मम्मी एक बात बताऊँ ,"साहिल के दिल में न मेरे लिए फीलिंग्स है। "क्या मतलब ?" मैंने ने आश्चर्य पूछा। मतलब ये कि -साहिल मुझे पसंद करता है। मनु ने बड़ी बेतकल्लुफी से ये बात कही। मैंने फिर पूछा -लेकिन वो तो तुम्हारा दोस्त है न। हाँ माँ ,यही तो परेशानी है लड़के सिर्फ दोस्त बन के क्यों नहीं रह सकते ,क्यों गर्लफ्रेंड बनना ही उनके लिए जरुरी होता है ? मैं तो परेशान हो गई हूँ मम्मी ,जब भी मुझे लगता है कि ये लड़का अब मेरा अच्छा दोस्त बन गया है तभी वो मुझे प्रपोज़ कर मुझे दुखी कर देता है,मैं इंकार कर देती हूँ फिर वो मेरा दोस्त भी नहीं रहता और तुम तो जानती हो मुझे दोस्त चाहिए बॉयफ्रेंड नहीं। ये सारी बाते मनु बड़ी ही सहज भाव से कह रही थी और मैं ख़ामोशी से सब सुन रही थी और मन ही मन सोच रही थी कि -कितनी जल्दी बड़ी हो गई न मनु । कितनी सुलझी सी बाते करने लगी है।
जीवन का सारा खेल एक नज़र और नज़रिये का ही तो होता है ,किसी को पथ्थर में भगवान नजर आते है किसी को भगवान भी पत्थर के नज़र आते है----
सोमवार, 25 फ़रवरी 2019
एक सवाल ???
मम्मी एक बात बताऊँ ,"साहिल के दिल में न मेरे लिए फीलिंग्स है। "क्या मतलब ?" मैंने ने आश्चर्य पूछा। मतलब ये कि -साहिल मुझे पसंद करता है। मनु ने बड़ी बेतकल्लुफी से ये बात कही। मैंने फिर पूछा -लेकिन वो तो तुम्हारा दोस्त है न। हाँ माँ ,यही तो परेशानी है लड़के सिर्फ दोस्त बन के क्यों नहीं रह सकते ,क्यों गर्लफ्रेंड बनना ही उनके लिए जरुरी होता है ? मैं तो परेशान हो गई हूँ मम्मी ,जब भी मुझे लगता है कि ये लड़का अब मेरा अच्छा दोस्त बन गया है तभी वो मुझे प्रपोज़ कर मुझे दुखी कर देता है,मैं इंकार कर देती हूँ फिर वो मेरा दोस्त भी नहीं रहता और तुम तो जानती हो मुझे दोस्त चाहिए बॉयफ्रेंड नहीं। ये सारी बाते मनु बड़ी ही सहज भाव से कह रही थी और मैं ख़ामोशी से सब सुन रही थी और मन ही मन सोच रही थी कि -कितनी जल्दी बड़ी हो गई न मनु । कितनी सुलझी सी बाते करने लगी है।
बुधवार, 13 फ़रवरी 2019
वेलेंटाइनस डे -"प्यार का दिन "
" वेलेंटाइनस डे"एक ऐसा शब्द...एक ऐसा दिवस...जो पश्चिमी सभ्यता से आया और पुरे विश्व के दिलों पर राज करने लगा। कुछ लोग कहते हैं कि-हर दिन प्यार का होता है तो फिर कोई खास दिन ही क्यों ?बात तो सही है लेकिन याद कीजिये आपने अपने किसी भी प्यार के रिश्ते में आखिरी बार कब आपने प्यार का इजहार किया था। शायद याद भी नहीं हो।वैसे भी आज कल हर रिश्ते में प्यार का बेहद आकाल पड़ा है वैसे मे कोई एक खास दिन तो होना ही चाहिए जब आप उस रिश्ते पर अपना प्यार जाहिर कर सकें,उनके लिए अपना एक दिन समर्पित कर सकें ,तभी तो मदर डे ,फादर डे ,फ्रेंडशिप डे ,वगैरह वगैरह बने हैं। सही भी है आज के समय में इसकी आवश्यकता भी बहुत है। पश्चिम से आयी हर हवा खराब नहीं होती....