" नज़रे मिलती हैं और नज़ारे बदल जाते है
दिल धड़कता हैं और फ़साने बन जाते है "
हैं न, इस दुनिया में शायद ही कोई ऐसा हो जिसे पहली नज़र का प्यार ना हुआ हो,प्यार दिल करता है पर कहते है-" सारा कुसूर नज़रो का हैं. "सही भी है ,इस जीवन का सारा खेल नज़र और नज़रिये का ही तो होता हैं किसी को पथ्थर में भगवान नज़र आते हैं किसी को भगवान भी पथ्थर के नज़र आते हैं।
कबीरदास जी ने कहा -
" पाथर पूजें हरि मिलें, तो मैं पूजूं पहाड़,
तासे यह चाकी भली पीस खाए संसार."
उनकी नज़र में भगवान पथ्थर की मूर्ति में नहीं बल्कि हमारे भीतर हैं मंदिर और मूरत में नहीं खुद के भीतर उन्हें ढूंढो।तभी तो वो ये भी कहते हैं- "कस्तूरी कुंडल बसै, मृग ढूंढे बन माहिं.. ऐसे घट-घट राम हैं, दुनिया देखे नाहिं." उनकी नज़र में भगवान हमारे अंदर समाहित है और बाहर सृस्टि के कण कण में भगवान के दर्शन होते है। लेकिन मीरा बाई तो कृष्ण मुरारी के सुंदर मूर्ति पर ही रीझ गई ,उस मूर्ति में ही अपने प्रियतम का दर्शन कर उन्हें ही पति मान, अपना तन मन समर्पित कर दिया और अंततः उसी मूर्ति में ही समाहित हो गई।
कहते है कि -सिद्धार्थ के पिता को पहले से ही ये ज्ञात हो चूका था कि संसार में व्याप्त दुःख -तकलीफ ,रोग -शोक ,भूख दरिद्रता को देख सिद्धार्थ वैराग धारण कर लगे। इस लिए उन्होंने सिद्धार्थ के लिए ऐसी व्यवस्था कर दी थी कि वो इन सब दृश्यों को देखे ही नहीं। उन्होंने कभी सिद्धार्थ को महल के प्रांगण से बाहर जाने ही नहीं दिया ,उनके इर्द -गिर्द हमेशा दुःख रहित खुशियों भरा माहौल रखा गया। सिद्धार्थ की नज़रो ने सिर्फ सुख-वैभव और ख़ुशीयां ही देखी इसलिए उन्हें पता ही नहीं था कि -जीवन में दुःख -संताप ,रोग ,भूख जैसी कोई चीज़ भी होती हैं। लेकिन होनी को कौन टालता आख़िरकार एक दिन वो महल से बाहर का दृश्य देख ही लिये। उन्होंने भूख से बिलखते बच्चो को देखा ,रोग से ग्रसित काया देखी ,चेहरे पर अनगिनत झुरियां लिये बुढ़ापा देखा और नश्वर शरीर को नाश होकर अंतिम यात्रा पर जाते शवयात्रा देखी। जैसे ही ये सारे दृश्य उनकी नज़रो के सामने से गुजरा ,सारा नजारा ही बदल गया और वो सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बन गये।
नजरों पर जिस रंग का चश्मा चढ़ा होता है ,नजारा वैसा ही दिखता हैं, जैसा हम नजारा देखते है हमारा नज़रियाँ वैसा ही हो जाता हैंऔर जैसा नज़रियाँ होगा हमारे जीवन की परस्थितियां भी वैसे ही बनती बिगड़ती रहेगीं। क्या सिद्धार्थ से पहले किसी ने भूख ,दुःख ,शोक -संताप और मृत्यु का नजारा नहीं देखा था ?देखा था ,सबने देखा था और आज भी देख रहे है लेकिन सभी लोग इन सारी बातो को जीवन क्रम से जुडी एक घटना के रूप में ही देखते आये थे। बचपन से ही हमारे सामने ये सारी घटनाये घटित होती आ रही है , ये सबके लिए एक आम सी बात थी। इसलिए किसी ने इतनी गहराई से सोचा ही नहीं होगा जैसा सिद्धार्थ ने सोचा। क्यूकि उनकी नजरो ने उस वक़्त तक वैसा कुछ घटित होते नहीं देखा था। इसलिए जब उन्होंने पहली बार ये सारे दृश्य देखे तो उनकी आत्मा चीत्कार कर उठी। तो सारा खेल नजरो का ही तो था।
