मैं दिल्ली महानगर में रहती हूँ (वैसे फ़िलहाल तो मुंबई में हूँ ) यहाँ पानी की जो किल्लत है वो जगजाहिर है । मगर, आज मैं आप सभी से दिल्ली वालों की एक शर्मनाक आदत को साझा करना चाहती हूँ। उनकी सिर्फ़ इस आदत की वजह से मुझे ये कहते हुए बहुत शर्म आती है कि "मैं दिल्ली से हूँ "
दिल्ली वाले जितना ज्यादा पानी का रोना रोते हैं उससे कहीं ज्यादा वो पानी की बर्बादी करते हैं।कम से कम मैंने इतनी ज्यादा पानी की बर्बादी कहीं नहीं देखी।आज से 25 साल पहले जब मैं दिल्ली आई थी उस वक़्त लोगों को पानी के लिए परेशान होते देखती तो बड़ी दया आती थी। हम तो थे बिहार से वहाँ कभी पानी और हवा की किल्ल्त नहीं हुई थी (फिर भी हम पानी, बिजली की बर्बादी नहीं करते थे) तो मेरे लिए ये बड़ी दर्दनाक परिस्थिति थी। मैं बहुत परेशान और दुखी हो जाती थी कि-क्या दिन आ गए है ? लेकिन जैसे-जैसे यहाँ के आबो-हवा को समझने लगी तो लगा इनके साथ जो हो रहा है उसके जिम्मेदार ये खुद है। सप्लाई वाटर (पीने का पानी) की जो ये बर्बादी करते थे (और अभी भी करते हैं ) उसे देख मेरा खून खौल उठता था। कई बार तो पड़ोसियों से कहा-सुनी भी हो जाती। यहाँ के लोग पीने के पानी से ही घर के दरो-दिवार और यहाँ तक कि सड़कों को भी धोते है। कपडे धोने में भी पीने के पानी का यूज ही करते हैं वो भी बहुत लापरवाही से। आप यकीन नहीं करेंगे जब पानी का टैंकर आता है तो यहाँ की स्थिति जंग जैसी हो जाती है। जिसका रसूख है वो तो टंकी ही भर लेता है और नहाने-धोने,कपडे धोने,बर्तन धोने तक में यूज़ करता है और जो बेचारा है उसे तो पीने तक को पानी नसीब नहीं होता। इस बात को लेकर कई बार पानी के टैंकर के पास हाथापाई तक होती ही रहती है। आपने अख़बारो में कई बार इस पर ख़बरें पढ़ी भी होगी। यदि सभी तरीके से सिर्फ पीने के लिए पानी लेते तो एक टैंकर एक मुहल्ले के लिए काफी होता मगर यहाँ ये भावना तो होती ही नहीं है।
वर्तमान समय में परिस्थितियाँ बहुत हद तक सुधरी है मगर अभी भी कई इलाकों में पानी की बहुत ही ज्यादा किल्ल्त है। जिसे पानी मिल रहा है वो दूसरे के दर्द से आँख चुराए हुए है। ऐसा नहीं है कि-उन्हें तकलीफ का अंदाज़ा नहीं बस "आज मेरी जरूरत की पूर्ति हो रही है न, बाकियो से क्या लेना-देना" ये भावना भरी हुई है।जब सप्लाई वाटर आता है तो आप जिधर भी नज़र घुमा ले हर घर के टंकी से पानी ओवर फ्लो होकर गिरता नज़र आएगा आपको। (वैसे केजरीवाल ने फ्री का पानी बिजली देकर लोगों की लापरवाही को और बढ़ावा दे दिया है, पानी बिजली की कीमत तो पहले भी पता नहीं था अब और सोने-पे-सुहागा हो गया है। उस पर मजे की बात ये कि जो सबसे ज्यादा बर्बादी करते हैं महंगाई का रोना भी सबसे ज्यादा वही रोते हैं ) ऐसी लापरवाही जैसे कि -पानी का मोटर चला कर सो गए हो। कितनी बार तो अपने पड़ोसियों को फोन कर के मैंने जगाया है और टोका है कि-कितना पानी बर्बाद करते हो आप ? तो जबाव मिलता है- "अरे, क्या हो गया थोड़ा सा पानी गिर गया तो, आप भी न मिसेज सिन्हा ओवर रिएक्ट करते हो"। और जिस दिन पानी नहीं आता है उस दिन सबसे ज्यादा हाय-तौबा मचाने वाले भी वही लोग होते हैं जो पानी की सबसे ज्यादा बर्बादी करते हैं। संग का रंग चढ़ता ही है तो मेरी भाभी भी वैसे ही पानी की बर्बादी करने लगी।