गुरुवार, 5 मार्च 2020

" कोरोना वायरस "की होम्योपैथिक दवा

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कोरोना वायरस "
आज कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में हाहाकार मचा रखा हैं ,हर देश की सरकार इससे निपटने की पूरी कोशिश कर रही हैं। आए दिन कोई ना कोई एक नया वायरस आकर हमारे दिलों में दहशत फैला जाता। ये सारे वायरस के फैलने की वजह हमेशा से हमारा गलत खान पान और लापरवाही ही रही हैं और खास तौर पर एक व्यक्ति विशेष की लापरवाही की सजा सब भुगतते हैं। 

कोरोना वायरस क्या हैं ?कैसे फैलता हैं  ?इससे वचाव कैसे कर सकते हैं ?क्या क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए इसके बारे में सोशल मिडिया पर बहुत सारी जानकारियां उपलब्ध हैं। लेकिन परेशानी ये हैं कि -ये जानकारी सब एक दूसरे से सिर्फ साझा भर कर रहे हैं खुद भी इसका पालन  कर रहे हैं या नहीं ,पता नहीं। 

इसका सफल इलाज होम्योपैथिक और आयुर्वेदिक दवा में है। होम्योपैथिक के आर्सेनिक एल्बम 30 में इस वायरस से लड़ने की क्षमता है। यह जानकारी सेवानिवृत्त होम्योपैथिक चिकित्सा अधिकारी एवं आरोग्य भारती के विंध्याचल मंडल विभाग प्रमुख डॉ० गणेश प्रसाद अवस्थी ने दी।इस बात को शशि जी ने भी साझा किया हैं और उनकी बातों से ही मुझे ये प्रेरणा मिली की मैं आप सब से ये जानकारी साझा करूँ। 

मैं खुद एक होमियोपैथिक प्रैक्टिसनर हूँ इसलिए आज मैं आप सब से एक जरुरी जानकारी साझा करना चाहती हूँ। उस पर यकीन कर आप कितना अमल करेंगे वो तो मैं नहीं जानती मगर एक डॉक्टर होने के नाते मैं ये अपना फर्ज समझ रही हूँ कि आप सभी से ये बहुमूल्य जानकारी साझा करूँ। अगर इस पर विश्वास करके आप इसका प्रयोग करेंगे तो यकीन मानिए कोरोना वायरस ही नहीं ,किसी भी तरह के वायरस से आप खुद को और परिवार को सुरक्षित रख पाएंगे। 

आर्सेनिक एल्बम 30 
एकोनाइट नेप 30
 इन्फ्लून्जियम 30 
यूपिटोरियम पर्फ़ 30 
सारी दवाएं Dr.Reckeweg  की होनी चाहिए 

इन चारो दवाओं को बराबर मात्रा में मिलाकर एक अलग शीशी में रख ले। तीन दिन लगातार सुबह खाली पेट इस मिश्रित दवा का दो बून्द सीधे जुबान पर टपका ले। उसके बाद जब तक वायरस फैला हो तब तक सप्ताह में दो बार रविवार और बुधवार को एक बार सुबह में ही लेते रहे। किसी भी तरह का वायरल इन्फेक्शन हो ही नहीं सकता। अगर हो गया हैं तो यही दवा रोग की तेज़ी के अनुसार ,दो दो घंटे के अंतराल पर ले सकते हैं। 

दवा लेते वक़्त सावधानियाँ -
दवा लेने से  आधे घंटे पहले और दवा लेने के आधे घंटे बाद भी कुछ खाना पीना नहीं हैं यानि मुँह में किसी भी तरह का स्वाद नहीं रहना चाहिए। बस इतनी सावधानियाँ बरतनी हैं। 

उम्मीद करती हूँ आप इस जानकारी का लाभ जरूर उठाएंगे। ये दवा पाँच साल तक आप सुरक्षित रख सकते हैं। इस जानकारी को जितना हो सके साझा करें।

अगर आप आर्युवेद को मानने वाले हैं तो ,गिलोय ,तुलसी के पते ,काली मिर्च का सेवन करें। ये भी बहुत लाभदायक हैं। 

बुधवार, 4 मार्च 2020

" बाबुल का आँगन "

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आदरणीया आशा भोसले जी के आवाज़ में वन्दनी फिल्म का एक हृदयस्पर्शी गीत.....

