गुरुवार, 9 जुलाई 2020

"रचना और रचनाकार"


बचपन में मेरी दादी एक कहानी सुनाया करती थी.....
     एक आदमी जो खुद को बड़ा ज्ञानी समझता था,वो सृष्टिकर्ता पर , सृष्टि की हर एक रचना पर ,समाज और उसके नियमों पर, हर एक सम्बन्ध पर प्रश्नचिन्ह लगा देता। उसे खुद के आगे हर कोई मूर्ख और कमअक्ल ही लगता था। एक बार उस के गॉव में एक महात्मा जी आये। गॉव के लोग बड़ी ही श्रद्धा से उनका प्रवचन सुनने जाते।महात्मा जी भगवान की और उनकी हर एक रचना की गुणगान करते। उस आदमी को ये सब बर्दाश्त नहीं होता। एक दिन वो प्रवचन के बाद उस महात्मा के पास पहुंच गया.उसने उन्हें खूब भला-बूरा कहा। उसने कहा -आप पाखंड करते हैं  भगवान के नाम पर आप सबको बेवकूफ बनाते है ,"भगवान" नाम का कोई अस्तित्व नहीं है. महात्मा जी ने मुस्कुराते हुए पूछा -"कोई तो रचनाकार होगा न,जिसने इस सृष्टि की रचना की है" तो उस व्यक्ति ने कहा -"ये सब विज्ञान हैं भगवान नहीं,यदि भगवान है तो वो दिखता क्यूँ नहीं ,क्या आप मुझे भगवान से मिलवा सकते हैं ? महात्मा जी ने बड़े शांत स्वर में कहा-" बिलकुल मिलवा सकता हूँ मगर पहले तुम मेरे चंद प्रश्नो का उत्तर दे दो।" उस आदमी ने बड़ी ढिठाई से कहा -पूछिए।

    महात्मा जी ने पूछा -कोई एक व्यक्ति का नाम बताओ जिससे तुम अत्यधिक स्नेह करते हो? उस व्यक्ति ने अकड़ते हुए कहा -"मैं खुद से ज्यादा किसी से प्यार नहीं करता".... क्या अपने माता-पिता से भी नहीं ,उन्होंने तो तुम्हे जन्म दिया है,उनका तो आदर करते होगें न - महात्मा जी ने उसी शांत स्वर में पूछा। नहीं,मुझे जन्म देना एक जैविक प्रक्रिया थी और पालन-पोषण करना उनका कर्तव्य जो हर माता-पिता करते हैं ,उन्होंने कुछ विशेष नहीं किया........तुम्हारी पत्नी और बच्चें तो होंगे न -महात्मा जी ने पूछा। उनका क्या,वो तो मेरी अनुकम्पा पर जीते हैं उन्हें मेरा ऋणी होना चाहिए मुझे स्नेह करना चाहिए,मैं उनकी परवाह क्यूँ करूँ- उस आदमी ने गर्दन अकड़ा कर कहा..... कोई दोस्त,रिश्तेदार या पड़ोसी तो होगा - महात्मा जी ने फिर पूछा। नहीं-नहीं मैं किसी से संबंध नहीं रखता,सब मतलब के होते है,थोड़ा भाव दो सर पर चढ़ जाते है, इनकी सिरदर्दी मैं नहीं पालता,वैसे भी सब जाहिल है, देखा नहीं आपने मूर्खो की तरह आपकी बातों में उलझ जाते हैं -उसने झल्लाते हुए कहा।

    महात्मा जी मुस्कुराते हुए बोले -हाँ हाँ ,सही कहते हो तुम,कोई बात नहीं किसी जानवर,पशु-पक्षी, पेड़ -पौधे या पुष्प से तो तुम्हें जरूर लगाव होगा...... नहीं,जानवर बहुत गंदे होते है उन्हें कौन प्यार करेंगा और पक्षी तो हर जगह बीट करते रहते है,मैं उनसे दूर ही भला.... अच्छा ये बताओं सूरज चाँद ,सितारे ,धरती और आकाश के बारे में तुम्हारी क्या राय है  इनके अस्तित्व को मान कर इनकी उपासना तो तुम जरूर करते होंगे.....ये सभी एक खगोलिय पिंड है,विज्ञान के अनुसार इनकी उत्पति एक खगोलिय घटना के कारण हुआ, इनकी उपासना या पूजा क्यों करें हम, मेरे पूजा करने से ये औरों से ज्यादा मुझे रौशनी और ऊर्जा देंगे क्या ? अच्छा ये बताओं - तुमने वेद-पुराण का अध्ययन किया है? अरे नहीं,स्वामी जी वेद पुराण को भी तो आप जैसे महत्माओं ने ही लिखा है हमें नियम कानून में बांधने के लिए,ये सही है या गलत हमें क्या पता, हम तो अपनी बुद्धि-विवेक से समझेगें कि क्या सही हैं क्या गलत। ये तो बहुत अच्छी बात कही तुमने....बेटा,तब तो तुमने रामयण और महाभारत भी नहीं पढ़ी होगी,उनके बारे में भी नहीं जानते होंगे- स्वामी जी ने बड़े धीरज से पूछा। अरे नहीं स्वामी जी ,जानता तो सब हूँ,मगर मैं इन मूर्खों की तरह नहीं हूँ जो उनमे लिखी बातों को सत्य मान लूँ, ये तो एक काल्पनिक कथाएं है। स्वामी जी बड़े प्यार से बोले- बेटा,तुम तो बड़े ज्ञानी हो,भगवान को ना देखो ना समझों तो ही अच्छा हैं, मैं तुम्हे भगवान के दर्शन नहीं करा सकता। वो व्यक्ति खुद की जीत पर इतराता हुआ चला गया। 
    अगले दिन स्वामी जी ने अपना प्रवचन प्रांरभ करते हुए पूछा- क्या आप सब भगवान से मिलना चाहते है, उनका दर्शन करना चाहते हो? सबने एक स्वर में "हाँ" कहा। स्वामी जी ने कहा-  माता-पिता के स्नेह में भगवान है,पति-पत्नी के समर्पण में भगवान है,बच्चों की किलकारियों में भगवान है,पक्षियों के कलरव में भगवान है,फूलों की सुगंध में भगवान है अगर तुम इनके करीब हो तो भगवान के करीब हो,यदि और नजदीक से भगवान का दर्शन करना चाहते हो तो उगते सूरज में उन्हें देखों, ढलती शाम में उन्हें महसूस करो, किसी भूखे को तृप्त करके देखो, किसी रोते के मुख पर हँसी लाकर देखो, माता पिता की सेवा करोगे, सृष्टि के प्राणियों से स्नेह करोगे तो भगवान के दर्शन अवश्य होंगे, क्योँकि "कण-कण में भगवान है,तुम्हारे बाहर भगवान है,तुम्हारे भीतर भगवान है, प्रेम,दया, करुणा, परोपकार, आदर-सम्मान यही तो भगवान के रूप है मगर ये दर्शन महाज्ञानी नहीं कर सकते क्योँकि वो मद में अंधे होते है,ये दर्शन निश्छ्ल,पवित्र और करुणामयी आँखे ही कर सकती हैं. बच्चों, एक बात याद रखना -"जो रचना को नहीं समझ पाया वो रचनाकार को कभी नहीं समझ पायेंगा"
    सभा से दूर खड़ा वो व्यक्ति सब सुन रहा था मगर खुद को महाज्ञानी समझने वाले ने अपनी मन की आँखें बंद कर रखी थी वो ना सृष्टि को समझ सकता था ना सृष्टिकर्ता को। 