रोको-टोको तो वहीं भाषा बोलती जो अक्सर सभी बोलते हैं कि- " एक मेरे ना करने से क्या होगा" एक दिन मेरा पांच साल का भतिजा उन्हें छत पर पानी बिखेरते हुए देख लगभग चीखते हुए उनसे बोला-" सारा पानी तुम लोग ही खत्म कर दो, हमारे बड़े होने तक पानी बचेगा ही नहीं,हम तो प्यासे ही मरेंगे " उसकी इस बात पर मेरी भाभी को अक्ल आईं और उस दिन से उन्होंने पानी बर्बाद नहीं करने की कसम खाई। अपने भतिजे की बातें सुन उस दिन मुझे महसूस हुआ कि- हम बच्चों को क्या सिखायेंगे शायद, अब बच्चें ही हमें सिखाये और जैसे मेरी भाभी को सद्बुद्धि मिली काश, सबको मिल जाए।
यमुना नदी किचड़ सा बना पड़ा है। पानी के कारण इतनी दुर्दशा होने के वावजूद किसी की आँख नहीं खुल रही। मैं सरकार या प्रशासन से क्यों शिकायत करूं जबकि दोष हमारा है हम ही जागरूक नहीं हो रहें हैं। प्रशासन तो फिर भी जैसे-तैसे पानी की व्यवस्था कर ही रहा। गन्दे पानी को ही कैमिकल प्रोसेस से शुद्धिकरण कर हम तक पहुंचाया जा रहा है। नदी,ताल तलैया सब सूख रहें हैं फिर भी हम जाग नहीं रहें। मेरा अपना अनुभव है कि- जितना बड़ा शहर है वहाँ उतना ही प्रकृति सम्पदा की कमी है और वहाँ के लोग उतना ही ज्यादा लापरवाही से प्रकृति का दोहन कर रहें हैं। गर्मी तेजी से बढ़ती जा रही है और उसी अनुपात में जगह-जगह पानी की किल्ल्त भी होती जा रही है। समुन्द्र के खारे पानी को मीठा बनाने का प्रयोग जल रहा है। यदि हम प्रकृति के प्रति जागरूक नहीं हुए तो एक दिन समुन्द्र तक को पी जाएंगे। लोगों को जागरूक करने के लिए एक बहुत बड़े मुहिम की दरकार तो है ही मगर उससे पहले हमें खुद को सुधारने की जरूरत ज्यादा है। मेरा मानना है कि-यदि हम जागरूक हो गए तो आधी समस्या का समाधान तो हो ही जाएगा। मैंने स्वयं अपने आस-पास के लोग को टोकते और समझाते हुए सुधारने का प्रयास किया है और बहुत हद तक मुझे सफलता भी मिली है।हमारे छोटे-छोटे प्रयास ही बदलाव लाने में सक्षम है।
(मेरा ये लेख अप्रैल महीने के प्रकृति दर्शन पत्रिका में आया था )
कमोवेश यह स्थिति आपको हर जगह मिल जायेगी। रही बात जागरूकता की तो यही तो नहीं समझते लोग। किसी को कहो तो आपको ही वह ज्ञान देने लगेगा। हमारे भोपाल में भी जब पानी आता है छत पर रखी टंकियों में वाल ही नहीं है जिससे पानी बहता रहता है, लाख शिकायत करते हैं लोगों को समझाते है बस वे यही कहते हैं क्या करना। यहाँ तो पैसा देना पड़ता है लोगों को तो कहते हैं अरे इसके पैसे देते हैं तो बहने दो, ये काम सरकार का है और रही बात दिल्ली की तो वहां तो बिजली-पानी फ्री है, फिर किसको पड़ी है, जो जागरूक होना चाहेगा।