नदी,सागर ,झील या झरने ये सारे जल के स्त्रोत है, यही हमारे जीवन के आधार भी है। ये सब जानते और मानते भी है कि " जल ही जीवन है." जीवन से हमारा तात्त्पर्य सिर्फ मानव जीवन से नहीं है। जीवन अर्थात " प्रकृति " अगर प्रकृति है तो हम है। लेकिन सोचने वाली बात है कि क्या हम है ? क्या हम जिन्दा है? क्या हमने अपनी नदियों को , तालाबों को ,झरनो को ,समंदर को ,हवाओ को, यहाँ तक कि धरती माँ तक को जिन्दा छोड़ा है? इन्ही से तो हमारा आस्तित्व है न....अपनी भागती दोड़ती दिनचर्या को एक पल के लिए रोके और अपनी चारो तरफ एक नज़र डाले और दो घडी के लिए सोचे....हमने खुद अपने ही हाथो अपनी प्रकृति को यहाँ तक की अपने चरित्र तक को कितना दूषित कर लिया है।
इन दिनों मुझे मुंबई महानगर में वक़्त गुज़ारने का मौका मिला। " मुंबई " जिसकी खूबसूरती सिर्फ और सिर्फ समुन्दर से है लेकिन उसकी दुर्दशा जो हमने देखी तो दिल ही नहीं आत्मा तक तड़प उठी....समुन्दर का पानी बिलकुल काला पड़ा है....उसके किसी-किसी तट पर तो जाते ही नाले की तरह बदबू आती है। बारिस के दिनों में ,एक दिन बहुत तेज़ बारिश की वजह से समुंदर में हाई टाइड उठा सड़क तक पर पानी आ गया। उन तेज लेहरो के साथ कई टन कचरा बाहर आ कर सड़को पर फैल गया जिसको साफ करने में मुंबई सफाई कर्मियों को काफी मसकत करनी पड़ी। उन कचरो को देख ऐसे लग रहा था जैसे अब समुन्द्र भी थक चूका है उसमे भी अब सहन शक्ति नहीं बची हमारी गंदगियों को उठाने की, वो हमारा फेका कचरा हमें ही वापस कर रहा है। उन कचरो के बीच समुंद्री जीवो की क्या दुर्दशा होगी शायद हम समझ भी नहीं सकते।
गंगा तो पहले ही हम से थक कर हार मान चुकी है। जब बड़ो का ये हाल है तो बेचारे छोटे-छोटे नदी-तालाब अपना आस्तित्व कहाँ बचा पाते वो तो कब के हमें छोड़ चुके हैं। अब बात करते हैं हवा की तो...दिल्ली वालो से पूछे हवाओं का हाल - चाल....वहा तो वायु प्रदूषण अपने सारे सीमाओं को पार कर चूका है। बच्चें- बच्चें के फेफड़े में जहर भर चूका है साँस लेना भी दूभर है ,मास्क लगा के घूमने के वावजूद शायद ही कोई हो जिसे साँस की बीमारी न हो। बात करते हैं धरती माता की तो मैदानी इलाका तो छोड़े पहाड़ो तक पर भी जहां इंसान का पहुंचना तक मुश्किल था वहां भी पहुंच कर हम इंसानो ने इतनी गंदगी फैलाई कि धरती माँ कराह उठी और अपना गुस्सा ऐसे प्रलय के रूप में दिखाई कि शायद ही कोई केदारनाथ के जल प्रलय को भूल पाए। ऐसा नहीं है कि छोटे शहर इस प्रदूषण से अछूते है लेकिन यह हम बड़े-बड़े कारनामो का जिक्र इसलिए कर रहे हैं कि जब बड़ो का ये हाल है तो छोटे शहरों को कौन पूछता है।
ये तो हवा-पानी का हाल हुआ अब जीवन की तीसरी सब से बड़ी आवश्य्कता " भोजन " उसका क्या हाल कर रखा है हमने। आये दिन खबर आती है कि आटा-चावल तक में प्लास्टिक का इस्तमाल किया जा रहा है ,फल और सब्जी तक जेहरीले खाद और इंजेक्शन के द्वारा उपजाए जा रहे हैं। पिछले दिनों एक विडिओ वायरल हुआ था जिस में दिख रहा था कि झींगा तक का वजन बढ़ाने के लिए इंजेक्शन के द्वारा उसमे सीमेंट का पानी इंजेक्ट किया जा रहा है। दूध तक को कई केमिकल प्रॉसेस के द्वारा तैयार किया जा रहा है। क्या खा रहे हैं हम अन्न या जहर ?
