गुरुवार, 23 जनवरी 2020

अनकहे अल्फाज़





" अनकहे " यानि जो कहा ना गया हो "अल्फ़ाज़ "जो ख़ामोशी को एक आवाज़ दे सकें। वैसे तो ख़ामोशी के अपने ही अल्फ़ाज़ होते हैं ,एक आवाज़  होती हैं मगर वो अल्फ़ाज़ समझना सब के बस की बात नहीं हैं। ख़ामोशी के  अल्फ़ाज़ को समझना एक  गहरी साधना हैं एक "योगाभ्यास "हैं। जब आप इस साधना में रत रहते हो तो खामोशियाँ भी मुस्कुराने लगती हैं ,गुनगुनाने लगती हैं, आपके अंतर्मन को गुदगुदाने लगती हैं और आपके तन मन को वो सुकून  दे जाती हैं जिसे परमानंद  कहते हैं। जीवन का सच्चा सुख वही हैं  जिसमे आत्मा को परमानंद  की अनुभूति  हो ,यह सत्य हैं ,शाश्वत हैं।परमानंद  की अवस्था में आत्मा राग -द्वेष रहित होकर निर्लिप्त भाव में रहती हैं। अरे ये क्या .............मैं तो आध्यात्म की ओर जाने लगी। ये तो बड़ा  गूढ़ विषय हैं जिसे समझना थोड़ा मुश्किल हैं और उसमे उलझना या उसे अपनाना तो और मुश्किल।

  मैं तो यहाँ "अनकहे अल्फाज" की बात कर रही थी। वैसे भी ख़ामोशी का मतलब तो ये हो गया कि हम खुद को पूर्णतः शब्दहीन रखना चाहते हैं या रखते हैं। हम अपने जुबा को ही नहीं अपने मन को भी शब्दों से दूर रखना चाहते हैं।" अनकहे अल्फ़ाज़ " यानि आप कहना तो बहुत कुछ चाहते हैं, वो बातें  जो आपके होठो पर हैं मगर आप उसे शब्द नहीं दे पा रहे हैं। कभी दे नहीं पा रहे हैं ,कभी देना नहीं चाहते और कभी ये ख्वाहिश कि शब्दों  में बिना पिरोए ही उसे कोई समझ ले।वो अल्फ़ाज़ जो जेहन से निकाले नहीं निकलता , हृदय में धारा प्रवाह बहता रहता हैं ,गले में फँस बन अटका रहता हैं पर जुबां पर नहीं आता। 

सोचती हूँ.......ये" अनकहे अल्फ़ाज़ आखिर  "जाते कहाँ हैं जिनको आवाज़ नहीं मिल पाती ?क्या वो छिप जाते हैं बंद आँखों के पलकों के नीचे या लबो पे लगे सख्त तालो के पीछे या कही ये चुपके से आकर तकिये के नीचे  सिराहने तले सो तो नहीं जाते ? क्या ये सिराहने तले चैन से सो जाते होंगे या जुबा के ताले तोड़ बाहर आने को मचलते होंगे ? वो कभी आँखों पर लगे पलकों के दरवाज़ों को खोल बाहर झाँकने की कोशिश तो करते ही होंगे न। या शायद  डरते होंगे वो बाहर आने से ,पर चैन से सो भी तो नहीं पाते होंगे न। फिर सोचती हूँ..... आखिर ये डरते किससे हैं ? शायद वो सोचते होंगे कि इन शब्दों के मर्म को कही कोई नहीं समझा सका तो.......?

