शनिवार, 20 अक्टूबर 2018

प्यार एक रूप अनेक


" प्यार क्या है ? " सदियों से ये सवाल सब के दिलों में उठता रहा है और सदियों तक उठता रहेंगा। सबने इस सवाल का जबाब ढूढ़नें की पूरी कोशिश भी की है। "प्यार" शब्द अपने आप में इतना व्यापक  और विस्तृत  है कि -इसकी व्याख्या  करना बड़े-बड़ों  के लिए भी काफी मुश्किल रहा है तो मेरे  जैसे छोटे कलमकारों की क्या बिसात  जो इसके बारें में कुछ लिखे .लेकिन फिर भी मैं ये हिमाकत कर रही हूँ। अपने जीवन के अनुभव से जो कुछ भी मैंने जाना और समझा है वही आप सब से साझा कर रही हूँ। .और पढ़िए 
     " प्यार " शब्द तो एक है लेकिन इसके रूप अनेक है माँ बाप का प्यार ,भाई बहन का प्यार, पति- पत्नी का प्यार, दोस्तों का प्यार, प्रेमी- प्रेमिका का प्यार और भगवान-भक्त का प्यार। ये सब तो प्यार के ही रूप है लेकिन देखा ये जाता है कि इन सारे प्यार के रूपों में सब से ज्यादा चर्चे सिर्फ दो रूपों की होती हैं। उनके ही किस्से कहानियाँ  हमेशा से सुनने को मिलते आ रहे हैं।  वो है प्रेमी-प्रेमिका का प्यार और भक्त का भगवान से  प्यार ,बाकी प्यार जैसे माँ बाप से बच्चों का प्यार, भाई बहन का प्यार और दोस्ती के किस्से यदा कदा सुनने को मिलते हैं।  वैसे प्यार का सबसे पवित्र और अनोखा रूप भगवान से भक्त का और एक माँ का उसके छोटे बच्चों  से प्यार ही है।  इससे सुन्दर और पवित्र प्यार का और कोई  रूप हो ही नही सकता। लेकिन इतिहास उठा कर देखे तो सबसे ज्यादा प्यार के फसाने प्रेमी-प्रेमिका के ही मिलते है,राधा-कृष्ण, हीर-राँझा, लैला-मजनू ,सोहनी-महिवाल और न जाने कितने किस्से है इस प्यार के अनादि काल से अब तक। सारी फिल्मों  की कहानियां  भी इसी प्यार के ही ऊपर बनती है।  यहाँ  तक की प्यार शब्द का नाम आते ही सबके जेहन में सिर्फ और सिर्फ एक लड़का-लड़की का प्यार ही आता है। तो क्या वाकई कुछ खास बात है इस प्रेमी-प्रेमिका  वाले प्यार में ? तो  क्या बाकी और  सारे प्यार का कोई महत्व नहीं? मेरे जेहन में भी बचपन से ही ये सवाल उठता रहता था। काफी जद्दोजहद रहती थी मेरे दिल में कि " ऐसा क्युँ है ? " उम्र के तीसरे पड़ाव में हूँ  मैं और आज सारे जवाब मुझे थोड़े बहुत समझ आ रहे हैं। 
     तो शुरू करते हैं माँ-बाप के प्यार से- ये रिश्ता हमें ईश्वर की तरफ से मिलता है। कहते हैं कि हमारे अच्छे-बुरे कर्मो के रूप में ही हमे अच्छें या बुरे माँ बाप मिलते हैं। तो ये हमारी किस्मत हुई और इसी खून के रिश्ते से हमारे बाकी  रिश्ते जैसे भाई-बहन वैगेरह-वैगेरह जुड़े होते हैं। ये सारे रिश्ते अधिकार और कर्तव्य के डोर से बंधे होते हैं। जब तक हम बच्चें होते हैं तब तक हमारा किसी के प्रति कोई कर्तव्य नहीं होता सिर्फ और सिर्फ हमारा सब पे अधिकार होता है।  