"अब" अर्थात वर्तमान यानि जो पल जी रहें है...ये पल अनमोल है...इसमे संभावनाओं का अनूठापन है...अनंत उपलब्धियों की धरोहर छिपी है इस पल में.... फिर भी ना जाने क्यूँ हम इस पल को ही बिसराएँ रहते हैं....इसी की अवहेलना करते रहते हैं.....इसी से मुख मोड़े रहते हैं। अब के स्वर्णिम पलों को छोड़कर एक भ्रम में जिये जाते हैं हम... अतीत के यादों का भ्रम.....बीती बातों का भ्रम...आने वाले कल के आस और सपनो का भ्रम....भविष्य की चिंता का भ्रम.....अपने आपको ना जाने कितने ही भ्रम जाल में उलझाए रहते हैं हम। ये अतीत की यादों और वादों का भॅवर हमें डुबोते चले जाते हैं.....ये भविष्य के आशाओं और चिंताओं का मकड़जाल हमें ऐसे हुए उलझाते हैं कि हम अपने सही कर्मो से ही बिमुख हो जाते हैं।
कल को सँवारने के लिए हमें "अब " में जीना होता है। जीवन जैसा भी हो उसे स्वीकारना और उसकी उलझनों से जूझना पड़ता है। जीवन की जटिलताओं और यथार्थ को सहर्ष स्वीकार कर सघर्षरत रहना पड़ता है। "अब "की अवहेलना कर हम कल को नहीं सँवार सकते हैं। पर पता नहीं क्यूँ हम इस सत्य को समझते ही नहीं और यदि समझ भी गए तो उसे स्वीकार नहीं कर पाते। हमारी आदत बन चुकी है अतीत की यादों और भविष्य की कल्पनाओं के झूले में झूलते रहने की। इन झूलों में झूलते हुए हमें रात्रि के सपने तो मिल सकते हैं परन्तु जागरण का सूर्योदय नहीं मिल सकता। ऐसा नहीं है कि हम सपने सिर्फ सोते हुए ही देखते हैं....जागते हुए भी हमारा मन इन्ही सपनों के सागर में तैरता रहता है। दरअसल, अतीत की यादें और भविष्य के सपने भी मन के लिए एक नशा जैसा ही होता है जो जीवन की सच्चाईयों से भागने का बहाना मात्र है।
हम रोज सुबह जागते तो जरूर है परन्तु असली जागरण तो तब होता है जब "अब "के सूर्योदय में आँखें खुलती है। वर्तमान के क्षणों में जागने से ही मन नशामुक्त होता है। तब ऐसा था अब ऐसा कब होगा, बस ये सोचते भर रहने से जीवन या समाज में परिवर्तन नहीं आता। "अब "के महत्व को समझ, इस क्षण के वास्तविकता को स्वीकार कर हमें कर्म करने होते हैं तभी हम कल के भविष्य को बदल सकते हैं....अपनी दशा-मनोदशा को बदल सकते हैं....अपने सपनों को सच कर सकते हैं...समाज को बदल सकते हैं। जीवन तभी सार्थक होगा, जब हम गुजरे कल को भूलकर उसकी गलतियों से सीखकर, आने वाले कल की चिंता से मुक्त होकर आज को, अभी को, अब को संवारने लगगे।
उम्दा लेख👌
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद,स्वागत है आपका शिवम जी
हटाएंसुंदर विचार। 'अतीत के आह्लाद' से 'भविष्य के भय' तक वर्तमान का वितान तना होता है।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद,विश्वमोहन जी,सादर नमन
हटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 02-10-2020) को "पंथ होने दो अपरिचित" (चर्चा अंक-3842) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.
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"मीना भारद्वाज"
चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार मीना जी,सादर नमन
हटाएंबढ़िया सीख!
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद दी,आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार,सादर नमस्कार
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर,दिल से आभार आपका ,सादर नमस्कार
हटाएंबहुत सुंदर लेख।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सखी,प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार ,सादर नमस्कार
हटाएंजागरण कराता हुआ अनमोल वचन । आभार ।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद अमृता जी,स्वागत है आपका
हटाएं"अब "के महत्व को समझ, इस क्षण के वास्तविकता को स्वीकार कर हमें कर्म करने होते हैं तभी हम कल के भविष्य को बदल सकते हैं....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और अनमोल संदेश देता लेख ।
सहृदय धन्यवाद सखी,स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार ,सादर नमस्कार
हटाएंसमय के महत्व को समझाता विचारपूर्ण लेख 🙏
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद शरद जी,स्वागत है आपका
हटाएंबहुत ही बढ़िया आलेख।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर,उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार ,सादर नमस्कार
हटाएंवर्तमान का महत्व बतलाता विचारणीय आलेख।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद ज्योति जी,सादर नमन
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद मनोज जी,सादर नमन
हटाएंBhut sundar lekhani hai
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रिंकी जी,स्वागत है आपका
हटाएंआज के समय का महत्व दर्शाता हुआ लेख, बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मधुलिका जी,इस सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार
हटाएंजीवन तभी सार्थक होगा, जब हम गुजरे कल को भूलकर उसकी गलतियों से सीखकर, आने वाले कल की चिंता से मुक्त होकर आज को, अभी को, अब को संवारने लगगे।
हटाएंसमय के महत्व को दर्शाता सार्थक लेख
सार्थक आलेख. शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !
जवाब देंहटाएंकल को सँवारने के लिए हमें "अब " में जीना होता है।
जवाब देंहटाएंजीवन तभी सार्थक होगा, जब हम गुजरे कल को भूलकर उसकी गलतियों से सीखकर, आने वाले कल की चिंता से मुक्त होकर आज को, अभी को, अब को संवारने लगगे।
वर्तमान के महत्व को बताता बहुत ही सुन्दर सार्थक एवं सारगर्भित लेख।
बहुत बहुत धन्यवाद सुधा जी,प्रतिउत्तर देने में देरी हुई इसके लिए क्षमा चाहती हूँ,इन दिनों घरेलू व्यस्तता थोड़ी ज्यादा बढ़ गई है इसीलिए ब्लॉग को वक़्त नहीं दे पा रही हूँ,सादर नमन आपको
हटाएंआने वाले भविष्य के लिए अब को तो जीना ही होगा और अतीत को याद करके जीवा होगा ...
जवाब देंहटाएंछूटता कुछ भी नहीं ... पर मौका सिर्फ अब के पास होता है आने वाले कल के लिए ... बहुत सुन्दर आलेख ...
सहृदय धन्यवाद दिगंबर जी,काफी दिनों बाद आपको अपने ब्लॉग पर पाकर अपार हर्ष हुआ,सादर नमन आपको
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