घनी थी उलझन बैरी अपना मन ,अपना ही होके सहे दर्द पराए "
गीत के इस दो पंक्तियों में जीवन के कितने गहरे राज छिपे हैं ,है न । कभी कभी खून के रिश्ते भी शूल बन चुभते हैं और कभी जिनसे कोई नाता नहीं होता ,जो जाने -अनजाने कब आपके जीवन में चले आते हैं आपको इसका पता भी नहीं चलता, वो आपके दिल में फूल बन बसे होते हैं ,जिसकी खुशबु तक को आप सारी दुनिया से छिपा कर रखते हैं। दुनिया के नजर में ऐसे रिश्ते का कोई वजूद नहीं होता पर आपके लिए वो जन्मों जन्मों का नाता होता हैं। जो आपकी हर साँस के साथ चलता हैं ,आपके रगों में लहु बनकर बहता हैं ,आपकी धड़कनों के साथ धड़कता हैं और हरपल आपको जिन्दा होने का अहसास दिलाता हैं। इस रिश्ते की गहराई को सिर्फ और सिर्फ आपकी आत्मा समझ सकती हैं और कोई नहीं। ये रिश्ते जिस्मों से परे होते हैं ,इसका कोई नाम नहीं होता ,आप दुनिया को नहीं समझा सकते इसकी अहमियत को। ऐसे रिश्ते " हर एक " के जीवन में होता ही हैं। वो " हर एक "जो खुद के दिल में ऐसे रिश्ते को सब से छुपाये फिरता हैं मगर दूसरों की इसी भावना को नहीं समझता या समझना नहीं चाहता ।इस तरह जो रिश्ता सबसे पावन -पवित्र और रूहानी होता हैं वो दुनिया के नजर में बेनामी रिश्ता कहलाता हैं और अक्सर बदनाम रिश्ता भी।
लेकिन आप ना चाहते हुए भी उस रिश्ते में ऐसे उलझें होते हैं कि चाहकर भी उस बंधन से मुक्त नहीं हो पाते। वो एक बेनामी रिश्ता मीलों दूर से भी आपके आस्तित्व को प्रभावित करता रहता हैं। मीलों दूर से ही उसके हँसने -रोने ,ख़ुशी या गम का आप पर गहरा असर होता हैं। लेकिन उस असर को भी आप दुनिया के सामने प्रकट नहीं कर सकते। वो आपकी आत्मा की गहराइयों में ही इन भावनाओं के साथ अठखेलियां करता रहता हैं और आपको चुपचाप एक दर्शक की भाँति देखना होता हैं खुद को विचलित किए बिना।आप उसकी ख़ुशी में मुस्कुरा नहीं सकते और ना ही उसके बड़े से बड़े गम में भी एक कतरा आँसू ही बहा सकते। क्योकि इस मुस्कान और आँसू को कोई नहीं समझ सकता।हाँ ,मगर कही से भी गलती से भी आपके दिल में छुपे इस फूल की महक दुनिया को लग गई तो उस पवित्र -पावन रिश्ते को बदनामी जरूर मिल सकती हैं।
रिश्ते इंसान के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। लेकिन समाज में रिश्ते वही माने जाते हैं जिसकी मान्यता समाज ने दी हैं उस पर रिश्तों के नाम की मुहर लगी हो। कभी कभी ये मुहर लगे रिश्ते बोझ भी बन जाते हैं लेकिन उन्हें संभालना,सवरना,उनके ख़ुशी और गम में पूर्ण भागीदारी देना ये सब आपका कर्तव्य होता हैं जिसे निभाना ही होता हैं और निभाना भी चाहिए ये आपका सामाजिक दायित्व हैं। अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो समाज में बिखराव पैदा होगा। [जो कि आज की पीढ़ी के कारण हो रहा हैं।]
