सोमवार, 25 फ़रवरी 2019

एक सवाल ???

   

      मम्मी एक बात बताऊँ  ,"साहिल के दिल में न मेरे लिए फीलिंग्स है। "क्या मतलब ?" मैंने ने आश्चर्य पूछा। मतलब ये कि -साहिल मुझे पसंद करता है। मनु ने बड़ी बेतकल्लुफी से ये बात कही। मैंने फिर पूछा -लेकिन वो तो तुम्हारा दोस्त है न। हाँ माँ ,यही तो परेशानी है लड़के सिर्फ दोस्त बन के क्यों नहीं रह सकते ,क्यों गर्लफ्रेंड बनना ही उनके लिए जरुरी होता है ? मैं तो परेशान हो गई हूँ मम्मी ,जब भी मुझे लगता है कि ये लड़का अब मेरा अच्छा दोस्त बन गया है तभी वो मुझे प्रपोज़ कर मुझे दुखी कर देता है,मैं इंकार कर देती हूँ  फिर वो मेरा दोस्त भी नहीं रहता और तुम तो जानती हो मुझे दोस्त चाहिए बॉयफ्रेंड नहीं। ये सारी बाते मनु बड़ी ही सहज भाव से कह रही थी और मैं  ख़ामोशी से सब सुन रही थी और मन ही मन सोच रही थी कि -कितनी जल्दी बड़ी हो गई न मनु ।  कितनी सुलझी  सी बाते  करने लगी है।


        मुझे  उसका  बचपन याद आ रहा था जब मनु सातवीं क्लॉस में थी। एक दिन जब वो स्कूल से आई तो मुझ से लिपट खूब रोने लगी ,मैं तो घबड़ा ही गई। मैने पूछा-क्या हुआ मेरे बच्चे रो क्यों रहे हो आप ?उसने कुछ नहीं कहा ,काफी देर बिलखती रही। बहुत शांत कराने के बाद चुप हुई। मैंने फिर पूछा -बता मेरे बच्चे क्या हुआ ? वो बिलखती हुई बोली -माँ वो दिवेश है न वो बहुत गन्दा लड़का है ,मैं पापा से कह कर उसकी पिटाई करवाऊंगी, मम्मी मैं उस गंदे लड़के से कभी शादी नहीं करुँगी ,मैं किसी से शादी नहीं करुँगी मैं तुम्हे छोड़ कर कभी नहीं जाऊंगी और वो दिवेश क्लास में सब से कहता रहता है कि -मैं तो मनु से ही शादी करुँगा ,"मुँह देखा है अपना गन्दा कही का। "उसकी बाते सून मैं हँस पड़ी। वो गुस्से से मुँह फुला कर बोली- मुझे डर लग रहा है और गुस्सा भी आ रहा है और तुम हँस रही हो। मैंने प्यार से उसे गोद में लेते हुए कहा -उसके कहने से क्या हुआ भला ,मैं अपनी गुड़ियाँ की शादी उससे थोड़े ही करुँगी। "लेकिन वो हमेशा सब से बोलता रहता है" -वो तड़प कर बोली। उसके बोलने से कुछ नहीं होता जब तक आप नहीं बोलोगे ,आप की मर्जी नहीं होगी ,मैं और पापा " हाँ "नहीं कहेगे तब तक शादी थोड़े ही होगी - मैंने उसे समझाया।

      मेरी बाते सुनते ही वो चहक उठी -सच कह रही हो न मम्मा ,उसके कहने से कुछ नहीं होगा न। मैंने कहा - कुछ नहीं होगा मेरा बच्चा। इतना सुनते ही वो इतनी खुश हुई जैसे उसे किसी बड़ी कैद से मुक्ति मिल गई हो। मैंने उसे समझाया -बेटा अब आप बड़ी हो रही हो इस तरह की बातें होती रहेगी ,बेटा 13 से  18 की उम्र में लड़का लड़की के बीच इस तरह का आकर्षण होता है ये नैचुरल सी बात है लेकिन इसे प्यार नहीं कहते है और ना ही बात शादी तक पहुँचती  है। आप इस  तरह के सारे लड़को को निर्भीकता से" ना "बोलो कोई डरने की जरूरत नहीं है। आज से हम दोनों पक्की वाली दोस्त है और आप मुझसे हर बात बेझिझक कह सकते हो। बेटा ,हमेशा अपने रिश्तो में ईमानदारी रखना ,कभी भी दो रिश्तो को मिक्स नहीं करना। अगर आप का दिल किसी को सिर्फ दोस्त बनाने को करता है तो उसे सिर्फ दोस्त ही रहने देना। आप रिश्तो में ईमानदारी रखोगें तो एक लड़का लड़की भी अच्छे दोस्त बन सकते है।

