वो कहते हैं न कि -" शामें कटती नहीं और साल गुजर जाते हैं ",देखें न ,कैसे एक साल गुजर गया पता ही नहीं चला,हाँ आज मेरे ब्लॉग के सफर का एक साल पूरा हो गया। कभी सोचा भी नहीं था कि मैं अपना ब्लॉग बनाऊँगी ,ब्लॉग की छोड़ें कभी कुछ लिखूँगी ये भी नहीं जानती थी ,हाँ कुछ लिखने के लिए हर पल दिल मचलता जरूर था। तो ,जहाँ चाह होती हैं वहाँ राह खुद -ब -खुद मिल जाती हैं। हाँ ,कभी -कभी देर हो जाती हैं पर मिलती जरूर हैं और मुझे भी मिली। आज ही के दिन सखी रेणु ने मेरे ब्लॉग को आप सभी से साझा किया था और पहली टिप्पणी भी की थी और देखते ही देखते 4 -5 दिनों में ही आप सभी ने सहर्ष मुझे अपना लिया था। मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था ,सब सपना सा लगता था।
सखी रेणु ,जो इस आभासी दुनिया में मेरी पहली प्रशंसक ,मार्गदर्शक और प्यारी सहेली बन कर आई। उन्होंने मेरे ब्लॉग का लिंक साझा कर मेरा परिचय ब्लॉग जगत के प्रतिष्ठित बुद्धिजीवियों से कराया। मैं सखी रेणु की आजीवन आभारी रहूँगी ,उन्होंने मुझे अपने स्नेह के काबिल समझा और साथ ही आप सभी दिग्गज साहित्य प्रेमियों से मुझे रूबरू भी कराया। अगर सखी रेणु ने मेरा साथ ना दिया होता तो मेरा ब्लॉग यूँ ही कही अंधकार में गुम होता।
ब्लॉग पर अपना पहला लेख तो मैंने 8 /10 /2018 को ही प्रकाशित किया था पर मैं समझ ही नहीं पा रही थी कि इसे साझा कैसे करूँ। मुझे तो ब्लॉग का B भी नहीं पता था। ब्लॉग का नाम मैंने पहली बार अपनी एक दोस्त (जो मुझसे 12 -13 साल छोटी हैं और इंटरनेट की दुनिया में पूरी तरह रची बसी हैं )के मुख से सुना था। आज से डेढ़ साल पहले जब मैं अपनी बेटी के साथ दिल्ली से मुंबई शिफ्ट हो रही थी तो मैं थोड़ी चिंतित थी कि मुंबई में मैं अपना वक़्त कैसे गुजारूंगी ,बेटी तो अपने काम पर चली जाएगी तो मैं क्या करुँगी ? अनजाना जगह ,ना कोई दोस्त ,ना रिश्तेदार ,पुरे दिन का खालीपन ये सोच मैं थोड़ी परेशान थी। दिल्ली में फुर्सत ही नहीं मिलती हैं ,दिन के 4 -5 घंटे तो होमियोपैथिक प्रक्टिस में ही गुजर जाता हैं फिर घर -परिवार ,दोस्त -रिश्तेदार इन सब में दिन कैसे गुजर जाता हैं पता ही नहीं चलता लेकिन वहाँ क्या करुँगी ये सोच में चिंतित हो रही थी। जब मेरी दोस्त मुझसे मिलने आई तो बातों बातों में मैंने अपनी परेशानी उससे कही तो उसने कहा -दीदी आप ब्लॉग लिखना शुरू कर दे ,आप किसी भी विषय पर अच्छा बोल लेती हैं ,आपके खालीपन को दूर करने का ये अच्छा तरीका होगा। मैंने कहा -मुझे तो इंटरनेट का अच्छा ज्ञान भी नहीं हैं ,कैसे बनाऊंगी मैं ब्लॉग। उसने कहा -कुछ मुश्किल नहीं बस गूगल पर जाकर blogger .com टाइप करो और फिर फेसबुक की तरह उसपर अपना अकाउंट बना लो। उस वक़्त उससे ज्यादा कुछ जानने का समय नहीं था। लेकिन ब्लॉग बनाना इतना भी आसान नहीं था वो भी उसके लिए जिसने अपना फेसबुक अकाऊंट भी खुद से नहीं बनाया हो।
मुंबई आने पर महीना दिन तो व्यवस्थित होने में और घूमने में गुजर गया। उसके बाद जब बेटी काम पर जाने लगी तो बस ,मेरा अकेलापन मुझे काटने लगा। फिर अपनी दोस्त की कही बात याद कर मैंने गूगल सर्च करना शुरू किया,youtube पर सर्च कर ब्लॉग की एक एक बात समझने की कोशिश करने लगी। दो महीने के अथक प्रयास के बाद आख़िरकार मैं अपना ब्लॉग बनाने में कामयाब हुई। लेकिन ब्लॉग पर पाठक कहा से लाऊँ ,इसी खोजबीन में मुझे शब्दनगरी मंच के बारे मै ज्ञात हुआ। मैंने उसपर अपना अकाउंट बनाया ,इस मंच से अपना लेख प्रकाशित करना मुझे थोड़ा आसान लगा। मैंने डरते डरते इस पर अपना एक लेख "प्यार एक रूप अनेक "प्रकाशित कर दिया। अगले दिन शब्दनगरी के द्वारा भेजे