अब " चरित्र " की बात करें तो इंसानी चरित्र ही इंसान को जानवरो से अलग करता है। परन्तु इंसानी चरित्र के दूषित होने की तो इंतहा ही हो गई है। ऐसा शायद ही कोई दिन हो जब हमें इंसान के चरित्र के गिरने और ज्यादा गिरने की घटना सुनने को ना मिलती हो। हवस ने बाप-बेटी ,भाई-बहन तक के रिश्ते को अपवित्र कर रखा है तो लालच ने बाप-बेटे और भाई-भाई तक को एक दूसरे का क़त्ल करने पर उकसा रखा है। हर सुबह जब आँख खुलती है तो भगवान से प्रार्थना करती हूँ कि आज कोई इंसानियत के और ज्यादा गिरने की घटना सुनने को ना मिले।
इन सारे प्रदूषण के पीछे किसका हाथ है ? कौन है जो हमारे जल, हमारी हवा ,हमारे भोजन और यह तक कि - हमारे चरित्र तक को प्रदूषित कर रहा है ? अब हमें भी इस पर एक बार विचार करना चाहिए क्योंकि ये सारे प्रदूषण अपनी सारी हदे पार कर चूका है। हम हर वक़्त सरकार को दोष देते है अपने दिल पर हाथ रख कर खुद से एक सवाल करें क्या इसके लिए सिर्फ सरकार ही जिम्मेदार है ? हां, सरकार भी है क्यूँकि सरकार कोई दूसरी दुनिया से आये लोग नहीं है वो भी हममे से एक इंसान ही है और उनका पूरा कसूर है। पर क्या हमारे चरित्र को भी दूषित करने के लिए भी कोई और ज़िम्मेदार है? हमारी आदत बन चुकी है दोषारोपण की ,हर काम का ज़िम्मेदार किसी और को बनाने की,हम सिर्फ अपना अधिकार पाना चाहते हैं ,कर्तव्य निभाना भूलते जा रहे हैं।
हम इंसानो ने ही ये सारा प्रदूषण फैलाया है अपने-अपने स्वार्थ में लिप्त हो कर, अपनी अपनी जिमेदारियो से मुँह मोड़ कर ,अपना कर्त्तव्य सच्चे दिल से पूरा न करके। हम इंसान से जानवर ही नहीं बल्कि वहशी दरिंदे बन गए हैं। अब भी वक़्त है,प्रकृति हमें बार-बार चेतावनी दे रही है, अगर हम अभी भी नहीं सभलें तो अगली पीढ़ी का हाथ हमारे गेरबान पर होगा। वो हमसे सवाल करेंगे कि हमने क्या उनके लिए यही धरोहर छोड़ा है और हम मुँह दिखने के लायक नहीं रहेंगे। मेरा 5 साल का भतीजा जब अपनी माँ को ज्यादा पानी बिखेरते देखा तो बोल पड़ा " सारा पानी आप सब ही खत्मकर दो जब हम बड़े होंगे तो हमारे लिए पानी ही नहीं बचेगा " उस बच्चें के सवाल ने हमें लज्जित किया। अगर अब भी हम अपने दायित्यो का निर्वाह अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार भी कर लेगे तो अगली पीढ़ी को मुँह दिखने लायक रहेंगे।
जी कामिनी जी,बहुत विचारोत्तेजक लेख है..दैनिक जीवन से जुड़ी छोटी बातों पर ध्यान देकर हम बड़ी जिम्मेदारी का निर्वहन कर सकते हैं ऐसा हम भी मानते है और कोशिश भी रहती है। ये कहकर कि हम क्या कर सकते हैंं बिचारे बनकर रहना है तो बदलाव की उम्मीद छोड़ देनी चाहिये..और सबसे चिंताजनक तो यह कि आने वाली पीढ़ियों को को हम क्या धरोहर सौंप रहे है सोचते तक नहीं। प्रकृति ने हमें जो उपहार सौंपा है उसको सँभालकर देखभाल कर उपयोग करने के बजाय अंधाधुंध दोहन में लगे है यह विनाश की मौन आहट है जिसे अनसुना कर रहे हैं हम। क्या हम समाज और देश एक सजग नागरिक जो अपने अधिकारों के साथ अपने कर्तव्यों के प्रति भी सचेत हैंं नहीं बन सकते।
जवाब देंहटाएंआभार कामिनी जी एक हरल सुस्पष्ट समाजोपयोगी विचार के लिए।
बहुत बहुत आभार.... स्वेता जी ,प्रकृति का दोहन तो हमे भी अपने पिछली पीढ़ी से मिली लेकिन आगे भी क्या हम वही गलती करेंगे जो हमारे बड़े कर गए। दिल्ली की हवाएं और मुंबई के समुन्दर की हालत देख बहुत डर लगता है।
जवाब देंहटाएंइन सारे प्रदूष्ण के पीछे किसका हाथ है ? कौन है जो हमारे जल, हमारी हवा ,हमारे भोजन और यह तक की हमारे चरित्र तक को प्रदुसित कर रहा है ? अब हमे भी इस पर एक बार बिचार करना चाहिए क्योकि ये सारे प्रदूष्ण अपनी सारी हदे पार कर चूका है. हम हर वक़्त सरकार को दोष देते है .अपने दिल पर हाथ रख कर खुद से एक सवाल करे क्या इसके लिए सिर्फ सरकार ही जिम्मेदार है ?...एक विचारणीय विषय का उल्लेख करता बहुत ही अच्छा लेख ...
