इस वैलेंटाइन डे पर...
आओ,मैं तुमको सुनाऊँ एक किस्सा
जो नहीं है इस समय का हिस्सा
सच्ची ये कहानी है ना समझो जुबानी है
बनावटी और दिखावटी इस युग में
घटित पवित्र एक प्रेम कहानी है ।
इसे सुन तुम जाग जाओंगे
दोस्ती और प्यार के मर्म को पहचान जाओंगे।
बहुत दूर....क्षितिज के उस पार...रहता था एक दीवाना....खुद से ही परेशान....दुनिया से था बहुत नाराज़.....
बैठा रहता था वो गुमसुम...... सबसे अलग-थलग....अपने ही अंतर्मन की अँधेरी सी कोठरी में......सारे खिड़की दरवाजे पर उदासी और क्रूरता के ताले लगाकर.....हर तरफ क्रोध के पहरे थे.....किसी भी संवेदना के लिए कोई जगह नहीं थी.....वर्जित थी मुस्कान और ख़ुशी का प्रवेश....."प्रेम" तो सबसे बड़ा दुश्मन था....घृणा थी उससे उसे .... पर,गीत मधुर वो गाता था...खुद को उसी में रमता था... परन्तु, जैसे रहती देह प्राण बिन...वैसे ही, प्रीत बिना थी उसकी गीत....
अचानक एक दिन उसे....अँधेरी खिड़की के बाहर......एक साया सी गुजरती महसूस हुई.....लगा ये भ्रम है उसका.... मगर हर एक दो दिनों पर वो साया खिड़की पर नजर आने लगी.....पहले एक घड़ी, फिर दो घड़ी, फिर बार-बार वो आने-जाने लगी...
उसने कहा -रुक जाओ वही.....यहाँ प्रवेश वर्जित है लेकिन....
छाया ने अनसुनी कर दी उसकी बात...
लगी आने वो बारम्बार....
खिड़की से ताका-झांकी करके...
लगी वो उसके मन को हरने.....
उसने पहरे और बढ़ा दिए मगर, एक दिन उस अँधेरे में एक तेज रौशनी सी दिखाई दी.....वो उत्सुकता वश खिड़की के करीब जाकर झाँकने लगा.....एक स्वर्ण सी आभा दिखी....देखते-देखते उसने एक परी का रूप धारण कर लिया और अपने स्वर्ण किरणों में उसे समाहित करने की कोशिश करने लगी। उसने आँखें भींच ली चीखा-"दूर चली जाओं मुझसे "। छाया चली गई....मगर,
वो तो उसके गिरफ्त में आ चूका था....
प्रेम हृदय में प्रवेश पा चुका था....
अंतर्मन की खिड़की खुल चुकी थी....
आँखे एक झलक को चौखट पर जा टंगी थी....
मगर, वो स्वर्ण परी लगी खेलने लुक्का-छिपी .....कभी आती कभी कई दिनों के लिए गायब हो जाती। रहने लगा वो बेचैन...ढूंढने लगा उसे दिन रैन....एक दिन....वो मिल गई उसे....
मगर, ये क्या ?? वो स्वर्ण परी तो खुद किसी और के मोहपाश में जकड़ी हुई थी। स्वर्ण परी ने उससे कहा-"कर ना तू मेरा इंतज़ार.....मैं नहीं आ सकती तेरे पास......"
थोड़े दिनों तक वो झल्लाता रहा.....
खुद पर ही सितम ढाता रहा.....
मुक्त ना कर पाया जब खुद को उससे...
फिर नियति मान, मिन्नत की उसने.......
माना....,
तू किसी और के आसमां का चाँद है पर,
थोड़ी सी चाँदनी की मुझे भी दरकार है...
तेरी किरणों से मुझमें,नवजीवन का संचार हुआ है....
तुम क्या जानो,मुझ पर, ये तेरा उपकार हुआ है....
मुझ पर कर दो एक और एहसान.....
बन जाओं मेरी पूर्णमासी का चाँद....
गुजरेंगे कुछ पल तो मेरे रोशनी की बाँहों में.....
जी लूँगा मैं बाकी के पल अमावस की काली रातों में.....
उसके सुर-संगम ने भी तो छेड़ा था परी के मन वीणा की तारो को.....
रख ना पाती खुद को दूर....
जाने को हो जाती मजबूर.....
इसलिए, उसकी देख तड़प वो राजी थी....