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा आपने,बस एक बात का संतोष होना चाहिए कि इस जुर्म में (हाँ मैं इसे जुर्म ही कहूँगी )हम खुद शामिल ना हो। प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी तो हम पूर्ण कर रहें हैं। इस विषय पर विस्तृत प्रतिक्रिया देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया कविता जी,सादर नमन
हटाएंलघु कथा के माध्यम से बहुत ही सुन्दर सन्देश
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद मनोज जी,सादर नमन
हटाएंसुन्दर लेख के लिए बधाई ।
जवाब देंहटाएंजल से जीवन सम्भव है । पानी के बिना जीवन रेगिस्तान है।
- बीजेन्द्र जैमिनी
पानीपत - हरियाणा
बहुत बहुत धन्यवाद बिजेंद्र जी,सादर नमन
हटाएंसुन्दर लेख
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद आदरणीय सर,आपकी उपस्थिति उत्साहवर्धन करती है,सादर नमन आपको
हटाएंकामिनी दी, यहीं रो दिक़्क़त है कि लोग जब उनके पास पानी पर्याप्त मात्रा में रहता है तब उसका महत्व नहीं समझते है। बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा ज्योति जी,गलती किसी की हो मगर सजा तो सबको भुगतनी पड़ेगी,सादर नमन
हटाएंमेरे लेख को मंच पर स्थान देने के लिए सहृदय धन्यवाद आदरणीय सर,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंसोये को जगा सकते हैं कामिनी जी जागे हुए सोने का अभिनय करे तो उसे कौन जगाए । आपने जल संरक्षण के महत्व पर प्रकाश डालते हुए लोगों की मानसिकता बदलने के लिए बहुत सुन्दर प्रयास किया है । पत्रिका में लेख प्रकाशन पर आपको बहुत बहुत बधाई ।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा आपने "जगे को कैसे जगाये"
हटाएंसराहना हेतु दिल से शुक्रिया मीना जी,सादर नमन
अरे वाह...बहुत खूब चेतावनी भरा दृष्टांत...पानी की बरबादी पर ऐसे ऐसे वाकये देखे हैं कि मना करने पर लोग इसे अपने अहं पर चोट मानते हैं...मैं तो अपनी कॉलोनी में जिसके यहां ओवरहेड टंकी बहती देखती हूं तो उनकी बेल बजाकर खड़े होकर बंद करवाती हूं...हालांकि इससे कई बार बहस का सामना करना पड़ा...
जवाब देंहटाएंहाँ अलकनंदा जी,बहस तो करनी पड़ती है और उस वक़्त ऐसे लगता है जैसे हमने लोगों से उनके ज़ायदाद में हिस्सा मांग लिया हो ऐसे भड़कते हैं।
हटाएंचलिए हमें अपना कर्तव्य निभाना चाहिए,बहुत बहुत धन्यवाद और आभार आपका
-यदि हम जागरूक हो गए तो आधी समस्या का समाधान तो हो ही जाएगा। मैंने स्वयं अपने आस-पास के लोग को टोकते और समझाते हुए सुधारने का प्रयास किया है और बहुत हद तक मुझे सफलता भी मिली है।हमारे छोटे-छोटे प्रयास ही बदलाव लाने में सक्षम है। .. बहुत सराहनीय पहल ।
जवाब देंहटाएंजागरूक करता चिंतनपूर्ण आलेख ।
सराहना हेतु दिल से शुक्रिया जिज्ञासा जी,सादर नमन
हटाएंसामयिक चिन्तन...