उस वक़्त हमें माँ-बाप का भरपूर प्यार मिलता है और हम भी उन्हें बेहिसाब प्यार करते हैं। भाई-बहन के रिश्तों की तो बात ही क्या... वहाँ तो न अधिकार होता है और ना ही कोई कर्तव्य..होता है तो सिर्फ प्यार। यहां  तक कि छोटी-छोटी बातों पर तकरार  भी बड़े प्यारे-प्यारे  होते हैं।  रूठना-मनाना, लड़ना-झगड़ना फिर भी एक दूसरें पर जान देना।  लेकिन जैसे-जैसे बड़े होते हैं और अधिकार के साथ साथ कर्तवय भी शामिल होने लगता है फिर इस अधिकार और कर्तव्य  रुपी डोर के बीच स्वार्थ की गांठे पड़ने लगाती है और धीरे-धीरे प्यार की जगह स्वार्थ लेने लगता। ये स्वार्थ आपस में मनमुटाव लाता है और फिर दिलो में दूरियां  आ जाती  है। अक्सर ये दूरियां  इतनी बढ़ जाती है कि भाई-भाई हो या भाई-बहन एक दूसरे की सूरत तक देखना नहीं चाहते। कभी-कभी माँ-बाप का प्यार भी इस स्वार्थ रुपी गांठ से अछूता नहीं रहता। उम्र का एक दौड़ आते-आते बच्चों को माँ-बाप बोझ लगने लगते हैं और माँ-बाप को वो बच्चें जो आर्थिक रूप से थोड़े कमजोर होते हैं।  इस रिश्ते को कमजोर करने के कुछ और भी कारण होते हैं जैसे दूसरे परिवार से बहु या दामाद के रूप में नए सदस्य का घर में आना और उनका एक दूसरे को दिल से स्वीकार नहीं करना। इस तरह माँ-बाप और बच्चों के बीच के प्यार की तपिस को स्वार्थ ठंढा कर देता है। ये लगभग हर घर की कहानी है।  वैसे इसमें अपवाद  भी है तभी तो चंद किस्से माँ-बाप और भाई बहन के प्यार के भी है।  लेकिन आमतौर पर इन रिश्तों का प्यार वक़्त के साथ स्वार्थ की बलि चढ़ जाता हैं। 
     अब प्यार का दूसरा रूप, वो है " दोस्ती " का। दोस्त हम बड़ी सूझ-बुझ के साथ अपने स्वभाव के अनुकूल ही बनाते है यूँ  कहे कि  ये रिश्ता हम अपने बुद्धि - विवेक से खुद चुनते हैं। दोस्ती एक अनमोल धन है जो जितना मिले कम ही लगता हैं। "दोस्ती" जिसमे सबसे ज्यादा सुकून और मस्ती होती है, दोस्ती में हर ख़ुशी और गम बेझिझक हो कर बाँट लेते हैं। यहाँ  अधिकार और कर्तव्य  भी नहीं होते है सिर्फ प्यार होता है।  फिर भी ये रिश्ता भी टिकाऊ नहीं हो पाता. क्योंकि वक़्त के साथ कुछ मज़बूररियों  के कारण ये रिश्ता दम तोड़ देता है। जैसे लड़कपन के दोस्त, स्कूल के दोस्त, फिर कॉलेज के दोस्त,ये सारे दोस्त मज़बूरी बस ही सही वक़्त के साथ छूटते चले जाते हैं और धीरे धीरे धूमिल भी हो जाते हैं।  इसमें भी कुछ अपवाद है, कुछ दोस्ती उसी प्यार और खुलुस के साथ ताउम्र जिन्दा रहती है।  तभी तो दोस्ती मूवी भी बनी है। 
  