अब के बरस भेज भईया को बाबुल
सावन ने लीजो बुलाय रे
लौटेंगी जब मेरे बचपन की सखियाँ 
दिजो संदेशा भिजाय रे
अब के बरस भेज भईया को बाबुल ...

अम्बुवा तले फिर से झूले पड़ेंगे
रिमझिम पड़ेंगी फुहारें
लौटेंगी फिर तेरे आँगन में बाबुल
सावन की ठंडी बहारें
छलके नयन मोरा कसके रे जियरा
बचपन की जब याद आए रे
अब के बरस भेज भईया को बाबुल ...

बैरन जवानी ने छीने खिलौने
और मेरी गुड़ियाँ चुराई
बाबुल  मैं थी तेरे नाज़ों की पाली
फिर क्यों हुई मैं पराई
बीते रे जुग कोई चिठिया न पाती
न कोई नैहर से आये, रे
अब के बरस भेज भईया को बाबुल .
*********
     बचपन में जब भी मैं ये गीत सुनती मेरे भीतर कुछ टूटने सा लगता था ,हिय में एक हुक सी उठने लगती थी और आँखें स्वतः ही बरसने लगती थी। (आज भी ये गीत मुझे रुला देती हैं ) उस वक़्त मेरे लिए ये कल्पना से परे होता था कि -एक लड़की जो अपने बाबुल के आँगन में पली- बढ़ी....भाई -बहनों के साथ खेली -कूदी... उसे उसी आँगन में लौट के आने के लिए बाबुल से ही गुहार लगानी पड़ रही हैं......अपने घर -आँगन , माँ -बाबुल और सखियों के विरह में वो इस कदर तड़प रही हैं । इस गीत के एक- एक बोल मुझे तड़पा जाती  थी  ....और मैं माँ से पूछ बैठती थी - " आपकी शादी भी तो 13 वर्ष के उम्र में ही हो गई थी न और आप बताती हैं कि- दादाजी आपको एक साल तक मयेके नहीं जाने दिए थे ...फिर कैसे रही होगी आप नाना -नानी के बगैर। " मेरी बाते सुन माँ की आँखें भर जाती .....भीगें से स्वर में  बोलती - " उस जमाने में हम सब मजबूर होते थे बेटा   " ....लेकिन मैं नहीं जाऊँगी... अपने पापा को छोड़कर ...कभी नहीं जाऊँगी ...मैं तड़पकर बोल उठती। कैसी ये जग की रीत हैं जहा जन्म लिया वो घर-आँगन  अपना नहीं होता......किसी पराये घर और घरवालों  को अपना बनाकर उसे अपना  सर्वस्व सोप देना .....और पिता का घर पराया कहलाना .....किसने बनाई ये रीत .. किसी और घर भेज दिया वो तो .सह ले ......मगर अपना घर पराया हो जाना ,क्यूँ  ? ऐसे अनगिनत सवाल मेरा बालमन करता रहता और जबाब ना मिलने पर और भी बेचैन हो जाता। 

     मगर जैसे- जैसे बड़ी हुई ये एहसास होने लगा ..इस जग की रीत से मैं भी नहीं बच सकती .. बेटियों को एक ना एक दिन बाबुल का आँगन छोड़कर पी के घर जाना ही होता हैं... तब, ये बाते मुझे बेहद परेशान कर देती ....कैसे जाऊँगी मैं ये घर -आँगन छोड़कर ...जहाँ भाई -बहनों के साथ खेलते- कूदते ,हँसते- हँसाते बचपन और जवानी गुजरा हैं ....इस आँगन को छोड़ ....पापा को छोड़ नहीं जा पाऊँगी। लेकिन वो घडी भी आ ही गई और मुझे भी हर बेटी की तरह जाना ही पड़ा। पर शायद.... मैं दुनिया की सबसे खुशनसीब बेटी रही हूँ...  साजन के घर जाने के बाद भी मुझसे मेरे बाबुल का आँगन पूरी तरह नहीं छूटा। पापा के नजर में मैं उस आँगन की तुलसी ही रही। 
  
