शनिवार, 25 अप्रैल 2020

साथ हो माझी तो किनारा भी करीब है....



     मन थोड़ा विचलित सा हो रहा था.... शायद, अकेलेपन से घबड़ा रहा था.... सोची,  थोड़ी देर छत पर जा कर खुली हवा में  बैठती हूँ.... शायद,  थोड़ा अच्छा लगे। छत से समुन्द्र का नजारा भी सुंदर दिखता है... मैं कुर्सी पर बैठी-बैठी समुन्द्र की लहरों को देखती रही... पता नहीं,  क्या ढूँढ रही थी उसमे....शायद, एक झूठी उम्मींद सी थी कि - इसमें से कोई देवदूत बाहर आएगा और मुझे मेरी सारी समस्याओं से निजात मिल जायेगी । मेरी आँखें  पूरी समुन्द्र का मुआयना कर जैसे,  सचमुच कुछ ढूँढ रही थी। तभी लहरों पर हिचकोले लेती एक नाव दिखाई पड़ी... बिना नाविक के ...शायद,  किसी मछुआरे की नाव डोर से टूटकर समुन्द्र में बह आई थी। लहरों के साथ वो अल्हड़ सी नाव.... कभी इधर डोलती कभी उधर। लहरों और हवाओं का साथ पाकर कभी-कभी वो किनारे तक आने में सफल होती दिखाई पड़ रही थी....मगर,  जैसे लगता कि- अब तो वो किनारे पर आ ही जाएगी... तभी कोई बिपरीत लहर आकर उसे फिर से किनारे से दूर कर देती। उसे देख मेरी उत्सुकता बढ़ने लगी ...क्या ये नाव किनारे तक आ पायेगी ? दिल ने उसके लिए दुआ भी करनी शुरू कर दी....काश,  ये नाव किनारे तक सुरक्षित पहुँच  जाती... तो एक मछुआरे का नुकसान होने से बच जाता। पता नहीं कैसे,उस नाव को देखते-देखते मुझे ये लगने लगा जैसे वो नाव नहीं "मैं" खुद हूँ। मेरी जीवन नईया भी तो ऐसे ही डगमग डोल रही है...जब भी अथक प्रयास कर,  मैं अपनी मंजिल तक पहुँचने को होती हूँ... तभी कोई ना कोई बिपरीत परिस्थितियों  की लहर मुझे  धकेलती हुई फिर से मझधार में ला खड़ी करती है और "मैं" फिर से किनारे तक पहुँचने के जुगत में लग जाती हूँ....फिर से हिम्मत जुटती हूँ और फिर से एक नई शुरुआत करने को विवश हो जाती हूँ। क्या , इस नाव की तरह मैं भी हिचकोले ही खाती रहूँगी..... मुझे, अपना किनारा  कभी मिलेगा भी या नहीं?  अब तो मेरी उत्सुकता और बढ़ गई... ऐसा लगने लगा जैसे, अगर ये नाव किनारे पर आ लगेगी तो,  एक- न -एक  दिन अवश्य मैं  भी अपनी मंजिल पा ही लूँगी।
घंटों मैं  बैठी,  नाव को देखती रही.... नाव किनारे पर आने में असमर्थ होती और मेरा दिल बैठने लगता ..तभी दूर से एक और नाव आती दिखाई दी.... उसकी चाल देखकर लग रहा था वो बिना माझी  की नाव नहीं है... उसकी पतवार किसी ने सम्भाल रखी है....वो नाव धीरे-धीरे करीब आती गई... माझी ने मझधार में डोलती नाव पर कुछ काँटे जैसा फेका जिससे वो नाव माझी के हाथ में थमी उस मजबूत डोर से बँध गई , माझी उस नाव को साथ लेकर किनारे की तरफ बढ़ने लगा। दोनों नाव सही सलामत किनारे आ लगी थी। मेरी जान में जान आई... ऐसा लगा जैसे मुझे किनारा मिल गया हो। समझ में आ गया था कि -यदि माझी साथ हो तो नाव को किनारा जरूर नसीब होता हैं । मेरा माझी  भी तो हर पल मेरे साथ हैं... भले ही वो मुझसे दूर सही... मगर, एक मजबूत डोर से उसने मुझे खुद से बाँध रखा हैं....फिर,  मैं क्युँ डर रही हूँ ... देर से ही सही.... मुझे भी एक-न -एक दिन किनारा जरूर मिलेगा ....जब,  साथ हो माझी तो  किनारा भी करीब है....