     पहला प्यार का रिश्ता जो हमें भगवान देता है वो है खून के रिश्ते, दूसरा प्यार का रिश्ता जो हम  खुद बनाते हैं वो है दोस्ती।अब आता है तीसरा प्यार का रिश्ता वो है पति-पत्नी का. ( वैसे तो कहते हैं कि " जोड़ियां ऊपरवाला बनता है."लेकिन मैं ये नहीं मानती.) इस रिश्ते को बनाने में तो बहुतों  का हाथ होता है परिवार, समाज, जाति -धर्म, परम्परा ये सारे मिल कर पति-पत्नी के रिश्ते को बनाते हैं। इसमें एक लड़का-लड़की का कोई हाथ नहीं होता। इस रिश्ते की तो बुनियाद ही स्वार्थ से शुरू होती है।लड़की के माँ-बाप को लड़की की शादी कर अपना बोझ हल्का करने का स्वार्थ, लड़के के माँ-बाप को एक सेवा करने वाली बहु और ढेर सारा दहेज़ पाने का स्वार्थ, लड़के को एक अच्छी पत्नी जो सिर्फ उसकी मर्ज़ी पर जिए उसका स्वार्थ,लड़की को धन-धन्य से परिपूर्ण ससुराल और बहुत प्यार करने वाले पति के चाहत का स्वार्थ। ये तो पूरा रिश्ता ही स्वार्थ में लिपटा  होता हैं।इस रिश्ते के बनने की वज़ह तो स्वार्थ होता है लेकिन ये निभता सिर्फ और सिर्फ समझौते के बलबूते ही है। क्योंकि  जब ये रिश्ता एक बार बन जाता है तो इसे निभाना भी एक पारिवारिक और सामाजिक मज़बूरी हो जाती है। शुरू-शुरू में जब जिस्मानी भूख मिटने की चाह होती है तो पति-पत्नी के बीच वक्ती  लगाव हो जाता है,एक साथ रहते- रहते थोड़ा बहुत प्यार भी हो जाता है,एक दूसरे का ख्याल भी रहता है।  लेकिन वक़्त के साथ पारिवारिक दायित्यो को पूरा करते-करते कब वो थोड़ा प्यार भी जीवन से चला जाता है पता ही नही चलता। उस प्यार को खोने का एहसास भी तब होता है जब दोनों में से एक दूसरे को छोड़ हमेशा के लिए इस दुनिया से चला जाता है। वरना जीते जी तो स्वार्थ और शिकायतों का ही जीवन में जगह होता है। 90 के दशक तक इस रिश्ते में औरतो को ही ज्यादा समझौते करने पड़ते थे अपने अरमानों  को ताक  पर रख कर उन्हें पति की ख्वाइशों  को पूरा करना होता था।  लेकिन अब ज्यादा समझौते पति कर रहे हैं क्योंकि लड़कियां  अब काफी उग्र हो चुकी है। शायद ये भी एक सामाजिक परिवर्तन है।  खैर, हमारा विषय -वस्तु  ये नहीं है हम तो प्यार की बात कर रहे हैं। इस पति-पत्नी के रिश्ते में भी कुछ अमर प्यार के उदाहरण है। कुछ पति-पत्नी ऐसे भी होते है जो पहली मिलन से ही एक दूसरे को समर्पित हो जाते हैं और कुछ वो जिन्हे प्रेमी-प्रेमिका से पति पत्नी बनने का सौभाग्य मिल गया हो , ऐसे पति-पत्नी की जोड़ी लाखों  में एक होती है। 
     