गए मेल को देख मेरी ख़ुशी और आश्चर्य का ठिकाना ना रहा ,उन्होंने मेरे लेख को "आज का सर्वश्रेष्ठ लेख "से सम्मानित कर मुख्यपृष्ठ पर डाला था ,एक दो टिप्पणियाँ भी आ गई। मेरे लिए इतनी काफी था ,मैं कोई बड़ी साहित्यकार तो हूँ नहीं और नाही मुझमे बहुत ज्यादा प्रसिद्धि के चाह थी। मैंने सोचा इसी बहाने अच्छी अच्छी रचनाएँ पढ़ने को भी मिल जाएगी और कुछ लिखने का भी प्रयास करती रहूँगी ,मुझे अच्छा लगने लगा। मेरा सौभाग्य मेरी लगभग सभी लेखो को शब्दनगरी नै सर्वश्रेष्ठ लेख से सम्मानित किया ,इसके लिए मैं हमेशा शब्दनगरी की आभारी रहूंगी।
फिर एक दिन शब्दनगरी पर लिखे मेरे एक लेख पर सखी रेणु की प्रतिक्रिया आई। उनके स्नेहिल पहली प्रतिक्रिया से ही मुझे अपनत्व का एहसास होने लगा। हम बहुत जल्द एक दूसरे से घुल -मिल गए। वैसे आभासी दुनिया में मैं जल्दी से किसी से मित्रता करने में थोड़ी झिझकती हूँ। लेकिन रेणु से मिलकर मुझे अच्छा लगने लगा। रेणु ने मुझे अपने ब्लॉग पर आने का निमंत्रण दिया और साथ ही ये भी कहा कि -कामिनी तुम अपना ब्लॉग बनाओं ।मैंने रेणु को अपने ब्लॉग का लिंक भेजा और उनसे ये भी कहा कि वो मेरा मार्गदर्शन करें। अगले ही दिन रेणु ने मेरे ब्लॉग का लिंक आप सब से साझाकर मेरे जीवन में नई ख़ुशी ,नई ऊर्जा और नया उत्साह भर दिया। रेणु ने मुझे आप सब साहित्य प्रेमियों से मिलवाया ,साथ ही साथ मेरी टंकण अशुद्धियों के लिए भी मुझे सचेत करती रही ,मैं हमेशा रेणु की आभारी रहूँगी।
एक सखी का हाथ थामकर चली थी पता ही नहीं था आगे सफर में मुझे इतने सारे संगी -साथियों का सानिध्य और स्नेह मिल जाएगा। आदरणीया बिभा दी ,यशोदा दी ,साधना दी जैसे सम्मानित रचनाकारों का आशीर्वाद मिला ,आदरणीया कुसुम जी ,मीना भरद्वाज जी ,मीना शर्मा जी ,सुजाता जी ,शुभा जी ,सुधा देवरानी जी ,अनुराधा जी ,अभिलाषा जी ,ज्योति जी,कविता जी ,नीतू जी जैसी स्नेहिल सखियों का स्नेह ,सहयोग और प्रोत्साहन मिला ,मेरे ब्लॉग पर इनकी निरंतर उपस्थिति ने हर पल मेरा मनोबल बढ़ाया और मैं कुछ अच्छा लिखने का प्रयास करती रही हूँ। इतना ही नहीं श्वेता जी ,अनीता सैनी जी और अनु जी जैसी प्यारी बहनो का साथ मिला जिन्होंने मेरी रचनाओं को " पाँच लिंको का आनन्द "और चर्चामंच जैसे प्रतिष्ठित मंचो पर साझा कर मुझे अपने स्नेह डोर से बांध लिया।
आदरणीय दिग्विजय अग्रवाल जी ,रूपचन्द्र शास्त्री जी ,रविंद्र सिंह यादव जी ,सुशील कुमार जोशी जी , विश्वमोहन जी ,ज्योति खेर जी ,पुरुषोत्तम जी ,दिगंबर जी जैसे ब्लॉग जगत के प्रतिष्ठित वरिष्ठ रचनाकार जिनकी रचनाओं को पढ़ने तक का सौभाग्य भी मुझे शायद कभी नहीं मिलता, उनके रचनाओं को पढ़ने का आनन्द भी मिला और उनका स्नेह ,आशीर्वाद और प्रोत्साहन पाकर मैं धन्य हुई। आदरणीय शशि जी ,लोकेश जी ,पंकज प्रियम जी रोहतास जी ,संजय भास्कर जी जैसे प्रतिष्ठित साहित्यकरों ने मेरी रचना पर अपनी अनमोल प्रतिक्रिया देकर मेरा उत्साहवर्धन करते रहे। मैं कहाँ इस काबिल थी कि आप सभी का सानिध्य पा सकती थी ,आप सभी से जुड़कर मैं अपने आप को बहुत भाग्यशाली मानती हूँ। इस एक साल में जीवन ने मुझे बहुत बड़ा सदमा भी दिया परन्तु आप सब के बीच रहकर मैं उससे भी जल्दी उभर पाई। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास हैं कि आप सभी का स्नेह और सहयोग मुझे हमेशा मिलता रहेगा। अगर इस एक साल के सफर में मुझसे कभी भी कोई भूल हुई हो तो मैं आपसभी से क्षमाप्रार्थी हूँ। आप सभी का तहे दिल से आभार और सादर नमस्कार
मेरा पहला लेख जिसमे अनगिनत गलतियाँ थी
हर पल सिखाती जिंदगी
मेरा पहला लेख जिसमे अनगिनत गलतियाँ थी
हर पल सिखाती जिंदगी