लेकिन कब तक ??? मेरा दिल कहता हैं कि -एक ना एक दिन ये छुपे अल्फ़ाज़ सराहने को छोड़ सपनो के रास्ते आँखों के दरवाज़े से बाहर आ ही जाएंगे  ,लफ्जो का सहारा ले होठों के दरवाजे की बेड़ियाँ तोड़ ही देंगे। यदि वो ना कर पाए तो  .......... क्योंकि  इन अल्फाज़ो की गहरी नींद अक्सर बुरे सपनों  के सफर दिखती रहती हैं और मन की बेचैनी को बढाती रहती हैं। फिर अचानक एक दिन ऐसा होता हैं जैसे , मन की बेचैनियों  को  कानों ने सुन ली हो और उस बुरे सपने को खुली आँखों से बाहर फेक दिया हो। फिर क्या वो  अल्फ़ाज़  सुकून की कलम बन जाते हैं  और ख़ामोशी उसकी स्याही। फिर वो अनकहे अल्फ़ाज़ जो तकिये के सिराहने में छुपाकर रखा था ,पलकों के नीचे बसा कर रखा था ,बंद लबो में दबा कर रखा था ,गीत ,गजल ,कविता ,कहानी बन कागज पर उतरने लगते हैं और अनगिनत जुबां के अल्फ़ाज़ बन गुनगुनाने लगते हैं।
अब जब अनकहे अल्फाजों  ने सारे ताले तोड़ ही दिए ,सारे पहरे हटा ही  दिए तो फिर अब रोके ना उसे ,टोके ना उसे ,बहने दे उसे कागज के दिलों पर बेपरवाही से।  सुकून के कलम से निकला  हर लफ्ज इबादत बन जाएगा । किसी शायर ने बहुत खूब कहा हैं -
                                                    तेरे अल्फ़ाज़ तेरे लफ्ज बयाँ करते हैं। 
                                                    कुछ हकीकत तो कुछ ख्यालात बयाँ करते हैं।।                                   





                                                                                            






रविवार, 19 जनवरी 2020

बेनाम रिश्ते

         

                               "कही तो ये दिल कभी मिल नहीं पाते ,कहीं से निकल आये जन्मों के नाते 
                                       घनी थी उलझन बैरी अपना मन ,अपना ही होके सहे दर्द पराए "

    गीत के इस दो पंक्तियों में जीवन के कितने गहरे राज छिपे हैं ,है न । कभी कभी खून के रिश्ते भी शूल बन चुभते हैं और कभी जिनसे कोई नाता नहीं होता ,जो जाने -अनजाने कब आपके जीवन में चले आते हैं आपको इसका पता भी नहीं चलता, वो आपके दिल में फूल बन बसे होते हैं ,जिसकी खुशबु तक को आप सारी दुनिया से छिपा कर रखते  हैं। दुनिया के नजर में ऐसे रिश्ते का कोई वजूद नहीं होता पर आपके लिए वो जन्मों जन्मों का नाता होता हैं। जो आपकी हर साँस के साथ चलता हैं ,आपके रगों में लहु बनकर बहता हैं ,आपकी धड़कनों के साथ धड़कता हैं और हरपल आपको जिन्दा होने का अहसास दिलाता हैं। इस रिश्ते की गहराई को सिर्फ और सिर्फ आपकी आत्मा समझ सकती हैं और कोई नहीं। ये रिश्ते जिस्मों से परे होते हैं ,इसका कोई नाम नहीं होता ,आप दुनिया को नहीं समझा सकते इसकी अहमियत को। ऐसे रिश्ते " हर एक " के जीवन में होता ही हैं। वो " हर एक "जो खुद के दिल में ऐसे रिश्ते को सब से छुपाये फिरता हैं मगर दूसरों की इसी भावना को नहीं समझता या समझना नहीं चाहता ।इस तरह जो रिश्ता सबसे पावन -पवित्र और रूहानी होता हैं वो दुनिया के नजर में बेनामी रिश्ता कहलाता हैं और अक्सर बदनाम रिश्ता भी। 
     लेकिन आप ना चाहते हुए भी उस रिश्ते में ऐसे उलझें होते हैं कि चाहकर भी उस बंधन से मुक्त नहीं हो पाते। वो एक बेनामी रिश्ता मीलों दूर से भी आपके आस्तित्व को प्रभावित करता रहता हैं। मीलों दूर से ही उसके हँसने -रोने ,ख़ुशी या गम का आप पर गहरा असर होता हैं। लेकिन उस असर को भी आप दुनिया के सामने प्रकट नहीं कर सकते। वो आपकी आत्मा की गहराइयों में ही इन भावनाओं के साथ अठखेलियां करता रहता हैं और आपको चुपचाप एक दर्शक की भाँति देखना होता हैं खुद को विचलित किए बिना।आप उसकी ख़ुशी में मुस्कुरा नहीं सकते और ना ही उसके बड़े से बड़े गम में भी एक कतरा आँसू ही बहा सकते। क्योकि इस मुस्कान और आँसू को कोई नहीं समझ सकता।हाँ ,मगर कही से भी गलती से भी आपके दिल में छुपे इस फूल की महक दुनिया को लग गई तो उस पवित्र -पावन रिश्ते को बदनामी जरूर मिल सकती हैं।