     अब बात करते हैं प्रेमी-प्रेमिका के रिश्ते की तो  ये रिश्ता ना भगवान बनाते हैं, ना परिवार और समाज,ना ही इंसान खुद।  ये रिश्ता बनाया नहीं जाता और अगर बन जाये तो तोडा भी नहीं जाता या यूँ कह सकते हैं कि ना इसको बनाने में किसी का जोर चलता है ना तोड़ने में। आप चाह कर भी किसी से प्यार नहीं कर सकते और ना ही अपने आप को किसी को प्यार करने से रोक पाते हैं  और अगर प्यार हो जाये तो फिर आप खुद कोशिश करे या पूरी दुनिया जोर लगा दे आप उस प्यार से दूर भी नहीं हो पाते। कहते है- " प्यार किया नहीं जाता हो जाता है " इस रिश्ते को बनाने में सिर्फ दिल और आत्मा का हाथ होता हैं  बाहरी  किसी भी तत्व का इससे कोई सरोकार नहीं।  हम हज़ारों  लोगो से मिलते है पर कोई एक जिस पर पहली नज़र पड़ते ही ऐसा महसूस होता है जैसे कि वो हमारी ही आत्मा का बिछुड़ा हुआ टुकड़ा है। उसे देखते ही उस पर अपना सब कुछ न्यौछावर  करने को जी चाहता है ,इससे ही हम प्यार कहते हैं। जब किसी से प्यार होता है तो रूप-रंग, जाति-धर्म, अमीरी-गरीबी, परिवार-समाज कुछ इसके बीच नहीं आता, यहां  ये सारी  बाते महत्वहीन हो जाती हैं।  इस प्यार में अधिकार और कर्तव्य की डोर भी नहीं होती इसलिए इसमें स्वार्थ की गांठ भी नहीं पड़ती , होता है तो सिर्फ " प्यार और परवाह " सिर्फ एक ख्वाहिश  होती है एक दूसरे में खो जाने की, एक दूसरे पर न्योछावर  हो जाने की बस।  इस प्यार में मिलना और बिछड़ना भी कोई मायने नहीं रखता  यानि उनका प्यार किसी भी परिस्थिति में कम नहीं होता हैं। कहते हैं  राधा कृष्ण 15-16 साल की उम्र में ही बिछड़ गए थे और फिर कभी नहीं मिले लेकिन उनका प्यार कभी कम नहीं हुआ , उन्हें हम " प्यार के देवता" के रूप में पूजते हैं। कहते हैं  लैला बिलकुल काली थी कोई खूबसूरती नहीं थी उसमे फिर मजनूँ  क्यों उसका दीवाना था  यानि इस प्यार में जिस्मानी वज़ूद भी महत्वहीन हैं।  ये सिर्फ और सिर्फ एक रूहानी रिश्ता है जिसे सिर्फ वही समझ सकता है जिसने कभी किसी से ऐसा प्यार किया हो।  ये अलग बात है कि ऐसे रिश्ते को इस समाज ने  कभी समझा ही नहीं और जाति- धर्म, अमीरी-गरीबी उच्च-नीच और कभी अपने पारिवारिक स्वार्थ के लिए प्यार करने वालो की कुर्बानी देता चला आया। अगर इस समाज ने इस रिश्ते की कुर्बानी ना दी होती और उन्हें फलने -फूलने का सौभाग्य दिया होता तो यकीनन आज दुनिया में स्वार्थ और नफरत की जगह सिर्फ और सिर्फ प्यार पनपता। 
   अब आखिरी रिश्ता है भक्त और भगवान का. तो हमारी समझ से भक्त-भगवान और प्रेमी-प्रेमिका के रिश्ते में बड़ा ही बारीक़ अंतर हैं।  एक प्रेमी अपने प्रियतम में भगवान का अंश  देखता है और एक भक्त अपने भगवान को ही अपना प्रियतम बना लेता हैं।  जैसे मीरा ने भगवान कृष्ण को ही अपना पति मान लिया था और उनके प्रेम में दीवानी होकर दुनिया से बेगानी हो गई  थी, भक्त रसखान वो भी कृष्ण के दीवाने थे। आज भी कृष्ण को चाहने वाले पुरुष भी अपने आप को राधा रानी की तरह सवारते है और खुद को उनकी प्रेमिका ही मानते हैं। 
    अब गलती से भी आप मेरे इस फ़साने को आज के ज़माने से नहीं जोड़ लेना। क्योकि इस युवा वर्ग ने प्यार को व्यवहारिकता  का रूप दे दिया है माँ-बाप को पता है कि हमारा काम बच्चों  को पाल-पोस कर बड़ा करना है इसके बाद हमारा  इन पर कोई हक़ नहीं , बच्चों  को पता है कि हम बड़े हो गये है तो हमे शादी कर अलग घर बसना है, माँ-बाप हमारी जिम्मेदारी नहीं हैं। इस नई  जेनरेशन  को अपनी पसंद से शादी करने के लिए किसी की इजाजत की भी जरुरत नहीं, शादी न निभाने पर इन्हे उस शादी को तोड़ने में भी कोई गुरेज नहीं। आज कल के युवा वर्ग उसे प्यार का नाम देते है जिसमे पहले हमबिस्तर होते है फिर साल दो साल साथ गुजारते है अगर इसके बाद भी उनमे लगाव बाकी  रहा तो सोचते है की हमे शादी करनी चाहिए या नहीं। अब ऐसे रिश्तो के माहौल में भगवान- भक्त, और हीर-राँझा को ढूढ़ना थोड़ा मुश्किल है ,ये रिश्ता तो विलुप्त सा हो रहा हैं। 
      इन सब के वावजुद अब भी ऐसा नहीं है कि पूरी दुनिया ही प्यार के इस नए रूप में डूब गई हैं। अभी भी इस धरती पर कहीं -न -कहीं  कुछ ऐसे घर है जहां  निस्वार्थ सा प्यार भरा परिवार रहता है, कहीं -न -कहीं वो दोस्तों का मस्ती भरा साथ बचा है जिन्हे कोई भी मज़बूरी दूर ना कर पाई  है, अभी भी कुछ प्रेमी बचे है जो इस आत्मा विहीन दुनिया  में भी आत्मा से जुड़े हैं, भले ही उनके प्यार के किस्से ना बने हो, चर्चे ना हुए हो लेकिन उनका प्यार भी राधा-कृष्ण और हीर-राँझा के प्यार से कम नहीं। आज भले ही भगवान में आस्था ना बची हो लेकिन कहीं -न -कहीं  कोई मीरा और रसखान है जिनके लिए भगवान ही सब कुछ हैं।  जिस दिन ये धरती प्यार विहीन हो जाएगी वही दिन कयामत का दिन होगा ऐसा मेरा मानना हैं। 
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    इन सारे प्यार के रिश्तो के अलावा एक रिश्ता और है जो सबसे सर्वोपरि है वो है " इंसानियत का रिश्ता " ये प्यार तो बिलकुल ही दुनिया से ख़त्म हो गया है. दोस्तों, हो सके तो हम इस प्यार के रिश्ते को बचाने की कोशिश करे ,अगर ये रिश्ता ख़त्म हो गया तो धरती रहेगी तो लेकिन नर्क से भी बुरे हालत में। 

