शेखर उसके जख्मों का प्राथमिक उपचार कर रहा था ,उसके बहते खून को रोकने के प्रयास में लगा था और दीपक अपनी ही धुन में बोले जा रहा था। दोस्त-- देश के असली सैनिक हम नहीं ....देश के असली रक्षक तो वो हर एक माँ हैं ,वो हर एक पत्नी हैं... जो हमें मातृभूमि के प्रति अपना कर्तव्य निभाने की सहर्ष स्वीकृति ही नहीं देती बल्कि हमें अपना कर्तव्य निभाने की हिम्मत भी देती है.... हम तो मर के शहीद की उपाधि से सम्मानित होते हैं उन्हें तो कोई मेंडल या तगमें का स्वार्थ भी नहीं होता....हम तो मर कर मुक्ति भी पा लेते हैं ....मगर वो तो जीते जी मरने की सजा आजीवन पाती है ...और दोस्त कमाल की बात तो ये है कि - इस सजा को भी वो सजा नहीं मानती ...बल्कि बड़ी हिम्मत से अपना धर्म समझकर निभाती है।
शेखर भाई ,मेरा तो अंत समय आ गया हैं.....तुम मुझ पर एक एहसान करना ...तुम मेरी माँ तक मेरा एक संदेश पहुँचा देना....माँ से कहना - तुम ने सच कहा था माँ - " आज मातृभूमि पर न्योछावर होकर... उसकी गोद में सोकर... जो सुख मिल रहा हैं उस पर कई जीवन कुर्बान हैं " - दीपक गहरी साँस लेते हुए बोला।
शेखर भाई तुम सुन रहे हो न.... हाँ ,हाँ मैं सब सुन रहा हूँ दीपक.. अभी मदद के लिए कोई आता ही होगा तुम्हें कुछ नहीं होगा दोस्त - शेखर संतावना देते हुए बोला। शेखर की बातों को अनसुना कर दीपक बोले जा रहा था - शेखर भाई , तुम मेरी माँ को मेरा सेल्यूट देना ...मेरे सभी सैनिक दोस्तों के माँ को भी मेरा सेल्यूट देना ,कहना- वो धन्य है ...वो धन्य है ....वो देश की सच्ची पहरेदार है जिन्होंने हमें जन्म देकर देश का सैनिक बनने का गौरव प्रदान किया ...उन सभी पत्नियों को मेरा सेल्यूट देना - जिन्होंने देश के हित में अपने सर्वस्व सुख को न्योछावर कर दिया.... उन सभी को मेरा कोटि-कोटि नमन कहना... जिन्होंने अपने प्राण से प्यारों को देश के लिए हँसते-हँसते समर्पित कर दिया है - एक-एक शब्द बड़ी मुश्किल से बोलते हुए, दीपक ने सेल्यूट के लिए अपना हाथ उठाया और ...उसकी साँसों ने उसका साथ छोड़ दिया ...देश का एक और दीपक देश को रोशन करते-करते बुझ गया था ...
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" आज देश में फिर से युद्ध जैसी स्थिति हैं... यकीनन उससे भी ज्यादा चिंताजनक... देश के प्रत्येक व्यक्ति को एक सैनिक बनना हैं तभी हम ये युद्ध जीत पाएंगे। युद्ध भी ऐसा जिसमे ना बन्दूक उठाना हैं ना तलवार सिर्फ घर में छुपकर रहना हैं। इस वक़्त देश में सच्चे सैनिक का फ़र्ज़ अदा कर रहे हैं स्वस्थ सेवा से जुड़े सभी कर्मचरी ,सभी सुरक्षाकर्मी ,सभी सफाईकर्मी और मानवता के सेवा में जुटे वो प्रत्येक मानव जो रात दिन हमें बचाने के लिए अपने घर -परिवार से दूर प्रयासरत हैं .... सेल्यूट हैं उन्हें और उनके घरवालों को जिन्होंने अपने प्राणों से प्यारों को अनदेखे दुश्मन से लड़ने के लिए समर्पित कर दिया हैं। "कोटि -कोटि नमन उन्हें
भावों को बुनने में आप माहिर हैं । एक-एक क्षण का सजीव वर्णन, जैसे सब कुछ सामने घटित हो रहा हो। पढ़कर मन विभोर भी हुआ और थोडा विचलित भी। संदेशपरक इस प्रस्तुति हेतु साधुवाद आदरणीया कामिनी जी।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद पुरुषोत्तम जी ,आपकी प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ ,सादर नमन आपको
हटाएंबहुत सुन्दर भावप्रवण आलेख।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर ,आपकी प्रतिक्रिया सदैव मेरा उत्साहवर्धन करती हैं ,सादर नमन आपको
हटाएंबेहद हृदयस्पर्शी प्रस्तुति सखी
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया सखी ,सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभार आपका ,सादर नमन
हटाएंदिल से शुक्रिया अनीता जी ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार आपका
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी भावों को सुन्दर शब्दावली में गूँथ कर सार्थक और संदेशपरक लेखन में आप पारंगत हैं । सैनिकों के सम्मान में बेहतरीन भावाभिव्यक्ति कामिनी जी . सादर नमस्कार !