    याद रखो बेटा -हमेशा अपने दिल की सुनना ,तुम्हारा दिल ही तुम्हे सही राह दिखाएगा ,जिस दिन तुम्हे कोई पसंद आएगा तो तुम्हारा दिल खुद ही तुम्हे संकेत देगा कि -"ये दोस्त से बढ़कर है। "बेटा ,दोस्त बनाऐ  जाते है   "प्यार " नहीं ,प्यार हो जाता है और पता भी नहीं चलता। लेकिन बेटा - ये सब तभी सम्भव है जब आप अपने दिल की बात ईमानदारी से सुनोगें ।आप की एक गलत सोच आप को गलत राह दिखाएगा ,फिर आप का और हम सब का जीवन बर्बाद हो जाएगा। इसलिए सकारात्मक सोच बहुत जरुरी है और मैं तो हूँ ही हमेशा तुम्हारे साथ ,जहाँ कही उलझो मेरे पास आ जाना। मेरी बात मनु बहुत ध्यान से सुनती रही और फिर ख़ुशी से मुझसे लिपट गई। वो दिन है और आज का दिन मनु 22 साल की हो चुकी हैं ,उसने कभी रिश्तो में मिलावट नही की और ना ही कभी मुझसे कोई बात छुपाई। उस का जीवन मेरे आगे खुली किताब सी है।

      मम्मी किस सोच में खो गई ,मेरी सोच की तन्द्रा को मनु ने तोडा। मैं हँसकर बोली  -कुछ नहीं ,तुम बताओ कब तक सब लड़को को "ना "कहती रहोगी।  तब तक ,जब तक मुझे मेरा सच्चा प्यार नहीं मिलता ,मम्मा इन लड़को को  सिर्फ आकर्षण भर है ,प्यार नहीं और तुम्ही ने तो कहा था कि -जब मुझे मेरा सच्चा प्यार मिलेगा तो मुझे पता चल जाएगा तो उसी दिन मैं "हाँ "बोलुँगी ,समझी ,ये कहते हुए  मनु मुझसे लिपट गई। मैंने कहा -ठीक है,ठीक है ,चल अब खाना खाते है ,बहुत बोलने लगी हो तुम। फिर हम खाना खाते-खाते  ढेर सारी बाते करते रहे ,मनु मुझे निःसंकोच सारी बाते बताती थी।बात करते करते मनु तो सो गई लेकिन मैं हमेशा की तरह अपने बचपन की उन कड़वी यादों में खो गई। जब भी मनु अपनी बातें करती है वो यादें चलचित्र की भांति मेरे आँखो के आगे से गुजरने लगते है ,वो यादें जिसकी कड़वाहट इतने सालो बाद भी कम नहीं हुई।

      बात उन दिनों की है जब मैं किशोरावस्था में थी ,सिर्फ 15 साल की ,10 वी में पढ़ रही थी। एक दिन जब मैं स्कुल से घर लौटी तो घर  का माहौल बड़ा ही तनावपूर्ण था ,सब गुस्से में दिख रहें  थे ,माँ रो रही थी। मैं माँ के पास जाकर उनसे पूछी -माँ क्या हुआ ?तभी भईया ने एक जोरदार तमाचा मेरे गाल पर दिया। मैं बिस्तर के पास खड़ी थी ,तमाचा इतना जोरदार था कि मैं धम से बिस्तर पर जा गिरी। मेरे होशो -हवाश गुम हो गये ,मैं समझ ही नहीं पाई कि -हुआ क्या है ?मैं प्रश्नसूचक निगाह से भईया की तरफ देखने लगी ,तभी पापा आए और भईया को रोका। भईया एक कागज का टुकड़ा मुझे दिखाते हुये बोले -क्या है ये ,कब से चल रहा है ये सब ,तुम्हे शर्म नहीं आई ये सब करते हुए ? और ना जाने क्या -क्या बोलते रहे। मैंने वो कागज देखा तो वो एक पत्र था मेरे नाम ,किसी लड़के का लिखा हुआ। मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी ,मैंने कहा -भैया मैं नहीं जानती ये क्या है ,किसने लिखा है ,आप मेरा यकीन करे। लेकिन भईया गुस्से में बोले जा रहे थे -बंद करो इसका स्कूल ,टूशन सब। माँ रोये जा रही थी और पापा कमरे से जा चुके थे।