   रिश्ते इंसान के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। लेकिन समाज में रिश्ते वही माने जाते हैं जिसकी मान्यता समाज ने दी हैं उस पर रिश्तों के नाम की मुहर लगी हो। कभी कभी ये मुहर लगे रिश्ते बोझ भी बन जाते हैं लेकिन उन्हें संभालना,सवरना,उनके ख़ुशी और गम में पूर्ण भागीदारी देना ये सब आपका कर्तव्य होता हैं जिसे निभाना ही होता हैं और निभाना भी चाहिए ये आपका सामाजिक दायित्व हैं। अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो समाज में बिखराव पैदा होगा। [जो कि आज की पीढ़ी के कारण हो रहा हैं।] 

     परन्तु जो रिश्ते आत्मा के होते हैं उसका क्या ?उसके प्रति तो हमारा कोई कर्तव्य ही नहीं होता न । क्योकि समाज हमें इसकी इजाजत ही नहीं देता। जब वो आत्मा से जुड़ा बेनाम रिश्ता किसी तकलीफ में होता हैं,वो असहनीय दर्द से गुजर रहा होता हैं तब भी इंसानियत के नाते ही सही आप उसकी चोट पर मरहम भी नहीं लगा सकते,दर्द से भरे उसके नयनों के नीर को भी पोछने तक की इजाजत नहीं आपको। क्योकि वो रिश्ता बेनाम हैं बहुत जल्द बदनाम हो जायेगा। 
  उस वक़्त आप खुद को इतना मजबूर इतना लाचार पाते हैं जैसे कि आपके हाथ पैर को  बाँधकर,आपके होठों को सील कर आपको एक अंधे कुए में डाल दिया गया हो और आपका वो बेनाम रिश्ता आपकी तरफ लाचार बेबस निगाहों से देख रहा हैं,वो मदद की आस लगाए हुए अपने हाथ बढ़ाकर आपको आवाज दे रहा हैं पर आप कुछ नहीं कर सकते। यहाँ तक कि उसकी तकलीफ देखकर आपके मुँह से आह तक नहीं निकलती,आपकी आँखे बंजर सी हो जाती हैं जिसमें एक कतरा नमी तक नहीं आ सकती। शायद दुनिया की सबसे बड़ी लाचारी और सबसे बड़ा दर्द यही हैं। 
   आप उस अंधे कुए में बैठे बैठे समाज के बनाये रिश्तों के जंजीरों में जकड़े हुए सिर्फ और सिर्फ  अपने आपको सांत्वना देने के लिए ये कह सकते हैं -

                                " तेरा गमख्वार हूँ लेकिन मैं तुम तक आ नहीं सकता 
                                      मैं अपने नाम तेरी वेकसी लिखवा नहीं सकता "
                                  
                                  "तेरे आँख के आँसू पी जाऊँ ऐसी मेरी तक़दीर कहाँ 
                                     तेरे गम में तुझको बहलाऊँ ऐसी मेरी तकदीर कहाँ  "






