शुक्रवार, 20 सितंबर 2019

जाने चले जाते हैं कहाँ .....

                       

                                 जाने चले जाते हैं कहाँ ,दुनिया से जाने वाले, जाने चले जाते हैं कहाँ 
                                                  कैसे ढूढ़े कोई उनको ,नहीं क़दमों के निशां 

     अक्सर, मैं भी यही सोचती हूँ आखिर दुनिया से जाने वाले कहाँ चले जाते हैं ? कहते हैं  इस जहाँ  से परे भी कोई जहाँ है, हमें छोड़ शायद वो उसी अलौकिक जहाँ में चले जाते हैं। क्या सचमुच ऐसी कोई दुनिया है ? क्या सचमुच आत्मा अमर है ? क्या वो हमसे बिछड़कर भी हमें देख सुन सकती है? क्या वो आत्माएं भी खुद को हमारी भावनाओं से जोड़ पाती है ? क्या वो दूसरे जहाँ में जाने के बाद भी हमें  हँसते देखकर खुश होते हैं और हमें  उदास देख वो भी उदास हो जाते हैं ? श्राद्ध के दिन चल रहे हैं सारे लोग पितरो के आत्मा की तृप्ति के लिए पूजा-पाठ ,दान-पुण्य कर रहे हैं, क्या हमारे द्वारा  किये हुए दान और तर्पण हमसे बिछड़े हमारे प्रियजनों की आत्मा तक पहुंचते हैं और उन्हें तृप्त करते हैं ? ऐसे अनगिनत सवाल मन में उमड़ते रहते हैं ,ये सारी बाते सत्य है या मिथ्य ?

      युगों से श्राद्ध के विधि-विधान चले आ रहे हैं, हम सब अपने पितरो एवं प्रियजनों के आत्मा की शांति के लिए पूजा-पाठ, दान-पुण्य और जल तर्पण करते आ रहे हैं। आत्मा जैसी कोई चीज़ का इस ब्रह्माण्ड में आस्तित्व तो है इसकी पुष्टि तो विज्ञान भी कर चूका है। पर क्या इन बाहरी क्रियाकलापों से आत्मा को तृप्ति मिलती होगी ? मुझे नहीं पता आत्मा तिल और जल के तर्पण से तृप्त होती है या ब्राह्मणों को भोजन कराने से ,गाय और कौओ को रोटी खिलाने से या गरीबों में वस्त्र और भोजन बांटने से, मंदिरो में दान करने से या पूजा-पाठ-हवन आदि करने से। 

     मुझे तो बस इतना महसूस होता है कि हमसे बिछड़ें  हमारे प्रियजनों की आत्मा  एक अदृश्य तरगों के रूप में हमारे  इर्द-गिर्द तो जरूर रहती है और हमें  दुखी  देख तड़पती है और हमें  खुश देखकर संतुष्ट होती है, उनके द्वारा  दिए गए अच्छे संस्कारों का जब हम पालन करते हैं तो उन्हें शांति मिलती है,  अपने प्रियजनों को सुखी और संतुष्ट देख उन्हें तृप्ति मिलती है  और हमारे सतकर्मो  से उन्हें मोक्ष मिलती है। 


     मुझे तो यही महसूस होता है, जिन्हे हम प्यार करते हैं वो आत्माएं शायद हमारे आस-पास ही होती है वो भी  अनदेखी  हवाओं की तरह बस हमें  छूकर गुजर जाती है।उन्हें याद करके एक पल के लिए आँखें मूंदते ही हमें  उनका स्पर्श महसूस होने लगता है। हम ही उन्हें महसूस नहीं करते शायद वो भी हमारे सुख-दुःख, आँसू और हँसी को महसूस करते  होंगे तभी तो यदा-कदा हमारे  सपनो में आकर  हमें  दिलासा भी दे जाते हैं और कभी-कभी तो अपने होने का एहसास भी करा जाते  हैं । 


     शायद, मृतक आत्माओं के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि ही श्राद्ध है। सिर्फ विधि-विधान का अनुसरण नहीं बल्कि हर वो कार्य जिसमे परहित छुपा हो और पूरी श्रद्धा के साथ की गयी हो, अपने पितरो के प्रति आदर ,सम्मान और प्यार के भावना के साथ की गई हो, अपने पितरो के सिर्फ सतकर्मो को याद करके की गई हो वही सच्ची श्रद्धांजलि है। 