      मेरी सफाई सुनने वाला कोई नहीं था। मैं रोती रही ,रोती रही ,रोते -रोते पता नहीं कब मेरी आँख लग गई। मुझे किसी ने नहीं जगाया ना ही खाने तक को पूछा। शाम को 6 -7 बजे मेरी आँख माँ की आवाज़ पर खुली ,वो आवाज़ जिसने मेरी आत्मा को चिर कर रख दिया।  पापा माँ को समझा रहे थे कि -बच्ची है हम उसे समझाएगें  ,सब ठीक हो जायेगा और माँ पापा से कह रही थी -  " मुझे पता होता कि ये ऐसे हमलोग की नाक कटवाएगी तो बचपन में  ही गला दबा देती ,हे भगवान ये पैदा होते ही मर क्यों नहीं गई? " माँ के ये शब्द अब तक मेरे कानो में गूँजती है और मेरी आत्मा चीत्कार कर उठती है कि -मैंने अपने माँ -पापा को कितना दुःख पहुंचाया होगा जो इनके मुँह से इतनी बड़ी बात निकल गई। वो भी मेरे लिए जो अपने घर की ही नहीं पूरे खानदान की सबसे अच्छी लड़की कही जाती है ,सारा खानदान मुझ पर नाज़ करता है ,थप्पड़ मरना तो दुर आज तक किसी ने मुझे जोर से डांटा तक नहीं है। मैंने कभी वैसी कोई गलती की ही नहीं थी। फिर आज ...........???

     फिर आज ऐसा क्या हो गया ,कौन सा गुनाह हो गया मुझसे जो सब मुझे धिधकार रहे है ,मुझे तो अपनी गलती भी समझ नहीं आ रही ,मैं क्या करूँ ?  और मैं बिस्तर  पर पड़े -पड़े फिर फफक पड़ी। कोई नहीं आया मेरे पास ,ऐसा लग रहा था जैसे मेरे गुनाह इतने बड़े है कि सबने मुझे कालापानी की सजा दे दी हो,सब की लाड़ली एक पल में ही पराई हो गई थी। रात में सिर्फ पापा मेरे पास आए  और बोले -  उठो खाना खा लो। मैंने कहा -मुझे भूख नहीं ,और मैं मुँह फेर कर सो गई। मेरे बिना खाना नहीं खाने वाले मेरे पापा भी मुझे छोड़कर चले गये ,मैं और तड़प कर रो पड़ी। सारी रात रोती रही ,सुबह फिर पापा ही मुझे उठाने आए ,मैं पापा से लिपट कर रो पड़ी बोली  -"  पापा मैं आप की कसम खा के कहती हूँ मुझे कुछ नहीं पता ,ये पत्र किसने लिखा है ,भईया के पास कैसे आया ,मैं कुछ नहीं जानती ,मेरा  यकीन कीजिये।"  पापा को मेरे बातो पर यकीन हो गया ,माँ और भईया को अब भी नहीं था।