मगर, दीवाने की खुद से ही जंग जारी थी....
मंजूर नहीं था टुकड़ा उसको....
उसे चाहिए था पूरा चाँद.....
वो खुद पर ही चिल्लाया - तोडा है उसने सुरक्षा चक्र मेरा ....सेंध मारी है उसने मेरी अँधेरी सी दुनिया में.....उसकी स्वर्ण किरणों ने मुझे एहसास दिलाया -मैं जिन्दा हूँ.....अब, जीना चाहता हूँ मैं लेकिन.......सिर्फ और सिर्फ ....उसी के साथ । उसने कहा -
तू भले ही किसी और की दुनिया को रोशन कर....
मगर, तू मेरी चाँदनी है....
तू बस मेरी चाँदनी है.....
एक दिन उतरेगी मेरे ही आँगन में.......
रोशन करेगी तू मेरा ही जीवन....
प्रेम मेरा कर देगा तुमको मजबूर.....
रह ना सकेंगी तू मुझसे दूर.....
मिला ना मैं तुमसे एक बार....
फिर भी, हो गया तुझसे प्यार.....
विधना का है खेल ये सारा.....
कर ना सकेंगी तू मुझसे किनारा....
अब,
स्वर्ण परी की बारी थी.....
उसकी दिल की तरंगों में मची खलबली भारी थी......
सोचने पर मजबूर हुई थी.....
कश्मकश जारी थी...
गई अनजाने थी मैं तो उसकी ओर.....
नहीं था मेरे दिल में कोई चोर....
मुझको मेरा साथी प्यारा....
उसे छोडूं, ये नहीं मुझे गवारा....
नहीं है उसका कोई मोल....
वो है सबसे अनमोल....
फिर क्यूँ, वो अजनबी मेरा चैन चुरा रहा है....
हाँ,चुपके-चुपके मेरे दिल में वो तो घर बना रहा है...
नहीं-नहीं, ये हो नहीं सकता...स्वर्ण परी बेचैन, बहुत बैचैन.....वो तड़पकर बोली-
सुनकर तेरी मीठी तान....
खींची चली आई थी मैं इस पार....
छोड़ दे, जाने दे मुझको
मेरा साथी कर रहा मेरा इंतज़ार....
तू तो कहता है मैं हूँ तेरी चैन....
पर.,मुझे तो तू कर रहा है बेचैन....
ठहरी शांत नदी में मेरी....
तलातुम बन तू क्यूँ आ रहा है....
सुनकर उसकी बातों को, टूट गया दिल दीवाने का बोला -
जा,नहीं करूंगा अशांत मैं तुझको.....
पर, कभी भूल ना सकेंगी तू मुझको.....
तू मेरी नहीं ना सही.....
मैं तेरा रहूँ ये हक़ है मुझको.....
मैं तुझको पहचान चुका हूँ....
तू भी एक दिन जान जाएँगी....
हूँ तेरे ही दिल का आधा टुकड़ा ......
एक दिन तू ये मान जाएँगी......
याद रखना तू मेरी बात....
जानकर के भी अगर ये राज...
ठुकराया जो मेरा प्यार...
रोएगी तु जार-जार...
सबब आँसुओं का बतला ना सकेंगी...
दिल के जख्म दिखला ना सकेगी....
सुनकर के उसकी बात स्वर्ण परी अब टूट रही थी.....हर पल खुद से ही जूझ रही थी....समझ चुकी थी कि- यही है मेरे सपनों का "राज"फिर भी....खुद को ही समझा रही थी....साथी के साथ फर्ज निभा रही थी।
हर पल वो मन को समझाती -नहीं नहीं ये हो नहीं सकता....जैसा वो दीवाना है, वैसा कोई हो नहीं सकता....वैसा ही कोई तो था बचपन से सपने में मेरे मगर, सपने कब हुए है अपने ....कही ये छलावा तो नहीं....
ये मुझे क्या हो रहा है....
अपनी दुनिया में मैं संतुष्ट बहुत हूँ....
हाँ मगर, मैं खुश नहीं हूँ......
कुछ तो खालीपन मेरे भीतर है....
जो पल दो पल उसके आने से भर जाता है..
वक़्त मेरा थम सा जाता है ....
सुध बुध मेरा भी खो जाता है....
मैं उसकी चाँदनी हूँ या....
वो सूरज बन आया है मेरा....
करने दूर मेरे मन का अँधियारा....