जवाब देंहटाएंआभार सखी
सादर
सहृदय धन्यवाद .....आभार एवं स्नेही सखी
हटाएंक्षति जल पावक गगन समीरा
जवाब देंहटाएंपंच तत्व प्रदूषण पीड़ा....
पिछली कुछ पीढ़ियों की अशिक्षा का आवर्ती कोप अब दम लेगा शायद दम टूटने के बाद ही!
बढ़िया लेख।
सहृदय धन्यवाद... विश्वमोहन जी ,आप के शब्द मनोबल बढ़ते है ,सादर नमन
हटाएंप्रिय कामिनी ,सर्वांग सार्थक चिंतनपरक आलेख | सच है प्रकृति ने हमें क्या नहीं दिया और सखी मुंबई के दूषित वातावरण का हाल सुनकर बहुत दुःख हुआ | आखिर समन्दर और नदियाँ कितना झेंलेंगे ?क्या उनका अस्तित्व इतना बोझ सहन कर पायेगा ? कितनी सरकारी योजनायें बनी -- कितने प्रयास हुए पर प्रकृति का असंतुलन दिनोंदिन बिगड़ता ही जा रहा है | कहीं ना कहीं हर इंसान इसके लिए जिम्मेवार है | और मानव के नैतिक चरित्र की तो बात ही न की जाए | बेटियां भाई - पिता के सानिध्य में पीड़ा झेल रही हैं कितनी रौंगटे खड़े कर देने वाली घटनाएँ सुनने में आती हैं एक सजग नागरिक के रूप में इन सब बातों पर चिंतन जरूरी है | नहीं तो भावी पीढ़ी के लिए कुछ नहीं बचेगा -- ना शुद्ध पानी , ना स्वच्छ हवा और ना ही नैतिक संस्कार | सस्नेह आभार सखी इतनी गहन विचारणीय लेख के लिए
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सखी ,इस प्रदूषण को बढ़ाने में हमारा ही हाथ है ,दिल्ली वाले पर तो थोड़ा सफाई अभियान का असर हुआ है जिस कारण जमीन प्रदूषण तो बहुत कम हुआ है वहां वायु प्रदूषण ही ज्यादा है लेकिन मुंबई में तो भूमि प्रदूषण काफी है। बस हर इंसान अपना भी कर्तव्य निभा ले तो शायद नहीं यकीनन बदलाव आएगा। ,आभार एवं स्नेह सखी
हटाएंबहुत ही विचारणीय लेख लिखा आपने कामिनी जी दिन प्रतिदिन बढ़ती आबादी और नदियों का दूषित होता जल और समंदर का हाल तो सच में बहुत खराब हो रहा है।पास जाने का मन नहीं करता लहरों से किनारे पर इतना कचरा जमा होता है। प्रदूषण का हाल तो बहुत चिंताजनक है।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद... सखी ,स्नेह सखी ,समुन्द्र में तो खुलेआम लोग कचरा फेकते नज़र आते है कही कही तो नाले की पानी की तरह बदबू आती है.