       पापा ने भैया से पूछा -तुम्हे ये पत्र कहाँ और कैसे मिला। भईया ने कहा -ये पत्र इसकी दोस्त के पास था जो इसे देने वाली थी लेकिन मेरे एक दोस्त ने ये पत्र पकड़ लिया और उससे छीनकर मुझे दे दिया। मेरी दोस्त को बुलाया गया और उससे पूछ -ताछ हुई तो उसने कहा - "एक लड़का है जो इसे पसंद करता है और वो मेरा मुँहबोला भाई है,उसने जिद किया इसलिए मैं पत्र ले ली लेकिन इसे दी नहीं थी इस बेचारी को तो कुछ पता भी नहीं। " पापा ने मेरी दोस्त को समझाया कि -आगे से ऐसा नहीं करना। तब जाकर बात रफादफा हुई। लेकिन मेरे चरित्र पर "प्रश्नचिन्ह "हमेशा के लिए लग गया।

    माँ की निगाहे हर पल मुझे शंका की नज़र से देखती रही और भईया ने तो अपने अमले फमले के द्वारा मुझे नज़रबंद ही करवा दिया वो मेरी पल पल की खबर भईया को देने लगे ,मेरी दोस्त जो मुझे अतिप्रिय थी उससे मुझे हमेशा के लिए दूर कर दिया गया यानि बिना किसी गुनाह के भी मैं अपने ही घरवालों  की नज़र की कैदी हो गई। मेरी सारी  अच्छाइयों को भुला दिया गया. सिर्फ पापा मुझ पर भरोसा करते थे। इस घटना का मेरे मन -मस्तिष्क पर बहुत गहरा असर हुआ ,मैं बहुत दिनों तक विक्षिप्त सी रही जिसका असर मेरी पढाई पर भी पड़ा।

     ये प्यार ,इश्क, मुहब्बत एक  घिनौनी तस्वीरके रूप में  हमारे समाज में व्याप्त ना होता तो शायद मेरे घरवालों की मानसिक्ता भी ऐसी नहीं होती खास कर माँ की। भईया तो मुझसे महज तीन साल बड़े थे ,क्या उनके दिल में किसी लड़की के लिए ऐसी भवनाएँ  नहीं उठती होगी ,जरूर उठती होगी लेकिन बात यहाँ घर की लड़की की थी जो छुप ना सकी और घर में तूफान आ गया। भगवान का शुक्र था कि-  मेरे पापा मेरे साथ थे जो मैं अपनी पढाई पूरी कर सकी वरना बहुत सी लड़कियों की तो पढाई-लिखाई बंद करवा उनकी शादी तक कर दी जाती है। किशोरावस्था में बिपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण एक स्वभाविक सी बात है मेरा दावा है कि -हर युग में हर व्यक्ति इस आकर्षण से अछूता नहीं रहा है। फिर भी हर व्यक्ति अपनी अगली पीढ़ी पर इस आकर्षण को गुनाह बता उन पर हज़ारो पवंदिया लगा देते है, सजाएं  सुना देते है। आखिर ऐसा क्यों ?

    हमारी खोखली मानसिकता हम से ऐसा करवाती है। एक तरफ तो हम प्यार करने वाले राधा-कृष्ण को "प्यार के देवता " के रूप में पूजते है और दूसरी तरफ हर युग में हज़ारो प्रेमी जोड़ो को ऑनर किलिंग के नाम पर बलि चढ़ाते रहे है। इन पवंदियो से डर कर कितने ही बच्चें  नासमझी में अपने और अपने परिवार का भविष्य और जीवन तक दांव पर लगा देते है। अगर हम अपनी मानसिकता को स्वच्छ कर एक बार इस समस्या पर विचार करे तो --------जैसे हम बच्चों  को बालवस्था से ही हर छोटी -बड़ी, सही -गलत ,पाप -पुण्य की बातें  समझाते है ,वैसे ही किशोरावस्था में विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण को स्वभाविक मान उसके भी सही -गलत पहलु को निःसकोच समझाए तो शायद बच्चे वो गलतियां  ना करें  जिसकी वज़ह से उनकी और उनके परिवार का भविष्य और जीवन दांव  पर लग जाता है और माँ बाप भी उस गुनाह से बच जाते जो अनजाने में वो अपनी बेटियों के साथ करते है,ना ही  बेटियाँ बिना किसी गुनाह के सारा जीवन गुनाह के बोझ तले दबी रहती।