हम सिर्फ आँखों से ही नहीं देखते ,भगवान ने हमे देखने के लिए एक और नजर भी दे रखी है ,वो हैं -"दिल की नजर "दिल की नजर हमे वो दर्शन करती है जो खुली आँखें नहीं करा सकती। दिल की नजर हमे श्रद्धा -भक्ति ,प्यार -मुहब्बत ,दया -माया ,उपकार -परोपकार ,सदाचार - सहनभूति और विरक्ति -वैराग्य जैसी भावनाओं की अनुभूति करती हैं। ये अनुभूति ही हमे मानवता प्रदान करती हैं। यकीनन ,कबीर ,मीरा और बुद्ध ने दिल की नजर से इन्ही अनुभूतियो के दर्शन किये होंगे।सच्चा प्यार पाने में भी दिल की ही भूमिका होती है आँखों की नहीं। तो ,हमेशा अपने दिल की नजर खुली रखे ,क्या पता इस स्वार्थ से भरी दुनियां में हमे भी कोई सच्चा साथी मिल जाये ,क्या पता हमे भी किसी पथ्थर की मूर्त में कृष्ण नजर आ जाये ,क्या पता हमे भी कण कण में सर्वशक्तिमान प्रभु के दर्शन होने लगे ,क्या पता हमे भी बुद्ध की भांति ज्ञान और वैराग्य प्राप्त हो जाये ,क्या पता ?
ये दुनियां और ये जीवन दोनों ही बहुत खूबसूरत है और इनसे भी खूबसूरत वो सर्वशक्तिमान परमात्मा हैं ,जिन्होंने हमारे लिये प्रकृति को अनगिनत खूबसूरत रंगो से सजाया- सवारा हैं, हमे अलग अलग भावनाओं और अनुभूतियों से भरा जीवन प्रदान किया है। वो हमसे ये अपेक्षा भी रखते है कि -उन्होंने हमे जैसा जो जो दिया हैं ,हम उसका भोग कर , उन्हें वैसा ही वापस करे। उन्हें दुषित और विखंडित ना करे। लेकिन हम तो उनके दिये हुए अनमोल जीवन और प्रकृति दोनों का नाश करते जा रहे है। अब भी वक़्त हैं यदि अब भी हमने अपनी नजर और नजरिये को बदल लिया तो यकीनन धरती फिर स्वर्ग सी नजर आयेगीं।
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद .....सखी ,सादर स्नेह
हटाएं,हमेशा अपने दिल की नजर खुली रखे ,क्या पता इस स्वार्थ से भरी दुनियां में हमे भी कोई सच्चा साथी मिल जाये ,
जवाब देंहटाएंसंदेश बढ़िया है,परंतु ध्यान रखें कि फिर न कोई जख्म नया मिले...
प्रणाम।
सही कहा आपने शशि जी ,सावधान रहना तो बहुत आवश्यक ,लेकिन हमने तो यही महसूस किया हैं कि -आँखें धोखा दे सकती हैं पर दिल ,कभी नहीं....... ,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएं"दुनियां और ये जीवन दोनों ही बहुत खूबसूरत है और इनसे भी खूबसूरत वो सर्वशक्तिमान परमात्मा हैं ,जिन्होंने हमारे लिये प्रकृति को अनगिनत खूबसूरत रंगो से सजाया-संवारा है ।"
जवाब देंहटाएंखूबसूरत चिन्तन ।
सहृदय धन्यवाद....... मीना जी ,सादर स्नेह
हटाएंप्यार करने के सभी पहलूओं पर तटस्थ विचार रखती सुन्दर आलेख.