17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर ढंग से प्यार की व्याख्या की है सखी👌

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    1. प्रिये सखी अनीता ,मुझे आपार हर्ष हुआ के आप ने मुझे " सखी " कह कर सम्बोधित किया ,आप के इस सप्रेम प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ ,आप सब के सानिध्य में आ कर मुझे आपार हर्ष हो रहा है ,स्नेह

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  2. प्रिय कामिनी -- प्रेम के अनगिन रूप हैं और उन सभी पर आपकी विस्तृत विवेचना भरा आलेख बहुत ही सुंदर है |प्रेम का निस्वार्थ रूप मानवता के लिए सदैव प्रेरक रहा है | इसी प्रेम को समर्पित मेरी एक रचना की कुछ पंक्तियाँ लिख रही हूँ --
    निर्मल , पावन प्रेम सदा
    रहा शक्ति मानवता की,
    जग में ये नीड़ अनोखा है -
    जहाँ जगह नही मलिनता की!!!!!!
    इसी ने मानवता को प्राण वायु दी है | आपके सराहनीय लेख के लिए सस्नेह शुभकामनायें | ये कलम चली है , कभी ना थमे -- माँ शारदे इसकी प्रांजलता को हमेशा कायम रखे मेरी यही दुआ है | सस्नेह --

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  3. बहुत बहुत शुक्रिया सखी ,आप के इस प्यार और दुआ के लिये ,हमारा और आपका प्यार भी तो इसी निस्वार्थ प्यार का एक रूप है .

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  4. या अनुरागी चित्त की
    गति समुझै नहीं कोय।
    ज्यों ज्यों बुड़ै श्याम रंग
    त्यों त्यों उज्जल होय।....बहुत सुंदर लेख।

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    1. कविवर विहारी जी के दोहे के साथ आपने तो मेरे लेख को और भी विस्तार प्रदान कर दिया या यूँ भी कह सकते हैं कि - मेरे पुरे लेख को बस चार पंक्तियों में समेट दिया ,इतनी सुंदर प्रतिक्रिया देने के लिए तहे दिल सी शुक्रिया ,सादर नमस्कार