    हर युग में कभी भी इस विषय पर खुल के बात हुई ही नहीं ,इस विषय पर सब की मानसिकता खास करके औरतो की इतनी सकुचित रही कि इस पर बात करने वालो को संस्कारहीन कहा जाता है,औरतो को तो बेशर्म ,बदचलन और पता नहीं क्या क्या कहा जाता है। जबकि इस विषय पर समझदारी से बात कर हम बच्चों  को भटकने से बचा सकते है। मेरे बचपन की घटना ने मुझे सीख दी थी और मैंने उसी दिन संकल्प लिया था कि -मैं अपनी आने वाली पीढ़ी को इस दिन से नहीं गुजरने दूँगी,मैं उन से इस विषय पर खुल के बातें  करुँगी और आज मैं फक्र से कह सकती हूँ कि - मेरी बेटी ही नहीं पुरे खानदान की बेटियाँ और उनकी सारे दोस्त तक अपने माँ -बाप से कुछ कहे ना कहे लेकिन मुझसे खुल के अपनी समस्या बताते  है,जिसका परिणाम ये है कि सभी सुरक्षित है। ये काम एक माँ ही कर सकती है।अगर मेरी माँ ने मुझे समझा होता और उस पुरे घटनाक्रम को समझ मुझसे प्यार से पूछताछ किया होता ,मुझे समझाया होता तो ना ही घर में वैसी परिस्थिति पैदा होती और ना ही मैं आज तक उस अनकिए  गुनाह के बोझ तले दबी होती।

      कहते है न कि -माँ बच्चो के लिए एक पूरी शास्त्र है और खास तौर पर बेटियों के लिए। माँ की दी हुई सीख  को ही अपना कर एक बेटी अपने जीवन को अनेक रंगो से सजाती है। लेकिन सिर्फ एक विषय  "लड़का और लड़की के बीच  संबंध " के बारे में किसी भी दौर में कोई भी माँ चाहे वो शिक्षित हो या अशिक्षित खुल  के नहीं बोल पाती और बच्चे अनिभिज्ञता में अपने आकर्षण को प्यार समझ लेते है। कुछ बच्चे पावंदियो  या परिवार डर के कारण अंदर ही अंदर घुट के रह जाते है और कुछ पावंदिया तोड़ गलत राह अपना खुद को और परिवार को नुकसान पंहुचा लेते है।

      हर युग में बाल -मन एक सा ही होता है चंचलता ,जिज्ञासा ,उत्सुकता  उसके साथ अनिभिज्ञता ,  यही है बाल- मन। इसको सही मार्ग दर्शन देना माँ बाप का ही काम है। हमें अपने बच्चों को दोस्ती -आकर्षण और प्यार के बीच के फर्क को खुल के समझाना चाहिए। एक लड़का -लड़की के संबंधो के बारे में समझना या समझाना कोई संस्कारहीन बातें  नहीं है। आज कल स्कूलों में यौन शिक्षा को सिलेबस में शामिल किया गया है जो  कि मेरी  समझ से  बच्चों  को गुमराह ही कर रही है,सेक्स के प्रति उनका आकर्षण बढ़ा उन्हें विदेशी रंगो में रंगे जा रही है। घर में आप भले ही उनसे लड़का- लड़की की बात करते हुए छिछकते हो लेकिन बाहर आप के बच्चें  बेशर्मी की सारी सीमाएं लाँघ कर खुलेआम वो हर गलत काम कर रहें है जो इस उम्र में उन्हें पर्दे में भी नहीं करनी चाहिए। अगर आप शिक्षक है तो जानते होंगे कि -यौन शिक्षा की क्लास में बच्चें कैसे बेशर्मी की हदे पार करते है।

     प्यार एक भावनात्मक विषय है ना की सेक्सुअल ,ये ज्ञान एक लड़की को माँ ही दे सकती है,लड़की ही क्यों  लड़को को समझाना भी माँ-बाप का ही काम है। क्या, हम बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार रखकर और उन से इन सारी बातों पर खुल के चर्चा -परिचर्चा कर दोस्ती -आकर्षण और प्यार के बीच के फर्क को अच्छे से नहीं समझा सकते ? शायद नहीं यकीनन , ऐसा कर हम इन समस्याओ को बेहतर ढंग से संभाल सकेंगे और  किशोरावस्था में जो बच्चें  दोस्ती और आकर्षण को प्यार समझ गलत कदम उठा लेते है उनसे उन्हें बचा सकेंगे। हर पल तेज़ी से बदलते इस युग में अपने बच्चों को सही राह दिखाने के लिए क्या ये जरुरी नहीं है ?????????
एक सवाल ???