    लेकिन वक़्त गुजरा और एक दिन.... वो दिन भी आ गया जब पापा ही उस आँगन को छोड़कर  हमेशा हमेशा के लिए चलें गए। आज तीन साल हो गए उनको गए हुए.....घर-आँगन  तो वही हैं ....पर उस घर की रौनक चली गई .....उस आँगन की तुलसी उजड़ गई। अब नहीं अच्छा लगता वही आँगन जहा पापा की आवाज़  सुनाई  नहीं  देती। मगर..... आँगन छूटा पापा का साथ नहीं ...वो आज भी हर पल मेरे साथ हैं ....हर घडी अपने होने का एहसास करा ही जाते हैं ....जब उदास होती हूँ आँसू पोछते हुए ,घबराती हूँ तो हिम्मत बढ़ाते हुए ,जब परेशान होती हूँ तो ढाढ़स बांधते हुए और जब खुश होती हूँ तो मेरे साथ खड़े मुस्कुराते हुए......

    फिर भी पता नहीं क्यूँ ....एक खालीपन सा लगता हैं... वो साया जो हरपल आस -पास होता हैं .....उन्हें  छूने का दिल करता हैं ....उनके पसंद के खाने बनाकर उन्हें खिलाने को दिल करता हैं ....उनकी खूब सारी सेवा करने को दिल करता हैं..... उनके  गले से लिपटकर जी भर के रोने को दिल करता ...पर इस जन्म में तो ये सब सम्भव नहीं......अब तो बस उनकी यादें ही रह गई हैं.... सिर्फ एक एहसास बाकी हैं .....
 ' पापा ,आप बहुत याद आते हैं ...."
आज 4 मार्च वो मनहूस दिन ...जिस दिन मेरे पापा हम सभी से साकार रूप में जुदा हो गए थे लेकिन.... निरंकार रूप में वो हरपल हम सभी के साथ ही होते हैं ....परमात्मा मेरे पापा के आत्मा को शांति प्रदान करें..... 

एक खत पापा के नाम 
https://dristikoneknazriya.blogspot.com/2019/03/ek-khat-papa-ke-naam.html

यादें पापा की
https://dristikoneknazriya.blogspot.com/2019/06/yaadein-papa-ki.html


शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

" मैं हूँ नईया तू है पतवार "