कुछ अच्छी भी होती है..परन्तु हम उन्हें अच्छी तरह समझे बिना आधा-अधूरा अपनाते हैं....वो खराब है। उन्ही में से एक ये "प्यार का दिन "है। ये पावन दिन सिर्फ प्रेमी-प्रेमिका के लिए नहीं बना था बल्कि उस हर रिश्ते के लिए बना था जिनसे आप दिल से जुड़े होते हैं।परन्तु आज ये पवन दिन उन्माद में डूबे ,फूहड़ तरिके से मनमानी करते युवक-युवतियों का दिन बन गया है.शायद इसी वजह से कुछ राजनितिक दल और समाजिक संस्था इस दिन का विरोध भी करते हैं।
शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019
" दिल की नजर "
" नज़रे मिलती हैं और नज़ारे बदल जाते है
दिल धड़कता हैं और फ़साने बन जाते है "
हैं न, इस दुनिया में शायद ही कोई ऐसा हो जिसे पहली नज़र का प्यार ना हुआ हो,प्यार दिल करता है पर कहते है-" सारा कुसूर नज़रो का हैं. "सही भी है ,इस जीवन का सारा खेल नज़र और नज़रिये का ही तो होता हैं किसी को पथ्थर में भगवान नज़र आते हैं किसी को भगवान भी पथ्थर के नज़र आते हैं।
कबीरदास जी ने कहा -
" पाथर पूजें हरि मिलें, तो मैं पूजूं पहाड़,
तासे यह चाकी भली पीस खाए संसार."
उनकी नज़र में भगवान पथ्थर की मूर्ति में नहीं बल्कि हमारे भीतर हैं मंदिर और मूरत में नहीं खुद के भीतर उन्हें ढूंढो।तभी तो वो ये भी कहते हैं- "कस्तूरी कुंडल बसै, मृग ढूंढे बन माहिं.. ऐसे घट-घट राम हैं, दुनिया देखे नाहिं." उनकी नज़र में भगवान हमारे अंदर समाहित है और बाहर सृस्टि के कण कण में भगवान के दर्शन होते है। लेकिन मीरा बाई तो कृष्ण मुरारी के सुंदर मूर्ति पर ही रीझ गई ,उस मूर्ति में ही अपने प्रियतम का दर्शन कर उन्हें ही पति मान, अपना तन मन समर्पित कर दिया और अंततः उसी मूर्ति में ही समाहित हो गई।
कहते है कि -सिद्धार्थ के पिता को पहले से ही ये ज्ञात हो चूका था कि संसार में व्याप्त दुःख -तकलीफ ,रोग -शोक ,भूख दरिद्रता को देख सिद्धार्थ वैराग धारण कर लगे। इस लिए उन्होंने सिद्धार्थ के लिए ऐसी व्यवस्था कर दी थी कि वो इन सब दृश्यों को देखे ही नहीं। उन्होंने कभी सिद्धार्थ को महल के प्रांगण से बाहर जाने ही नहीं दिया ,उनके इर्द -गिर्द हमेशा दुःख रहित खुशियों भरा माहौल रखा गया। सिद्धार्थ की नज़रो ने सिर्फ सुख-वैभव और ख़ुशीयां ही देखी इसलिए उन्हें पता ही नहीं था कि -जीवन में दुःख -संताप ,रोग ,भूख जैसी कोई चीज़ भी होती हैं। लेकिन होनी को कौन टालता आख़िरकार एक दिन वो महल से बाहर का दृश्य देख ही लिये। उन्होंने भूख से बिलखते बच्चो को देखा ,रोग से ग्रसित काया देखी ,चेहरे पर अनगिनत झुरियां लिये बुढ़ापा देखा और नश्वर शरीर को नाश होकर अंतिम यात्रा पर जाते शवयात्रा देखी। जैसे ही ये सारे दृश्य उनकी नज़रो के सामने से गुजरा ,सारा नजारा ही बदल गया और वो सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बन गये।