       शायद, ये श्राद्धपक्ष सिर्फ हमें  हमारे पितरो और प्रियेजनों की याद दिलाने ही नहीं आता बल्कि हमें  ये याद दिलाने के लिए भी आता है कि -एक दिन हमें  भी इस जहाँ को छोड़ उस अलौकिक जहाँ में जाना है जहाँ  साथ कोई नहीं होगा  सिर्फ अपने कर्म ही साथ जायेगे और पीछे छोड़ जायेगे अपनी अच्छे कर्मो की दांस्ता और प्यारी सी यादें  जो हमारे प्रियजनो के दिलो में हमारे लिए हमेशा जिन्दा रहेगी और वो अच्छी यादें हमारे वर्तमान व्यक्तित्व पर ही निर्भर करेगी। 

     गलत कहते हैं लोग -"खाली हाथ आये थे हम ,खाली हाथ जायेगे" ना हम खाली हाथ आये है ना खाली जायेगे। हम जब जायेगे तो साथ अपने कर्मो का पिटारा लेकर जायेगे और जब भी फिर इस जहाँ में वापस आना होगा तो उन्ही कर्मो के हिसाब से अपने हाथों  में अपने भाग्य की लकीरें ले कर आयेगे। हाँ,भौतिक सुख-सुविधा के सामान और अपने प्रिये यही पीछे छूट जायेगे। 

     यकीनन,ये श्राद्ध हमें  याद दिलाने आता है कि -इस दुनिया में तुम्हारा आना-जाना लगा रहेंगा और तुम्हारे कर्म ही तुम्हारे सच्चे साथी है। इस श्राद्धपक्ष मैं अपने  प्रिय पापा और भाई तुल्य बहनोई जो मुझे भी अपनी बड़ी बहन समान सम्मान और स्नेह देते थे उनके प्रति अपनी सच्चीश्रद्धांजलि अर्पित करती हूँ और उन्हें ये वचन भी देती हूँ कि-मैं उनके अधूरे कामो को, अधूरे सपनो को पूरा करने की पूरी ईमानदारी से कोशिश करुँगी। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।    

41 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर सार्थक तथ्यपरक समसामयिक लेख । ईश्वर आपके भाईतुल्य बहनोई की आत्मा शांति दें 🙏 आपका वचन ही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि है ।

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    1. सह्रदय धन्यवाद मीना जी ,आपने मेरे लेख पर इतनी सुंदर टिपण्णी कर एक बार फिर से मुझे प्रोत्साहित किया हैं ,यकीनन अब मैं फिर से कलम उठाने की कोशिश करुँगी ,सादर नमस्कार आप को।

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  2. सखी कामिनी जी आपका लेख बिना किसी पर आघात किये संयत शब्दों में अपने कोमल भावों की अभिव्यक्ति है ।साथ ही जाने वाले प्रिय जनों के प्रति सच्ची श्रद्धा है कि उनके द्वारा अधुरे छोड़े कार्यो को पूरा करना और उनके आदर्शों को निभाना । मुझे बहुत अच्छा लगा आपका ये लेख।

    कामिनी बहन श्राद्ध के बारे में हर धर्मावलंबियों का अलग विचार है,और आस्था पर कुछ भी कहना मैं अच्छा नही समझती ,हम लोग श्राद्ध नहीं मानते हमारी मान्यतानुसार आत्मा शरीर त्यागते ही एक क्षण में नया शरीर धारण कर लेती है हमसे उसका कोई लेना देना नहीं होता ,हमने जिस काया के साथ अपने रिश्ते बनाए थे बस वो भर हमारी स्मृति में रहते हैं और जाने वाले जीव को हमसे कोई वास्ता नहीं रहता। अपवाद स्वरूप पूर्व कर्मो के बंधन(अच्छे या बुरे ) स्वरूप वो हमारे आसपास अपना बन कर आ तो सकता है पर सारी स्मृतियों के विहिन ।
    रही बात मनाने न मनाने की तो कल मैंने एक अद्भुत लेख पढ़ा जो मैं यहां शेयर कर रही हूं मूझे नहीं पता इसमें कितनी वैज्ञानिकता है पर कुछ अलग से उच्च भाव हैं तो मन को भाये ...