परन्तु जो रिश्ते आत्मा के होते हैं उसका क्या ?उसके प्रति तो हमारा कोई कर्तव्य ही नहीं होता न । क्योकि समाज हमें इसकी इजाजत ही नहीं देता। जब वो आत्मा से जुड़ा बेनाम रिश्ता किसी तकलीफ में होता हैं,वो असहनीय दर्द से गुजर रहा होता हैं तब भी इंसानियत के नाते ही सही आप उसकी चोट पर मरहम भी नहीं लगा सकते,दर्द से भरे उसके नयनों के नीर को भी पोछने तक की इजाजत नहीं आपको। क्योकि वो रिश्ता बेनाम हैं बहुत जल्द बदनाम हो जायेगा।
उस वक़्त आप खुद को इतना मजबूर इतना लाचार पाते हैं जैसे कि आपके हाथ पैर को बाँधकर,आपके होठों को सील कर आपको एक अंधे कुए में डाल दिया गया हो और आपका वो बेनाम रिश्ता आपकी तरफ लाचार बेबस निगाहों से देख रहा हैं,वो मदद की आस लगाए हुए अपने हाथ बढ़ाकर आपको आवाज दे रहा हैं पर आप कुछ नहीं कर सकते। यहाँ तक कि उसकी तकलीफ देखकर आपके मुँह से आह तक नहीं निकलती,आपकी आँखे बंजर सी हो जाती हैं जिसमें एक कतरा नमी तक नहीं आ सकती। शायद दुनिया की सबसे बड़ी लाचारी और सबसे बड़ा दर्द यही हैं।
आप उस अंधे कुए में बैठे बैठे समाज के बनाये रिश्तों के जंजीरों में जकड़े हुए सिर्फ और सिर्फ अपने आपको सांत्वना देने के लिए ये कह सकते हैं -
" तेरा गमख्वार हूँ लेकिन मैं तुम तक आ नहीं सकता
मैं अपने नाम तेरी वेकसी लिखवा नहीं सकता "
मैं अपने नाम तेरी वेकसी लिखवा नहीं सकता "
"तेरे आँख के आँसू पी जाऊँ ऐसी मेरी तक़दीर कहाँ
तेरे गम में तुझको बहलाऊँ ऐसी मेरी तकदीर कहाँ "
तेरे गम में तुझको बहलाऊँ ऐसी मेरी तकदीर कहाँ "
बहुत सुंदर और सार्थक बात कही सखी👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सखी
हटाएंप्रिय कामिनी , आज तुम्हारे इस दिल छू लेने वाले लेख ने मन बहुत भावुक कर दिया | प्रायः संसार में ऐसा कोई नही जिसने इस रिश्ते को कभी जिया न हो | बेनामी रिश्ते ऐसे हैं, जो समाज में बहुत ज्यादा लोकप्रिय नहीं कहे जा सकते और ना ही प्रायः इन्हें हर कोई अच्छी निगाह से देखता है | ये रिश्ते ऐसेहै जहाँ ना व्यर्थ की अपेक्षायें ना अनावश्यक अधिकार | सब हैं पर कोई अनुबंध नहीं | ये रिश्ते इन्सान को जीने का एक मकसद प्रदान करते हैं | करुणा और अनुराग भरे इन रिश्तों में जो आत्मीयता होती है , वह निस्वार्थ होती है| कवियों ने , गीतकारों ने इनकी महिमा गाने में कोई कसर नहीं छोडी| तुमने राजेंदरकृष्ण जी के गीत की पंक्तियाँ लिखकर , मेरे इस मनपसन्द गीत की याद दिला दी | सच में बेनामी रिश्तों में इतनी गुंजाइश ही कहाँ होती है , जो किसी के आंसू पी तो क्या पोंछ भी सके |पर फिर भी समाज में हर कालखंड में इनका अस्तित्व बना रहता है | गुलजार ने इन्हें देह के दायरे से बहुत दूर रख लिख दिया --------सिर्फ एहसास है ये रूह से महसूस