जवाब देंहटाएंमेरा उत्साहवर्धन करती आपकी इस अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से धन्यवाद मीना जी , सादर नमन आपको
हटाएंबहुत सुंदर कामिनी जी। आपकी यह पंक्तियाँ पाठक के दिलो दिमाग में लंबे समय तक प्रतिध्वनित होते रहती हैं : -
जवाब देंहटाएंदोस्त-- देश के असली सैनिक हम नहीं ....देश के असली रक्षक तो वो हर एक माँ हैं ,वो हर एक पत्नी हैं... जो हमें मातृभूमि के प्रति अपना कर्तव्य निभाने को सहर्ष स्वीकृति ही नहीं देती बल्कि हमें अपना कर्तव्य निभाने की हिम्मत भी देती हैं.... हम तो मर के शहीद की उपाधि से सम्मानित होते हैं उन्हें तो कोई मेंडल या तगमें का स्वार्थ भी नहीं होता....हम तो मर कर मुक्ति भी पा लेते हैं ....मगर वो तो जीते जी मरने की सजा आजीवन पाती हैं ...और दोस्त कमाल की बात तो ये हैं कि - इस सजा को भी वो सजा नहीं मानती ...बल्कि बड़ी हिम्मत से अपना धर्म समझकर निभाती हैं।
आभार और बधाई!!!
हृदयतल से धन्यवाद विश्वमोहन जी , मेरी रचना आपके परख की कसौटी पर खरी उतरी ये जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई ,सादर नमन आपको
हटाएंनिःशब्द हूँ
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया अनीता जी ,आपके प्रतिक्रिया ने मेरा उत्साहवर्धन किया , दिल से आभार, सादर नमन आपको
हटाएंहृदय स्पर्शी कथा ।
जवाब देंहटाएंसचमुच सैनिक के माता पिता पत्नी और परिवार जन सदा समयमान के हकदार है।
कथा के अंत में आपने बहुत सुंदर संदेश दिया है कामिनी जी आपका लेखन सदा भावात्मक रिश्ता बना लेते हैं ।
अभिनव।
तहे दिल से शुक्रिया कुसुम जी ,आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया हमेशा मुझे कुछ और अच्छा लिखने को उत्साहित करती हैं , हृदयतल से आभार आपका , सादर नमन आपको
हटाएंबहुत मार्मिक कथा सखी ।सचमुच सैनिक की माँ-बहनों का त्याग भी कम नहीं। जब वह सेवा में भरती होता है तभी से उनका हृ डरा रहता है। हृदय स्पर्शी ।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सुजाता जी ,आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभार आपका , सादर नमन आपको
हटाएंहृदयस्पर्शी कथा। सैनिक के संवाद हृदय को चीर देते हैं। कहानी के अंत में सटीक संदेश दिया गया है। सचमुच वे सभी लोग जो हम तक सामान पहुँचा रहे हैं, अस्पतालों में काम कर रहे हैं, पुलिस, डॉक्टर जो अपना जीवन खतरे में डालकर सब सुचारू रूप से सँभालने की जी तोड़ कोशिश में लगे हैं, वे हृदय से धन्यवाद के पात्र हैं। हम उनका ऋण कभी नहीं चुका पाएँगे।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद मीना जी, मेरी रचना आपके हृदय तक पहुंचने में सक्षम रही ये जान कर हार्दिक प्रसन्नता हुई ,आज देश के असली सैनिक अस्पतालों में काम कर रहे हैं सभी डॉक्टर और सहकर्मी , पुलिसकर्मी ,सफाई कर्मचारी और मानवता के सेवा में जुटे वो सभी नागरिक हैं ,हम उनके कर्जदार हो गए हैं मीना जी ,आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार , सादर नमन आपको
हटाएंहृदयतल से धन्यवाद ओंकार जी ,आपकी इस अनमोल प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार, सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया श्वेता जी ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए दिल से आभार, सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंप्रिय कामिनी , बहुत मार्मिक कथा है सखी | एक शहीद के अंतिम पलों की यही कहानी रहती होगी | आखिर हम ही तो उसे मसीहा मानकर उसकी भावनाओं को दरकिनार कर देते हैं पर आखिर को एक सैनिक भी तो एक इंसान ही है | उसमें भी मानवीय भावनायें उमड़ती होंगी | और पलपल जिन्दगी के उतार -चढ़ाव के बीच दुसरा मोर्चा संभालती उनकी माएं , पत्नियाँ . बहने और बेटियां उनसे किसी भी हाल में कम नहीं |उनके ना रहने की स्थित में जीवन की अंतहीन जंग को लड़ते परिजन पल पल वंदन के अधिकारी हैं | इस मर्म स्पर्शी कथा के लिए कोटि आभार सखी | देश के जवान सीमा पर युद्ध में रखवाले हैं तो संकटकाल में उनसा मसीहा कोई नहीं | वे आज मानवीय सेवा भावना से हरेक मन के दुलारे बने हैं आज उनका धैर्य बहुत अनुकरणीय है | --
जवाब देंहटाएंयुद्धभूमि में वीर तुम
संकटकाल में धीर तुम
माँ जननी के सिंहसुत
रख देते दुश्मन को चीर तुम!!
हार्दिक स्नेह और शुभकामनाएं|
बहुत बहुत धन्यवाद सखी ,तुम्हारी प्रतिक्रिया तो लेखन को सार्थक कर देती हैं ,शहीदों के सम्मान में तुम्हारी ये चंद पंक्तियाँ तो प्रशंसा से परे हैं ,दिल से आभार सखी
हटाएंबहुत ही सुन्दर हृदयस्पर्शी कथा लिखी है कामिनी जी !युद्धभूमि में घायल वीर सैनिक का अपनी माँ के जज्बे को नमन...वाह!!!!सार्थक संदेश देती लाजवाब कथा हेतु बहुत बहुत बधाई आपको।
जवाब देंहटाएंसहमत आपकी बात से ... आज के सैनिक हर हालात में हमारे बचाव के लिए ... राष्ट्र के लिए अनजान दुश्मन के सामने खड़े हैं ... जितना भी सम्मान हो उनके लिए कम है आज ... हर कोई सिपाही है जो आज बाहर रह कर हम सब की जिंदगी सुचारू कर रहा है ...
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