    "क्या हुआ...इतने परेशान से क्युँ हो... ये लो पहले पानी पीओ.....पसीने  से लथपथ हुए पड़े हो" -अपने आँचल से आकाश के चेहरे पर आए पसीने को पोछते हुए अवनी ने कहा। अवनी के हाथ से पानी का ग्लास लेकर आकाश एक साँस में ही पूरा पानी पी गया, ऐसा लग रहा था जैसे वो कितने दिनों का प्यास हो। पानी पीकर आकाश वही सोफे पर ही लेट गया। आकाश की हालत को देखकर  उस वक़्त उससे ज्यादा कुछ पूछना अवनी ने उचित नहीं समझा सो उसे आराम से सोता  छोड़ वो रात के खाने की तैयारी में लग गई। 
   एक घंटे बाद अवनी चाय लेकर आई और आकाश को जगाया...उठो चाय पी लो... चाय का कप पकडाते हुए उसने कहा। दोनों  चुपचाप बैठे चाय पीने लगे। अवनी एकटक आकाश के चेहरे को देखें जा  रही थी जैसे उसे समझना चाहती हो पर आकाश अवनी से नजरे चुरा रहा था। अब अवनी के सब्र का बाँध टूट रहा था,उसने बड़े ही संयम के साथ प्यार भरे लहजे में पूछा  - " क्या बात है आकाश ...आखिर तुम इतने परेशान क्युँ हो ?" अवनी के स्नेह भरे शब्दों को  सुनते ही आकाश के आँखों में आँसू आ गए- "अवनी ,कम्पनी में बहुत बड़ा घाटा हो गया है ..बहुत से वर्कर को उन्होंने निकाल दिया है.....मैं भी उनमे से एक हूँ......अब क्या होगा अवनी....कैसे चलेगा घर ...मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है" -आकाश रुंधे हुए आवाज़ में एक साँस में ही बोल गया । आकाश की बातें सुन अवनी को भी एक झटका सा लगा....थोड़ी देर के लिए वो खामोश हो गई लेकिन अगले ही पल वो खुद को संभालते हुए मुस्कुराती हुई बोली -"फ़िक्र क्युँ करते हो ...तुम्हारी जेब काट-काटकर मैंने अच्छी खासी रकम जमा कर ली हैं.. दो चार महीने तो आराम से गुजर जाएंगे...इस बीच  तुम नया काम ढूँढ़ ही लोगे... मैं भी घर पर सिलाई का काम शुरू कर देती हुई ....दोनों मिलकर कुछ बच्चों को ट्यूशन भी दे दिया करेंगे...हो जाएगा गुजारा... फिक्र नहीं करो ...चलो, अब मुस्कुरा भी दो...तुम्हारा ये लटका हुआ सा चेहरा मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा।" आकाश अवनी के दोनों हाथों को पकड़कर चूमते हुए बोला - "मेरे जीवन के नईया की तुम्ही पतवार हो....अगर तुम मेरे साथ हो तो मैं भँवर  में भी फंसा रहूँगा न,तो भी किनारा पा लूँगा।" अवनी मुस्कुराती हुई उलाहना देने के अंदाज़ में बोली - "अच्छा जी, जब इतना ही भरोसा था तो ये रुआँसा सा मुँह लटकाए क्युँ थे।"   मैं बहुत डर गया था अवनी - कहते हुए आकाश रो पड़ा।  आकाश के आँखों से बहते आँसू को पोछते हुए अवनी बोली - "आकाश , हम दोनों ही इस गृहस्थी रुपी नईया के पतवार है... अगर एक दूसरे का हाथ मजबूती से थामे रहेंगे न, तो कोई मझधार हमें डुबों नहीं सकती। " 
   "मैं हूँ नईया तू है पतवार,पार कर लेगें हर मझधार" अवनी फ़िल्मी अंदाज़ में गुनगुनाती हुई मुस्कुराने लगी ..आकाश भी मुस्कुराने लगा।  अचानक से अपने हाथों को आकाश के हाथों से झटके से छुड़ाती हुई अवनी उठ खड़ी हुई और गुस्से वाले अंदाज़ में बोली --" अच्छा जी,अब  बहुत हुआ ये फ़िल्मी ड्रामा...उठो खाना खाने चलो.... वरना मैं अकेले ही खा लुँगी,मुझे बहुत जोर की भूख लगी है और इसमें तो मैं आपका  इंतजार बिलकुल नहीं करने वाली  समझें ....अब इतनी भी पतिव्रता नहीं हूँ मैं । " उसकी बाते सुन आकाश जोर से हँस पड़ा। दोनों ठहाके लगाते हुए खाने की मेंज पर आ गए। दो घंटे पहले जिस घर का वातावरण गमगीन हुआ पड़ा था...अवनी की छोटी सी समझदारी से फिर से मुस्कुराने लगा। 

"हमारी जागरूकता ही प्राकृतिक त्रासदी को रोक सकती है "

मानव सभ्यता के विकास में नदियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है तो उनकी वजह आने वाली बाढ़ भी हमारी नियति है। हज़ारों वर्षों से नदियों के पानी क...