करो -हाथ से छू के इसे रिश्तों का इल्जाम ना दो | इसके दर्दनाक पहलू को तुमने बहुत बढ़िया तरीके से शब्दांकित किया |सच है बड़ा दूभर होता होगा किसी अप्राप्य के लिए नित दुआ करना , वह भी संसार से छिपाकर और बिना कोई आशा रखे किसी को अपना बहुत ख़ास कहना | पर फिर भी ईश्वर की अराधना से इन रिश्तों का अस्तित्व का हमेशा कायम रहेगा , कभी प्रत्यक्ष तो कभो परोक्ष रूप में | अत्यंत मन से लिखे गये इस भावपूर्ण लेख के लिए हार्दिक शुभकामनाये सखी |
जवाब देंहटाएं" सिर्फ एहसास है ये रूह से महसूस करो -हाथ से छू के इसे रिश्तों का इल्जाम ना दो " इस एक पंक्ति ने मेरे लेख की रही सही कसर को भी पूरा कर दिया।
हटाएंदिल से धन्यवाद तुम्हे इतनी अच्छी और विस्तृत प्रतिक्रिया देने के लिए ,तुम्हारी प्रतिक्रिया हमेशा मेरे लेख को पूर्णता प्रदान करती हैं , सादर स्नेह सखी
बेनाम रिश्तेः गुलजार साहब की यह गीत याद आ गयी, आपकी इस रचना से -
जवाब देंहटाएंकोई होता जिसको अपना
हम अपना कह लेते यारों
पास नहीं तो दूर ही होता
लेकिन कोई मेरा अपना ...
सत्य तो यह है कि ऐसे रिश्ते कभी तो इतने सुखद लगते हैं कि मानों दुनिया की हर खुशबू इसमें समाहित हो ।
इसमें स्वार्थ का दुर्गंध जो नहीं रहता है, परंतु इसमें कोई अनुबंध भी तो नहीं होता है न ।
अतः ऐसे रिश्ते कच्चे धागे से भी कमजोर हैं, तनिक-से तनाव को सहन नहीं कर पाते हैं ऐसे रिश्ते और फिर दर्द की वही दास्तान ...
परंतु दिल में सदैव यह कामना तो जगी रहती ही है कि कोई तो होता मेरा अपना, पास नहीं तो दूर ही होता...।
एक ऐसा सच्चा मित्र जिससे हम अपना दुःख-सुख बढ़ सकें। अपने दिल के बोझ को हल्का कर सकें।
इस भावपूर्ण सृजन केलिए आपको नमन कामिनी जी।
सहृदय धन्यवाद अनीता जी ,मेरे लेख को चर्चा मंच पर साझा करने के लिए आभार आपका
जवाब देंहटाएंइस रिश्ते यही तो पाकीजगी हैं शशि जी कि" इसमें कोई अनुबंध नहीं होता "
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद आपका, इतनी अच्छी प्रतिक्रिया देने के लिए आभार ,सादर नमन आपको
सुन्दर..सार्थक और भावपूर्ण लेख कामिनी जी ।
जवाब देंहटाएंदिल से धन्यवाद मीना जी ,सादर नमस्कार
हटाएं"रिश्ते की गहराई को सिर्फ और सिर्फ आपकी आत्मा समझ सकती हैं और कोई नहीं। ये रिश्ते जिस्मों से परे होते हैं ,इसका कोई नाम नहीं होता ,आप दुनिया को नहीं समझा सकते इसकी अहमियत को। ऐसे रिश्ते " हर एक " के जीवन में होता ही हैं। वो " हर एक "जो खुद के दिल में ऐसे रिश्ते को सब से छुपाये फिरता हैं मगर दूसरों की इसी भावना को नहीं समझता या समझना नहीं चाहता ।"
जवाब देंहटाएंएक गाना याद आ गया...
रिश्ते कभी टूटे नहीं, जो टूट जाए वो रिश्ते नही,
ना जाने कैसे, रंगों में ढल जाते हैं
ये दुनियाँ के बदलते रिश्ते...