नजरों पर जिस रंग का चश्मा चढ़ा होता है ,नजारा वैसा ही दिखता हैं, जैसा हम नजारा देखते है हमारा नज़रियाँ वैसा ही हो जाता हैंऔर जैसा नज़रियाँ होगा हमारे जीवन की परस्थितियां भी वैसे ही बनती बिगड़ती रहेगीं। क्या सिद्धार्थ से पहले किसी ने भूख ,दुःख ,शोक -संताप और मृत्यु का नजारा नहीं देखा था ?देखा था ,सबने देखा था और आज भी देख रहे है लेकिन सभी लोग इन सारी बातो को जीवन क्रम से जुडी एक घटना के रूप में ही देखते आये थे। बचपन से ही हमारे सामने ये सारी घटनाये घटित होती आ रही है , ये सबके लिए एक आम सी बात थी। इसलिए किसी ने इतनी गहराई से सोचा ही नहीं होगा जैसा सिद्धार्थ ने सोचा। क्यूकि उनकी नजरो ने उस वक़्त तक वैसा कुछ घटित होते नहीं देखा था। इसलिए जब उन्होंने पहली बार ये सारे दृश्य देखे तो उनकी आत्मा चीत्कार कर उठी। तो सारा खेल नजरो का ही तो था।
हम सिर्फ आँखों से ही नहीं देखते ,भगवान ने हमे देखने के लिए एक और नजर भी दे रखी है ,वो हैं -"दिल की नजर "दिल की नजर हमे वो दर्शन करती है जो खुली आँखें नहीं करा सकती। दिल की नजर हमे श्रद्धा -भक्ति ,प्यार -मुहब्बत ,दया -माया ,उपकार -परोपकार ,सदाचार - सहनभूति और विरक्ति -वैराग्य जैसी भावनाओं की अनुभूति करती हैं। ये अनुभूति ही हमे मानवता प्रदान करती हैं। यकीनन ,कबीर ,मीरा और बुद्ध ने दिल की नजर से इन्ही अनुभूतियो के दर्शन किये होंगे।सच्चा प्यार पाने में भी दिल की ही भूमिका होती है आँखों की नहीं। तो ,हमेशा अपने दिल की नजर खुली रखे ,क्या पता इस स्वार्थ से भरी दुनियां में हमे भी कोई सच्चा साथी मिल जाये ,क्या पता हमे भी किसी पथ्थर की मूर्त में कृष्ण नजर आ जाये ,क्या पता हमे भी कण कण में सर्वशक्तिमान प्रभु के दर्शन होने लगे ,क्या पता हमे भी बुद्ध की भांति ज्ञान और वैराग्य प्राप्त हो जाये ,क्या पता ?
ये दुनियां और ये जीवन दोनों ही बहुत खूबसूरत है और इनसे भी खूबसूरत वो सर्वशक्तिमान परमात्मा हैं ,जिन्होंने हमारे लिये प्रकृति को अनगिनत खूबसूरत रंगो से सजाया- सवारा हैं, हमे अलग अलग भावनाओं और अनुभूतियों से भरा जीवन प्रदान किया है। वो हमसे ये अपेक्षा भी रखते है कि -उन्होंने हमे जैसा जो जो दिया हैं ,हम उसका भोग कर , उन्हें वैसा ही वापस करे। उन्हें दुषित और विखंडित ना करे। लेकिन हम तो उनके दिये हुए अनमोल जीवन और प्रकृति दोनों का नाश करते जा रहे है। अब भी वक़्त हैं यदि अब भी हमने अपनी नजर और नजरिये को बदल लिया तो यकीनन धरती फिर स्वर्ग सी नजर आयेगीं।
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