जरुरी है कि-हम प्रकृति एवं धरती माँ के सुरक्षा,संरक्षण एवं समृद्धि के लिए अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार सतत प्रयत्नशील हो जाए।
हमने अपनी जन्म देने वाली माँ की बेकद्री की तो भी, उस माँ ने हमें क्षमा कर दिया मगर अब ये "धरती माँ" हमें क्षमा नहीं कर पाएगी।
सोचने को विवश करता उपयोगी आलेख।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर,सादर नमन
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 20 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद दी,मेरी रचना को स्थान देने के लिए दिल से आभार,सादर नमन
हटाएं"हमने अपनी जन्म देने वाली माँ की ना-कदरी की तो भी, उस माँ ने हमें क्षमा कर दिया मगर अब ये "धरती माँ" हमें क्षमा नहीं कर पाएगी। "
जवाब देंहटाएंचिन्तन को प्रेरित करता संदेश.. बहुत सुन्दर सृजन कामिनी जी ।
सहृदय धन्यवाद मीना जी , स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार , सादर नमस्कार
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंप्रिय कामिनी , वेद-शास्त्र कहते हैं , पशु- पक्षी और अन्य जीव धरती माँ से उतना ही लेते हैं जितनी उन्हें जरूरत होती है | पर , हम अति महत्वाकांक्षी प्राणी ' मनुष्य ' धरती माता का दोहन करते थकते नजर नहीं आ रहे | इस माँ के कोप से डर नहीं रहे हैं -- पर उस कोप से डरना होगा | धरती माँ को उसका सब कुछ दोह कर कुछ तो वापिस करना होगा | सुंदर . उपयोगी लेख सखी | काश! हम सब प्रकृति के महत्व को समझ पायें | सस्नेह -
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद रेणु , इतनी सुंदर और विस्तृत प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार सखी
हटाएंबहुत सटीक लेख चिंतन देता हुआ, सभी भयावहता दिखाई दे रही है पर , स्वार्थ में अंधा मानव कुछ देखना नहीं चाहता।
जवाब देंहटाएंयथार्थ चिंतन देता उपयोगी लेख कामिनी जी ।
सहृदय धन्यवाद कुसुम जी, सार्थक प्रतिक्रिया हेतु दिल से आभार , सादर नमस्कार
हटाएंबहुत ही सुन्दर सार्थक एवं चिन्तनपरक लेख ...
जवाब देंहटाएंसही कहा हमें धरती एवं प्रकृति का दोहन रोकना होगा, अन्यथा अभी तो ये धरती माँ की धमकी है सजा की कल्पना भी हमारी सोच से परे होगी....।
सहृदय धन्यवाद सुधा जी, सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु दिल से आभार आपका , सादर नमस्कार
हटाएंबहुत खूब , सही चिंता है , माँ के कष्टों की !
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली लिखा है इस अछूते विषय पर !
सहृदय धन्यवाद सतीश जी,मनोबल बढाती आपकी इस प्रतिक्रिया के लिए आभार ,सादर नमन आपको
हटाएंबहुत ही सुंदर लेख
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद मनीष जी,स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर,सादर नमस्कार
हटाएंमातृ दिवस पर धरती माता के प्रति श्रद्धा भाव से परिपूर्ण लेख के लिए आपका सादर आभार।
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं सादर नमन
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