"क्या हुआ...इतने परेशान से क्युँ हो... ये लो पहले पानी पीओ.....पसीने से लथपथ हुए पड़े हो" -अपने आँचल से आकाश के चेहरे पर आए पसीने को पोछते हुए अवनी ने कहा। अवनी के हाथ से पानी का ग्लास लेकर आकाश एक साँस में ही पूरा पानी पी गया, ऐसा लग रहा था जैसे वो कितने दिनों का प्यास हो। पानी पीकर आकाश वही सोफे पर ही लेट गया। आकाश की हालत को देखकर उस वक़्त उससे ज्यादा कुछ पूछना अवनी ने उचित नहीं समझा सो उसे आराम से सोता छोड़ वो रात के खाने की तैयारी में लग गई।
एक घंटे बाद अवनी चाय लेकर आई और आकाश को जगाया...उठो चाय पी लो... चाय का कप पकडाते हुए उसने कहा। दोनों चुपचाप बैठे चाय पीने लगे। अवनी एकटक आकाश के चेहरे को देखें जा रही थी जैसे उसे समझना चाहती हो पर आकाश अवनी से नजरे चुरा रहा था। अब अवनी के सब्र का बाँध टूट रहा था,उसने बड़े ही संयम के साथ प्यार भरे लहजे में पूछा - " क्या बात है आकाश ...आखिर तुम इतने परेशान क्युँ हो ?" अवनी के स्नेह भरे शब्दों को सुनते ही आकाश के आँखों में आँसू आ गए- "अवनी ,कम्पनी में बहुत बड़ा घाटा हो गया है ..बहुत से वर्कर को उन्होंने निकाल दिया है.....मैं भी उनमे से एक हूँ......अब क्या होगा अवनी....कैसे चलेगा घर ...मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है" -आकाश रुंधे हुए आवाज़ में एक साँस में ही बोल गया । आकाश की बातें सुन अवनी को भी एक झटका सा लगा....थोड़ी देर के लिए वो खामोश हो गई लेकिन अगले ही पल वो खुद को संभालते हुए मुस्कुराती हुई बोली -"फ़िक्र क्युँ करते हो ...तुम्हारी जेब काट-काटकर मैंने अच्छी खासी रकम जमा कर ली हैं.. दो चार महीने तो आराम से गुजर जाएंगे...इस बीच तुम नया काम ढूँढ़ ही लोगे... मैं भी घर पर सिलाई का काम शुरू कर देती हुई ....दोनों मिलकर कुछ बच्चों को ट्यूशन भी दे दिया करेंगे...हो जाएगा गुजारा... फिक्र नहीं करो ...चलो, अब मुस्कुरा भी दो...तुम्हारा ये लटका हुआ सा चेहरा मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा।" आकाश अवनी के दोनों हाथों को पकड़कर चूमते हुए बोला - "मेरे जीवन के नईया की तुम्ही पतवार हो....अगर तुम मेरे साथ हो तो मैं भँवर में भी फंसा रहूँगा न,तो भी किनारा पा लूँगा।" अवनी मुस्कुराती हुई उलाहना देने के अंदाज़ में बोली - "अच्छा जी, जब इतना ही भरोसा था तो ये रुआँसा सा मुँह लटकाए क्युँ थे।" मैं बहुत डर गया था अवनी - कहते हुए आकाश रो पड़ा। आकाश के आँखों से बहते आँसू को पोछते हुए अवनी बोली - "आकाश , हम दोनों ही इस गृहस्थी रुपी नईया के पतवार है... अगर एक दूसरे का हाथ मजबूती से थामे रहेंगे न, तो कोई मझधार हमें डुबों नहीं सकती। "
"मैं हूँ नईया तू है पतवार,पार कर लेगें हर मझधार" अवनी फ़िल्मी अंदाज़ में गुनगुनाती हुई मुस्कुराने लगी ..आकाश भी मुस्कुराने लगा। अचानक से अपने हाथों को आकाश के हाथों से झटके से छुड़ाती हुई अवनी उठ खड़ी हुई और गुस्से वाले अंदाज़ में बोली --" अच्छा जी,अब बहुत हुआ ये फ़िल्मी ड्रामा...उठो खाना खाने चलो.... वरना मैं अकेले ही खा लुँगी,मुझे बहुत जोर की भूख लगी है और इसमें तो मैं आपका इंतजार बिलकुल नहीं करने वाली समझें ....अब इतनी भी पतिव्रता नहीं हूँ मैं । " उसकी बाते सुन आकाश जोर से हँस पड़ा। दोनों ठहाके लगाते हुए खाने की मेंज पर आ गए। दो घंटे पहले जिस घर का वातावरण गमगीन हुआ पड़ा था...अवनी की छोटी सी समझदारी से फिर से मुस्कुराने लगा।
सुखद और सुंदर कहानी।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद विश्वमोहन जी ,सादर नमन
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (02-03-2020) को 'सजा कैसा बाज़ार है?' (चर्चाअंक-3628) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत सुन्दर सुखान्त लघुकथा...।
जवाब देंहटाएंवाह!!!
सहृदय धन्यवाद सुधा जी ,इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार ,सादर नमस्कार
हटाएंवाह बेहतरीन कहानी सखी👌
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सखी ,इस सुंदर प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार ,सादर नमस्कार
हटाएंbahut achhi kahaani kahi....pdhte waqt sabhi scenes aankhon ke aage chal rhe the
जवाब देंहटाएंbdhaayi
सहृदय धन्यवाद जोया जी ,इस सुंदर समीक्षा के लिए दिल से आभार ,सादर नमस्कार
हटाएंदाम्पत्य जीवन की खट्टी मीठी झांकी प्रिय सखी | सुखांत मन को आह्लादित कर गया |
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया सखी ,इस सुंदर प्रतिक्रिया के लिए ,सादर
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