आपकी इस खूबसूरत भावना हेतु शुभकामनाएँ आदरणीया कामिनी जी। स्वस्थ रहें प्रसन्न रहें ।
इतनी सुंदर प्रतिक्रिया देने के लिए तहे दिल से आभार आपका ,सादर नमन
हटाएंभावपूर्ण लेखन
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद अनीता जी ,सादर नमस्कार आपको
हटाएंसच और सार्थक आलेख
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
सहृदय धन्यवाद सर ,आपकी प्रतिक्रिया हमेशा मेरा मनोबल बढाती हैं और मेरे लेखन को सार्थकता प्रदान करती हैं ,सादर नमन आपको
हटाएंरिश्ते इंसान के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। लेकिन समाज में रिश्ते वही माने जाते हैं जिसकी मान्यता समाज ने दी हैं उस पर रिश्तों के नाम की मुहर लगी हो। कभी कभी ये मुहर लगे रिश्ते बोझ भी बन जाते हैं आप दुनिया को नहीं समझा सकते इसकी अहमियत को। ऐसे रिश्ते " हर एक " के जीवन में होता ही हैं। लेकिन आप ना चाहते हुए भी उस रिश्ते में ऐसे उलझें होते हैं कि चाहकर भी उस बंधन से मुक्त नहीं हो पाते।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद संजय जी
हटाएंरिश्तों की परिभाषा ,उनकी गहराई को उकेरता आपका यह लेख अंतर्मन की गहराइयों को प्रभावित करता है। बेहतरीन
जवाब देंहटाएंलेखन सखी
सहृदय धन्यवाद सखी ,इतनी सुंदर और सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार आपका
हटाएंबहुत ही सुन्दर दिल को छूता भावपूर्ण लेख...।
जवाब देंहटाएंजीवन में इस तरह का रूहानी रिश्ता न मिला तो समझो कि पूरे जीवनभर कभी जीवन की गहराई तक पहुंचे ही नहीं उथले में ही जी गये जीवन.....
माना कि बहुत तड़प होती है पर ये एहसास और ये आत्मिक अनुबन्ध नहीं तो फिर जीवन का अनुभव ही क्या....
शानदार लेख के लिए बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं कामिनी जी !
मेरी रचना से भी सुंदर आपकी इस प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल से शुक्रिया सुधा जी ,सादर नमन आपको
हटाएंवाह!!प्रिय सखी ,दिल की गहराइयों तक छू गया आपका लेख । रिश्ते और उनकी अहमियत को बहुत खूबसूरत के साथ अभिव्यक्त किया है आपने ।
जवाब देंहटाएंदिल से धन्यवाद शुभा बहन ,बस एक प्रयास भर था। आपके दिल तक पहुंचने में सक्षम रहा तो लेखन सार्थक हुआ ,सादर नमन
हटाएंबहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद लोकेश जी ,मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए आभार ,सादर नमन आपको
हटाएंकुछ रिश्ते होते ही ऐसे हैं जो सब रिश्तों से ऊपर होते हुए भी बेनामी ही रहते हैं। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद ज्योति बहन ,बिलकुल सही कहा आपने ,सादर नमन आपको
हटाएंआपके इस रूमानी (दुनिया ने इस पवित्र शब्द को भी राजनीति शब्द की तरह अपभ्रंश मायने का जामा पहना कर अपवित्र बना दिया है) आलेख जिसका आगाज़ आपने एक गीत से किया है अगर इसका अंत भी इस गीत से किया जाए तो ...
जवाब देंहटाएं" कुछ तो लोग कहेंगे ... लोगों का काम है कहना
छोड़ो बेकार की बातों में.. कहीं बीत ना जाए रैना "
(सन्जोग से दोनों गाने एक ही कलाकार पर फिल्माया हुआ है।)
सहृदय धन्यवाद सुबोध जी ,मेरी आलेख को विस्तार देती आपकी इस सुंदर प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल से आभारी हूँ ,सादर नमस्कार
हटाएंलाजवाब लेखन 👏👏👏
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद नीतु जी ,सादर नमस्कार
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