    कहानी सुनाने के बाद दादी कहती थी -बच्चों "अज्ञानी को ज्ञान दिया जा सकता है मगर जो खुद को महाज्ञानी समझ बैठा हो,उसे तो परमात्मा भी आकर नहीं समझा सकता।"




 

20 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार
    (10-07-2020) को
    "बातें–हँसी में धुली हुईं" (चर्चा अंक-3758)
    पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।

    "मीना भारद्वाज"

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    1. मेरी रचना को स्थान देने के लिए दिल से आभार मीना जी,सादर नमस्कार

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  2. ऐसा ही ज्ञान और श्रेष्ठता का दंभ वामपंथ भरता है !

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  3. बहुत बढिया कहानी प्रिय कामिनी। संसार में विभिन्न प्रकार के प्राणी पाए जाते हैं , जिनमें से ये कुतर्की लोग विशेष श्रेणि में आते हैं , जिन्हें समझाना और दीवार पर सर पटकना एक बराबर है। अच्छा किया स्वामी जी ने इस तरह के इंसान को समझाने की ज्यादा कोशिश नहीं की । मुझे भी प्रेरणा हुई और मुझे भी इस प्रकार की कई कहानियाँ याद आ गई। और भी कहानियाँ लिखना सखी। हार्दिक स्नेह के साथ ।🌹🌹💐💐

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    1. इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए दिल से धन्यवाद सखी,स्नेह

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  4. जो अहंकार से भरा हो उसे ईश्वर प्राप्ति नहीं हो सकती
    बढ़िया कहानी

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  5. आ कामिनी सिन्हा जी , शिक्षाप्रद एवं प्रेरणादायी कहानी। सही है, जो खुद को महाज्ञानी समझ बैठा हो उसे परमात्मा भी नहीं समझा सकता ! --ब्रजेन्द्र नाथ

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    1. सहृदय धन्यवाद सर,स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर,आभार एवं सादर नमस्कार

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  6. बहुत सहीं . अति बुद्धिवादी लोग इसी तरह की बातें किया करते हैं . ईश्वर के अस्त्तित्व पर उन्हें घोर आपत्ति होती है . प्रकृति , खगोलीय पिंड घटनाएं स्वीकार कर लेंगे पर ईश्वर को नहीं . अच्छी कहानी

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    1. सहृदय धन्यवाद गिरिजा जी,आपकी इस सुंदर प्रतिक्रिया के लिए दिल से धन्यवाद, सादर नमस्कार

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  7. वाह !दी लाजवाब
    अहं जब उफनता है व्यक्ति के अंदर सर्वज्ञानी बन बैठता है.
    "अज्ञानी को ज्ञान दिया जा सकता है मगर जो खुद को महाज्ञानी समझ बैठा हो उसे तो परमात्मा भी आकर नहीं समझा सकता।"
    बेहतरीन 👌

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    1. दिल से शुक्रिया अनीता जी,आपकी इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आभार बहन

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  8. वाह!सखी बहुत ही शिक्षाप्रद एवं प्रेरणादायी कथा।
    सही कहा अज्ञानी को ज्ञान दिया जा सकता है पर ऐसे दम्भी और अल्पज्ञानी को तो स्वयं भगवान भी नहीं सिखा सकते।
    भगवान को प्रत्यक्ष देखना है तो वे सृष्टि के कण-कण में हैं ।जिनके हृदय में प्रेम होगा वही सृष्टि के जीवमात्र से प्रेम कर परमात्मा का दर्शन करेंगे ।

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    1. सहृदय धन्यवाद सुधा जी,आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से लेखन को बल मिला,सादर नमन

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  9. उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद ज्योति जी,आपकी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार,सादर नमन

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