जवाब देंहटाएंआपकी उपस्थिति से लेख सार्थक हुआ,सराहना हेतु दिल से शुक्रिया दी,सादर नमन
हटाएंवाह!सखी कामिनी जी ,बहुत खूब! जल ही जीवन है और हमें लगे हैं अपने ही जीवन से खिलवाड़ करने ।सच में मुझे भी पानी का दुरुपयोग करने वालों पर बडा क्रोध आता है ,ऐसे लोगों से कुछ कहो तो यही जवाब मिलता है कि हम पानी बचा लेगें तो क्या फर्क पडेगा ।
जवाब देंहटाएंसराहना हेतु दिल से शुक्रिया शुभा जी,इस लेख को साझा कर एक बात का तो संतोष हुआ कि -हमारी सभी सखियां भी इस विषय पर चिंतित है और अपने स्तर पर प्रयास भी कर रही है ,सादर नमन आपको
हटाएंमेरे लेख को मंच पर साझा करने के लिए दिल से शुक्रिया श्वेता जी ,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंरहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून!!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आपका 🙏
हटाएंसार्थक संदेश देता सुंदर आलेख
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर, सादर नमन 🙏
हटाएंसही कहा आपने। कुछ लोग बेदर्दी से पानी की बर्बादी करते हैं। इस प्रवृत्ति को रोकना ही होगा।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आपने सर,इसके लिए सार्थक प्रयास जरुरी है,उपस्थित होकर सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं नमन
हटाएंसमसामयिक विषयों पर सराहनीय अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से धन्यवाद भारती जी,सादर नमन
हटाएंसहमत आपकी बात से ... और दिल्ली में इतनी बर्बादी है पानी की क्या बताएं ...
जवाब देंहटाएंऔर अगर माह अभी नहीं जागे तो देर तो हो ही चुकी है ... सामयिक चिंतन करती है आपकी पोस्ट ...
बिलकुल सही कहा आपने,अभी भी नहीं सुधरे तो पता नहीं क्या होगा। अभी दिल्ली में ४-५ दिनों से कई इलाकों में पानी नहीं आया है लेकिन लोग दुःख का रोना रो लगे और फिर भूल जायेगे ,सहृदय धन्यवाद आपको एवं नमन
हटाएंबहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं कामिनी जी लेख के प्रकाशन की ।आप पानी के प्रति स्वयं सचेत हैं और लोगों को भी जागरूक कर रहे हैं खुशी इस बात की है कि आपकी बातें असर कर रही हैं तभी तो
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सुधा जी,आभार एवं नमन
हटाएंतभी तो आपका छोटा भतीजा ऐसे ब़ोला
जवाब देंहटाएंएक और एक ग्यारह होने में देर नहीं।धीरे-धीरे सभी समझने लगेंगे ।
बहुत ही प्रेरक एवं सुंदर लेख।
सही कहा आपने "एक और एक ग्यारह होने में देर नहीं"
हटाएंदेरी होनी भी नहीं चाहिए पहले ही बहुत देर हो चुकी है। मैंने देखा है सुधा जी छोटे बच्चें अक्सर कुछ बहुत बड़ा बोल जाते हैं और वहाँ हमे लज्जित होना पड़ता है।
हमारी पीढ़ीके लोग ही कुछ ज्यादा लापरवाह ये भी महसूस कर रही हुँ मैं,एक बार फिर से आपका शुक्रिया,आभार एवं नमन
पत्रिका में लेख छपने की बधाई ।
जवाब देंहटाएंदिल्ली वासियों के नाम आज तो वारंट निकल गया ।
सज़ा भी होनी चाहिए कि सच ही बहुत बर्बादी होती है पानी की । वैसे दिल्ली में जिनको मुफ्त बिजली पानी मिलता होगा उसकी वो जाने । हमें नहीं मिलता । फिलहाल पानी की दिक्कत नहीं है । और ऐसी स्थिति बनाये रखने के लिए ज़रूरी है कि हम बर्बादी न करें ।
समसामयिक लेख के लिए बधाई ।।
काश !इन हरकतों पर वारंट ही निकलता दी,तभी लोगों को अक्ल आती बिना सजा किसी को कोई बात समझ ही नहीं आती। वैसे अभी भी पानी की दिक्क्त है,पिछले दिनों ही दिल्ली के कई इलाकों में 5-6 दिनों तक पानी नहीं आया था। दिल्ली से बाहरी इलाको में तो और दिक्क्त है। शायद आप जहाँ रहती है वहां नहीं हो। लेख की सराहना हेतु हृदयतल से धन्यवाद दी,आभार एवं नमन
हटाएंसमसामयिक लेख के लिए बधाई ।।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद,,🙏
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