    *श्राद्ध किस लिए करना है?*

    क्या हमारे ऋषि मुनि पागल थे?
    जो कौवौ के लिए खीर बनाने को कहते थे?
    और कहते थे कि कव्वौ को खिलाएंगे तो हमारे पूर्वजों को मिल जाएगा?
    नहीं, हमारे ऋषि मुनि क्रांतिकारी विचारों के थे।
    *यह है सही कारण।*

    तुमने किसी भी दिन पीपल और बड़ के पौधे लगाए हैं?
    या किसी को लगाते हुए देखा है?
    क्या पीपल या बड़ के बीज मिलते हैं?
    इसका जवाब है ना.. नहीं....
    बड़ या पीपल की कलम जितनी चाहे उतनी रोपने की कोशिश करो परंतु नहीं लगेगी।
    कारण प्रकृति/कुदरत ने यह दोनों उपयोगी वृक्षों को लगाने के लिए अलग ही व्यवस्था कर रखी है।
    यह दोनों वृक्षों के टेटे कव्वे खाते हैं और उनके पेट में ही बीज की प्रोसेसिंग होती है और तब जाकर बीज उगने लायक होते हैं। उसके पश्चात
    कौवे जहां-जहां बीट करते हैं वहां वहां पर यह दोनों वृक्ष उगते हैं
    पिपल जगत का एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो round-the-clock ऑक्सीजन O2 छोड़ता है और बड़ के औषधि गुण अपरम्पार है।
    देखो अगर यह दोनों वृक्षों को उगाना है तो बिना कौवे की मदद से संभव नहीं है इसलिए कव्वे को बचाना पड़ेगा।
    और यह होगा कैसे?
    मादा कौआ भादर महीने में अंडा देती है और नवजात बच्चा पैदा होता है।
    तो इस नयी पीडी के उपयोगी पक्षी को पौष्टिक और भरपूर आहार मिलना जरूरी है इसलिए ऋषि मुनियों ने
    कव्वौ के नवजात बच्चों के लिए हर छत पर श्राघ्द के रूप मे पौष्टिक आहार
    की व्यवस्था कर दी।
    जिससे कि कौवौ की नई जनरेशन का पालन पोषण हो जायें.......

    इसलिए दिमाग को दौड़ाए बिना श्राघ्द करना प्रकृति के रक्षण के लिए और
    घ्यान रखना जब भी बड़ और पीपल के पेड़ को देखो तो अपने पूर्वज तो याद आयेगे ही क्योंकि उन्होंने श्राद्ध दिया था इसीलिए यह दोनों उपयोगी पेड़ हम देख रहे है‌

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    1. कुसुम जी ,सर्वपर्थम तो आप को तहे दिल से शुक्रिया जो आपको मेरा लेख पसंद आया। आपने सही कहा -मैंने सिर्फ अपनी भावनाएं व्यक्त की हैं। आप का बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने हम सब से इतना ज्ञानवर्धक लेख साझा किया। मैं भी इस मत से सत प्रतिशत सहमत भी कि हमारे पूर्वजो द्वारा बनाये गए प्रतीक नियम -कानून और विधि -विधान के पीछे बड़ी गहरी वैज्ञानिकता छिपी थी लेकिन हमने सिर्फ उससे कर्मकांड बना दिया ना उसका वैज्ञानिक पहलु के बारे में सोचा ना भावनात्मक पहलु के बारे। जिसने भी ये लेख लिखा हैं उसको सहृदय धन्यवाद ,सादर नमस्कार आप को।

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    2. प्रिय कुसुम बहन -- आपके विचारों और शेयर किये गये इस ज्ञानवर्धक लेख से बहुत कुछ जाना | आपकी ये टिप्पणी अनमोल है | आपका बहुत बहुत आभार इन संवेदनशील और ज्ञानवर्धक उद्गारों के लिए जो आपके उदात्त और निष्कलुष व्यक्तित्व का दर्पण हैं |

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (21-09-2019) को " इक मुठ्ठी उजाला "(चर्चा अंक- 3465) पर भी होगी।


    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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    1. सहृदय धन्यवाद अनीता जी मेरे लेख को साझा करने के लिए ,सादर स्नेह

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  4. कामिनी जी ,बहुत ही खूबसूरती से आपनें दिल के भावों को अभिव्यक्त किया है ।आपके भाई तुल्य बहनोई को आपकी सच्ची श्रद्धांजलि है 🙏

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    1. आप को तहे दिल से शुक्रिया शुभा जी , आपको मेरा लेख पसंद आया ये जानकर ख़ुशी हुई ,सादर