बुधवार, 1 जनवरी 2020

"नववर्ष का शुभारम्भ "-एक विनम्र प्रार्थना के संग 



एक विनम्र प्रार्थना सर्वशक्तिमान परमात्मा से 
          

   परमात्मा से प्रार्थना तो हम रोज ही करते हैं ,परन्तु उस प्रार्थना में हम ईश्वर से कुछ ना कुछ माँगते ही रहते हैं ,सुख -समृद्धि ,यश -कृति ,संतान-परिवार ,खुशियाँ-स्वस्थ और भी बहुत कुछ । लेना या माँगना ही हमारी प्रवृति हैं ,कभी कुछ देने की चाह ही नहीं होती। ये सच हैं कि - माँगना ही हमारी प्रवृति हैं और ईश्वर से नहीं माँगेगें तो और किससे माँगेगें । परन्तु माँगने के साथ साथ देने की प्रवृति भी होनी ही चाहिए न । 
तो चलें ,इस नववर्ष में ईश्वर से कुछ नया माँगते हैं और साथ ही साथ प्रभु से कुछ वादें भी करतें हैं -" अज्ञानतावश  अपने तन-मन ,देश-समाज ,प्रकृति और पर्यावरण का हमनें  जो भी नुकसान किया हैं उसका ईश्वर से क्षमा माँगते हुए ,उन्होंने हमें जो कुछ भी दिया हैं उसका धन्यवाद कर ,हम उनसे कुछ वादें करतें हैं। हे प्रभु ,आपने हमें ये जो मानव तन दिया हैं उसके लिए आपको कोटि कोटि धन्यवाद ,आपकी दी हुई इस मानव तन की रक्षा करना ,इसे स्वस्थ रखना हमारा पहला कर्तव्य हैं। साथ ही साथ आपकी इस अनमोल सृष्टि और सृष्टि से जुड़े प्रत्येक जीवधारी का संरक्षण भी हमारा ही कर्तव्य हैं। इस समाज ,सभ्यता और देश के प्रति भी हम अपने कर्तव्य के लिए सजग हैं। हे प्रभु ,हमें वो शक्ति दे कि हम अपने वादें को निभा सकें और अपने कर्तव्य पथ पर डटें रहें ......."

वह शक्ति हमें दो दयानिधि कर्तव्य मार्ग पर डट जाएँ  
पर सेवा पर उपकार में हम ,निज जीवन सफल बना जाएँ 
वह शक्ति....... 

हम दिन दुखी निर्बलों -विकलों ,के सेवक बन संताप हरे 
जो हो भूले भटकें -बिछुड़े ,  उनको तारे  खुद तर जाएँ 
वह शक्ति ......

छल द्वेष- दंभ ,पाखंड -झूठ ,अन्याय से निस दिन दूर रहें 
जीवन हो शुद्ध सरल अपना ,सूचि प्रेम सुधा रस बरसाए 
वह शक्ति .......

निज आन -मान मर्यादा का ,प्रभु ध्यान रहें  अभिमान रहें 
जिस देवभूमि पर जन्म लिया बलिदान उसी पर हो जाएँ 
वह शक्ति 

वह शक्ति हमें दो दयानिधि कर्तव्य मार्ग पर डट जाएँ  
पर सेवा पर उपकार में हम ,निज जीवन सफल बना जाएँ 

हम इस धरा पर फिर से सुख ,शांति और समृद्धि ला सकें, इस नए संकल्प के साथ हम इस नववर्ष का स्वागत करते हैं। आप सभी को भी नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ,नववर्ष मंगलमय हो। 

"हमारी जागरूकता ही प्राकृतिक त्रासदी को रोक सकती है "

मानव सभ्यता के विकास में नदियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है तो उनकी वजह आने वाली बाढ़ भी हमारी नियति है। हज़ारों वर्षों से नदियों के पानी क...