10 टिप्‍पणियां:

  1. प्यार एक भावनात्मक विषय है ना की सेक्सुअल ,ये ज्ञान एक लड़की को माँ ही दे सकती है,लड़की ही क्यों लड़को को समझाना भी माँ-बाप का ही काम है।

    जी कामिनी जी ,उपदेशों से भरी बहुत सुंदर रचना है। प्रणाम

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  2. सहृदय धन्यवाद ,शशि जी ,सादर नमन

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  3. प्रिय कामिनी -- आज तुम्हारा ये लेख पढ़कर मैं निशब्द हूँ !!

    अज तो तुम्हे कमाल लिख दिया | बच्चो का प्रेम में पड़ना माता पिता के लिए कई बार बहुत ही बड़ी उलझन बन जाता है और विपरीत दृष्टिकोण के चलते बहुत बड़ी समस्या बनते देर नहीं लगती | तुमने बड़ी गहराई से चिन्तन कर इतना सुंदर लिखा जो बहुत कुछ सखा देता है |तुम्हारा सवाल बहुत महत्वपूर्ण है और चिन्तन परक भी | तेजी से बढ़ते भौतिकवादी युग में स्वछन्द प्रेम आज बहुत बड़ी समस्या बन कर उभर रहा है | दो दशकों पहले जहाँ एक लडका - लडकी के सहज वार्तालाप को संदिग्ध दृष्टि से देखा जाता था और

    ब जरा सी बात पर एक बच्चे को ना जाने कितना बड़ा अपराधी समझ लिया जाता था | अब समय बदल गया | आज एक नया दृष्टिकोण दरकार है जिससे बच्चे कुंठित हुए बिना सही निर्णय लेने में सक्षम हों | सुंदर लेख के लिए मेरा हार्दिक प्यार तुम्हे |

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    1. प्रिये रेणु ,तुमने मेरे विचारो पर अपनी सहमती की मुहर लगा मुझे ये अहसास कराया कि मेरा चिंतन वाजिब है। सखी मेरा वक़्त किशोरावस्था तथा युवावस्था के बच्चो के बीच ज्यादा गुजरता है, जैसा कि मैंने बताया हैं कि मेरे पुरे खानदान के बच्चे और उनके दोस्तों तक के साथ मेरा दोस्ताना रिश्ता हैं ,जिससे मुझे इन्हे समझने का अवसर मिला हैं ,बस यही समझ मैं अपनी लेख के द्वारा आप सब से साझा करती हूँ लेकिन ये भी सोचती हूँ कि मैं सही तो हूँ न ?तुम्हारे सकारत्मक टिप्पणी के लिए दिल से आभारी हूँ ,स्नेह

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  4. कहते है न कि -माँ बच्चो के लिए एक पूरी शास्त्र है और खास तौर पर बेटियों के लिए। माँ की दी हुई सीख को ही अपना कर एक बेटी अपने जीवन को अनेक रंगो से सजती है
    सही कहा आपने बहुत सुंदर लेख लिखा आपने सखी

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  5. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/03/111.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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    1. सहृदय धन्यवाद सर ,मेरी रचना को शामिल करने के लिए ,सादर नमस्कार

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  6. जीवन जीने की कला पर प्रकाश डालता चिन्तनपरक लेख। किशोरावस्था में बच्चों की अतिशय भावुकता पर नियन्त्रण और भले-बुरे की पहचान करना माँ ही तो सिखाती है बच्चों को । इसलिए तो जननी को जीवन पाठशाला का प्रथम गुरु कहा गया है । बहुत सुन्दर लेख कामिनी जी । सस्नेह ..

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    1. दिल से शुक्रिया मीना बहन ,मेरी लेख के मर्म को समझने और इतनी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभार आपका ,सादर

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