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  5. कामिनी जी श्राद्ध के संदर्भ में आपने बड़े ही सहज भाव से अपने विचार रखें , मानव के सतकर्म को पितरों से जोड़ा साथ ही एक पीड़ा भी इसमें समाहित रही, अपनों को खोने का , तो कुसुम दी ने इसका वैज्ञानिक पक्ष रखा..।
    मेरा तो बस इतना ही मानना है कि यह श्राद्धकर्म है न , इसके माध्यम से हम स्वयं और अपने संतानों को भी अपने पूर्वजों से भावनात्मक रूप से जोड़ते हैं। अत्यधिक आडंबर को तो मैं पसंद नहीं करता , फिर भी बाल्यावस्था में अपने अभिभावकों को श्राद्ध कर करते देख निश्चित ही दादा जी की एक विशिष्ट छवि उस बालक के मासूम हृदय में बस गयी थी, जो आज भी कायम है।
    सादर प्रणाम आप सभी को।

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    1. आपने बिलकुल सही कहा -शायद ये कर्मकांड इसीलिए बने होंगे कि हम खुद को अपने पूर्वजो से अपने प्रिये जनो से खुद को भावनात्मक रूप से जोड़े रखे ,मेरे लेख को पसंद करने के लिए सहृदय धन्यवाद शशि जी ,सादर नमस्कार

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  6. कामिनी दी, अपने मन के भावों को बहुत ही खुबसुरती से बयान किया हैं आपने। ईश्वर आपके भाईतुल्य बहनोई की आत्मा शांति दें...मेरे पापा को भी गए सिर्फ़ 25 दिन ही हुए हैं। अपनों को खोने का दर्द क्या होता हैं ये मैं अच्छे से समझ रहीं हूं। इसी विषय पर मेरा लेख पढिए https://www.jyotidehliwal.com/2014/09/blog-post_7.html

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    1. आप को तहे दिल से शुक्रिया ज्योति जी ,आप के पापा के बारे में जानकर बहुत दुःख हुआ ,मैं आपका लेख जरूर पढूंगी ,हम सब तो बस खुद के दिल के सुकून के लिए अपने प्रियजनों के लिए दो शब्द लिख लेते हैं वही हमारी श्रधांजलि हैं ,सादर

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    2. प्रिय ज्योति बहन , बहुत दुःख हुआ जानकर | उससे भी ज्यादा इसलिए कि मुझे पता नहीं चल पाया | मैं भी जरुर आऊंगी आपके ब्लॉग पर | स्नेहिल पिता को खोना जीवन की अपूर्णीय क्षति है |

      हटाएं
    3. ज्योति जी आपके ब्लॉग का लिंक खुल नहीं रहा हैं शायद कुछ त्रुटि हैं।

      हटाएं

  7. जय मां हाटेशवरी.......
    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    22/09/2019 रविवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में. .....
    सादर आमंत्रित है......

    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    http s://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

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    1. सहृदय धन्यवाद सर , मेरे लेख को साझा करने के लिए ,सादर नमस्कार आपको

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  8. श्राद्ध हमारे पूर्वजों के प्रति हमारी श्रद्धा है...और इन सभी रीति रिवाजों का कोई न कोई कल्याणकारी वैज्ञानिक तथ्य....
    आपका लेख अपनों के लिए तहेदिल से श्रद्धांजलि है श्राद्ध पक्ष में अपनों की यादें ताजा जाती हैं हम उनके सुकर्मों को याद कर उनका अनुसरण करते हैं
    आपने लिखा कि आप उनके अधूरे छोड़े सपनों को पूरा करने की पूरी कोशिश करेंगें ये बहुत बड़ी शिक्षा है सभी के लिए....उनकी स्मृति में रोने धोने के वजाय उनके सपनो को साकार करना ही हमारा फर्ज भी है और सच्ची श्रद्धांजलि भी...
    लाजवाब लेख के लिए बहुत बहुत बधाई आपको...