27 टिप्‍पणियां:

  1. ओह्ह्ह कितने गहन भाव पिरोये हैं आपने कामिनी जी।
    मन डूबने गया इस भावनाओं की नदी में।
    मर्मस्पर्शी लेखन।

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    1. दिल से धन्यवाद श्वेता जी ,स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आभार आपका ,सादर नमन

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-04-2020) को     शब्द-सृजन-18 'किनारा' (चर्चा अंक-3683)    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. सहृदय धन्यवाद सर ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार आपका,सादर नमन

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  3. प्रिय कामिनी , नाव , मांझी , किनारा इन सबके बहाने बहुत ही भावपूर्ण चिंतन किया है तुमने अपने इस लेखन के द्वारा | जीवन रूपी नैया को एक स्नेही हमसफ़र मांझी बनकर पार उतार देता है | उसी की लालसा में इंसान हमेशा रहता है | मन की उथल -पुथल को बहुत ही मनोवैज्ञानिक ढंग से लिखा है तुमने | नाव और माझी एक दुसरे के पूरक हैं और एक दुसरे के तारनहार भी | तभी कवि ने लिखा -
    दूर ही रहते हैं उनसे किनारे -
    जिनको ना कोई माझी पार उतारे
    पास है माझी तो किनारा भी करीब है !
    सो , किनारे को पाने के लिए माझी को नैया का तो नैया को माझी का साथ जरुर चाहिए | भावस्पर्शी लेख के लिए शुभकामनाएं सखी |

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    1. दिल से धन्यवाद सखी ,तुम्हारी इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आभार एवं स्नेह

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  4. कभी एक कविता पढ़ी थी स्कूल के दिनों में--
    "लहरों से डर कर , नौका पार नहीं होती ।
    कोशिश करने वालों की , कभी हार नहीं होती ।।"
    अपने संकल्पों के लिए कई इम्तिहान आते हैं जिन्दगी में ..कई बार नैया अपने खिवैया के बिन अकेली भी होती है...लेकिन श्रम साधना के बाद किनारे पर पहुँचने का उत्साह द्विगुणित हो जाता है । भावपूर्ण लेखन के लिए बहुत बहुत बधाई🙏💐

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    1. दिल से धन्यवाद मीना जी ,मेरे लेख के मर्म को समझकर आपने जो ये स्नेहिल प्रतिक्रिया दिया हैं उसके लिए तहे दिल से शुक्रिया सखी ,सादर नमन

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  5. कठिन समय में हमारा साहस से हमें पार लगाता है
    बहुत अच्छी प्रस्तुति

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    1. सहृदय धन्यवाद कविता जी ,सही कहा आपने ,आपकी सार्थक प्रतिक्रिया हेतु आभार आपका ,सादर नमस्कार

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  6. सुंदर भाव पूर्ण लेखन!! भावनाओं का मंथन व्यक्ति को संवेदनशील बना देता है, और अपने दर्द को भूल वो दूसरे के
    हित की सोचने लगता है,उसमें उसे आनंद और संतोष मिलता है ।
    बहुत सुंदर कामिनी जी।

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    1. सहृदय धन्यवाद कुसुम जी ,आपकी सुंदर और सार्थक प्रतिक्रिया हेतु आभार आपका ,सादर नमस्कार

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  7. लेख भी कविता जैसे भाव उत्पन्न कर देता है कुछ ऐसा ही आदरणीया कामिनी जी का प्रस्तुत लेख। किनारे के विभिन्न पहलू समेटने की ख़ूबसूरत कोशिश।
    बधाई एवं शुभकामनाऍं।

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    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    2. सहृदय धन्यवाद सर ,आपकी सुंदर और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ ,दिल से आभार आपका ,सादर नमस्कार

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  8. कई बार माझी साथ न हो तो भी किनारा मिल जाता है आशा और उम्मीद का दामन साथ रहना चाहिए ... पर ये सच है माझी तो हो किनारा और आशा दोनों की उम्मीद कई गुना बड जाती है ...

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    1. सहृदय धन्यवाद दिगंबर जी ,आपने सही कहा -बिना माझी के भी अपने हिम्मत के बल पर किनारा मिल ही जाता हैं पर किसी का साथ हो तो मुश्किल सफर भी आसान होता हैं ,आपकी सुंदर और सार्थक प्रतिक्रिया हेतु आभार आपका ,सादर नमस्कार

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  9. कामिनी जी क्या खूब लिखते है आप बहुत खूब, जब में पढ़ रहा था तो पूरा उसी में खो गया। आपकी एक रचना "भाग्य और कर्म" भी पढ़ी थी, वह रचना तो मुझे मेरा अहसास करा गई थी जिसके लिए मैंने आपको mail भी किया था। इस रचना में भी आप जब अपने आप को उस नाव के लिए उत्सुक पाती है, तब मेरी भी उत्सुकता बड़ गई और अंत मे मुझे भी यह महसूस होने लगा कि हर नाव का एक किनारा है ........

    हालांकि मैं अभी शब्दों में इस प्रकार नही बयान कर सकता जिस प्रकार से सभी अपने शब्द आप तक पहुचाते है, पर इसी तरह आपके लेख पढ़ते पढ़ते मेरे पास भी एक दिन शब्दों का अथाह सागर होगा, इसी कामना के साथ कि ईश्वर करे कि आप इसी तरह अपनी लेखनी का जादू बिखेरती रहें।

    सधन्यवाद

    👍🏻👍🏻

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    1. आपका बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं। मैं भी आपके ब्लॉग को फॉलो कर चुकी हूँ जल्द ही आऊँगी आपके ब्लॉग पर। जहाँ तक आपके मेल की बात हैं तो शायद मैंने देखा नहीं और अब वो मिल नहीं रहा ,शायद मुझसे गलती से डिलीट हो गया हो,वरना मैं आपके मेल का जबाब जरूर देती। एक बार फिर से आभार आपका

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  10. भावपूर्ण अभिव्यक्ति सखी

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kaminisinha1971@gmail.com

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