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद सर ,आप के शब्द हमेशा प्रोत्साहित करते है ,सादर नमन
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
११ फरवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सहृदय धन्यवाद स्वेता जी ,मेरे लेख को स्थान देने के लिए ,सादर स्नेह
हटाएंवाह वाह। कामिनी जी बहुत सारगर्भित लेख आपने नजर और नजरिये पर लिखा। चिंतन परक सुंदर, बहुत बधाई सुंदर लेख के लिये।
जवाब देंहटाएंकुसुम कोठारी ।
बहुत बहुत धन्यवाद कुसुम जी ,आप के स्नेह भरे शब्द उत्साहित करते है सादर स्नेह
हटाएंसार्थक रचना..
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया पम्मी जी ,सादर स्नेह
हटाएंउनकी नज़र में भगवान पथ्थर की मूर्ति में नहीं बल्कि हमारे भीतर हैं मंदिर और मूरत में नहीं खुद के भीतर उन्हें ढूंढो।तभी तो वो ये भी कहते हैं- "कस्तूरी कुंडल बसै, मृग ढूंढे बन माहिं.. ऐसे घट-घट राम हैं, दुनिया देखे नाहिं." उनकी नज़र में भगवान हमारे अंदर समाहित है और बाहर सृस्टि के कण कण में भगवान के दर्शन होते है....वाह !!सखी बहुत ही सुन्दर संदेश देता लेख
जवाब देंहटाएंसादर
दिल से धन्यवाद... ,सादर स्नेह सखी
हटाएंउनकी नज़र में भगवान पथ्थर की मूर्ति में नहीं बल्कि हमारे भीतर हैं मंदिर और मूरत में नहीं खुद के भीतर उन्हें ढूंढो।तभी तो वो ये भी कहते हैं- "कस्तूरी कुंडल बसै, मृग ढूंढे बन माहिं.. ऐसे घट-घट राम हैं, दुनिया देखे नाहिं." उनकी नज़र में भगवान हमारे अंदर समाहित है और बाहर सृस्टि के कण कण में भगवान के दर्शन होते है....वाह !!सखी बहुत ही सुन्दर संदेश देता लेख
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत ही सुंदर लेख.......आदरणीया
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद रविन्द्र जी ,
हटाएंबहुत ही सुन्दर और सारगर्भित लेख...नजर नजारा और नजरिया... सारा खेल इन्हीं का है....
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद... सुधा जी ,सादर स्नेह
हटाएंसुंदर दिल, सुंदर नजर, सुंदर साथी और मौलिक चिंतन।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद.... विश्वमोहन जी ,सादर नमन
जवाब देंहटाएंये दुनियां और ये जीवन दोनों ही बहुत खूबसूरत है हमेशा अपने दिल की नजर खुली रखनी चाहिए बहुत ही सारगर्भित लेख लिखा है आपने कामिनी जी
जवाब देंहटाएंकई दिनों बाद आना हुआ ब्लॉग पर ...काफी बदलाव और बढ़िया पढ़ने को मिला ..!
दिल से शुक्रिया संजय जी ,निजी व्यस्तता की वजह से ब्लॉग पर ज्यादा वक़्त देना थोड़ा मुश्किल होता है ,फिर आपने अपने व्यस्त जीवन से चंद लम्हे निकल मेरी रचना पढ़ी और उत्साहवर्धक टिप्पणी की ,आभार आप का ,सादर नमन
हटाएंवाह ! प्रिय कामिनी बहुत ही सारगर्भित मनन है नजर और नजरिये पर | सच में अंतर्दृष्टि का बहुत महत्व है | सुंदर उदाहरन दिया तुमने सिद्धार्थ का | सखी यूँ तो सृष्टि में कण कण में दुःख व्याप्त है पर इस दुःख का संसार अभ्यस्त हो जाता है | असली दुःख से साक्षात्कार तो सिद्धार्थ ने ही किया था | तभी उनके अंतस में वो करुणा जगी जो भटकी मानवता के लिए एक आलोक स्तम्भ बन गई | भीतर की नजर में वो शक्ति और क्षमता होती है कि वह कथित 'अपने ' को लाखों में पहचान लेती है | इतने सुंदर चिंतन परक लेख के लिए आभार सखी साथ में मेरा प्यार |
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया सखी ,तुम्हारी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत मायने रखती है ,आभार और स्नेह
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