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  9. सहृदय धन्यवाद सुधा जी ,आपकी प्रतिक्रिया हमेसा मेरा मनोबल बढाती हैं ,सादर

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  10. प्रिय कामिनी , तुम्हारे लेख को मैंने कल ही पढ़ लिया था पर भावनाओं से भरे लेख पर लिखने के लिए मैं बहुत चिंतन करती रही | श्राद्ध को बहुत ही अलग नजरिये से देखती तुम्हारी दृष्टि का दर्पण है ये लेख | सब की तरह मुझे भी नहीं पता जीवन के उस पार जाने वाले कहाँ जा बसते हैं पर उनकी यादों से भाव विहल स्वजन किस दर्द से गुजरते हैं यह वो जानते हैं जो भुक्तभोगी हैं अथवा ईश्वर | असमय काल में समाए वाले व्यक्ति के साथ उसके परिजनों के अनेक सपने भी ध्वस्त हो जाते हैं | मैं जानती हूँ तुम कितनी व्याकुल थी जब तुम्हे अपने भाई तुल्य बहनोई की लाइलाज बिमारी के बारे में पता चला | अपनी सरल मासूम बहन के लिए तुम्हारी व्यथा का अंत नहीं था , पर नियति के फैसले इन्सान कभी मोड़ नहीं पाया है | वे हर हाल में मानने ही पड़ते हैं | फिर भी दिवंगत के अधूरे सपनों को पूरा करने का संकल्प उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है | और किसी भी औपचारिक क्रिया - कलाप से कहीं श्रेष्ठ है | मुझे पता है तुम ये सब बहुत ही बेहतरीन ढंग से अपनी बहन के साथ चट्टान की तरह खड़े होकर मजबूत सहारा बनोगी | भले श्राद्धों पर अनगिन मत दिए गये , पर अगर सहजता से कहें तो ये अपनों को श्रद्धा से स्मरण करने का मात्र बहाना है | हम उन लोगों के लिए अपना स्नेह और सम्मान प्रकट करते हैं जो हमारे लिए जीते जी बहुत कुछ करते रहे और विरासत में हमें बहुत कुछ सौंप कर गये | तुम अपने संकल्प को भली भांति पूरा करो यही दुआ है | ईश्वर तुम्हें तन -मन की अदम्य शक्ति प्रदान करे |

    दुनिया से जाने वालों के नाम --

    लाख बहाए हमने आंसूं -- ना लौटे वो जाने वाले -
    जाने कहाँ बसाई बस्ती -- तोड़ निकल गये मन के शिवाले !!!!!

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    1. प्रिये रेणु ,तुम्हारी स्नेहभरी दुआऐ मेरे आत्मबल को दृढ़ता प्रदान कर रही हैं ,हां,सखी मुश्किल वचन लिया हैं मैंने ,मेरे बहन के बच्चे मुझे माँ तुल्य मानते हैं और मेरे मुँख से निकला हर शब्द उनके लिए मार्गदर्शन हैं ,तो मेरी जिम्मेदारी बहुत बढ़ गई हैं ,मेरी भी यही प्रार्थना हैं ईश्वर मुझे शक्ति दे। और आखिर में जाने वालो के याद में जो तुमने दो पक्तियां लिखी हैं उसने तो भावविभोर कर दिया ,सहृदय धन्यवाद सखी

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  11. जी कामिनी जी,
    इहलोक परलोक के रहस्यों की गुत्थियों को सुलझाने में कौन सक्षम है भला?
    सृष्टि में मानव जीवन सबसे बहुमूल्य उपहार है ऐसा प्रतीत होता है जीवन मरण अलिखित है कब किसे आना है और जग छोड़कर कब किसे जाना यह किसी को नहीं पता।
    जग में रिश्ते-नाते भावनाओं और माया के वशीभूत होते है।
    हमारे कर्मकांडों में आडंबर की अधिकता है,बिना सोचे-समझे अंधपरंपराओं का आँखें मूँदे हम निर्वाहन करते है और विरोध करने पर या बदलाव की माँग पर तिरस्कृत किये जाते हैं।
    सच कहे तो हम हमेशा से यही सोचते रहे जो चले जाते है हमारे बीच से उनतक हमारी अनुभूतियाँ शायद पहुँच भी जाये पर पिंड दान के नाम पर किया जाने वाला कर्म दान पहुँच पाना नामुमकिन है।
    हम जीते-जी अपने आत्मीय परिजनों को मान-सम्मान दे पाये अपने कर्मों के द्वारा उनका मन न दुखाये तो इसी जीवन में स्वार्गिक सुख देकर हम अपने प्रिय सभी आत्माओं को सशरीर तृप्त कर सकते है।
    मुझे श्राद्ध जैसे आडंबरयुक्त कर्मकांड में विश्वास नहीं।
    क्षमा चाहेंगे अगर कुछ अनुचित लिख दिये हो तो।
    आपका यह लेख भाव और विचारों का सुंदर मिश्रण है।