प्रीत हृदय में घर बना रहा था....दोस्ती और प्यार के फर्क को समझा रहा था... कश्मकश जब सह ना सकी....टूटकर फिर बिखर गई वो....हार गई जब खुद से तो, साथी से कह डाला सब राज....
हाले दिल बतलाने लगी.....
नहीं बेवफा वो, ये बात उसे समझाने लगी....
हो गई हूँ मैं मजबूर.....
रह ना सकूँगी अब उससे दूर....
जाने दे मुझे उसके पास....
छोड़ दे तू मेरी आस....
कर दे माफ़ मुझे मेरे यार....
समझी थी मैं तेरी दोस्ती को प्यार....
तुझसे रूह जुड़ी है मेरी.....
पर,वो तो बसा है रूह में मेरी.....
कुदरत ने दोस्ती और प्यार का फर्क मुझे समझा दिया है...
हाँ, उसने मेरे दिल में प्रेम अगन जला दिया है...
पर, तुमको ना छोड़ सकूँगी....
मुँह तुमसे ना मोड़ सकूँगी....
बिन उसके मैं जी ना सकूँगी....
और दर्द तुझे हो ये भी सह ना सकूँगी....
रोई वो जार-जार, तड़पी और बोली-
उलझ गई हूँ मैं साथी अब,
तू ही राह दिखा दे यार....
दोस्त ने देखा....ये दीवानी हो चुकी है......सुध बुध अपना खो चुकी है....
सोचने पर वो हुआ मजबूर...
हर पल साथ रहकर भी मैं इसे ना बांध सका....
बिन देखे उससे कैसे बंधी,
ये भी ना जान सका....
आखिर ये कैसी है डोर....
शायद,यही है इसका चितचोर
बोला वो खुद को संभाल....
बन्धन नहीं है मेरा प्यार.....
जा कर ले तू उससे इकरार....
मेरा प्यार तू भूलकर....
उसका इश्क कबूल कर.....
प्यार हो या दोस्ती....
हम निभाएंगे सदा मेरे यार.....
"तेरी वफ़ा मुझे सच्ची लगी है.....हाँ,मुझे मेरे प्यार से अच्छी तेरी दोस्ती लगी है......"
दोस्त के गले से लगकर....
बोली वो आँखों को नम कर.....
मुझ पर रहेंगा ये एहसान तेरा....
भुलूँगी ना कभी मैं प्यार तेरा....
स्वर्ण परी के खुल चुके थे पर....
उड़कर पहूँची वो प्रीतम के दर...
पल ना उसने एक गवाया....
अपना दर्दे दिल सुनाया....
देखों,सारे बंधन मैंने तोड़े दिया है......
बेवफाई का भी इल्जाम लिया है....
दिल ने ऐसा मजबूर किया है.....
हाँ हाँ मैंने तुमको स्वीकार किया है...
हो गई थी प्रीत की जीत....
सुर से जा मिली थी गीत...
सुरमई दिन होने लगी...
रातें हो गई थी रंगीन...
फिर.....फिर क्या?? तोते की फिर हो गई मैना.... उसने कसमें-वादे हजार किए....
भटक रहा था कई जन्मों से...
मैं तो तेरी तलाश में ....
मुझको मिली है मंजिल मेरी...
आ गया तेरी पनाह में....
अब ना छूटेगा साथ हमारा...
किसी भी तूफान में...
रख लूंगा में जग से छुपाकर...
तुझको पलकों की छांव में....
हैं जग में मशहूर ये बात....इसे सदा तुम रखना याद....
पहरे चाहे लाख बिठा लो.....
चाहे हो जाओ सबसे दूर...
प्रीत खुद मीत को ढूंढ ही लेगा....
चाहे खुद को कहीं छुपा लो....
प्रीत की रीत निराली है....
इसे ढूंढें दुनिया सारी है....
पर, सच्ची प्रीत मिली है उसी को....
जिस पर कुदरत की मेहरबानी है....
रखना तुम इसको संभाल....
परमात्मा का है ये वरदान....
प्यार का फलसफा तुम्हें सुनाऊँ....जरूरी एक बात बताऊँ
ज़रूरी नहीं कि दीदार हो....
जरूरी नहीं कि आँखें चार हो....
जरूरी नहीं कि बातें हजार हो...
जरूरी है कि बस, एक एहसास हो...
जब-जब किसी कान्हा की बंसी बजेगी...
कोई राधा तड़प उठेगी...