हटाएंबहुत सटीक
जवाब देंहटाएंशानदार
सहृदय धन्यवाद ....लोकेश जी ,उत्साहवर्धन के लिए ,आप का मेरे ब्लॉग पर तहे दिल से स्वागत है , सादर नमन
हटाएंबहुत विचारणीय आलेख कामिनी दी। इंसान जब तक अपनी आदते नहीं सुधारता,छोटी छोटी बातों पर ख्याल देकर अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाता तब तक कुछ नहीं हो सकता।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद ....ज्योति जी ,सादर स्नेह
जवाब देंहटाएंबड़ी ज्वलंत समस्या आपने उठाई है ,पर आदमी इतना संवेदनाहीन होचुका है कि अपने आज के अतिरिक्त कुछ सोच ही नहीं पाता ,प्रश्न सामने खड़ा हो तो भी टाल कर निकल जाता है जैसे उसे कोई अन्तर न पड़ता हो.
जवाब देंहटाएंआदरणीय प्रतिभा जी ,सर्वपर्थम तो मेरे ब्लॉग पर तहे दिल से स्वागत हैं आप का ,आप को अपने ब्लॉग पर देख कितनी प्रसन्ता हो रही है ये मैं शब्दों में नहीं बता सकती ,सादर नमस्कार है आप को। आपने सही कहा -इंसान स्वेदना हीन ही तो हो चूका है तभी तो उसे अपने आज के अतरिक्त कुछ नहीं दिख रहा है ,अगर हर इंसान सिर्फ अपने हिस्से की ज़िम्मेदारी भी निभा दे तो आधी समस्या यूँ ही ख़त्म हो जायेगी ,परिस्थितियां बहुत भयावह हो चुकी है। सच कहूँ तो मेरा ये लेख मेरा डर ही हैं जो आज के हालत को देखते हुए हर वक़्त डरता है।
हटाएंप्रकृति के साथ इन्सान की अनदेखी और लापरवाही सचमुच हृदयहीनता है और यह सब से अधिक मानव के स्वयं के लिए ही घातक है । आपके अन्य लेखों की तरह यह लेख भी उम्दा और चिन्तनपरक है ।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद ....मीना जी ,सादर स्नेह
हटाएंज्वलंत समस्या को उठाया है और दूर दूर तक इसका निवारण दिखाई नहीं देता ... हम सब भोगना चाहते हैं ... इतना अधिक की प्रतिस्पर्धा मची हुयी है .... दूसरा मेरे से अधिक न ले जाए ... संवेदना ख़त्म होती जा रही है ... बस चले तो एक दुसरे गो गिरा दें आगे निकलने के लिए ... सबसे पहले इसका कारण खोजना होगा ... चरित्र निर्माण क्यों नहीं हो रहा देश में ... क्यों प्रकृति और मानव मूल्य का मान नहीं रख रहे ...
जवाब देंहटाएंमेरे लेख पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए सहृदय धन्यवाद ...... आदरणीय दिगंबर जी ,मेरी समझ से इसके पीछे मनुष्य का अत्यंत स्वार्थी होना और सिर्फ आज आज को जीने की सोच हैं। इसका निवारण भी मेरी समझ से सिर्फ एक ही हैं "हम सुधरेंगे जग सुधरेगा "मैं आप को एक उदाहरण दे रही हूँ -जब से सफाई अभियान चला है मैंने देखा है कि किशोर और युवा वर्ग इसके प्रति बहुत जागरूक हुए है वो गलती से भी एक कचरा इधर उधर नहीं फेकते जब की हमारी और हमसे बड़ी पीढ़ी आदतन आज भी इधर उधर थूकना और कचरा फेकना जारी रखे है। और जहां तक मानवता के हनन होने का प्रश्न है ये तो हमारी गिरती मानसिकता का असर हैं। शायद मैं गलत भी हो सकती हूँ......... सादर नमन
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
३ जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय धन्यवाद श्वेता जी ,सादर नमस्कार
हटाएंप्रदूषण पर आपका ये लेख हर पहलू का सटीक चित्रण हैं सचमुच हम भयावह दौर से गुजर रहे हैं कामिनी जी।
जवाब देंहटाएंआगे वाली पिढ़ियां न जाने क्या क्या भुगतेगी कुछ भी तो प्रदूषण रहित नही रहा हर व्यक्ति का फर्ज बनता है कि सही कदम उठाए और आस पास सब को प्रेरित करे। पर्यावरण संरक्षण ही आगे की स्थिति सुधार सकती है।
आपका लेख सार्थक सटीक और आने वाली भयावहता की साकार चेतावनी है।
सस्नेह
बिल्कुल सही कहा आपने कुसुम जी ,खुद भी जागरूक हो और अपने आस पास को भी जागरूक करे बस यही एक समाधान हैं ,कम से कम थोड़ा सुधर तो जरूर होगा ,सादर नमस्कार
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