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    1. "हम जीते-जी अपने आत्मीय परिजनों को मान-सम्मान दे पाये अपने कर्मों के द्वारा उनका मन न दुखाये तो इसी जीवन में स्वार्गिक सुख देकर हम अपने प्रिय सभी आत्माओं को सशरीर तृप्त कर सकते है।"
      श्वेता जी ,ये बात अपने बिलकुल सही कहा। इस लेख पर सभी की प्रतिक्रिया से यही स्पष्ट हो रहा हैं कि सब के दृष्टिकोण में वैज्ञानिकता समाहित हैं बस अभी तक हम रूरीवादिता को तोड़ने का साहस नहीं कर पा रहे हैं। आपके विचार बहुत ही उत्तम हैं।मैंने तो अपने लेख में सिर्फ अपनी भावनाएं वयक्त की हैं। मेरे लेख पर इतनी अच्छी प्रतिक्रिया देने के लिए सहृदय धन्यवाद

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  12. जाने चले जाते हैं कहाँ ,
    दुनिया से जाने वाले,
    जाने चले जाते हैं कहाँ कैसे ढूढ़े कोई उनको ,
    नहीं क़दमों के निशां । सही कहा सखी श्राद्ध हमे याद दिलाने आते हैं कि -इस दुनिया में तुम्हारा आना जाना लगा रहेगा और तुम्हारे कर्म ही तुम्हारे सच्चे साथी हैं। और कुछ नहीं.. हमारे जो अपने जो हमें छोड़कर चले गए हैं उनका अहसास तो सदा हमें उनकी याद दिलाता रहता है। हमारे साथ आशीर्वाद के रूप में रहता है।आपके भाई तुल्य बहनोई को आपकी सच्ची श्रद्धांजलि है। बेहद हृदयस्पर्शी प्रस्तुति

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    1. सहृदय धन्यवाद सखी ,अपनी अनमोल प्रतिक्रिया देने के लिए आभार

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  13. बहुत ही सुंदर और सार्थक लेख प्रिय कामिनी जी।आत्मा का आना-जाना होना सभी कुछ होता है।पर प्रत्यक्ष रूप में हमारे पास नहीं होने से दुःख होता है।खासकर समय से पूर्व जाने वाले के लिए। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि हमारा वश चले तो हम उन्हें पकड़कर रख लें।

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    1. "हमारा वश चले तो हम उन्हें पकड़कर रख लें।" हाँ,चाहत तो यही होती है मगर संभव तो नहीं हो सकता न। सहृदय धन्यवाद सुजाता जी,इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आभार

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  14. श्राद्ध कहते ही उन्हीं कर्मों को हैं जो हम अपने पूर्वजों की स्मृति में श्रद्धा पूर्वक करते हैं, आपने अत्यंत सुंदर शब्दों में श्राद्ध के महत्व को दर्शाते हुए उसके हर पहलू पर अपने विचार रखे हैं.

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    1. सहृदय धन्यवाद अनीता जी,बिलकुल सही कहा आपने -श्रद्धा का दूसरा नाम ही तो श्राद्ध है ,इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आभार

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  15. आपने बहुत सुंदर आलेख लिखा है
    हमारे सुंदर कर्मों से ही पितृगण खुश होते हैं

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    1. दिल से शुक्रिया भारती जी,आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आभार एवं नमन

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  16. आदरणीय मेम ,
    हम अपने सभी पर्व प्रकृति और अपनों के संग मनाते है । यहाँ तक की जो हमारे बीच नहीं है हमसे बिछुड़ गये है उनको भी याद करने और अपने बीच महसूस करने हेतु भी पर्व है । श्राद्ध भी कुछ ऐसा ही पर्व है जो उन्हे अपनी यादों से उन्हे बिछुड़ने नहीं देता है । इस भाग दौड़ भरी ज़िंदगी में इन पर्वों के माध्यम से हम उन्हे प्यार , सम्मान और आदर से याद कर उन्हें अपने से अलग होने नहीं होने देते हैं ।
    यह एक जिज्ञासा का विषय है की हमसे बिछुड़ कर हमारे अपने कहाँ चले जाते हैं , वे हमें देखते है या नहीं हमारी अच्छी बातों पर खुश होते है नहीं ।
    ऐसे मौके पर उनके सत्कर्मों को याद कर एवं अपने पीछे छोड़ गये अधूरे कामों अथवा जिम्मेदारियों को पूर्ण करके हम उन्हे सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते हैं ।