परवाना जब आह भरेगा...
शमां खुद ब खुद जल उठेगी.....
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जब कान्हा की बंसी बजेगी...
जवाब देंहटाएंकोई राधा तड़प उठेगी...
परवाना जब आह भरेगा...
शमां खुद ही जल उठेगी.....
वाह !! शानदार पोस्ट .., मित्रता और प्रेम की बारीक सी लकीर को समझाने का प्रयास करती लाजवाब कहानी ।सादर नमस्कार कामिनी जी 🙏
सराहना हेतु दिल से शुक्रिया मीना जी 🙏
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 14 फरवरी 2024को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
मेरी रचना को स्थान देने के लिए दिल से शुक्रिया पम्मी जी 🙏
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 14 फरवरी 2024को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
परवाना जब आह भरेगा...
जवाब देंहटाएंशमां खुद ब खुद जल उठेगी
बेहतरीन
सादर
आप की प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ दी, सादर नमस्कार 🙏
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सर 🙏
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत है आपका हरीश जी, सराहना हेतु दिल से धन्यवाद 🙏
हटाएंप्रिय कामिनी, कितनी प्यारी सी है प्रणय की ये अनमोल गाथा! लेखों के माध्यम से तुमने अपनी मेधा का खूब परिचय दिया है, पर काव्य में तुमने जिस तरह का प्रयास किया है वह बहुत सराहनीय है! एक प्रेम कथा के विभिन्न भावनात्मक पड़ावों को बहुत ही कुशलता से लिखा है तुमने! कई पंक्तियाँ तो मन को छू कर निकल गई!
जवाब देंहटाएंतुम्हारी वफ़ा मुझे सच्ची लगी है.....हाँ,मुझे मेरे प्यार से अच्छी तेरी दोस्ती लगी है......"///////
सच में दोस्ती प्रेम का सर्वोत्तम रूप है!
प्रेम एक अव्यक्त अनुभूति है! इस पर अनगिन लोगों ने लिखा पर कोई भी इसे सही ढंग से परिभाषित नहीं कर पाया! जितने अनुभव है उतनी ही परिभाषाएँ!
ज़रूरी नहीं कि दीदार हो....
जरूरी नहीं कि आँखें चार हो....
जरूरी नहीं कि बातें हजार हो...
जरूरी है कि बस, एक एहसास हो...
क्या खूब फलसफा गढ़ा है प्यार का! मेरी दुआ है ,यूँ ही लिखती रहो हो सबको चकित करती रहो! हार्दिक शुभकामनाएँ सखी!अच्छा लगा आज अर्से बाद तुम्हारे ब्लॉग पर आकर!
बहुत दिनों बाद तुम्हें भी अपने ब्लॉग पर देख कर बहुत अच्छा लगा सखी, तुम्हारी इस सुन्दर प्रतिक्रया के लिए हृदय तल से धन्यवाद सखी
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद भारती जी 🙏
हटाएंबहुत सुंदर रचना,
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मधुलिका जी
हटाएंवाह!!!!
जवाब देंहटाएंखो गई मैं तो इस सच्ची कहानी में ...
प्रेम तो वह जन्मों का रहा होगा यकीनन जो इस तरह मिले...पर दोस्त को दाद देनी पड़ेगी ।
दिल को छूती बहुत ही हृदयस्पर्शी कहानी ।
आपकी इस सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए हृदय तल से धन्यवाद सुधा जी 🙏
जवाब देंहटाएंप्रेम और दोस्ती पर्याय से लगते हैं
जवाब देंहटाएंकई पंक्तियों दिल छु लिया
बहुत उम्दा रचना
लिखने की शैली ने अंत तक बांधे रखा.
वाह
पधारें- तुम हो तो हूँ
बहुत बहुत धन्यवाद रोहितास जी🙏
हटाएंक्या बात है?
जवाब देंहटाएंकितनी खूबसूरती से प्रेम को परिभाषित किया है, सुंदर अभिव्यक्ति। बहुत बधाई।
बहुत बहुत धन्यवाद जिज्ञासा जी 🙏
हटाएंशुक्रिया 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर , सराहनीय रचना
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया सर, आप का आशीर्वाद मिला लिखना सार्थक हुआ, बहुत दिनों बाद आपकी उपस्थिति पाकर बेहद खुशी हुई,, उम्मीद है आप स्वस्थ होंगे,सादर नमस्कार 🙏
हटाएं