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  5. बहुत सुंदर और सार्थक लेख लिखा सखी आपने 👌👌👌👌

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    1. सहृदय धन्यवाद सखी ,आप सब का स्नेह मेरे लिए अनमोल हैं ,सादर स्नेह सखी

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  6. जिस दिन ये धरती प्यार विहीन हो जाएगी वही दिन कयामत का दिन होगा ऐसा मेरा मानना हैं।

    इस प्यार के रिश्ते को बचाने की कोशिश करे ,अगर ये रिश्ता ख़त्म हो गया तो धरती रहेगी तो लेकिन नर्क से भी बुरे हालत में।

    वाह!!!
    क्या बात....
    प्रेम के विभिन्न रूपों की विस्तृत व्याख्या के साथ
    प्रेम का महत्व बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया है आपने कामिनी जी!इस लाजवाब लेख के लिए ढ़ेरों बधाइयां एवं शुभकामनाएं आपको।

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    1. सहृदय धन्यवाद सुधा जी ,आपकी इतनी अच्छी प्रतिक्रिया पाकर मेरा लेखन सार्थक हुआ, हृदयतल से आभारी हूँ आपकी
      देरी से प्रतिउत्तर देने के लिए भी क्षमा चाहती हूँ ,मेरे लैपटॉप में कुछ खराबी हो गई थी जिस कारण ब्लॉग पर आने में असमर्थ थी ,सादर नमस्कार

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  7. वाह कामिनी जी प्यार पर गहन अध्ययन चिंतन ।
    लाजवाब।
    सही कहा आजतक कौन पर्याय को परिभाषित कर पाया पर आपने पर्याय के अधिकतम स्वरूपों पर सटीक प्रकाश डाला है ।
    अभिनव प्रस्तुति।

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    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद कुसुम जी ,मेरे लेख पर आपकी टिप्पणी पाकर मुझे हार्दिक प्रसन्ता होती हैं ,देरी से प्रतिउत्तर देने के लिए भी क्षमा चाहती हूँ ,मेरे लैपटॉप में कुछ खराबी हो गई थी जिस कारण ब्लॉग पर आने में असमर्थ थी ,सादर नमस्कार

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  8. कामिनी दी, सभी रिश्तों के प्यार की बहुत ही सुंदर विवेचना की हैं आपने। ये एक कड़वा सच हैं कि हर रिश्ते की नींव थोड़ी ही सही लेकिन कहीं न कहीं स्वार्थ स्वार्थ से जुड़ी होती है। लेकिन सिर्फ एक इंसानियत का रिश्ता ही ऐसा हैं कि उसमें स्वार्थ नहीं होता। इसलिए उसे बचाने की कोशिश होनी चाहिए।

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    1. सहृदय धन्यवाद ज्योति जी ,मेरे लेख पर आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया पाकर आपार हर्ष हुआ ,प्रतिउत्तर में विलम्ब के लिए क्षमा चाहती हूँ ,सादर

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  9. वाह !!प्रिय सखी ,आपनें तो प्यार के सभी रूपों से सजा दिया है अपने इस आलेख को ...।बहुत ही उम्दा सृजन ।

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    1. सहृदय धन्यवाद शुभा जी ,बस सखी एक प्रयास भर था वरना मेरी लेखनी में इतना सामर्थ कहाँ हैं जो प्यार को परिभाषित कर सके। उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदयतल से आभार ,प्रतिउत्तर में विलम्ब के लिए क्षमा चाहती हूँ ,सादर


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  10. मेरी लेख पर सार्थक प्रतिक्रिया देने के लिए आप सभी का दिल से शुक्रिया ,इस ब्लॉग जगत में हम सब का प्यार भी तो प्यार का एक अनोखा रूप ही तो हैं ,जहाँ सभी व्यक्तिगत तौर पर तो किसी को नहीं जानते फिर भी एक दूसरे से एक स्नेह डोर में बंधे हैं। मैं आप सभी से देरी से प्रतिउत्तर देने के लिए क्षमा चाहती हूँ ,मेरे लैपटॉप में कुछ खराबी हो गई थी जिस कारण ब्लॉग पर आने में असमर्थ थी ,सादर नमस्कार

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