    सुंदर आलेख , बहुत शुभकामनायें ।

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    1. विस्तृत और सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु सह्रदय धन्यवाद दीपक जी,सादर

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  17. मुझे तो यही महसूस होता है, जिन्हे हम प्यार करते हैं वो आत्माएं शायद हमारे आस-पास ही होती है वो भी अनदेखी हवाओं की तरह बस हमें छूकर गुजर जाती है।उन्हें याद करके एक पल के लिए आँखें मूंदते ही हमें उनका स्पर्श महसूस होने लगता है। हम ही उन्हें महसूस नहीं करते शायद वो भी हमारे सुख-दुःख, आँसू और हँसी को महसूस करते होंगे तभी तो यदा-कदा हमारे सपनो में आकर हमें दिलासा भी दे जाते हैं और कभी-कभी तो अपने होने का एहसास भी करा जाते हैं ।
    वाकई गहन अनुभूतियों वाला आपका आलेख है...। सच यदि महसूस किया जाए तो सबकुछ महसूस होता है बहुत गहन। खूब अच्छा आलेख है आपका। खूब बधाई आपको।

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    1. सरहनासम्पन्न और सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु सह्रदय धन्यवाद संदीप जी,सादर नमन

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  18. गहन विषय गहन चिंतन।
    मैं पहले अपने भाव लिख चुकी कामिनी जी ।
    आपके लेख से हुए और ठोस आधार लिए होते हैं।
    सस्नेह।

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    1. एक बार फिर से उपस्थित होकर अपनी भावनाओं को साझा करने के लिए हृदयतल से आभार कुसुम जी,सादर नमन

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  19. आज हर प्रतिक्रिया फिर से पढ़ी, सब प्रायः आड़म्बरों से दूर रहना चाहते हैं पर हम अपनी परम्पराओं को सम्मान भी देते हैं, और यह भी पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का एक स्वरूप है, इन सब प्रक्रियाओं को करते समय लोकोपयोगी क्रियाएं निर्वहन करते चलें और जो आड़म्बर हैं छोड़ ये चले।
    हर समय के लिए प्रेरक लेख।

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    1. आप का मेरी लेख पर तीसरी बार प्रतिक्रिया देना मेरे लेख को पूर्णता प्रदान कर रहा है कुसुम जी आप को बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा कि परम्पराओं को सम्मान देना भी पुर्वजों के प्रति श्रद्धा ही है बस जरूरत है परम्पराओं को आडम्बर ना बनने दें। एक बार फिर से तहे दिल से शुक्रिया एवं सादर नमस्कार 🙏

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  20. कामिनी जी, आप ऐसे ही क्रांतिकारी विचार व्यक्त करती रहिए.
    यहाँ आपको सावधान करना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ -
    पोंगा-पंडितों से और परम्परावादियों से आपको जान का खतरा है. अपने घर में और घर से बाहर निकलते समय भी, हर हाल में अपनी सुरक्षा का समुचित प्रबंध रखिएगा.
    पुरखों की स्मृति में निर्धन विद्यार्थियों की मदद कर के, औषधि दान कर के, वृक्षारोपण कर के, बाल-कल्याण और नारी-कल्याण के क्षेत्र में उपयोगी कार्य कर के हम सब भगवान का प्यार तो पा सकते हैं लेकिन समाज के इन पैरासाइट्स को खुश नहीं कर सकते.
    अब यह हमारे ऊपर है कि हम कौन सा रास्ता अपनाएं.

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  21. ☺️ मैं आपकी आज्ञा मानकर जरुर सावधान रहूंगी सर, अच्छा हुआ आपने मुझे सचेत कर दिया,☺️
    आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया पाकर लेखन सार्थक हुआ। हृदय तल से धन्यवाद एवं आभार
    सादर नमस्कार 🙏

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"हमारी जागरूकता ही प्राकृतिक त्रासदी को रोक सकती है "

मानव सभ्यता के विकास में नदियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है तो उनकी वजह आने वाली बाढ़ भी हमारी नियति है। हज़ारों वर्षों से नदियों के पानी क...